Apang - 43 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 43

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अपंग - 43

43

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फ़्रेश होकर भानु नीचे आ गई, अब उसने मुन्ना को गोद में लेकर प्यार किया |

"क्या हुआ था ?" माँ ने पूछा | वह बहुत बेचैन थीं |

"कच्ची शराब पीकर और क्या ?"

"हाँ, आज के पेपर में भी है, सात आदमी मरे हैं ---"

"पता नहीं, बाबा कहाँ हैं, दिखाई नहीं दे रहे---|"

"फ़ैक्ट्री ---"

"वेरी गुड़ ! ज़रा इसको ले लो माँ, मैं ज़रा आती हूँ --"उसने बेटे को माँ को दे दिया | वह नींद में ही था | माँ ने उसे झूले में लिटा दिया और पास ही बैठकर झूलने लगीं |

ऊपर आकर उसने अपनी अलमारी में से कुछ पेपर्स तलाशने की शुरुआत की हीथी की उसे लगा बहुत थकी हुई है | वह भूल गई, क्या करने आई थी और अपने पलंग पर आकर लेट गई | पता ही नहीं चला, कब उसकी आँखें लग गईं |

आया अपने घर से नाहा-धोकर आ चुकी थी, दो-तीन बार ऊपर देख गई, वह बहुत गहरी सो रही थी |

"भानुमति ---कहाँ है बेटा ?" उसकी आँखें खुल गईं |

"यहाँ हूँ बाबा, ऊपर ---बोलिए --" उसने सीढ़ियों में से झाँककर कहा |

"आज ऑफ़िस भी नहीं आई ---" बाबा ने शिकायत की |

"अरे बाबा ! रोज़ मेरा आना ज़रूरी तो नहीं है | वह मुस्कुराती हुई नीचे उतरी |

चाय मेज़ पर लग चुकी थी |

"सुबह से भूखी है, अब जाकर ऊपर सो गई ---"

"बहुत थकान सी लग रही थी, अब अच्छे से खाऊँगी न --" भानु को सबको पटाना बहुत अच्छी तरह आता था |

"भई, आज दीवान अंकल भी बिटिया को बहुत याद कर रहे थे | " बाबा उदास थे |

"अच्छा ---पर क्यों ?" भानु ने पूछा |

"ये तो उन्हीं से पूछो ---|"बाबा ने उत्तर दिया तो भानु मुस्कुराई --

"बाबा ! शैतानी  बिलकुल नहीं चलेगी | मेरे जाने के बाद भी तो अकेले जाना है आपको |"

"हम्म---वो तो जाना ही होगा |"

"अच्छा ! सच-सच बताइए, अब कैसा लगता है आपको ? " भानु ने बाबा से पूछा |

" सच-सच कहता हूँ मि लॉर्ड --बहुत अच्छा लग रहा है, वैरी रिलैक्स्ड !" बाबा ने हँसकर  कहा |

"देखा, कहा था न मैंने, बेकार ही बाबा को जेल में डाल रखा था |"

"हाँ जी, एक बात सुनो, भानु की अम्मा ---" बाबा ने कहा और भानु की और आँख से इशारा किया |

"कहिए --" उन्होंने कहा |

"आपके पं सदाचारी कहीं लापता हो गए हैं |"

"मतलब ?" वह चौंकी |

"मतलब देहरादून में तो हैं नहीं वो --सक्सेना ने उन्हें अपनी चपेट में ले लिया था | बस्स --तभी से लापता हैं --लगता है, अपने बेटे के पास स्टेट्स में चले गए हों ---"

"ऐसे, कैसे जा सकते हैं ? " माँ को अजीब लगा |

"ऐसे लोगों के लिए बहुत रस्ते होते हैं माँ.सीधे रास्ते से तो जाते नहीं ये लोग ---" भानु ने कहा |

"उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं है | "

दो दिनों के बाद फिर से भानुमति लाखी के पास गई | उसके पास कई औरतें बैठी थीं | वे उसके पहुँचते ही विलाप करने लगीं, बेकार ही दिखावे में हूँ--हूँ कर रही थीं वे |विलाप नहीं कर रही थी तो लखी जिसका सुहाग दो दिन पहले उजड़ा था | थोड़ी देर रो-धोकर वे सभी चली गईं | क्या हाल बना दी थी उस बच्ची की !

भानुमति वैसे भी लाखी से अकेले में बात करना चाहती थी |

"कैसी है लाखी ? कैसा लग रहा है ?" उसने लाखी के सिर पर हाथ फिराया |

"कैसा भी नहीं दीदी ---" लाखी बड़ी तटस्थ थी |

"लाखी ---"

"ऐसा तो होना ही था एक दिन ---" उसने उसी भाव से कहा |

"ऐसा क्यों बोल रही है ?"

"आपको तो पता ही है दीदी, क्यों ? " लखी की आँखों में एक भी आँसू नहीं था |

"अच्छा, सुन --मुझे तो जाना ही होगा | ये सब कुछ खतम करके तुझे सीधे माँ के पास जाना है |"

"बहुत डर लगता है दीदी, आप होतीं तो ---"

"मैं कुछ नहीं हूँ, जो कुछ करता है, इंसान खुद ही करता है |"फिर बोली ;

"माँ से बात की है, तू आगे पड़ेगी |"

"आप जल्दी जा रही हो दीदी ?" भानु के जाने की बात सुनकर लाखी की आँखों में पानी भर आया |

कैसी बात है न, जो लड़की अपने आदमी के जाने पर नहीं रोई, वह भानु दीदी के जाने की बात सुनकर रोनर लगी थी | रिश्ते न तो खून के होते हैं, न ही स्वार्थ के ! रिश्ते होते हैं अपनेपन से ! ये ही रिश्ता लाखी का भानु के साथ था | भानु राजेश से दुखी थी और लाखी अपने आदमी से !

"ले, माँ ने भेजी हैं ---" भानु ने चार साड़ियों का पैकेट उसे पकड़ाया और कुछ रुपए निकलकर भी दिए |

"वो पहले वाले हैं न तेरे पास ?"

"हाँ, दीदी, बापू माँग रहा था ---|" लाखी बोली |

"उसे क्या पता तेरे पास रूपए हैं ? भानु ने पूछा |

"पता नहीं, चुगली खाई होगी किसी ने ----" लाखी ने कहा |

"चलती हूँ लाखी, कुछ ज़रुरत पड़े तो माँ हैं, पता नहीं तुझसे कब मिलना होगा ?बस--मैं तुझे पढ़ा-लिखा देखना चाहती हूँ |"

"दीदी ---" लाखी फिर से सिसक उठी |