तीन बाद वापस अपने फ्लैट आया हुआ ध्रुव, बैग रखते ही सबसे पहले निया के फ्लैट पे भागा।
“हाय.. कैसा है?”, घर का दरवाज़ा खोलते हुए रिया ने ध्रुव से कहा।
“ठीक हूँ.. तू बता? और निया.. वो कहाँ?”
“मुझे लगा उसने कहा था, की उसने तुझे मैसेज कर दिया था।"
“हाँ.. पर अचानक से..”
“हाँ, वो उसकी टीममेट वापस आ गई थी ना, अपनी छुट्टियों से, और फिर सिमरन का भी फोन आ गया था, उसकी शादी इस महीने के अंदर अंदर हो सकती है ना..”
“हाँ, ये सब तो निया के मैसेज में था।"
“फिर तो क्या पूछना चाहता था, निया के बारे में?”
“अ. अ. कुछ नहीं शायद.. अब मैं चलता हूँ।"
“रुक", पीछे मुड़ कर अपने फ्लैट की तरफ जाते हुए ध्रुव को रोकते हुए रिया बोली। "ये तो बता कर जाकर, की तू था कहाँ?”
“जहां से ये सब शुरू हुआ था।"
“हह?”
“यहीं पास ही गया था। मैंने मैसेज पे बताया तो था।"
“हाँ.. वो ग्रुप वाला मैसेज..”, रिया ने बोला और वो भी अपने घर में वापस जाते हुए, ऑफिस जाने की तैयारी में लग गई।
ध्रुव वहीं अपने फ्लैट पे वापस पहुँच कर, अपने फोन में घूर रहा था, उसमें सबसे ऊपर जहां निया की चैट दिख रही थी, तो वहीं नीचे, इन चारों का बनाया हुआ ग्रुप "शानदार पड़ोसी..", कुनाल के लंच में खिचवाई हुई उन चारों की फोटो, को बड़ा करके देखने के लिए ध्रुव ने वो चैट खोली, तो उसपे उसे अपना बड़ा सा वो मैसेज दिखा था।
“मैं ठीक हूँ, इस समय मेरा किसी से भी बात करने का मन नहीं है तो इलसिए मैं यहीं पास में कहीं बाहर आ गया हूं, जब ठीक लगेगा, तो मैं दोबारा कॉल करूंगा, और हो सकता की मैं एक दो दिन अभी यही रहूँ। तुम सब लोग भी अपना ध्यान रखना।"
ध्रुव की इस मैसेज पे जहां कुनाल ने कोई जवाब नहीं दिया था, वहीं रिया और निया दोनों ने अलग अलग इमोटिकोंन के साथ ओके लिख दिया था।
उस चैट से बाहर जाते हुए, ध्रुव ने फिर अपनी और निया की चैट खोली, तो उसमें निया की तरफ़ से एक वॉयस मैसेज आया हुआ था, ध्रुव धीरे से उसके प्ले बटन को दबाता है और सुनने लग जाता है।
“हाय.. उम्मीद है की अब तुम्हारे मूड पहले से बेटर है। मैंने सोचा तो नहीं था, की ये ऐसे होगा, पर शायद चीजें हमेशा हमारी सोच से परे ही होती है, इसलिए तो देखो ना.. मुझे अभी ही जाना पड़ रहा है। हाँ, सिमरन का कॉल आया था, उसकी रूममेट एक महीने के लिए वर्क फ्रॉम होम करेगी, तो उसक कहना है, की जब तक वो नहीं आती, मैं उसके रूम में रह सकती हूँ, और फिर शायद इस महीने की आखिर में उसकी शादी भी हो जाए, तो मैं उसकी जगह उसके फ्लैट में रह सकती हूँ। अभी कुछ पक्का तो नहीं है, पर आसार ऐसे ही है। कुछ देर पहले मैंने चंचल को भी फोन किया था, तो पता लगा की मेरी टीममेट भी इस हफ्ते में वापस आ जाएगी, तो चंचल ने कहा है, की क्योंकि एक दो दिन की ही बात है, जब तक वो नहीं आती, मैं चाहूँ तो मेन ऑफिस से भी काम कर सकती हूँ। अच्छा हाँ, एक जरूरी बात बतानी थी तुम्हें, तुम्हारी पहली बारिश वाली बदकिस्मती तोड़ने में हम कामयाब हो गए है, वैसे तो तुम्हें शुभम ने बता दिया होगा, पर फिर भी मैं फिर से बताना चाहती हूँ, शुभम और तान्या अब साथ है, और सब सही रहा, तो 6 महीने में शादी कर लेंगे। हो सकता है, की तुम्हारी बात सही हो, पहली बारिश में लोगों के रिश्ते टूटते हो, और वो सारा डेटा भी सही हो, पर माँ अक्सर कहा करती थी, की अगर कोई दिन तुम्हें बुरा लगे, तो तुम ऐसा कुछ करो, की वो अच्छा हो जाए, जैसे की मुझे इंजीनियरिंग के एन्ट्रन्स इग्ज़ैम के रिजल्ट वाले दिन, माँ ने नया फोन दिलाया था, बस इसलिए, की अगले साल इस दिन को अपने फेल होने की जगह नए फोन मिलने की खुशी के लिए याद रखूँ, और पता है, ऐसे ही, जब कहीं भी पहली बारिश का नाम आएगा, तो मुझे अपने ब्रेकअप की जगह इस पागल पर अच्छे दोस्त की याद आएगी, जो उस दिन मेरी ज़िंदगी में आया था। अच्छा.. एक काम है, मेरे जाने के बाद, प्लीज मेरी उस सहेली का भी ध्यान रखना, जिसने तुम्हें कई बार, मेरा ध्यान रखने के लिए मजबूर किया। और हाँ, उससे भी ज़रूरी काम, अपना ध्यान रखना।और ये भी याद रखना, साथ काम नहीं करते, साथ रहते नहीं है, पर अभी भी हम एक ही शहर में है, तो मिलते रहना।
नमी भरों आँखों के साथ अपने कान के पास रखे फोन को ध्रुव धीरे से नीचे लाता है, और मैसेज रिकार्ड करना शुरू करता है,
“मैं वापस आ गया हूँ। तुम पहुँच गई, अपनी फ्रेंड के पास? अगर तुम्हें काम में कोई भी दिक्कत आए, तो मुझे बता देना, मतलब काम में ही नहीं, वैसे भी कोई दिक्कत हो तो फोन कर देना, नहीं मतलब अगर दिक्कत ना भी हो तो फोन करती रहना।", ध्रुव धीरे से अपने माथे पे फोन मारता है, की वो क्या बकवास करे जा रहा है, पर गलती से हाथ लगने से उसका मैसेज सेंड हो जाता है।
जैसे ही उसे एहसास होता है, की मैसेज सेंड हो गया, वो उसे डिलीट करने की कोशिश कर ही रहा होता है, की निया का फोन आ जाता है।
“आ गए तुम?”, फोन उठाते ही निया सवाल करती है।
“हाँ..”
“बढ़िया.. फटाफट से हमारे फ्लैट जाओ।"
“हह..”, बोलते हुए ध्रुव फटाफट उठ कर बाहर निकलता है।
ध्रुव के घंटी बजाने पे रिया दरवाज़ा खोलते ही बोलती है।
“आ जा जल्दी।"
ध्रुव निया को मिलने के उत्साह से अंदर आता है, तो देखता है, की वहीं हॉल में कुनाल भी बैठा था, और उसके इर्द गिर्द खाना रखा था।
“ये?”, अभी भी फोन हाथ में पकड़े हुए ध्रुव पूछता है।
“फोन स्पीकर पे करीयो।", रिया ने बोला।
“तुझे मैंने कहा था ना, की दाल रहने दियो, फिर तूने मंगा ली।"
“हाँ.. तो मत खाइयों, ध्रुव और कुनाल खा लेंगे।"
“ये हो क्या रहा है?”, अचंभित होते हुए ध्रुव ने पूछा।
“निया की फेरवेल पार्टी.. वो तेरे बिना देना नहीं चाहती थी, तो इसलिए उसने अभी मंगया सब के लिए कुछ कुछ।
“और वो?”
“वो तो वहीं सिमरन के पास है, पर कोई नहीं, हम ये तो कर ही सकते है।", निया को विडिओ कॉल करते हुए रिया बोली।
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“क्या हुआ? टहलने आई थी बाहर। आ रही हूँ, थोड़ी देर में, फिर देखते है।", सिमरन का फोन काट कर पार्क के एक कोने में बैठी निया कुछ सोच में पड़ गई। उसे उम्मीद थी, की सिमरन के पास वापस आने के बाद सब पहले जैसा हो जाएगा, पर कुछ तो था उसके मन में, जो उसे अभी भी उसे परेशान करे जा रहा था।
फोन उठा कर अपनी कान्टैक्ट लिस्ट चेक करती निया, ध्रुव के नंबर आगे आ कर रुक गई।
“एक बार फोन करके बात कर ही लेती हूँ, की कैसा है, कहाँ गया था। या फिर रिया को फोन कर लू, वही बता देगी की सब कैसे है?”, अपने कान्टैक्ट लिस्ट में आगे बढ़ कर रिया के नंबर पे जाते हुए निया सोच रही थी।
उसने नंबर पे जाने से पहले ही, अपने हाथों को वापस ले लिया, और उनकी शानदार पड़ोसी वाली चैट खोली, और "गुड मॉर्निंग..”, टाइप करके भेज दिया।
“यही ठीक रहेगा..”, खुद से ये बोलते हुए निया उस बेंच से उठी और पार्क में किनारे वाली पटरी में तेज तेज चलना शुरू कर दिया। अभी वो कुछ देर चली ही थी, की सामने से आते एक कुत्ते को देख, उसने खुद को रोका और उसके सिर पे हाथ फेरने लग गई।
“कैसा है तू... इतने दिनों बाद मिले हम, तुझे मैं याद भी हूँ?”, उसके सिर पे हाथ रखती हुई निया प्यार से उससे बोल रही थी, की तभी एक लड़का उसके सामने आकर खड़ा हो गया।
“कहाँ चला जाता है तू बार बार..”, उसने कुत्ते को देखते हुए बोला।
निया जो उस कुत्ते के सामने थोड़ा झुक कर बैठी हुई, उठकर खड़े होते हुए उसे देखती है, और बोली।
“हह.. कुछ कह रहे हो आप?”
“जी.. आपसे नहीं, इससे कह रहा हूँ मैं, अभी मेरे साथ बैठा था, और अभी भागता भागता यहाँ आ गया।"
“आपके साथ?”
“हाँ"
“बल्लू इतनी जल्दी किसी से भी दोस्ती नहीं करता।"
“बहुत समय बाद दोस्ती हुई है हमारी", बल्लू के सिर पे हाथ फेरते हुए वो लड़का बोला।
“निया.. तुम यहाँ?”, सामने से आते हुए एक महिला बोली।
“जी, नमस्ते आंटी। कैसे हो आप?", निया उनको देखते हुए मुस्कराते हुए बोली।
“हम तो एकदम ठीक है। सिमरन से मिलने आई हो?”, उस महिला ने मुस्कराते हुए पूछा।
“नहीं.. वापस यही आ गई हूँ, यही से काम करूंगी।", निया ने बताया।
“अच्छा.. बढिया है, फिर तो मिलना लगा ही रहेगा।", वो बोली और आगे बढ़ कर वो भी बल्लू को सहलाने लगी, और बोली, “देख तेरी दोस्त वापस आ गई।"
“तुम्हें पता भी है निया, की तुम्हारे जाने के बाद इसने तुम्हें कितना याद किया।"
“मैंने भी इसे बहुत याद किया.. मैं तीन दिन पहले आई थी, और पता है, तब से इसे मैंने कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा, पता नहीं कहाँ छिप के बैठ गया था।", निया एक बार फिर से बल्लू के सिर को सहलाते हुए बोली।
“तुम्हारे जाने के बाद इसने नया दोस्त बना लिया ना इसलिए, ये तुम्हें कहीं मिला।", उन महिला ने निया के सामने खड़े व्यक्ति को देखते हुए बोला।
“ओह.. तो ये निया है।", हँसता हुआ वो व्यक्ति बोला। "हाय निया.. मैं ऋषि।", चकोराकर चेहरा, काली बड़ी बड़ी आँखें, चेहरे भी बड़ी सी मुस्कराहट, कान तक के छोटे करीने से बाई तरफ किए हुए बाल, और हल्की दाढ़ी वाला वो व्यक्ति निया से बोला।
“हाय.. निया। वॉक के लिए आए हो?”, निया उसके सलेटी रंग के ट्रैक सूट को देख कर पूछते हुए बोली।
“हाँ..”, ऋषि ने जवाब दिया।
“अच्छा बेटा.. अब मैं चलती हूँ, मेरे बच्चे देख रहे होंगे की मम्मी कहाँ रह गई।", ये बोलते हुए उन महिला ने उन दोनों से अलविदा ले ली।
“मैं भी चलता हूँ.. चल बल्लू..”, निया को बोल कर, कुत्ते की तरफ मुड़ते हुए ऋषि ने कहा।
“एक मिनट, इससे कहाँ ले जा रहे हो?”
“इसे मैंने गोद ले लिया है।", ऋषि ने जवाब देते हुए कहा।
“पर हम सब इसका ख्याल रख तो रहे थे।"
“मैडम.. मुझे वो हम सब नहीं दिखे, दिखा तो बस एक मासूम सा पशु, तो इसलिए मैंने ये फैसला ले लिया।", ऋषि ने थोड़ी गंभीरता से जवाब दिया और वहाँ से चला गया और वहीं निया बस बड़ी बड़ी आँखों से उसकी तरफ देखे ही जा रही थी।
“समझता क्या है ये, खुद को, सिर्फ इसे ही बल्लू की परवाह है। मैं तो सिर्फ उसके अच्छे के लिए उसको छोड़ के गई थी यहाँ।", निया ने धीरे से बोला और अपनी वॉक में लग गई।
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“मुझे नहीं पता था, की ये लड़का भी ऐसा कुछ कर सकता है", खुद से बोलते हुए ध्रुव मार्केट में आगे बढ़ रहा होता है।
“भैया.. ये मग आपके पास लाल की जगह नीले रंग में भी होगा क्या?”, एक दुकान पे बाहर पड़े एक मग को उठाते हुए ध्रुव बोला।
“एक मिनट.. देखता हूं...”, दुकानदार बोला और बंद पड़े डब्बों में वो मग खोजने लग गया।
ध्रुव अपने फोन से फोटो निकाल कर, फोटो वाले मग और बाहर रखे मग को मिलाने लग गया।
“मिल तो रहे है... अब इतने में तो उसका काम चल जाना चाहिए।", कुनाल का मग ध्रुव से टूटने के बाद, उसका गुस्से वाला चेहरा याद करते हुए ध्रुव खुद से बोल ही रहा था, की उसकी नजर वहाँ रखे एक और मग पे पड़ी, और उसे याद आया..
“पता है, मुझे एकदम ऐसा ही कार्टून वाला मग चाहिए, पर मेरी किस्मत इतनी खराब है ना, की मैं जहां भी पूछती हूँ, वहाँ एक दो दिन पहले ही ये खत्म हुए हो चुके होते है।", अपने साथ बस में बैठे ध्रुव को निया फोन में एक फोटो दिखाते हुए बोल रही थी।
“और ये वाला मग, ये कितने का भैया?”, निया की पसंद के उस मग को देखते हुए ध्रुव पूछता है।
“120”
“और वो दूसरे वाला?”
“120”
“कार्ड चलता है भैया?”
“नहीं सर.. बस कैश ही चलेगा।"
अपनी जेब से पैसे निकालते हुए ध्रुव को अंदाजा होता है, की उसके पास सिर्फ 150 ही रुपए है, जिससे वो निया का मग खरीद लेता है, और कुनाल वाले मग को साइड रखने का कह कर, वहाँ से निकल जाता है।
“वो ही तो कहती है, की ये बार बार उसके हाथ से निकल जाता है, बस इसलिए मैंने कुनाल की जगह उसका मग लिया। कुनाल का मग तो और भी मिल जाएगा।", खुद से ये कहते हुए ध्रुव ए.टी.अम की तरफ बढ़ ही रहा होता है, की रास्ते में कोई उसे पायल (एंकलेट ) बेचने वाला एक व्यक्ति दिखता है।
“वाह.. ये निया पे बहुत अच्छा लगेगा।", वो उस दिन रिया को कह भी रही थी, की उसके वाला बहुत अच्छा लगेगा। ध्रुव आगे बढ़ कर उसे बुलाने ही वाला था, की तभी एकदम से उसने खुद को रोकते हुए मन में सोचा, “क्या कर रहा हूँ मैं, एक फोन तो किया नहीं मैंने उससे ये सब कैसे दूंगा।
“क्या कर रही हो तुम?”
“टीवी देख रही हूँ।"
“ओह.. मुझे नहीं पता था, की आजकल लोग म्यूट पे भी टीवी देखते है।", टीवी का रीमोट हाथ में लिए, गहरी सोच में डूबी हुई चंचल को देखते हुए सुनील उसकी वजह जानने के लिए सवाल जवाब कर रहा था।
“टीवी देख रही हूँ ही तो कहा है, उसमें सुनना जरूरी थोड़ी है।"
“कोई मौका नहीं छोड़ती हो वैसे तुम।", सुनील हँसते हुए बोला।
“तुमसे माँ ने कुछ पूछा तो नहीं ना? उन्हें कोई शक तो नहीं हुआ?”
“अ. अ. नहीं।", सुनील ने धीरे से जवाब दिया। "वैसे कब सोच रही हो तुम उन्हें बताने का?”
“कोशिश करूंगी की जल्द ही उन्हें सब कुछ बता दूँ।", चंचल ने भी हल्के से जवाब दिया।
“ठीक है।", सुनील अभी बोल ही रहा होता है, की दरवाज़े की घंटी बजती है।
“एक और चाबी बनवा ही लो तुम लोग, मैं ऐसे तुम लोगों का इंतज़ार नहीं करते रह सकती।", अंदर आते हुए एक महिला बोली।
“माँ.. एक घंटी बजते ही तो खोल दिया मैंने दरवाज़ा।"
“रहने दे, रहने दे.. कितने ढीले हो ना तुम दोनों हमे सब पता है, कुछ दिन पहले मंजू की माँ मिली थी मुझे कह रही थी, की मंजू की लड़की हुई है, पहले एक लड़का तो था ही, और वो मंजू तुझसे बस एक साल ही बड़ी है।"
“माँ.. अगर इंतज़ार करने में दिक्कत होती है, तो क्यों गई थी मंदिर.. घर मैं है तो एक।"
“देख.. तू ये सब ना मुझे मत बता की क्या करना है या नहीं, माँ हूँ मैं तेरी।"
“और मैं भी ना आपकी बेटी हूँ.. ऐसे ही कुछ भी..”
चंचल अभी बोल ही रही होती है, की सुनील उन दोनों के बीच में बोल पड़ता है।
“मुझे ना बहुत भूख लग रही है माँ.. खाने खाए क्या?”
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डिनर के समय कई बार छींक मार चुकी चंचल , जब डिनर के बाद बर्तन धोने के लिए उठी तो सुनील भी उसके पीछे पीछे चला गया।
“क्या कर रहे हो?”,
“तुम्हारी तबियत खराब हो गई है ना, और ऐसे में भी तुम्हें बर्तन मज़ने है।"
“हाँ.. मैं नहीं करूंगी तो माँ को करने पड़ेंगे।"
“अर्रे क्यों? मैं हूँ ना अभी।"
“तुम?”
“माँ ने देख लिया, तो मेरी खैर नहीं है।", चंचल ने धीरे से बोला।
“उन्हें कुछ नहीं पता लगेगा.. वो अभी अपना पाठ करने गई है।"
“पर तुम?”
“तुम तो ऐसे कह रही हो, जैसे पहली बार करा रहा हूँ। इतनी जल्दी भूल गई क्या तुम, लोग तो शादी के लिए पापड़ बेलते है, मैंने बर्तन माँजे थे, वो भी सिर्फ शादी के लिए नहीं, शादी के बाद भी।"
ये सुनकर चंचल हंस दी, और वो दोनों वहाँ सिंक के पास खड़े हो गए।
“मैं साबुन लगा देती हूँ, तुम पानी से धोते जाना।", वो धीरे से बोली और सुनील को देखने लगी।
सुनील ने भी बिना कुछ बोले, बस हाँ में सिर हिलाया, और उन बर्तनों की आवाज़ में दोनों काम करने लग गए।
“मुझे तो लगा था की तुम्हें ये काम बिल्कुल पसंद नहीं है, तभी तो तुमने इतने समय में कभी नहीं कराया।", आखिरी बर्तन सुनील की तरफ डालते हुए चंचल बोली।
“पसंद की बात करूँ, तो हाँ मुझे ये बिल्कुल पसंद नहीं है, पर तुम शायद भूल गई मैंने तुमसे एक बार कहा था, की जो भी काम तुम हम दोनों के लिए करो, मैं पूरी कोशिश करूँगा, की मैं उसमें तुम्हारी मदद करूँ। पिछले कुछ टाइम की बात करू, तो मुझे तो ये ही याद नहीं की आज से पहले हमने कब इतनी आराम से खाना खाया था, कभी तुम्हारा लैपटॉप कभी मेरा लैपटॉप, हम दोनों के बीच था ही, साथ खाते हुए भी हमने ना जाने कब साथ खाया था।", सुनील ने धीरे से बर्तन धोना खत्म करते हुए अपनी बात भी खत्म करी तो देखा चंचल अपनी छोटी छोटी आँखों से उसकी ओर देख रही थी। वो दोनों शायद आँखों ही आँखों में बातें कर अपनी सारी ग़लतफहमी दूर करने की कोशिश कर रहे थे की तभी चंचल की माँ ने उसे आवाज़ लगाई।
“चंचल, पानी तो ला दो ज़रा।"
“हाँ माँ..”, चंचल ने जवाब दिया और पानी का ग्लास लेकर रसोई से निकल गई।
पानी देकर चंचल जब वापस रसोई में आई, तो सुनील वही खड़े होकर हाथ में एक पानी का ग्लास लिए उसका इंतज़ार कर रहा था।
सुनील ने जब चंचल को पानी का ग्लास पकड़ाया तो वो धीरे से बोली।
“दे तो आई मैं पानी का ग्लास..”
“पर ये तुम्हारे लिए है, और ये भी।", अपनी जेब से दवाई निकलता हुआ सुनील बोला। "झुकाम बढ़ने से पहले ये ले लो।"
“हाँ..”, धीरे से चंचल ने बोला, और दवाई ले ली।
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अगले दिन सुबह, सुनील को जहां अपने दफ्तर से छुट्टी मिल जाती है, वहीं चंचल को किसी कारणवश छुट्टी नहीं मिली थी, और वो जाने की तैयारी कर रही होती है, की उसे टोकते हुए उसकी माँ बोलती है।
“ऐसा दफ्तर तो छोड़ देना चाहिए.. जो अपनी माँ के लिए भी छुट्टी ना दे।"
“माँ.. उनका काम भी तो ज़रूरी हो सकता है ना।"
“एक बात बता.. ये सारे ज़रूरी काम तेरे को ही मिलते है क्या, दामाद जी को तो कभी कोई दिक्कत नहीं होती।"
“माँ.. सुनील अभी नए प्रोजेक्ट में गए है, जहां कुछ खास काम नहीं चल रहा, पर मेरे यहाँ अभी बहुत काम चल रहा है, और फिर कोई और भी छुट्टी पर है।"
“आप इसे कह क्यों नहीं देते, की छोड़ दे ऐसे दफ्तर.. आपके साथ काम पे रख लो ना इसे", सुनील की तरफ़ देखते हुए चंचल की माँ ने बोला।
“माँ, वो कोशिश करी थी हमने.. पर उसकी भी अपनी दिक्कतें है।", सुनील ने जवाब दिया।
“अच्छा.. आप कह रहे हो तो मैं मान लेती हूँ।”, चंचल की माँ ने चंचल को देखते हुए जवाब दिया।
दरवाजे की तरफ बढ़ती हुई चंचल के आगे आते हुए सुनील ने पूछा।
“तुम्हारी तबियत ठीक है ना अब?”, सुनील ने चंचल का भूखार देखने के लिए, उसके माथे पे हाथ रखते हुए पूछा।
“हाँ.. तुमने जो दवाई दी थी, उससे एकदम सही हो गया।”, धीरे से सुनील का हाथ नीचे करते हुए चंचल बोली।
“हाय!! कितना ख्याल रखते हो तुम मेरी चंचल का।", सुनील को हँस कर देखते हुए चंचल की माँ उसके पास आई, और सिर सहलाते हुए बोली।
“मैं चलती हूँ..”, ये कह कर चंचल घर से बाहर निकली, और खुद से बुदबुदाई।
“उसका ख्याल रखना देखा.. ये नहीं देखा की उनकी खुद की बेटी की तबियत खराब थी।"