Mamta ki Pariksha - 60 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | ममता की परीक्षा - 60

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ममता की परीक्षा - 60



सेठ अम्बादास अपने वादे के मुताबिक दूसरे दिन फिर आए। उनके साथ उनके लीगल एडवाइजर गुप्ताजी भी थे। सेठ शोभालाल के सामने उन्होंने अपनी सभी कंपनियों के 30 प्रतिशत शेयर शोभालाल व बृन्दादेवी तथा 30 प्रतिशत शेयर सुशीला के नाम करने के लिए आवश्यक कागजात तैयार करने के निर्देश दिए। शादी की तैयारियों के बारे में काफी देर तक गहन मंत्रणा करने के बाद तीन दिन बाद सभी को अमेरिका जाने के लिए तैयार रहने की बात कहकर सेठ अम्बादास जी चले गए।

उनके जाने के बाद विजयी मुद्रा में बृन्दादेवी को देखते हुए सेठ शोभालाल ने कहा, "वाह ! सही कहा है किसी ने। ऊपर वाला देने पर आता है तो छप्पर फाड़कर देता है। सेठ अम्बादास जी के तीस प्रतिशत शेयर के मायने समझती हो ? हमारी सभी कंपनियों के शेयर मिलकर भी उनकी पंद्रह प्रतिशत के बराबर नहीं होंगी और अब उनमें से साठ प्रतिशत के मालिक हम होंगे, यानि कि हमारे एक फैसले ने हमें पाँच गुना अधिक अमीर बना दिया है। अम्बादास की बची हुई संपत्ति भी भविष्य में हमारी ही है। समाज और सोसाइटी में अब हमारा रुतबा और बढ़ जाएगा सो अलग। अरे भाई सेठ अम्बादास का रिश्तेदार होना कोई मामूली बात थोड़े न है ?"

बड़ी देर तक बृन्दादेवी और शोभालाल इसी तरह की बातें करते हुए परस्पर एक दूसरे को खुश करते हुये काल्पनिक सुख के सागर में गोते लगाते रहे।

अम्बादास जबान के धनी निकले। अपने वादे के मुताबिक उन्होंने समय से पहले ही सारे कागजात शोभालाल के हवाले कर दिए, और आज सभी तैयार होकर अमेरिका जाने के लिए एयरपोर्ट पर बोर्डिंग के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। एयरपोर्ट के एग्जीक्यूटिव वेटिंग हॉल में बृन्दादेवी के साथ शोभालाल और गोपाल भी बैठे हुए थे।
जमनादास उन्हें एयरपोर्ट तक छोड़ कर जा चुका था। जब तक वह उनके साथ मौजूद रहा गोपाल ने एक बार भी उसकी तरफ पलट कर नहीं देखा था।

जमनादास भी उसकी नफरत की वजह को महसूस करके आत्मग्लानि महसूस कर रहा था लेकिन अब तो देर हो चुकी थी। वह कर भी क्या सकता था ? वह वाकई पहले वह सब नहीं जानता था जो उसने उस दिन अस्पताल में जाना था। उसने तो बस एक बिगड़े हुए बेटे को अपने माँ बाप के पास लाने का पुण्य का काम किया था लेकिन अब सारा माजरा ही उल्टा हो गया था। माँ बाप से एक बेटे को मिलाकर पुण्य कमाने के चक्कर में वह एक प्रेमी प्रेमिका और एक पति पत्नी को अलग करने का जघन्य पाप कर चुका था। उस दिन अस्पताल से आने के बाद उसे गोपाल के माँ बाप से एक तरह से नफरत सी हो गई थी। वह फिर कभी उनसे मिलने भी नहीं गया और इसीलिए वह सेठ अम्बादास और शोभालाल के बीच तय हुई बातचीत से बिल्कुल अनजान था। उसे सिर्फ इतना बताया गया था कि गोपाल को इलाज के लिए अमेरिका ले जाया जा रहा है। सारा इंतजाम सेठ अम्बादास करेंगे और गोपाल के वापस आने पर उसकी शादी अम्बादास की लड़की सुशीला से धुमधाम से की जाएगी। सुशीला के बारे में जमनादास इतना ही जानता था कि वह सेठ अम्बादास की इकलौती संतान होने की वजह से एक बिगड़ैल ,मनबढ़ बददिमाग लड़की थी। उसकी चाल ढाल और व्यवहार के साथ ही उसका पहनावा जमना और गोपाल दोनों को ही नापसंद था। अब उसे गोपाल की चिंता होने लगी थी। साधना जैसी सुशील , खूबसूरत और समझदार लड़की की जगह उसे इस बिगड़ैल नवाबजादी से शादी करनी होगी। फिर साधना का क्या होगा ? कितना प्रेम करते हैं दोनों एक दूसरे से। बहुत बुरा किया था उसने गोपाल के साथ !

गोपाल उसका दोस्त ! उसकी बात पर भरोसा करके वह गाँव से उसके साथ चला आया और यहाँ आकर वह परिस्थितियों की कैद में जकड़ सा गया था। सचमुच गोपाल की नफरत का ही तो हकदार था वो !

घर से एयरपोर्ट आने के रास्ते में उसका जी चाह रहा था कि वह गोपाल को सब कुछ सच सच बता दे, लेकिन फिर उसके दिमाग ने उसे मना कर दिया। दिमाग के तर्क के आगे वह लाजवाब हो गया था। उसके दिमाग ने कहा था ' सोच ले जमना ! अगर तूने अभी गोपाल से सब सही सही बता दिया तो क्या होगा ? वह अभी अमेरिका जाने से मना कर देगा। .. और फिर ? फिर उस भयानक बीमारी का क्या होगा जिससे वह जूझ रहा है ? उसकी तरफ से लापरवाह शोभालाल और बृन्दादेवी तो उसका यहाँ भी ठीक से इलाज नहीं करवाएंगे। नतीजा ? नतीजा वही होगा जो अंततः एक लाइलाज बीमारी के मरीज का होता है। बीमारी से लड़ते लड़ते इंसान पस्त हो जाता है और फिर एक दिन उसके सामने आत्मसमर्पण करके इस दुनिया से विदा ले लेता है।'
सोचकर ही वह सिहर उठा था। ' दिमाग के आगे घुटने टेकते हुए दिल भी उसकी हाँ में हाँ मिलाने लगा ! दिल के किसी कोने से आवाज आई ' नहीं, अभी गोपाल को कुछ भी बताना उचित नहीं है। पहले उसका सफल इलाज होना ज्यादा जरूरी है। अपना इलाज कराके पहले वह भारत आये तब उसकी सहायता करने की कोशिश की जानी चाहिए। गोपाल और सुशीला की शादी तो यहीं होगी। तब वह साधना को सबके सामने पेश करके पूरे समाज के सामने उनकी सच्चाई को बता कर उन्हें मिलवाने की कोशिश कर सकता है। यहाँ से बीमार गोपाल अमेरिका जाकर वहाँ से स्वस्थ गोपाल बनकर वापस आएगा जबकि यहाँ रहकर पता नहीं बचेगा भी कि नहीं। फिलहाल उसका अमेरिका जाना ही उचित है।'
और जब दिल और दिमाग दोनों किसी बात की तरफदारी करने लगें तो कोई भी उसकी अनदेखी नहीं कर पाता। लिहाजा जमनादास भी दिमाग की बात सुनकर दिल पर पत्थर रखकर अपने प्रिय मित्र की तरफ देखे बिना ही उसे एयरपोर्ट पर छोड़कर घर आ गया।

घर पर आकर वह सीधे अपने कमरे में घुस गया और बड़ी देर तक बेड पर औंधे मुँह पड़ा रहा। अबकी उसने पलकों के किनारे तोड़कर बहने को बेताब आँसुओं को रोकने का बिल्कुल प्रयास नहीं किया। वह जानता था दोस्त से बेवफाई और गद्दारी के बाद उसकी नफरत के साथ इन आँसुओं का भी बोझ वह सह न सकेगा, और सचमुच आँसुओं के उन्मुक्त बह जाने के बाद अब वह खुद को काफी हल्का महसूस कर रहा था।

आँसुओं को पोंछकर वह उठना ही चाहता था कि तभी किसी ने उसके दरवाजे पर दस्तक दी। उसने जल्दी जल्दी अपनी आँखें पोंछीं और चेहरे पर जबरदस्ती मुस्कान लाने का प्रयास करते हुए उसने कमरे का दरवाजा खोल दिया। दरवाजे के बाहर उनका एकमात्र घरेलू नौकर रामू काका खड़ा था। चेहरे पर मुस्कान लाते हुए उसने जमनादास से कहा ," बाबा ! बाहर कोई आया है। एक दम बूढ़ा है ,कोई गाँववाला दिख रहा है। अपना नाम नहीं बता रहा है, बस कह रहा है कि आप जाकर बता दो सुजानपुर से मास्टर जी आये हैं !"

क्रमशः