Hudson tat ka aira gaira - 20 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | हडसन तट का ऐरा गैरा - 20

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 20

सफ़ेद रुई जैसे बादल थे। ऐश ने ज़मीन पर चलते हुए ही न्यूयॉर्क में बादल देखे तो कई बार थे, मगर ख़ुद बादलों से बीच से उड़ कर गुजरने का ये अनोखा अनुभव उसे पहली बार ही हुआ था।
सच पूछो तो पहले इतनी ऊंची उड़ान उसने भरी भी कब थी? वो अपने मम्मी- पापा की ऊंची उड़ान की चर्चा तो अपने दोस्तों के बीच हज़ारों बार कर चुकी थी पर इतनी ऊंचाई पर उड़ने की बात तो उसने कभी सोची तक न थी।
उसे इसी बात का आश्चर्य था कि उसके पास उड़ने की इतनी गज़ब की क्षमता है। आखिर वो उन मम्मी की बेटी थी जो ख़ुद उसे जन्म देने के लिए हज़ारों मील दूर से उड़ कर यहां आई थीं। उसे अपने पंखों की चपलता पर रश्क हो आया।
उसने सोचा जो होता है वो अच्छे के लिए ही होता है। अगर वो दीवानगी में अंधी होकर उस डॉगी से ब्याह रचा लेती तो वो क्या भला उसे कभी इतनी उन्मुक्त उड़ान भरने देता? कभी नहीं।
मर्दों की तो हमेशा से यही तमन्ना रहती है कि उनकी पत्नी हर बात में उनसे कमतर हो। वो ख़ुद तो कभी तीन फुट ऊंचाई तक भी उछल नहीं पाता और ऐश पर उड़ने की पाबंदी लगाता। हुंह! ये भी भला कोई प्यार है? अच्छा हुआ जो उससे पीछा छूटा।
लेकिन उसे अपने रॉकी की याद बेसाख्ता आने लगी। वो न जाने कहां होगा? उसी की तरह ऊंचाइयों पर उड़ रहा होगा। बेचारा ऐश के कहने पर अपना प्यार छोड़ कर दुनिया में प्यार तलाश करने निकला था।
ऐश ने एक बार नीचे की ओर झांक कर देखा। नीचे पानी ही पानी नज़र आ रहा था। शायद उनका पूरा झुंड किसी सागर के ऊपर से उड़ रहा था। उसे एक बार थोड़ी सी घबराहट हुई। न जाने कितना विशाल सागर हो ये। घंटों तक उड़ते ही जाना होगा।
तभी उसे याद आया कि एक बार बचपन में उसने अपनी मम्मी से पूछा था कि आप लोग समुद्र पार करते समय खाना कैसे खाते हो?
तब मम्मी ने चोंच से उसके गाल थपथपाते हुए कहा था कि समंदर पार उड़ान भरते समय रास्ते में बहुत सारे जहाज आते- जाते दिखाई देते हैं। बस सारा समूह इशारों ही इशारों में यह तय कर लेता है कि किस जहाज के मस्तूल पर धावा बोलना है। वहीं सब उतर कर डेरा डाल लेते हैं और अच्छी तरह दाना- पानी खाकर थोड़ा आराम करके फिर से उड़ान भर जाते हैं।
वो ये सब सोच ही रही थी कि कुछ दूरी पर लहरों से अठखेलियां करता एक विशालकाय जहाज दिखाई पड़ा।
उनके लीडर ने आंखों ही आंखों में सबको इशारा किया और सबने अपने पंखों को ढीला छोड़ कर अपनी परवाज़ नीचे की ओर मोड़ दी।
ऐश को मम्मी की बहुत याद आई।
जहाज के ऊंचे डेक की लंबी सी रेलिंग पर उनके पूरे के पूरे दल ने धावा बोल दिया।
ऐश ने अपने बगल में बैठे एक बुजुर्ग से परिंदे से पूछा - चाचा, हम लोग इस तरह बिना पूछे किसी भी जहाज पर कब्ज़ा जमा कर बैठ जाते हैं तो यहां के लोग कोई आपत्ति नहीं करते? इनका कप्तान यहां से हमें हटाने की कोशिश नहीं करता?
- अरी बिटिया, दरिया के मुसाफ़िर इतने तंगदिल थोड़े ही होते हैं। फिर ये भी तो हफ्तों तक समंदर के पानी की खारी लहरें देख- देख कर ऊबे हुए होते हैं। हमें यहां बैठे देख कर इनका घड़ी दो घड़ी जी ही बहलता है। ये तो उल्टे प्यार से हमें इनका बचा खुचा दाना - पानी डालने की कोशिश ही करते हैं। और अगर हम इनका दिया खाने लगें तो ये खुश होकर हमारी तस्वीरें उतारते हैं। खूब प्यार करते हैं ये!
ऐश के कान खड़े हो गए।
उसने सोचा, तो क्या ये ही प्यार है? लो, जिसे ढूंढने के लिए ऐश अपना घर- बार और दोस्तों को छोड़ कर निकली वो तो यहीं मिल गया!
उसने बुजुर्गवार से ही प्यार के बारे में पता करने की चेष्टा की। उनसे पूछा - चाचा, सचमुच ये प्यार बरसाते हैं हम पर? तो फिर हम आगे क्यों जाएं! इन्हीं के साथ इनके इस महलनुमा जहाज पर क्यों न रह जाएं?
- अरे ना ना बिटिया। ऐसा कभी सोचना भी मत। इनका कोई भरोसा थोड़े ही है। कल अगर इनका राशन - पानी बीत जाए तो ये हमें भून कर हमारा कबाब बनाने में भी परहेज़ नहीं करेंगे। इनका प्यार तो बस थोड़ी देर का है।
इनसे दूर का सलाम ही अच्छा!
झुंड के सारे परिंदे वहां बिखेरे गए दाने चुगने में जुटे हुए थे। ऐश ने भी चोंच जल्दी- जल्दी चलानी शुरू कर दी।