Tamacha - 6 in Hindi Fiction Stories by नन्दलाल सुथार राही books and stories PDF | तमाचा - 6 (सरप्राइज)

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तमाचा - 6 (सरप्राइज)

बेतरतीब गलियों के शहर जैसलमेर में एक पतली सी गली के मध्य स्थित, एक घर में एक लड़की 'बिंदु' खाने की तैयारी कर रही थी। तभी उसके पापा जो अभी ही घर आये थे और दरवाजा खुला देखकर बिंदु.....बिंदु कहके उसे बुला रहे थे।
"हाँ जी पापा !" बिंदु रसोई में से ही बोली ।
"कहाँ हो तुम? और ये दरवाजा खुला कैसे है?" विक्रम चिंता और क्रोध के मिलेजुले स्वर में बोले।
"रसोई में ही हूँ पापा। और अभी सारिका आंटी आई थी उन्होंने ही खुला रख दिया होगा। "
"तो तुम्हें देखना चाहिए था न!"
"अभी ही तो गई है वो पापा और मैं सब्जी बना रही थी । आप इतनी चिंता मत किया करो। और जल्दी से हाथ-मुँह धोकर आ जाओ , मैं खाना लगा देती हूँ। "
आज बिंदु ने खाना बनाते वक्त सारा स्नेह उसमें मिला दिया था। पिता के अलावा उसका और था ही कौन? और दिन भर घर में पड़ी रहने वाली बिंदु को कल पापा घुमाने ले जायँगे , ये खयाल ही उसको आनंदित कर रहा था।
बिंदु ने पापा को खाना परोसा पर उसके पापा का ध्यान इसी चिंता में था कि अपनी बेटी को क्या जवाब दूंगा।
जब कोई अपना दैनिक कार्य न समझकर विशेष भाव और प्रेम से कोई व्यंजन बनाता है तो उसे उम्मीद रहती है कि इस खाने की प्रशंसा की जाएगी। पर अपने पिता का मौन और चिंतित चेहरा देखकर बिंदु बोली"क्या बात है पापा? आज आप उदास क्यों लग रहे हो?"
"नहीं तो बेटी , मैं तो एकदम ठीक हूँ। बस ज्यादा काम की वजह से थोड़ा थक गया था। " विक्रम ने अपनी चिंता को भीतर दबाते हुए बोला।
"अच्छा पापा। फिर खाना खा के आप आराम करो। वैसे कल हम कहाँ घूमने जायँगे?"
अक्सर ऐसा होता कि कोई बात जिसके जिक्र से हम बचना चाहते है उसका ज़िक्र हो ही जाता है। विक्रम सोच रहा था कि अभी बिंदु इस बारे में बात न करे लेकिन जब बिंदु ने बोल ही दिया तो विक्रम ने कहा "चलेंगे बच्ची वो तो कल ही बताऊंगा , सरप्राइज ऐसे थोड़ी बताई जाती है।"
मनुष्य और विशेष रूप से स्त्री को जब ऐसा कह दिया जाए कि यह तुम्हारे लिए सरप्राइज है तो उसकी उत्कंठा और बढ़ जाती है।
"बताओ न पापा क्या सरप्राइज है ?" बिंदु ने अपने उत्कंठापूर्ण हाव-भाव से पूछा।
"नहीं , फिर सरप्राइज, सरप्राइज थोड़ी रहेगा।"
दोनों ने अपना खाना पूरा किया और विक्रम छत पर थोड़ी देर टहलने चला गया और बिंदु बर्तन धोने रसोई में चली गई। विक्रम टहलते-टहलते इसी चिंता में था कि कल क्या होगा? अपनी बेटी को क्या जवाब देगा? वहीं बिंदु जो घर में एक कैदी की तरह रहती थी और कल उसे खुले आसमान में घूमने को मिलेगा यही सोचकर वो रोमांचित हो रही थी। विक्रम हमेशा पंद्रह से बीस मिनिट में टहल के नीचे सोने आ जाते थे लेकिन आज आधे घण्टे से ज्यादा समय हो गया था । बिंदु ने भी अपना कार्य पूर्ण किया और छत पर चली गई ।
"पापा! आप अभी तक आए नहीं नीचे, सच-सच बताओ क्या बात है?"
"अरे ! कुछ नहीं बेटी बस योजना बना रहा था कल की।"विक्रम सोच रहा था कि बिंदु को सच बता दे लेकिन बोल कुछ और ही गया।
जब बिंदु ने सुना कि पापा कल के लिए कोई योजना बना थे तो उसने सोचा कि जरूर पापा ने मेरे लिए इस बार कुछ खास किया होगा। वह और ज्यादा उत्साहित हो गई। और बोली"फिर बताओ, क्या योजना बनाई?"
" चलो अभी सो जाओ , कल सब पता चल जाएगा।"विक्रम ने सीढ़ियों की तरफ जाते हुए बोला।

विक्रम और बिंदु दोनों अपने-अपने कमरे में सोने चले गए पर दोनों की आंखों में नींद कोसों दूर थी। बिंदु सोच रही थी कि कल क्या सरप्राइज मिलेगा और विक्रम सोच रहा था कि कल बिंदु को क्या जवाब दूँगा और कैसे?

क्रमशः....