Andhera Kona - 11 in Hindi Horror Stories by Rahul Narmade ¬ चमकार ¬ books and stories PDF | अंधेरा कोना - 11 - साये का साया

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अंधेरा कोना - 11 - साये का साया

मैं राजीव शुक्ल, इंकम टेक्स डिपार्टमेन्ट मे ऑफिसर हू, 5 साल पहले मेरी ट्रांसफ़र अनंतगढ़ शहर मे हुई थी, मैं शहर से दूर कुछ मकान की कॉलोनी थी, उधर मुजे भाड़े पे मकान मिल गया था, यहा मे 6 महीनों के लिए ही आया था क्युकी यहा के एक ऑफिसर को मुजे ट्रेनींग देनी थी, और ऑफिस मे सब कुछ ठीक करना था, इसलिए मैं ज्यादा दिन रहने वाला नहीं था l मेरे घर के मालिक का नाम सहदेव था, उन्होंने मुजे कम से कम किराये पर मकान दिया था l मैं उस दिन रात बैठा था, मैं घर मे ज्यूस पी रहा था अचानक मेरी नजर दरवाजे पर खड़े एक साये पर पडी, 6 फिट लंबा काला साया सा था, ना ही उसका चेहरा दिख रहा था, और ना ही उसके कपड़े दिख रहे थे, वो सिर्फ एक साया था, इंसान के साये जैसा वो साया था l मैं भूत प्रेत से थोड़ा डरता हू इसलिए उस साये को देखकर मैं डर गया लेकिन पलक जपकते ही वो गायब हो गया, अचानक मेरे कुछ रिश्तेदार कार लेकर आए और बाहर से आवाज देकर मुजे बुलाने लगे l

आलोक : ओये राजीव, चल घूमने जाते हैं, बारिश मे रात को घूमने चल हमारे साथ l

रमेश : अरे सोच क्या रहा है,आकर बैठ जा l

मुजे गाड़ी के छत पर अचानक वो साया दिखा, मैं घबरा गया, और उन लोगों को मना करने लगा l

मैं : मुजे माफ कीजिए, मैं नहीं आ सकता, मेरी तबियत ठीक नहीं है l

निधि : चलिए ना भैया , हम सब जा रहे हैं, मजा आएगा l

मैं : नहीं सिस्टर, मेरी तबियत ठीक नहीं है l

मैं मना करता रहा और वो लोग चले गए, दूसरे दिन मुजे फोन आया कि उन लोगों की कार का एक्सीडेंट हो गया l मैं उनसे मिलने हॉस्पिटल गया, तभी पता चला कि गाड़ी की ब्रेक फेल होने के कारण गाड़ी का कंट्रोल नहीं रहा और रास्ते पर से उतर गई और पेड़ से टकरा गई, मुजे शांति हुई कि अच्छा हुआ मैं उन लोगों के साथ नहीं गया l

कुछ दिन बाद मेरे कलिग मि. शर्मा की बेटी रुबीना का जन्मदिन था, मुजे भी इन्वाईट किया गया था, मैं शाम को बर्थडे पार्टी उनके घर पहुच गया l शर्मा जी का घर बहुत ही बड़ा था, या यू कहु की उनका बंगलों था, वहीं पर पार्टी थी, मैं होल मे घूम रहा था और सब देख रहा था, अचानक मुजे वो साया दिखा l मैं घबराकर तीन कदम पीछे हट गया, जैसे ही पीछे हटा की उपर छत ler लगा हुआ झूमर गिरा और टूट गया, बीच मे सिर्फ मैं ही खड़ा था, मुजे कुछ हुआ नहीं और मैं बच गया था l

एक दिन की बात है, रात को मैं अपने कमरे में बैठा था यहा मुजे घर में मुजे हर जगह वो साया दिखने लगा, कभी सीढ़ी पर तो कभी दरवाजे पर, कभी सोफ़े पर तो बेड पर, कभी बाथरूम मे तो कभी किचन में, मुजे लग रहा था कि मैं पागल हो चुका हू, मैं उठा और घर से बाहर निकल आया, मैं उस घर से थक गया था, मैं भाग गया और वो भी बहुत आगे चला गया l मैं रुका थोड़ी ही देर में बड़ी तीव्रता के साथ वहा भूकंप आया, मेरा घर भी हिल गया पूरा, भूकंप के बाद मैं जैसे तैसे घर में गया तो देखा कि छत का प्लास्टर गिरा हुआ था l मुजे एक बात अंदर से खाए जा रही थी कि वो साया जब भी मुजे दिखता है तब कुछ अनहोनी होती है और उस अनहोनी से मैं बच भी जाता हू, मैं सोचता था कि ये साया मुजे चेतावनी देने आता था या फिर मुजे मारने के लिए आता था l हमारे घर एक दूसरे से बहुत दूर थे, एक दिन मैं हमारे घर के नजदीक आए एक घर गया, वहा 80 साल के एक बुजुर्ग रहते थे उनका नाम जितेंद्र सिंह था उन्होंने मेरी सारी बात सुनी और उनके चहरे पर मुस्कान आई उन्होंने मुजे समझाया कि,

जितेंद्र सिंह : तुमने सही सोचा बेटे, वो साया तुम्हें बचाने के लिए ही आया था l वो साया सबकी मदद करता है और वो पीछे 700 साल से इस इलाके में है l

उनकी बात सुनकर मैं हैरान रह गया, मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई

मैं : उसके बारे में और बताइए न l

जितेंद्र सिंह : वो साया मेरे दादा जी और मेरे पिताजी को भी दिखा था, मुजे भी दिखता है कभी कभी l वो उन्हीं की मदद करता है जो अच्छे लोग होते हैं बुरे स्वभाव वालो को और बुरे काम करने वाले को वो नहीं दिखता l

मैं : वो साया किसी इंसान का है? अगर हाँ तो कौन है वो?

जितेंद्र सिंह : कहा जाता है कि आज से 700 साल पहले वो एक दयालू समाज़ सेवक था, 45-50 की उम्र में ही उसकी मौत हो गई थी, उसकी आखिरी इच्छा समाज़ सेवा ही थी, इसलिए मौत होने के बाद उसका साया रह गया और वो आज भी सबको दिखता है l अगर तुम्हें वो दिखता है तो वो तुम्हें मारने नहीं आया वो तुम्हें बचाने आया है l

मैं उनके घर से निकला, उधर सारे घर एक दूसरे से दूर थे धीरे धीरे मेरा घर नजदीक आ रहा था, उधर और कोई घर नहीं था सिर्फ मैदान ही था, मेरे जूतों के चलने की आवाज आ रही थी, बीच मे स्ट्रीट लाइट मे रोशनी आती थी फिर आगे का रास्ता मानो कि अनंत तक जा रहा था l ठंडी हवा मे मैं अपने घर का दरवाजा खोला, मेरी आँख मे आंसू थे, उस शख्स के लिए मैंने क्या क्या सोचा था और वो कितना अच्छा निकला l मुजे उसका शुक्रिया अदा करना था लेकिन कैसे करू, ये सब खयाल मेरे दिमाग मे आ रहे थे, अचानक मैंने देखा कि वो साया मेरे सोफ़े पर बैठा था l उसे देखकर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई, वो इस तरह मुजे देख रहा था कि मानो उसे मेरे बारे में सब पता चल गया और मैंने भी उसके बारे मे जान लिया था और मैंने उससे कहा

मैं : अब मुजे किससे बचाने आए हों? या फिर मुझसे दोस्ती करने आए हों?

वो खड़ा हुआ और मेरी ओर आने लगा, उसने अपना हाथ मेरी ओर बढ़ाया !!