1973
यह साल मेरे लिए खास था।
जैसे हर कुंवारी लड़की अपने भविष्य का सुंदर सपना देखती है।वैसे ही हर कुंवारा लड़का भी सपना देखता है।लड़की का सपना होता है,सुंदर राजकुमार सा पति।ऐसे ही लड़का भी चाहता है सुंदर पत्नी।अब यह तो फैसला हो चुका था कि मेरी मंगेतर कोन है।लेकिन उस दिन मैं यह सोचकर गया था कि मुझे यहाँ रिश्ता नही करना है और मैं आकर मना कर दूंगा।पर मेरे कजिन ने हां कर दी थी।
अब हां तो गयी थी।इसलिए मैं एक बार फिर से अपनी होने वाली पत्नी को देखना चाहता था।इसलिए मैं अपने होने वाले साले कमल की शादी में गया था।पर वहा बारात में मेरी मंगेतर नही आयी थी।मेरे बहनोई जय भगवान बांदीकुई में उस समय टी सी थे।एक दिन मैं आगरे से बांदीकुई गया तब पता चला।मेरी मंगेतर अपने पापा के साथ आई है।मैं स्टेशन पर गया तब तक वह जा चुकी थी।
वह जमाना आजकल की तरह नही था कि रिश्ता होने से पहले डेटिंग होने लगे।मोबाइल थे नही और लैंडलाइन भी सब के पास क्या कुछ के पास ही होते थे।
आजकल तो रिश्ता होते ही लड़का लड़की मिलने लगते है और मोबाइल पर बात तो शुरू ही हो जाती है।लड़की की माँ ही बात करने के लिए प्रेरित करती है।
सगाई तो हो चुकी थी।और लगन आयी थी पन्द्रह दिन की।उस समय एक हादसा हो गया।मकान मालकिन के तीन लड़के और तीन लडकिया थी।सबसे छोटा लड़का गोद मे था और सबसे छोटी लड़की करीब नौ साल की थी।वह मुझ से बहुत स्नेह करती थी।लग्न वाले दिन में मकान मालकिन को साथ लेकर आया था।
दूसरे दिन हम लौटे तो मोहल्ले के परिचित स्टेशन पर मौजूद थे।असल मे उस दिन उस लड़की की तबियत खराब हुई और उसकी अस्पताल में मौत हो गयी थी।उसकी लाश बाहर रखी थी जिसे हम ताजगंज श्मशान ले गए थे।दुखद था।मुझे यह टिस रही कि अगर मकान मालकिन को साथ न ले जाता तो अंतिम समय मे वह बेटी के पास होती।लेकिन तुलसी ने लिखा है--होवे वो ही जो राम रची राखा
शादी का का जिम्मा मेरे ताऊजी गणेश प्रशाद पर था।वो ही सब कार्य के करता धर्ता थे।
शादी से पहले वह आगरा आये थे।शादी में चढ़ाने के लिये कपड़े खरीदने के लिये।आजकल तो दुल्हन के लिए लहंगा,साड़ी आदि कई जोड़ी कपड़े भेजे जाते है।तब हमारे यहाँ तीन साड़ी,चप्पल,गहने और श्रंगार का सामान भेजा जाता था।वैसे लाल रंग की ही साड़ी शुभ मानी जाती थी।लेकिन मुझे लाल रंग पसन्द नही था।पर ताऊजी ने एक लाल रंग की और दो मेरी पसंद से एक नारंगी और एक फिरोजी रंग की साड़ी खरीदी थी।
और शादी से पहले मैं गांव आ गया था।आजकल सब कुछ शार्ट कट हो गया है।किसी के पास समय नही है।पर पहले हर काम रीति रिवाज और प्रथा से होते थे।रिश्तेदार कई दिन पहले आना शुरू हो जाते थे।तेल,हल्दी,बिंदायक आदि सभी रश्में निभाई जाती थी।समय समय पर मांगलिक गीत गाये जाते थे।भात की रस्म बरात जाने से एक दिन पहले होती थी।सब रिश्तेदारों को कपड़े ,विदा दी जाती थी।अब तो सब कुछ एक ही दिन में मरीज हॉल में निपटा दिया जाता है