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दूसरे दिन सुबह तुषार और चित्रा दोनों ही गौरी मौसी के पास आए और उन्हें अपना हार लौटाते हुए कहा, "मौसी आपने हमें इतना अपना माना इसके लिए हम तहे दिल से आप का आभार मानते हैं।"
"इसमें आभार माननेवाली कौन - सी बात है, आप लोग मेरे अपने ही तो है, मैंने एक दिन के लिए उसे पहने के लिए दे दिया तो कौन - सी बड़ी बात हो गई, अगर मेरी अपनी बहू होती तो," इतना बोलकर गौरी मौसी अटक गई। आगे कुछ बोल नहीं पाई।
तुषार और चित्रा उनके मन के भाव भांप गए और इसलिए बोले, "मौसी आप इतनी उदास क्यों हो रही हो, हम भी तो आप के बहू और बेटे ही जैसे है न!"
"हाँ," मौसी अपने आँसू छुपाते हुए बोली।
"मौसी पता है आप को? कल शादी में सबकी नज़र आप के दिए हुए इस हार पे ही थी, सब इस हार की बहुत ही तारीफ़ कर रहे थे, सब लोग बोल रहे थे कि इस हार में मैं बहुत ही सुंदर लग रही हूँ।" चित्रा खुश होती हुई बोली।
वो लोग ऐसी ही बातें कर रहे तभी एक लड़की गौरी मौसी को मिलने के लिए आई। आते ही उसने गौरी मौसी को चित्रा और तुषार से बातें करते हुए सुना, गौरी मौसी उनको वह सारी बातें बता रही थी, जो उन्होंने नहीं करनी चाहिए थी। इसलिए वो गौरी मौसी को दूर से ही इशारा करके उन्हें मना कर रही थी, पर गौरी मौसी समझ नहीं पा रही थी। इसलिए चित्रा और तुषार के जाने के बाद उस लड़की ने गौरी मौसी से कहा, "मौसी आप क्यों उन्हें अपनी सारी अंगत बातें बता रही थी!"
"अरे, वे कोई पराए थोड़े ही है, अपने ही तो है, उनके साथ बात करने में कोई हर्ज़ नहीं है।"
"मौसी, आप जिसे अपना समझ रहे हो, क्या पता कल वही आप को धोखा दे जाए। "
"एसी बातें करके तू मुझे डरा मत, और अब यहाँ आने का कारण बता।"
"मम्मी ने आप के लिए ये खाखरा, गांठिया, चकली, और ये नमकीन भिजवाए हैं।"
"हाँ - हाँ, मैंने ही उन्हें फोन कर के ऑर्डर दिया था। तू बैठ मैं अभी पैसे लेकर आई। " यह कहकर गौरी मौसी पैसे लेने अंदर अपने कमरे में चली गई तभी चित्रा उधर मौसी को अपने हाथों से बना हुआ नाश्ता देने आई। उसकी नज़र टेबल पर पडे नमकीन पर पड़ी, फिर उसने वह लड़की तरफ देखा और पूछा, "ये सारे पैकेट तुम लाई हो?"
"हाँ," उस लड़की ने जवाब दिया।
"नाम क्या है, तुम्हारा?"
"भैरवी "
गौरी मौसी आई और उन्होंने भैरवी को पैसे दिए। पैसे लेकर भैरवी उधर से चली गई। उसके जाने के बाद चित्राने मौसी को कहा, "आपने ये सारे नमकीन बाहर से क्यों मंगवाए है? मुझे कह दिया होता, मैं आप के लिए बना देती।"
"हर महीने मैं उसकी मम्मी के पास से ही ये सारे नमकीन लेती हूँ, उसकी मम्मी से मेरी मुलाकात एक बार मंदिर में हुई थी, बातों ही बातों में पता चला कि वह घर पर बनाए हुए नमकीन बेच रही है तो बस उस दिन से मैंने उससे नमकीन लेना शुरू कर दिया और वो मुझे घर पर ही जो चाहिए वो भिजवा देती है।"
"ठीक है, मौसी, अब मैं जा रही हूँ, घर पर सारे काम ऐसे ही पड़े है।"
"ये ले, तुषार के लिए ये लेती जा," कहकर मौसीने उसे एक - दो नमकीन के पैकेट हाथ में थमा दिए।
भैरवी जब भी मौसी के घर नमकीन देने आती तब चित्रा उधर मौजूद ही रहती थी और भैरवी को ये बात बिल्कुल ही पसंद नहीं आती थी। वो मौसी को अक्सर समझाया करती थी कि, "किसी पर भी इतना विश्वास मत रखिए।" पर मौसी उसकी बातों पर ध्यान नहीं दे रही थीं। चित्रा और तुषार के आ जाने से उनका अकेलापन जो दूर हो गया था, इसलिए।
एक दिन तो भैरवी ने चित्रा को मुँह पर ही सुना दिया था कि "आप मौसी से जो ये मेलजोल बढ़ा रहे हो न, उसके पीछे का इरादा मेरी समज में आ रहा है। अकेली - बूढ़ी मौसी के साथ अपना संबंध बढ़ाकर अपने स्वार्थ को पूरा करने का आप जैसे लोगों का इरादा रहता है!"
उसकी यह बात पर मौसी ने उसे बहुत ही डाँट दिया था। उनको चित्रा के लिए बहुत बुरा लग रहा था। "जाने दिजिए मौसी, बच्ची है, उसकी बातों का बुरा क्या मानना! मुझे उसकी बातों का ज़रा - सा भी खराब नहीं लगा है।" चित्रा ने मौसी को शांत करते हुए कहा।
पर फिर भी मौसी चित्रा से क्षमा मांग रहे थे। उस दिन के बाद भैरवी ने गौरी मौसी के घर पर आना बंद कर दिया था। किसी और के हाथ नमकीन गौरी मौसी के घर पहुँचा दिया जाता था। हालांकि भैरवी की मम्मी जब मौसी को मंदिर में मिली थी तब भैरवी की कही हुई एसी बातों के लिए बहुत ही शर्मिंदा थी।
एक दिन चित्रा रात को रोते हुए गौरी मौसी के पास आई। वो बस रोते ही जा रही थी, रोते ही जा रही थी, चूप ही नहीं हो रही थी। गौरी मौसी बार - बार उसे "क्या हुआ? क्यों रो रही हो?" पूछ रहे थे पर वो उनको कुछ भी बता न पा रही थी बस आंखों से आंसू ही बहाए जा रही थी।
"तुषार ने मारा?" मौसी ने पूछा।
"नहीं, इइइइइ "
"कोई मर गया है?"
"नहीं, इइइ"
"कुछ खो गया है?"
"ना, आआआ"
"तो फिर?"
"मुझे एक शादी में जाना है,पर…..अंअंअंअंअं"
"पर क्या?"
"तुषार मना कर रहा है।"
"क्यों?"
"क्योंकि वो शादी बहुत ही पैसेवाले के घर पर हो रही है और तुषार कहता है कि मेरे पास उस शादी में पहनने के लायक नाहीं तो किंमती साड़ी है और नाहीं तो वैसे ज़ेवर है, इसलिए. …"
"तो उसमें इतना रोनेवाली कौन - सी बात है?" नए खरीद लो।"
"नहीं खरीद सकते है।"
"क्यों? खरीदने के लिए पैसे नहीं है?"
"पैसों की बात नहीं है, पर समय की बात है।"
"समय!!!!" मौसी को अचरज हुआ।
"हाँ, शादी कल सुबह ही है।"
"ओह! तो ये बात है।"
"निमंत्रण तो बहुत पहले ही आ गया था, पर तुषार ने मुझे बताया नहीं था, मुझे अभी - अभी ही मालूम पड़ा है।"
चित्रा को रोते देख मौसी को उस पर बहुत ही दया आ रही
थी, इसलिए उन्होंने अपनी अलमारी से अपनी पुरानी कुछ साड़ी और ज़ेवर निकाले और चित्रा को दिखाते हुए बोले, "ये देख ले, अगर इसमें से कुछ शादी में पहनने के लायक हो तो ले जा और कल शादी में पहनने के बाद मुझे वापस
लौटा देना।"
मौसी की यह बात सुनकर चित्रा का रोना एकदम से बंद हो गया, उसके चेहरे पर एकदम से खुशी की लहर दौड़ गई। उसने तुरंत ही एक सबसे अच्छी साड़ी पसंद कर ली, और सारे ज़ेवर ले कर, मौसी को "बहुत - बहुत आभार" बोलकर चली गई।
(क्रमशः)
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