भाग-3
"आप कहना क्या चाहती हो। साफ-साफ कहो। पहेलियां मत बुझाओ!"
"पहली बात तो यह है कि 8 साल पहले मेरे पेट में पस (मवाद) पड़ गई थी जिसका एक बहुत ही बड़ा ऑपरेशन हुआ और डॉक्टर ने कहा था भविष्य में वह दर्द कभी भी उठ सकता है।"
"देखिए दुख, तकलीफ और बीमारी पर किसी का जोर नहीं। अब भविष्य में मुझे क्या हो जाए, इसकी क्या गारंटी है। यह तो कोई दाग नहीं हुआ।" लड़का अपनी बात रखते हुए बोला।
"दाग है! वह ऑपरेशन इतना बड़ा था कि मेरा पेट बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था। उस ऑपरेशन के कारण मेरे पेट पर अनेक टांकों के भद्दे निशान हैं।"
"हां, ऑपरेशन होगा तो टांकों के निशान तो आएंगे ही ना ! उसमें कोई नई बात तो नहीं!" लड़का शांति से बोला।
" आप समझे नहीं! मैंने कहा मेरा पेट टांकों के कारण काफी भद्दा हो गया है। मेरी खूबसूरती और गुणों का गुणगान करने वाले जब इसके बारे में सुनते या देखते तो घिन के कारण आंखे फेर लेते और मेरा रिश्ता नकार चले जाते। "
" आपके यह निशान तो छुपे हुए थे फिर आपको सबके सामने इनके बारे में बताने की क्या जरूरत थी!" लड़के ने पूछा।
" मैं, अपने रिश्ते की नींव झूठ के आधार पर नहीं रखना चाहती। जो भी मुझे पसंद करेगा उसे मुझे इसी रूप में पसंद करना होगा।"
सुनकर लड़का कुछ देर चुप रहा।
उसे चुप देख कर खुशी बोली "अरे, आप परेशान ना हो। मुझे तो ना सुनने की आदत है। चलिए बाहर चलते हैं।"
" खुशी जी, आपने मेरी चुप्पी का गलत मतलब निकाला। मैं तो आपकी साफगोई और साहस देखकर हैरान था। अपने जीवन की कड़वी सच्चाई को दूसरों के सामने रखना शायद ही किसी के लिए संभव हो। मुझे आप जैसे ही जीवट साथी की तलाश थी। जो जीवन सफर में हर मोड़ पर मेरा साथ दे। सुख हो या दुख हमेशा मेरा साहस बन मेरे साथ खड़ी रहे। खुशी जी, मुझे आप पसंद हो। अब मैं ,आपसे पूछना चाहता हूं क्या मैं, आपको पसंद हूं!"
"जी देखिए! आपने अभी सिर्फ सुना है उन निशानों के बारे में। देखा नहीं ! मैं चाहती हूं कि आप कोई जल्दबाजी ना करें, फैसला लेने में। एक बार अपने माता-पिता से भी इस बारे में बात करें। शादी मात्र दो इंसानों का नहीं अपितु दो परिवार का संबंध है। ऐसे रिश्ते का कोई मोल नहीं, जिसमें परिवार की रजामंदी ना हो। आप एक बार अपने घर वालों से इस बारे में बात करें और हो सके तो अपनी मां के साथ इन निशानों को देखें। मुझे दिखाने में कोई आपत्ति नहीं और फिर कोई फैसला ले। हां, जहां तक आपको पसंद करने की बात है तो बस मैं इतना ही कहना चाहूंगी। जो व्यक्ति दूसरे के चेहरे को देख उसके मन के भाव पढ़ ले। जिसका दिल दूसरों के दुख से दुखी हो और जो रूप से ज्यादा गुणों को महत्व दें उसे कौन पसंद नहीं करेगा। मेरी तरफ से हां है लेकिन यह रिश्ता तभी हो सकता है, जब आपके माता-पिता भी इसके लिए सहमति दें। हां मैं चाहती हूं आप उन पर किसी भी तरह का दबाव ना बनाएं।क्योंकि अभी तो आप दबाव बनाकर हां करवा लेंगे लेकिन पूरी उम्र मैं उनके दिल में जगह ना बना पाऊंगी। बस मेरी आपसे इतनी सी प्रार्थना है।"
कहकर खुशी बाहर आ गई।
उसे अकेला बाहर आया देखकर, उस लड़के जिसका नाम सिद्धार्थ था के माता पिता ने खुशी से पूछा "बेटा सिद्धार्थ!!!"
"अंकल जी, उन्हें आप से अकेले में कुछ बात करनी है। वह आप दोनों को अंदर बुला रहे हैं!"
"हमसे! हमसे क्या बात करेगा वह।" दोनों एक दूसरे की तरफ हैरानी से देखते हुए उठकर अंदर चले गए।
"क्या बात है सिद्धार्थ! क्या बात हुई, तुम दोनों के बीच में! क्या फैसला लिया तुमने और हमें क्यों बुलाया यहां!" उसके पापा ने एक साथ कई सवाल उससे कर डाले।
अपने पापा की बात सुन सिद्धार्थ ने कहा " पापा, मुझे खुशी पसंद है!"
"हां, तो बेटा यह तो बहुत अच्छी बात है। हमें भी लड़की पसंद है तो फिर क्या बात रह गई। हमें अंदर क्यों बुलाया!" इस बार सिद्धार्थ की मां बोली।
"मां, खुशी के बारे में, मैं आप लोगों से एक बात करना चाहता हूं। जो उसने मुझे बताई और उसने कहा कि मैं आप लोगों को भी इस बारे में बताऊं। अगर आप वो सब सुनकर या देखकर रिश्ता मंजूर करेंगे तभी बात आगे बढ़ेगी।"
"कौन सी बात जल्दी बता! पहेलियां मत बुझा। साफ-साफ कहो!" सिद्धार्थ की मां अधीरता से बोली।
सिद्धार्थ ने अपनी मम्मी पापा को खुशी के ऑपरेशन व टांकों बारे में बताया और बोला "पापा मम्मी, मुझे यह सब जानकर भी खुशी से शादी करने में कोई भी एतराज नहीं।
जब मैंने उससे यह कहा तो वह बोली कि शादी का अर्थ मैं और आप नहीं परिवार भी है । उन्हें भी इस बारे में पता होना चाहिए। बस पापा मुझे तो उसकी यही सादगी और सच्चाई भा गई। आगे आप जो सही समझे बताएं!"
सिद्धार्थ के मम्मी पापा कुछ देर चुप रहे। उन्होंने एक दूसरे की आंखों में देखा। मानो आपस में कुछ बातें कर रहे हो और फिर उठ गए।
" चलो बेटा बाहर चलते हैं!"
लेकिन पापा आपने बताया नहीं कि आपने क्या फैसला लिया।"
"जो भी फैसला लिया होगा बेटा, वो तेरे व अपने घर की भलाई के लिए ही लिया होगा। तू हम दोनों पर भरोसा रख।"
जैसे ही वह सब बाहर आए खुशी के मम्मी पापा ने उनकी ओर बड़ी आस भरी नजरों से देखा।
सिद्धार्थ के पापा, खुशी के पापा की ओर देखते हुए बोले "भाई साहब, आपकी बेटी के पेट का ऑपरेशन हो चुका है और निशान भी काफी है।"
"जी!" खुशी के पापा ने बुझी हुई आवाज में कहा।
"फिर हम आपकी बेटी का रिश्ता !!!" सिद्धार्थ के पापा अपना वाक्य पूरा करते , उसके पहले ही खुशी के पापा उनकी बात काटते हुए बोले।
"बस भाई साहब! हमें आपका जवाब मिल गया। ज्यादा कहकर हमारा और हमारी बेटी का दिल ना दुखाएं!" कहते हुए उन्होंने हाथ जोड़ दिए और उठकर चल दिए ।
क्रमशः
सरोज ✍️