akhiri khat in Hindi Short Stories by piyush rai books and stories PDF | आखिरी खत

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आखिरी खत

कविता - अखिरी खत💌
लेखक - पीयूष राय ✍️
(प्यार❣️)

प्यार तो आपसे इतना है कि ताउम्र आपका इंतजार करूंगा,
आप किसी के साथ हमबिस्तर भी हो जाओगे उसके बाद भी मैं अपना कहूंगा।
~पीयूष राय

प्यार या प्रेम एक एहसास है। जो दिमाग से नहीं दिल से होता है प्यार अनेक भावनाओं जिनमें अलग अलग विचारो का समावेश होता है। प्रेम स्नेह से लेकर खुशी की ओर धीरे धीरे अग्रसर करता है। ये एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना जो सब भूलकर उसके साथ जाने को प्रेरित करती है। ये किसी की दया, भावना और स्नेह प्रस्तुत करने का तरीका भी माना जा सकता है। जिसके उदाहरण के लिए माता और पिता होते है खुद के प्रति, या किसी जानवर के प्रति, या किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को प्यार कहा जाता हैं। सच्चा प्यार वह होता है जो सभी हालातो में आप के साथ हो दुख में साथ दे आप का और आप की खुशियों को अपनी खुशियां माने कहते हैं कि अगर प्यार होता है तो हमारी ज़िन्दगी बदल जाती है पर जिन्दगी बदलती है या नही, यह इंसान के उपर निर्भर करता है प्यार इंसान को जरूर बदल देता है प्यार का मतलब सिर्फ यह नहीं कि हम हमेशा उसके साथ रहे, प्यार तो एक-दूसरे से दूर रहने पर भी खत्म नहीं होना चाहिए। जिसमे दूर कितने भी हो अहसास हमेशा पास का होना चाहिए। किसी से सच्चा प्यार करने वाले बहुत कम लोग हैं। लेकिन उदाहरण हैं लैला और मजनू। इनके प्यार की कोई सीमा नहीं है। यह प्यार में कुछ भी कर सकते हैं। ऐसे प्यार को लोग जनम जनमो तक याद रखेंगे।


(प्रेम इंसान को पवित्र बना देता है)

कितना उचित इश्क़ में रंगों का ये भेद?
शादीशुदा तुम श्रृंगार तुम्हारा प्रेम का रूप,
विधवा जो हुई तुम क्यों मिला ये श्वेत स्वरूप?

क्या जरूरी था प्रेम का रंगों में विभाजन,
अगर नहीं तो क्यों तुमने अपने निश्चल, निर्मल प्रेम को बेरंग ही ना रहने दिया,
और जब अपना ही लिया था तुमने प्रेम का लाल रंग,
तो क्यों तुम अपने उस प्रेम से प्रेम नहीं कर पाई,
फिर क्यों अपनाया तुमने वह श्वेत रंग?

तुम्हारा प्रेम उसके जिस्म से था या उसकी अमर रूह से,
अगर रुह से, तो फिर क्यों…..?
उस जिस्म के रूह से बिछड़ जाने से,
तुमने अपने प्रेम की हत्या भी कर दी,
अगर जिंदा अब भी तुम्हारी रूह में उसका प्रेम,
तो क्यों लपेटा है तुमने ये श्वेत कफ़न खुद पे?

क्या प्रेम लिबासों का प्रतिरूप हो गया है?
गर नहीं तो देखो खुद को दर्पण में,
तुम्हारे प्रेम का प्रतिबिंब ये श्वेत लिबास तो न था?

जिस्मो के बिछड़ जाने से रूहानी प्रेम मर नहीं जाता,
उतारो इस श्वेत कफ़न को, खुद पे फिर अपने प्रेम को सजाओ,
तुम प्रेम को प्रेम ही रहने दो, इसे रंगों का खेल ना बनाओ,
देख तुम्हारी रूह को कैद कफ़न मे, वो आजाद रूह भी तड़प रही होगी,
कहीं न कहीं इसका गुनहगार खुद को समझ रही होगी,
~पीयूष राय