15 January in Hindi Short Stories by Krishna Kaveri K.K. books and stories PDF | 15 जनवरी

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15 जनवरी

15 जनवरी

कृष्णा सिंह कावेरी "के के"


कहानी के पात्र , स्थान , संवाद और घटनाएं काल्पनिक है।


"आज पूरे एक साल गुजर गए.. वो दिन आज भी याद है मुझे जिस दिन हर्ष (उम्र 24) ने गुड न्यूज दी थी। घर में सब कितने खुश थे.. हर तरफ रौनक ही रौनक नजर आ रही थी।"


निशू बेटा कहां रह गई ? , जल्दी चल नहीं तो बैठने की जगह नहीं मिलेगी मेट्रो में.. , नीलम ने अपने हैंड बैग में नजर का चश्मा रखते हुए कहा।


नीलम की आवाज ने निशा (उम्र 20) को अपने ख्यालो से निकाला , निशा आईने के सामने बैठी , अपने बालों में कंघी फेर रही थी.. आवाज सुनकर जल्दी से बालों का जुड़ा बनाकर हेयर पिन लगा लिया , खड़े होकर ग्रे कलर की कॉटन साड़ी के आँचल को पिनअप किया , ट्रेसिंग टेबल की डोर ओपन कर के उसमें से काला चश्मा निकाल कर आंखों पर पहन लिया। रूम से बाहर निकलते वक्त बेड पर रखे व्हाइट कार्डिगन पर नजर गई तो उसे भी साड़ी के ऊपर पहन लिया।


नीलम घर के बाहर ऑटो के इंतजार में खड़ी थी। निशा भी घर के बाहर निकल कर मेन गेट पर ताला लगाने लगी.. लेकिन ताला लगाते वक्त निशा के हाथ से चाबी नीचे गिर गई तो नीलम पास आकर बोली,,,,, निशू ये तू क्या कर रही है ? आज तो मौसम भी साफ नहीं है , देख ना पूरे आकाश को बादलों ने घेर रखा है , जिससे रोशनी भी कम आ रही है , ऐसे में काला चश्मा क्यों लगा लिया तूने ? , तभी तो तुझे ठीक दिख नहीं रह होगा ? , इसलिए ताले की चाबी भी नीचे गिरा दिया तूने !!! , ला इधर.. मुझे दे , मैं कर देती हूँ , बोलकर नीलम ने निशा के हाथ से ताला चाबी ले लिया।


निशा सड़क पर ऑटो रूकवाने लगी , इतने में नीलम डोर लॉक कर के निशा के पास आ गई।


कुछ देर में एक ऑटो वाला रूका तो नीलम ने पूछा,,,,, पास वाली मेट्रो स्टेशन चलोगे क्या ?


अरे माँ जी! , आज तो मेट्रो में बहुत भीड़ रहेंगी... आपको कहां जाना है ? , पता बताइए ? , मैं छोड़ दूंगा , ऑटो वाले ने कहा।


हां.. हां.. मुझे पता है भीड़ रहती है... लेकिन ऑटो से जाने में बहुत ज्यादा पैसे खर्च होंगे ? , उतने पैसे में तो एक दिन का राशन आ जाएगा , नीलम मुँह चिढ़ाते हुए कहती है।


नीलम और निशा दोनों में से कोई नौकरी या व्यवसाय कुछ भी नहीं करती थी। अंदनी का मुख्य सोर्स उन दोनों को मिल रही पेंशन ही थी।


आधारभूत खर्चों को छोड़कर नीलम कोई भी अतिरिक्त खर्च नहीं करती थी... क्योंकि वो भविष्य में आने वाली किसी भी आकस्मिक घटना और विपरित परिस्थितियों के लिए तैयार रहना चाहती थी... इसलिए हमेशा पैसों की बजट किया करती थी।


चलिए कोई नहीं , आप उतना ही दे देना जितना मेट्रो का खर्चा है.. लेकिन पहले ये तो बताइए आप लोगों को जाना कहां है ? , ऑटो वाला निशा के तरफ देख कर बोलता है।


सच! में उतने पैसे ही लोगें ना ? , नीलम पूछती है।


बेफिक्र रहिए माँ जी! , ऑटो चलता हूँ... लेकिन गलत बात नहीं करता , एक बार बोल दिया तो बोल दिया , ऑटो वाले ने कहा।


नीलम और निशा ऑटो पर बैठ गई। उन दोनों के बैठते ही ऑटो वाले ने पुछा,,,,, अब तो बता दीजिए.. कहां जाना है ? तभी तो ले जा सकूँगा।


राजपथ जाना है , नीलम ने कहा।


अच्छा! , वहां पर जाना है आप लोगों को ? , अरे हां! , आज तो 15 जनवरी है ना ? , कोई मेडल मिलने वाला है क्या आप लोगों को ? , ऑटो वाले ने पूछा।


मेडल का नाम सुनते ही निशा साइड होकर ऑटो के खिड़की के पास खीचंक गई और बाहर आते जाते लोगों को देखने लगी।


नीलम भी हैंड बैग खोलकर पैसों का हिसाब कर के कुछ पैसों को हैंड बैग के सबसे ऊपरी पॉकेट में रखने लगी।


उन दोनों को ऐसा करते देख ऑटो वाला भी समझ गया था कि शायद पूछे गए सवाल का जवाब वो दोनों नहीं देना चाहती है... इसलिए ऑटो वाले ने भी पलट कर दुवारा सवाल नहीं किया।


अरे निशू! , सुन ना , मैं जल्दी घर वापस आ जाऊंगा.. , हर्ष , निशा से कह रहा था.. लेकिन निशा ने अपना मुँह दूसरी ओर फेर कर हर्ष की बाहों को बहुत जोर से थाम रखा था। हर्ष भी निशा के हाथों को झटक कर नहीं जाना चाहता था...लेकिन पिछले चार पाँच घंटो से यही चल रहा था।


हर्ष , निशा को मना रहा था और निशा ने हर्ष से मुँह फेर कर भी उसकी बाहों को बुरी तरह से जकड़ रखा था। निशा की आंखों में अजीब सा दर्द था.. जिसे वो चाह कर भी हर्ष को कह नहीं पा रही थी। निशा को पता था उसका हर्ष जिस मिशन पर जा रहा है , वहां से बचकर जिंदा वापस लौट पाना चंद लोगों के किस्मत में ही लिखा होता है।


हर्ष के लगातार समझाने के बाद भी जब निशा , हर्ष की बाहें नहीं छोड़ती है तो ना चाहते हुए भी हर्ष , निशा के हाथ से अपनी बाहें छुड़ा कर जाने लगता है... , थोड़ा आगे जाते ही निशा फिर से हर्ष को पीछे से ही अपनी दोनों बाहों में जकड़ लेती है।


निशा अपनी आंखें बंद कर लेती है... जैसे कि इन जाते हुए एक एक पल को यादों में कैद कर के रख लेना चाहती हो.. , हर्ष की आंखे भी नम हो चुकी थी। हर्ष पीछे मुड़कर निशा को गले लगाना चाहता था.. लेकिन फिर भी हर्ष पीछे नहीं मुड़ता है बल्कि उल्टा निशा के हाथों को झटक कर आगे बढ़ जाता है।


माँ नीलम के चरण स्पर्श कर के उनका आशीर्वाद लेकर घर के बाहर निकल जाता है , जहां पहले से ही सैन्य जीप लगेज के साथ उसका इंतजार कर रहा था।


नीलम और निशा मेन गेट पर आ गई। उन दोनों की आंखों में देख पाना हर्ष के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था... इसलिए हर्ष बिना उनकी ओर देखे ही जीप में बैठकर वहां से चला जाता है।


निशू.. निशू... बेटा निशू! , नीलम की आवाज ने एक बार फिर निशा को पुरानी यादों से निकाल दिया था।


नीलम ऑटो से बाहर खड़ी थी.. , आवाज सुनकर निशा भी ऑटो से बाहर आ गई।


नीलम ने जल्दी से हैंड बैग के ऊपरी पॉकेट में से कुछ पैसें निकालकर निशा को दिखाते हुए कहा,,,,, निशू! , देख तो पैसें बराबर है कि नहीं ? चश्मा नहीं लगाया है.. इसलिए ठीक से कुछ पता नहीं चल रहा है अभी।


निशा ने चंद सेकेंड नीलम की हथेली पर रखे पैसों को देखा फिर आंखों के इशारे से "हां" में गर्दन हिला दी।


ऑटो वाले को पैसें देकर नीलम और निशा राजपथ की तरफ आगे बढ़ने लगी।


राजपथ के एंट्री गेट पर नीलम ने हर्ष का "आई डी कार्ड" दिखाया तो एंट्री रजिस्टर पर उन दोनों का नाम दर्ज कर लिया गया।


आगे चल कर बहुत बड़े खुले स्टेडियम के साथ स्टेज था। स्टेडियम में बैठने के लिए कतारबद्ध कुर्सियां लगी हुई थी। नीलम और निशा लास्ट से तीसरी कतार में लगी कुर्सियों पर बैठ जाती है।


बैठते ही नीलम ने हैंड बैग से नजर चश्मा निकाल कर आंखों पर चढ़ा लिया।


स्टेडियम लगभग आधा भरा हुआ था। लोग आ जा रहे थे। नीलम के चेहरे पर तो मुस्कुराहट थी... लेकिन आंखों में दिल का दर्द साफ साफ देखा जा सकता था। वहीं निशा के चेहरे पर कोई भाव नजर नहीं आ रहे थे... शायद निशा ने आंखों पर काला चश्मा भी इसलिए लगाया था.. ताकि कोई भी उसके आंखों में छिपे दर्द को देख ना सके..।


धीर धीरे एक एक कर के पूरा स्टेडियम भर गया...लेकिन स्टेज पर अभी तक कोई नहीं आया था।


लगभग 25 - 30 मिनटों के बाद स्टेज पर भी मंत्री गणों का आना जाना शुरू हो गया। सूती साड़ी में मिडिल ऐज की लेडी स्टेज पर आई और सभी मंत्री गणों , स्टेडियम में बैठे लोगों का अभिवादन करना आरम्भ किया,,,,, मैं राशि अग्रवाल आप सभी का स्वागत करती हूँ। आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण और गौरवान्वित करने वाला है... क्योंकि आज के दिन ही 15 जनवरी सन 1949 में फील्ड मार्शल "के. एम. करियप्पा" ने जनरल फ्रांसिस बुजर से भारतीय सेना की कमान ली थी। तब से देश इस दिन को भारतीय थल सेना दिवस के रूप में मनाता आ रहा है। भारतीय सेना के सैनिकों को जो युद्ध में अदम्य साहस , शौर्य और वीरता के साथ लड़े.. प्राणों का बलिदान तक दिया , उन्हीं शूर वीरों और शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए , मेडलों से सम्मानित किया जाएगा।


मैं! , माननीय प्रधानमंत्री जी से आग्रह करती हूँ कि वो स्टेज पर आए और शूर वीर शहीदों को मेडलों से सम्मानित करे।


हेलो निशू! , एक गुड न्यूज है यहां पर हालात अब काबू में आ चुके है... इसलिए कल ही हमारी बटेलियन को छुटी दे दी जाएंगी... मैंने कहा था ना.. , मैं जल्दी घर वापस लौट आऊंगा.. तुम मेरा इंतजार करना और हां जब तक मैं वापस ना आ जाऊं तब तक कुछ मत बोलना... क्योंकि मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना है... इसलिए पहले मैं अपने दिल की बात कहूंगा फिर तुम कहना , हर्ष बोल ही रहा था कि तभी धमाके की आवाज के साथ कॉल कट हो गई।


कुछ घंटों के बाद टीवी चैनल पर न्यूज आई,,,,, बॉर्डर पर तैनात बटालियन कैंप पर अचानक हमला हो गया। बटालियन टीम के कमांडर हर्ष सिंह ने सैनिकों के हौसले को कम नहीं होने दिया , कमांडर हर्ष सिंह समझदारी , साहस और वीरता के साथ अंतिम सांसे बाकी रहने तक लड़े।


कमांडर हर्ष सिंह के अदम्य साहस और शौर्य के कारण ही कैंप पर कब्जा होने से रोका जा सका।


निशा के हाथों में मोबाइल था , जिसे निशा ने कान से हटा कर हाथों में ही पकड़ रखा था। उस धमाके की आवाज के बाद वो बिल्कुल चुप हो गई थी। आज लगभग साल गुजर चुका था... लेकिन तब से अब तक निशा के मुँह से एक लब्ज नहीं निकला।


हर्ष ने निशा को उसके आने तक कुछ ना बोलने को कहा था... लेकिन किसी को क्या पता था कि हर्ष अब कभी नहीं आएगा और निशा भी अब कभी कुछ नहीं बोलेंगी..।


निशू... निशू... बेटा निशू! , एक बार फिर नीलम , निशा को उसके ख्यालो की दुनिया से निकाल लाती है।


यादों के गलियारों से निकलते ही निशा , नीलम की तरफ देखने लगती है तो नीलम कहती है,,,,, देख निशू! , अपने हर्ष का नाम लिया जा रहा है... तेरे हर्ष का नाम लिया जा रहा है... , जा आगे बढ़.. , जा बेटा आगे बढ़.. , बोलकर नीलम निशा को स्टेज पर जाने को कहती है।


निशा को स्टेज पर भेजते वक्त नीलम की आंखें बस छलकने ही वाली थी कि नीलम ने अपने आंसूओं को आंखों में ही दवा लिया... ताकि वो निशा को हिम्मत दे सके...।


आज निशा को स्टेज पर देखकर नीलम को वो दिन याद आ गया था.. जब नीलम भी छोटे हर्ष को गोद में उठाए हुए स्टेज पर खड़ी थी। हर्ष के जन्म के साल भर बाद ही उसके पति तेज सिंह को बॉर्डर पर जाने का ऑर्डर मिल गया था। तेज पत्नी नीलम और ग्यारह माह के बेटे हर्ष से विदा लेकर बॉर्डर के लिए निकल जाता है... लगभग महीने भर बाद ही बॉर्डर से तेज के शहीद हो जाने की खबर आ गई।


निशा स्टेज पर पहुंच चुकी थी.. माननीय प्रधानमंत्री जी निशा के हाथों में "वीर चक्र" रखकर निशा को नमस्कार करते है। निशा भी माननीय प्रधानमंत्री जी को नमस्कार करती है। निशा मेडल को टकटकी लगाकर देख ही रही होती है कि तभी स्टेज की मेजबान राशि अग्रवाल , निशा के पास पहुंच कर माइक को निशा के हाथों में पकड़ा कर कहती है,,,,, बटालियन कमांडर हर्ष सिंह को देश का तीसरा सर्वोच्च वीरता सम्मान मिला है , कृपया इस पर दो शब्द कहें...


पहले तो निशा माइक को एक टक देखती है फिर थोड़ा हिचकते हुए माइक को हाथों में पकड़ लेती है। निशा माइक को होठों के करीब लाकर बोलने की कोशिश करती है... लेकिन चाहते हुए भी निशा के लब उसका साथ नहीं देते है।


स्टेडियम में बैठे हर शख्स की नजर अब निशा पर होती है। मंत्री गण भी निशा को ही देख रहे होते है। निशा ने आंखों पर काला चश्मा लगाया होता है , फिर भी उसके आंखों से आंसू निकल निकल कर गालों के सहारे नीचे गिर रहे होते है।


नीलम भी कुर्सी पर बैठी बैठी ही निशा को स्टेज पर देखकर अपने आंसुओ को चाह कर भी रोक नहीं पाती है।


कुछ मिनटों के बाद निशा , राशि अग्रवाल के हाथों में वापस माइक को पकड़ा कर स्टेज से नीचे आ जाती है। निशा नीलम के पास आकर घर चलने का इशारा करती है।


इस वक्त नीलम ही थी जो निशा का दर्द समझ सकती थी... क्योंकि नीलम भी उन्हीं परिस्थितियों से गुजरी थी , जिन परिस्थितियों से आज उनकी बहु निशा गुजर रही है।


निशा अपने पति के माँ को इस उम्र अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी , वहीं नीलम भी ये अच्छी तरह से जानती थी कि निशा के मायके में तीन विवाहित भाइयों का परिवार शायद विधवा छोटी बहन का ख्याल ना रख पाए... इसलिए अब नीलम और निशा ही एक दूसरे का सहारा है।


नीलम के पास तो हर्ष नाम की उम्मीद थी जीने के लिए... लेकिन निशा के पास तो वो उम्मीद भी नहीं है।


नीलम को पता था आज नहीं तो कल निशा धीरे धीरे बीते हुए अतीत को भुला ही देंगी... क्योंकि वक्त हर जख्म को भर ही देता है। उस वक्त के आने तक वो निशा का ख्याल रखना चाहती थी और जिस दिन वो वक्त आएगा उस दिन नीलम अपने जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाएंगी।


समाप्त


Thanks for Reading.....


Written and Copyrighted by @Krishna Singh Kaveri "KK"