सूरज दिनभर अपनी ड्यूटी करकर थक गया है। इसलिए उसने अपनी किरणों की समेटना शुरू कर दिया है। मौसम वैज्ञानिक इस स्थिति को शाम कहते है। जिसका बच्चों के लिए मतलब सिर्फ बाहर खेलने जाना है। अब एक बार फिर कृति घर में अकेली हो गई है। जिस कारण उसका ध्यान फिर एक बार महेश की यादों में चला गया है। पर अबकी बार ध्यान उन अच्छे पलों की तरफ गया है। जिनमें वे एक दूसरे से मिले थे। अब से करीब चौदह साल पहले कॉलेज के दिनों में………
कितने अच्छे और खुशनुमा दिन थे। वो हम दोनों के लिए, साथ-साथ रहना, घूमना, खाना, बातें करना, और जब एक दूसरे से अलग होते तो बस आपस में एक दूसरे को याद करना। ऐसा लगता था जैसे हम एक अलग ही जहान में हैं। या एक ऐसे रास्ते पर जो कभी ख़त्म नहीं होगा और हम दोनों को बस उस पर चलते जाना है। हमें किसी चीज़ की फिक्र न थी हम तो बस खोए हुए थे एक दूसरे में ---------लेकिन अफ़सोस उस रास्ते पर हम थे। दुनिया नहीं ! और दुनिया में रहने के लिए ज़िम्मेदार होना पड़ता है। फिर चाहे उस ज़िम्मेदारी का कोई भी रूप हो और आजकल हमारे देश में भी आर्थिक ज़िम्मेदारी कॉलेज के बाद ही लेनी होती है। इसलिए हमारा भी अपनी आर्थिक ज़िम्मेदारी लेने का वक़्त आ गया था। य़ानि कि हमारा कॉलेज ख़त्म हो चुका था। और हम दोनों को ही अपने नौकरी पेशा कैरियर की शुरुआत करनी थी।
कितना अच्छे से संभाला था। हम दोनों ने सब कुछ, जब हमारी नई-नई जॉब लगी थी। दोनों की ही जॉब नई थी। और काम का दबाव भी ज्यादा था। फिर भी हमने अपने बीच कि हर चीज़ तय की थी। फिर चाहे वो सुबह उठकर वीडियो कॉल पर एक-दूसरे को गुडमॉर्निंग कहना हो, लंच में फोन करकर क्या तुमने खाना खा लिया? पूछना हो या रात को पुरी तरह थके हुए शरीर से गुडनाईट कहकर अपने-अपने पीजी के बिस्तर पर एक-दूसरे की यादों की करवटों में सोना हो, या फिर अपने वर्किंगडेज के बिज़ी शेड्यूल से लेकर वीकेंड में बाहर एक साथ हाथ पकड़कर घूमने तक को, कितने अच्छे से एडजस्ट किया था। सब कुछ हमने, कितने खुश थे। हम अपनी इस छोटी से दुनिया में, हमारे बीच की हर चीज़ दो तरीके से काम करती थी। एक दुनिया के तरीके से और दूसरी हमारे प्यार के तरीके से, इस बीच सब कुछ रुका हुए सा लगता था। बस केवल हमारा प्यार था। जो गतिमान था।
ऐसे ही वक़्त धीरे-धीरे हमारे प्यार को संभालता हुआ। बीतता चला जा रहा था। फिर हमारे जॉब लगने के छह महीने बाद वो दिन आया। जो हम दोनों की ही ज़िंदगी बदलने वाला था। उस दिन महेश ने मेरे सामने अपने घुटने पर बैठकर मुझे रिंग पहनाते हुए पूछा था। कि “कृति जो मेरे लिए सिर्फ एक नाम ना होकर सब कुछ हैं। क्या मैं तुम्हारे साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह सकता हूं। ताकि तुम्हारे हरदम करीब रह सकूं। और चाहता हूं कि तुम अपनी जॉब छोड़ दो, क्योंकि, मैं हूं ना, तुम्हारी हर जरूरत पुरी करने के लिए, और फिर भी अगर तुम्हें काम करना ही हैं। तो भी, मुझे कोई परेशानी नहीं हैं। मैं तो बस चाहता हूं। कि हम दोनों साथ रहे और एक-दूसरे को वक़्त दे ताकि हमारा प्यार और गहराता चला जाए।“
मैं तो इस बात को सुनकर जैसे उड़ने लगी थी। जिसके प्यार में होना ही मुझे नया कर देता था। उसका मुझसे साथ रहने के लिए पूछना, आखिर क्या पल था वो, मुझे उस वक़्त ऐसा लगा था। जैसे ये किसी एक ख़त्म होती दुनिया का आखिरी सवाल है। और जिसका जवाब 'हां' में देने पर मैं किसी दूसरी सुरक्षित दुनिया में पहुंच जाऊंगी। मैं तैयार थी। हमेशा से, हमेशा के लिए, उसके पास जाने के लिए और उसे पुरी तरह अपना बनाने के लिए
मेरे ‘हां’ कहते ही मुझसे ज्यादा जल्दी तो महेश को थी। इसलिए अगले दो दिनों में महेश मेरे पीजी से मेरा सामान पैक कराकर मुझे अपने साथ रहने के लिए ले गया था।
उस वक़्त मुझे ये सब करना बड़ा अच्छा लग रहा था।, सामान पैक करकर उसके साथ जाना, एक फ्लैट रेंट पर लेकर उसमें अपने तरीके से सामान सेट करना, पर्दे लगाना, एक सप्ताह के खाने का शेड्यूल तैयार करना। और भी जाने क्या-क्या या यूं कहें साथ में और भी बहुत कुछ हो रहा था। और हम दोनों को भी ये बहुत कुछ करने में मज़ा आ रहा था। पर मेरे लिए इन सब का जो सबसे ज़रूरी मतलब था। वो ये था कि इन सब वजहों से महेश मेरे और करीब आ रहा था। मुझसे कभी भी दूर ना जने के लिए, हमेशा मेरा ही बनकर रहने के लिए। उसका वो प्यार, गुस्सा, चिड़चिड़ापन, मासूमियत सब मेरा होने वाला था। बिना किसी बंदिश के, उमर भर के लिए।
एक बार फिर अचानक से दरवाज़े की तरफ से घंटी की आवाज़ के साथ-साथ ममा दरवाज़ा खोलो का शोर भी आ रहा हैं। जिस कारण कृति का ध्यान एकदम से टूटकर वर्तमान में आ गया है। दरवाज़े पर बच्चों का शोर सुनकर कृति ने अंदर से ही डांटते हुए दरवाज़ा खोला। दोनों बच्चें पुरी तरह से पानी में भीगे हुए खड़े थे। उन्हें बारिश में भीगा हुआ देखते ही, कृति को उनके शोर मचाने के कारण जो झुंझलाहट पैदा हुई थी। उसकी ममता ने उस झुंझलाहट को उसके मन से दरकिनार कर दिया। इसलिए वो एक बार फिर सब कुछ भूलकर बच्चों के गीले कपड़े बदलने और उनके लिए खाना बनाने में लग गई हैं।