Bharosha - 4 in Hindi Moral Stories by Parul books and stories PDF | भरोसा - 4

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भरोसा - 4

4

पुलिस बार - बार तुषार को यही सवाल पूछ रही थी कि, "तुमने मौसी को क्यों मारा?" और तुषार बार - बार उनको यही जवाब देता रहता था कि, "मैंने मौसी को नहीं मारा है।"

"क्या ये बात सच है कि तुम और तुम्हारी बीवी मौसी के सारे ज़ेवर ले कर यहाँ से पलायन हो गए थे?"

"हाँ, ये बात सच है कि मौसी ने अपने सारे ज़ेवर चित्रा को पहनने के लिए दिए थे पर उस गहनों की चोरी कर के भागने का हमारा कोई इरादा नहीं था।"

"तो तुम दोनों अचानक ऐसे गायब कैसे हो गए?"

"हम गायब नहीं हुए थे पर,"

"पर?"

"हमारे साथ एक हादसा हो गया था।"

"कैसा हादसा?"

"हम जब शादी से वापस घर लौट रहे थे तब हमारा एक्सीडेंट हो गया था, लगभग एक महीने तक हम अस्पताल में थे, मैं जैसे ही ठीक हो गया वैसे ही मौसी के सारे गहने लौटाने आ गया था। और उस रात को मैं उनके घर उनके सारे गहने लौटाने ही गया था।"

"पर हमें तो मौसी के घर से कोई गहने नहीं मिले थे!" इन्सपेक्टर ने कहा।

"वो मुझे कुछ नहीं मालूम, मैंने तो उन्हें उनके सारे ज़ेवर दे दिए थे, और अपनी कहानी भी बता दी थी। वो तो अगले दिन मेरी बीवी को मिलने के लिए भी आनेवाली थी।" तुषार ने बताया।

"तुम्हारी बीवी कहाँ है? इन्सपेक्टरने पूछा।

"मेरी बीवी तो अभी भी अस्पताल में ही है, उसका इलाज चल रहा है। और उसके इलाज के पैसों के लिए ही मैं यहाँ अपना घर बेचने के सिलसिले में आया था, और आप लोगों ने मुझे पकड़ लिया।"

"तुम सच बोल रहे हो?" इन्सपेक्टर ने पूछा।

"झूठ बोलने का कोई कारण भी तो होना चाहिए!" तुषार ने कहा।

तुषार की बात को सच मानकर पुलिस ने मौसी के घर पर जा कर ज़ेवर की अच्छी तरह से तलाश की पर उन्हें ज़ेवर कहीं नहीं मिले। 'अगर तुषार ने ज़ेवर मौसी को लौटा दिए थे तो वो ज़ेवर आखिर गए कहाँ थे?' अब इस सवाल की दिशा में पुलिस ने अपना काम शुरू कर दिया था। उन्होंने वापस से सब लोगों की पूछताछ की पर कोई सबूत हाथ नहीं लग रहा था। मौसी के मोबाइल की डिटेल्स भी चेक करवाई थी पर वो डिटेल्स से भी कुछ मालूम नहीं हो रहा था।

पुलिस को भैरवी पर शक होने लगा था क्योंकि वही एक थी जो मौसी के घर अक्सर आया करती थी, कामवाली बाई पे भी पुलिस को शक हो रहा था, पर ज़ेवर तुषार ने रात को लौटाए थे और रात को तो कामवाली उधर नहीं थी! तो फिर ऐसा कौन था जो रात के समय बेझिझक मौसी के घर जा सकता है? क्योंकि न तो कोई खिड़की में से अंदर आया था और नाही कोई दरवाजा तोड़कर अंदर आया था! तो मतलब ये था कि कोई पहले से ही घर में मौजूद था या मौसी का कोई करीबी जान - पहचानवाला रात को उनसे मिलने आया होगा!

पुलिस ने घूमा - घुमाकर भैरवी को पूछा पर भैरवी यही बात दोहरा रही थी कि उसे इस बारे में कुछ मालूम ही नहीं था, जो कुछ भी मालूम था वो सब उसने सही - सही बता दिया था।

एक रात को इन्सपेक्टर के मोबाइल पर वो महिला हवालदार का फोन आया जो अस्पताल में मौसी के पास रुकी थी। उसने बताया कि, "मौसी को होश आ गया है।"

ये बात सुनकर इन्सपेक्टर साथी हवालदार के साथ तुरंत ही अस्पताल पहुँचे। उन्होंने मौसी को उस रात की घटना के बारे में पूछा पर मौसी को कुछ याद नहीं आ रहा था। सिर पर चोट लगने की वजह से उनकी याददाश्त शायद कमज़ोर हो गई थी। पुलिस को उनसे किसी भी प्रकार की जानकारी प्राप्त नहीं हो रही थी। डॉक्टर्स ने मौसी को ज़्यादा सवालात करने से पुलिस को मना कर दिया था।

अगर तुषार ने ज़ेवर लौटा दिए थे तो वो ज़ेवर कहाँ थे ? और किसने मौसी पर ऐसा घातक हमला किया था? इसका पता लगाने में पुलिस नाकाम रही थी। बहुत ही पूछताछ करने के बावजूद और बहुत ही छानबीन करने के बावजूद पुलिस असलियत तक नहीं पहुँच पा रही थी। मौसी भी कुछ बता नहीं रही थी कि उस रात को उनके साथ क्या हुआ था?

'कहीं ऐसा तो नहीं था न कि तुषार ने ही ज़ेवर लौटाने के बाद किसी बात से नाराज हो कर मौसी पर हमला किया हो!' यही सोचकर पुलिस ने तुषार से वापस पूछताछ की। तुषार को उन्होंने बड़े ही टॉर्चर कर के पूछा , उसे मार - पीटकर भी पूछा पर उसका जवाब वही था जो उसने पहले दिया था। पुलिस ने मौसी के घर आनेवाले सारे सदस्यों पर नज़र रखना शुरु कर दिया था। कौन कहाँ जाता था? किससे मिलता था, वगैरह सब पर पुलिस अपनी नज़र रख रही थी। एक बार वापस पुलिस मौसी के घर पहुँची थी और सारे कमरोंकी और कमरे में रखी वस्तुओंकी एकदम बारीकी से जांच कर रही थी।

जब एक हवालदार ने अलमारी में से सारी फाईलें निकाली तो उसमें से सफ़े रंग का एक लिफाफा नीचे गिरा। इन्सपेक्टर ने उसे उठाया और खोल के देखा। वह फ्लाइट की टिकट थी। इन्सपेक्टर जैसे ही उसे बंद करके लिफाफे में रख रहा था कि उसका ध्यान उस टिकट पर छपी हुई डेट पर गया। वह डेट पढ़ते ही वो फौरन अपनी गाड़ी में अस्पताल जाने के लिए रवाना हो गए। अस्पताल पहुँचते ही उन्होंने मौसी के बेटे, करन के बारे में भैरवी से पूछा।

"वे डॉक्टर की कैबिन में गए हुए है।" भैरवी ने बताया।

इन्सपेक्टर डॉक्टर की कैबिन में पहुँचा और उनसे बात कर रहे करन को अपने साथ पुलिस स्टेशन आने के लिए कहा।

"बात क्या है?" करन ने पूछा।

"आप हमारे साथ पुलिस स्टेशन चलिए, आपको सब मालूम चल जाएगा।" इन्सपेक्टर ने कहा।

पुलिस स्टेशन पहुँचते ही इन्सपेक्टर ने करन के हाथ में वो लिफाफा दिया और पूछा, "ये आप का है?"

"हाँ," करन ने कहा।

करन के हाँ कहते ही इन्सपेक्टर को अपने सारे सवालों के जवाब मिल गए थे। पर फिर भी वे करन से कई तरह के सवाल पूछ रहे थे ताकि उनका जो अनुमान था वो सही साबित हो सके!

करन को समज में ही नहीं आ रहा था कि इन्सपेक्टर उससे ऐसे सवाल क्यों पूछ रहे थे?

(क्रमश:)

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