रामू काका के मुँह से सुजानपुर और फिर मास्टर सुनते ही जमनादास अधीरता से बंगले के मुख्य दरवाजे की तरफ भागा। बाहर मुख्य दरवाजे के बगल में बने छोटे से दड़बेनुमा कक्ष में मास्टर रामकिशुन बैठे हुए थे।
जमनादास को देखते ही मास्टर जो कि एक बेंच पर बैठे थे उठ खड़े हुए। हाथ जोड़े हुए जमनादास उनके नजदीक पहुँचकर उनके कदमों में झुक गया। इससे पहले कि वह उनके चरण स्पर्श करता मास्टर ने उसे दोनों कंधों से पकड़कर अपने सीने से लगा लिया और आशीर्वादों की झड़ी लगा दी।
जमनादास उनका हाथ थाम कर उन्हें बंगले के अंदर ले आया। उसके पिताजी घर पर नहीं थे। उसकी माँ भी शायद ऊपर अपने कमरे में आराम फरमा रही थीं लिहाजा मास्टर को जमनादास के अलावा बँगले में और कोई नजर नहीं आया।
उसके साथ चलते हुए मास्टर रामकिशुन आँखें फ़ाड़फाड़कर बंगले की भीतरी साजसज्जा और महंगे फर्नीचर देखते जा रहे थे।
आदर सहित उन्हें सोफे पर बैठाने के बाद जमना ने रामू से इशारे में कुछ कहा। रामू उनका इकलौता घरेलू नौकर था जो हमेशा हर काम के लिए तत्पर रहता था।
जमनादास के सामने सोफे पर सिकुड़ कर बैठते हुए मास्टर ने कहा, "अरे नहीं बेटा ! तकल्लुफ की क्या जरूरत ? मैं कोई पराया थोड़े न हूँ। बहुत दिन हो गए थे गोपाल को आये हुए। उसकी कोई खबर नहीं मिली तो हम लोग थोड़ा परेशान हो गए थे। भागा भागा आ रहा हूँ , सोचा मैं ही चल कर हालचाल ले लूँ।"
जमनादास अचानक मास्टर जी को अपने घर में देखकर अभी तक खुद को सहज नहीं कर पाया था। वह समझ नहीं पा रहा था कि मास्टर जी यहाँ तक कैसे पहुँचे ? साधना ने पता बताया होगा शायद ! ' उसने कयास लगाया।
'तो क्या हुआ ? शहर में किसी का पता लगाना और वो भी किसी नए आदमी और ऊपर से किसी बुजुर्ग के लिए तो बहुत ही मुश्किल काम होता है।'
जैसे ही मास्टर एक पल के लिए रुके जमनादास बोला,"मैं सब कुछ समझ रहा हूँ। आप लोगों का परेशान होना स्वाभाविक है, लेकिन ......." उसकी बात अधूरी रह गयी थी क्यूँकि मास्टर साहब ने बोलना शुरू कर दिया था, "गोपाल बाबू के बंगले पर गया था। वहाँ उनके घर का कोई नहीं मिला। उनका चौकीदार बता रहा था कि गोपाल बाबू की तबियत बहुत ज्यादा खराब थी। अस्पताल में भर्ती थे दो तीन दिन। मुझे ये नहीं समझ में आ रहा है कि तुम तो बता रहे थे कि उनके माताजी की तबियत बहुत खराब है और यहाँ कुछ दूसरा ही मामला पता चल रहा है।उनकी माताजी तो बीमार थी ही नहीं।" कहने के बाद मास्टर कुछ पल के लिए रुके लेकिन उनकी बारीक नजरें लगातार जमनादास के चेहरे पर बन बिगड़ रहे भावों का सूक्ष्म निरीक्षण कर रही थीं।
"ऐसा नहीं है। जब मैं गोपाल को लेने गया था तब वाकई उसकी माताजी की तबियत गंभीर थी। गोपाल से मिलने के बाद उनकी तबियत में तेजी से सुधार हुआ लेकिन गोपाल अचानक किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो गया है। दो दिन अस्पताल में ही था वह।" आधा सच और आधा झूठ बोलते हुए जमनादास की जुबान लड़खड़ा रही थी।
मास्टर जी को इतना बताने के बाद जमनादास ने सोचा ' अब मास्टर को गोपाल के बारे में बताना तो पड़ेगा ही सो सच बताने में बुराई भी क्या है ? लेकिन सच भी अधूरा ही बताना है जिससे उन्हें बुरा न लगे। अभी वह यह सब सोच ही रहा था कि तभी मास्टर जी ने उसे बताया, "अभी मैं गोपाल बाबू के चौकीदार से बात कर ही रहा था कि तभी उनका ड्राइवर आ गया। उसने बताया कि सेठ , सेठानी और गोपाल बाबू को वह एयरपोर्ट छोड़कर आया है। वहाँ से वो लोग विदेश जानेवाले हैं। अब मेरे ये समझ में नहीं आ रहा कि जब इनकी इतनी तबियत खराब है तो फिर ये विदेश क्यों जा रहे हैं ? और वो भी पूरा परिवार ?"
अब तक सब कुछ सोच समझ चुके जमनादास ने कहना शुरू किया, "उनके ड्राइवर ने सही बताया है आपको। मैं भी बस अभी कुछ देर पहले ही आया हूँ उनको एयरपोर्ट पर विदा करके।"
" लेकिन क्यों ? क्यों जा रहे हैं ये सब विदेश ? " अब मास्टर जी का सब्र जवाब दे गया था।
धैर्यपूर्वक जमनादास ने जवाब दिया, "सब बताऊँगा आपको। अच्छा हुआ आप आ गए यहाँ तक, नहीं तो मुझे आपके घर आकर यह सब बताना पड़ता। दरअसल गोपाल जिस दिन मेरे साथ यहाँ आया था उसे देखते ही उसके माँ की तबियत में सुधार होना शुरू हो गया था। आश्चर्यजनक तरीके से वह सुबह तक बिल्कुल अच्छी हो गईं और उन्होंने गोपाल के लिए खुद अपने हाथों से नाश्ता बनाया भी लेकिन शायद गोपाल के नसीब में उनके हाथ का नाश्ता खाना नहीं लिखा था। एक तेज सिरदर्द के बाद गोपाल सोफे पर बैठे बैठे ही बेहोश होकर लुढ़क गया था। अस्पताल में परीक्षण करने पर पता चला कि उसके दिमाग कोई ट्यूमर है जो अब खतरनाक हो चुका है .......!"
" क्या .......?" अचानक जैसे मास्टर जी को बिजली के नंगे तारों ने जकड़ लिया हो। बीच में ही कूद पड़े थे। उनकी व्यग्रता देखते हुए जमनादास मन ही मन कुटिलता से मुस्कुराया लेकिन शांत व गंभीर स्वर में उसने कहना जारी रखा, "हाँ ! सही सुना है आपने। डॉक्टरों ने यही बताया है उसकी रिपोर्ट देखने के बाद। अब आप जानते ही हैं कि दिमाग का आपरेशन कितना जटिल होता है और फिर हमारे देश में तो अभी तक आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं का अभाव है ही। डॉक्टर ने बताया हम आपरेशन तो कर देंगे लेकिन सफल होने की पचास प्रतिशत से भी कम उम्मीद है, यानी जबरदस्त जोखिम। दो दिन अस्पताल में रहने के बाद डॉक्टर के भरपूर प्रयास के बाद उन्हें अमेरिका जाकर ऑपेरशन कराने की इजाजत मिल गई है। डॉक्टर का कहना था वहाँ आधुनिक मशीनों की सहायता से होनेवाले आपरेशन की वजह से सफलता की पूरी उम्मीद है....।"
कहने के बाद जमनादास पल भर के लिए रुका और मास्टर की तरफ देखते हुए बोला, "अब आप ही बताइए ! उन्हें जाना चाहिए था विदेश कि नहीं .?"
नजरें झुकाए हुए कुछ सोचनेवाली मुद्रा में मास्टर जी ने धीमे से कहा, "बिल्कुल ! उन्हें अवश्य जाना चाहिए था विदेश ! ईश्वर करें ऑपेरशन सफल हो।" फिर आँखों में भर आये आँसू पोंछते हुए मास्टर ने ऊपर देखते हुए दोनों हाथ जोड़े और स्वतः ही बड़बड़ाते हुए कहा, "हे भगवान ! ये क्या से क्या हो गया ? जँवाई बाबू की रक्षा करना भगवान ! उनकी रक्षा करना !" कहने के साथ ही किसी बच्चे की तरह बिलख पड़े थे मास्टर रामकिशुन। आँखें नम हो गई थीं जमनादास की भी।
तभी रामू ट्रे हाथों में लिए आ गया था जिसमें दो बड़ी गिलासों में कोई शर्बत भरी हुई थी । ट्रे में से गिलास उठाकर मास्टर को पकड़ाते हुए जमनादास ने कहा ," ईश्वर पर भरोसा रखिये चाचाजी ! भगवान ने चाहा तो कुछ महीनों में ही गोपाल भला चंगा आपके सामने होगा । लीजिये ! शर्बत पीजिए ! "
" अब तो भगवान का ही भरोसा है बेटा ! मुझे यकीन है वहाँ देर हो सकता है लेकिन अंधेर नहीं ! " और फिर शर्बत की तरफ देखते हुए कहा ," सच में बेटा मुझे शर्बत पीने की इच्छा नहीं है । " फिर कुछ रुक कर बोले ," बेटा ! बुरा न मानो तो एक बात कहूँ ? " जमनादास चौंकते हुए बोला ," आप मुझसे कुछ भी पूछ सकते हैं । इसमें इजाजत की क्या जरूरत है ? और फिर आप बड़े हैं । सन्माननीय हैं हमारे लिए । और हमें यह सिखाया गया है कि बड़ों की बात का बुरा नहीं मानते । फिर मैं आपकी बात का बुरा क्यों मानने लगा ? कहिए ! क्या कहना चाहते हैं आप ? "
" शाबाश बेटा ! मुझे तुमसे यही उम्मीद थी । कुछ विशेष बात नहीं है बेटा ! मैं चाहता था कि साधना को यह खबर तुम ही चलकर दो और उसे दिलासा भी कि भगवान सब ठीक कर देंगे । मैं उसे यह सब नहीं बता पाऊँगा । बड़ी मेहरबानी होगी बेटा । " कहते हुए मास्टर के दोनों हाथ उसके सामने स्वतः ही जुड़ते चले गए ।
जमनादास ने एक पल को कुछ सोचा और फिर रामू को बुलाकर उसे समझाया ," मैं चाचाजी के साथ सुजानपुर जा रहा हूँ । ध्यान रखना और माँ से कहना चिंता न करें । देर हो गई तो सुबह आऊँगा ! " और फ़िर कुछ देर बाद जमनादास की कार सुजानपुर की तरफ फर्राटे भर रही थी ।
क्रमशः