Bharosha - 1 in Hindi Moral Stories by Parul books and stories PDF | भरोसा - 1

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भरोसा - 1

1

भरोसा यानि विश्वास! विश्वास रिश्तों को जोडती हुई वो कडी है जो रिश्तों में मजबूती बनाए रखती है। अगर रिश्तों में भरोसा न रहे तो विश्वास नाम की ये कडी तूटने लगती है और रिश्तों में दरारे पड़ने लगती है, रिश्तों की नींव हिलने लगती है और रिश्ते भावनाहीन बनकर रह जाते हैं और फिर तूट जाते हैं।

चित्रा और तुषार को अपने नए घर में आए हुए अभी एक ही महिना हुआ था, पर ये एक महिनेमें उन्होंने अपने पड़ोस में अकेले रहनेवाली गौरी मौसी से बड़े ही गहरे संबंध बना लिए थे।

गौरी मौसी की उम्र लगभग साठ साल के आसपास रहेगी। बहुत पहले ही पति का साथ छूट गया था। एक लड़का था जो अमेरिका में रहता था। उसने गौरी मौसी को बुलाया था रहने के लिए पर इनको अमेरिका में रहना अच्छा लगा नहीं और इसके लिए थोड़े ही महीनों में अमेरिका से वापस आ गए थे।

एक महीने पहले जब वे सुबह उठकर पाठ - पूजा कर रहे थे तब किसीने उनका दरवाजा खटखटाया था। खोलकर देखा तो सामने चित्रा खड़ी थी। "नमस्ते! मौसी हम आप के नए पड़ोसी है, आज ही आपके बाजूवाले घर में रहने के लिए आए हैं।

गौरी मौसी ने हँसकर उसका अभिवादन किया। नाम पूछा, और कई बातें भी पूछी। उसने काफी अच्छी तरह से अपने बारे में जानकारी बता दी। अपनी जानकारी देने के बाद वह बोली, मौसी हमारेमें नए घर में प्रवेश करने के बाद बड़े लोगों के पैर छू कर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है, अब हमारे घर में तो कोई भी बड़ा नहीं है तो, क्या मैं और मेरे पतिदेव आप के पैर छू कर आप से आशीर्वाद ले सकते हैं?"

यह सुनकर गौरी मौसी भावुक हो गई। "हाँ, हाँ, क्यों नहीं, इसमें पूछनेवाली कौन - सी बात है?" उन्होंने कहा। उन्होंने अपने दोनों हाथों से उन दोनों को आशीर्वाद दिया। खुद को मिल रही इज्ज़त से वे बहुत ही खुश थी। बस उस दिन से उनका संबंध चित्रा और तुषार से जुड़ गया था। उनका यह संबंध धीरे - धीरे बढ़ने लगा था। चित्रा कि जिसे खाना बनाना नहीं आ रहा था वो गौरी मौसी से खाना बनाना सीख रही थी। उन दोनों के आ जाने से गौरी मौसी को भी काफी अच्छा लग रहा था। उनके छोटे - मोटे कामोंमें उन्हें उन दोनों से बड़ी मदद मिल जाया करती थी। उनका आपस में मेल देखकर एसा लगता था कि जैसे वो दो नहीं पर एक ही घर है।

तुषार और चित्रा के आने से गौरी मौसी का अकेलापन काफ़ी हद तक दूर हो गया था। अगर बाज़ार से उन्हें कुछ लाना रहता तो वो तुषार उनको ला देता था और चित्रा उन्हें रोज़ शाम को मंदिर ले जाया करती थी।

जब भी गौरी मौसी कुछ अच्छा खाना बनाती तो वो ज़रूर चित्रा के घर यहाँ भिजवाती और दूसरे ही दिन चित्रा वह खाने की तारीफ़ करने के लिए आ जाती थी, "मौसी कल जो आपने दाल - ढोकली भिजवाई थी न वह बहुत ही स्वादिष्ट थी। मेरे तुषार को तो इतनी पसंद आई कि वह तो खतम होने के बाद ओर भी मांगने लगे थे। "

"तो आ के ले जाती न!" मौसी ने कहा।

"नहीं, मैंने सोचा आप को तकलीफ हो जाएगी, "

"इसमें तकलीफ वाली कौन - सी बात है!" मौसी ने बताया।

"मौसी मैं आप को एक बात बोलूं?"

"हाँ, बोल।"

"मौसी आप के हाथों में जादू है, इसलिए आप का खाना इतना स्वादिष्ट बनता है, वरना मेरी बनाई दाल - ढोकली न तो तुषार को इतनी पसंद आती है और नाही वो ऐसी तारीफ़ करते है। और ऐसे दोबारा तो मांगते ही नहीं है।"

यह बात सुनकर मौसी हंस पड़ी। चित्रा के मुँह से अपनी ऐसी तारीफ़ सुनकर उन्हे बहुत ही अच्छा लगा। चित्रा बहुत बार ऐसे ही उनके हाथों से बने खाने की तारीफ़ कर जाती थी और मौसी हर बार ऐसे ही खुश हो जाया करती थी।

'अगर मेरे सग्गे बेटे बहु होते तो वे भी मेरे साथ ऐसे हिल - मिल गए नहीं होते जैसे चित्रा और तुषार मेरे साथ हिल - मिल गए हैं' गौरी मौसी अक्सर एसा सोच लेती थी।

तुषार भी उनको अपने माँ के जैसे ही समझता था। हर अच्छे दिन पर, या कोई अच्छा काम शुरु करने से पहले, या फिर ऑफिस में कोई बहुत ही ज़रूरी काम रहता तो तब वो गौरी मौसी के आशीर्वाद लेने अचूक ही उनके पास आ जाता था।

एक बार चित्रा और तुषार को किसीकी शादी में जाना था। चित्रा तैयार हो कर मौसी को अपनी पहनी हुई नई साड़ी दिखाने आ गई। "बहुत ही सुंदर दिख रही हो, साड़ी भी बहुत ही जज रही है, पर,"

"पर, क्या मौसी?"

"इतनी अच्छी साड़ी पर कोई गहना क्यों नहीं पहना है?"

"क्योंकि मेरे पास कोई गहने ही नहीं है।" चित्रा के मुँह से निकल गया।

"गहने नहीं है!" मौसी को अजीब लगा।

"वो जब तुषार को बिजनेस में बहुत बड़ा लॉस हुआ था, तभी मैंने अपने सारे ज़ेवर बेचकर उसकी मदद की थी।" चित्रा के मुँह से निकल गया।

"क्या!!!" मौसीने दयनीय नज़र से चित्रा के सामने देखा।

"मौसी, पता नहीं क्यों ये बात आप के सामने मुँह से निकल गया, वरना मेरी माँ को भी अभी तक ये बात मालूम नहीं है, वो आपसे दिल इतना मिल गया है कि दिल की बात आप के सामने निकल आई। "

"अच्छा हुआ है कि मेरे सामने ये बात निकल आई, मेरे पास एक हार पड़ा है, वो पहन ले अपने गले में।"

"अरे! नहीं नहीं मौसी मैं आप का हार कैसे पहन सकती हँ, वो भी सोने का!"

"तुम्हारे पहन लेने से इस हार का सोना कम नहीं हो जाने वाला है, और नाहीं उसकी कीमत घट जानेवाली है, ऊपर से तुम्हारे पहन लेने से इसकी कीमत और बढ़ जाएगी!" मौसी ने उसे वो हार पहनाते हुए कहा।

पहले तो चित्राने बहुत ही मना किया पर फिर मौसी का दिल रखने के लिए उसने खुशी से पहन लिया।

"मौसी,"

"हम्म?"

"एक बात बोलूं,"

"हाँ बोलो,"

"ये हार तो बहुत ही महंगा लग रहा है!"

"हाँ, पूरे एक लाख का है।"

"तीन लाख!!!!" यह सुनकर चित्रा हैरान हो गई और इस बात से खुश भी बहुत हुई कि वो इतना महंगा हार पहनकर वो शादी में जाने वाली थी।

गौरी मौसी के पैर छू कर वो शादी में तुषार के साथ चली गई।

(क्रमशः)

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