सेठ अम्बादास ने अपनी कहानी आगे जारी रखी।
"हमेशा की तरह इस बार भी हम छुट्टियाँ मनाने के लिए अमेरिका गए हुए थे। किसी आवश्यक कार्य की वजह से मैं अकेले भारत वापस आ गया था। मेरी पत्नी और बेटी दोनों अपनी छुट्टियाँ कम नहीं करना चाहती थीं सो दोनों वहीं रह गईं। एक महीने की अपनी छुट्टी पूरी बिता कर दोनों यहाँ वापस आईं। यहाँ तक असामान्य कुछ भी नहीं था। इस घटना को लगभग तीन महीने बीत चुके हैं। अभी पिछले सप्ताह मेरी पत्नी का ध्यान सुशीला के बदलते जिस्म और उसके बदलते खान पान की पसंद की तरफ गया तो उसने ध्यान से देखा और फिर उसका डॉक्टर से परीक्षण करवाया। डॉक्टर ने परीक्षण करके बताया 'वह चार महीने की गर्भवती है'। सुनकर दुःख तो बहुत हुआ, लेकिन क्या कर सकते थे ? डॉक्टर से निवेदन किया कि उसका गर्भपात करवा दिया जाय लेकिन बड़े प्रलोभनों के बावजूद वह डॉक्टर तैयार नहीं हुआ। उसका कहना है कि पहले ही काफी देर हो चुकी है और अब यह काम मुश्किल और जोखिम भरा हो गया है। सुशीला की जान को भी खतरा हो सकता है। तभी गोपाल के बारे में जानकर मुझे उम्मीद की एक किरण नजर आई और आपसे बातचीत शुरू की।"
कहते हुए अम्बादास अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए शोभालाल की तरफ झुक गए।
उनके जुड़े हुए हाथों को स्नेह से थामते हुए सेठ शोभालाल ने कहा, "आप चिंता न कीजिये ! आपकी इज्जत अब हमारी इज्जत है। अब हमें मिलकर यह सोचना चाहिए कि ऐसा क्या करें जिससे आपकी और हमारी भी इज्जत समाज में बनी रहे। कल को पाँच महीने में ही बच्चे की खबर से समाज में हमारी तो बदनामी होगी ही आप भी कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।"
कुछ सोचते हुए सेठ अम्बादास ने कहना शुरू किया, "मैंने इस स्थिति से बचने का भी उपाय सोच लिया है। ईश्वर कृपा से हमें गोपाल की बीमारी के रूप में एक सुनहरा मौका मिल गया है।"
"क्या करेंगे ?" शोभालाल ने उत्सुकता से पूछा।
अम्बादास ने उन्हें समझाने के अंदाज में कहा, "मित्र, अब ये चिंता आप हम पर छोड़ दें।"
कुछ पल रुककर फिर आगे बोले, "नहीं, मैं अपनी योजना आपसे साझा कर ही लूँ तो बेहतर है। हो सकता है कोई खामी नजर आए तो उसे आप दुरुस्त कर दें। आप दोनों लोग इलाज के नाम पर गोपाल के साथ अमेरिका जाने की तैयारी कर लीजिए। सारा इंतजाम मैं कर दूँगा। वहाँ पहुँचकर अपने बंगले पर अपने कुछ विदेशी मेहमानों की उपस्थिति में गोपाल और सुशीला की शादी हो जाएगी। गोपाल का ऑपेरशन सफल होने के बाद हम सभी लोग वापस आ जाएँगे और गोपाल और सुशीला वहीं रह जाएंगे। उनके लिए कोई छोटा मोटा कारोबार मैं वहीं करवा दूँगा जिसमें सुशीला और गोपाल बराबर के भागीदार रहेंगे। मेरी योजना ये है कि दो तीन साल बाद जब दोनों वापस आएंगे अपने बच्चे के साथ तब सबको सब कुछ सहज ही लगेगा। बच्चे के पैदाइश की तारीख तो हमें ही पता रहेगी न। कागजात भी उसी के मुताबिक बन जाएंगे। उसमें चार महीने जोड़कर बताने में कोई दिक्कत नहीं होगी।"
कुछ सोचने वाले अंदाज में सेठ शोभालाल ने पूछा, "सो तो ठीक है, लेकिन सुशीला गोपाल से शादी कर लेगी, इस बारे में आश्वस्त हैं आप ? उसके पेट में किसका बच्चा है ? कहीं ये मामला भविष्य में उभरा तो ?"
"इसके बारे में आप निश्चिंत रहें। भविष्य में ऐसा कुछ भी नहीं होनेवाला। बताना तो नहीं चाहता था लेकिन अब आपको शंका हो ही गई है भविष्य को लेकर तो बताना ही उचित है, सुनिए !"
कहते हुए सेठ अम्बादास ने सोफे पर पहलू बदला, "अमेरिका से मेरे आने के बाद मेरी श्रीमतीजी और बेटी दोनों ही वहाँ की लाइफ में ही जिंदगी के सुख तलाशने लगीं। घूमना फिरना, महँगे क्लबों में , कैसिनो में और मनोरंजन पार्कों में समय व्यतीत होने लगा उनका। वहाँ की रंगीनियों में हमारी श्रीमतीजी ऐसी खोयीं कि बेटी की तरफ उनका ध्यान ही न रहा।
उस दिन देर रात जब श्रीमतीजी बंगले पर पहुँची तो सुशीला वहाँ नहीं थी। श्रीमतीजी को चिंता तो हुई लेकिन कर भी क्या सकती थीं सिवा इंतजार के ? सुबह दिन निकलने से पहले एक कार रुकी। सुशीला उसमें से उतरी। तीन चार लड़कों के साथ उसके अस्तव्यस्त कपड़े और बहकी हुई सी चाल अपनी कहानी खुद ही कह रहे थे लेकिन हमारी श्रीमतीजी को उस समय कुछ भी नजर नहीं आया। हालाँकि आज उन्हें इस बात का पछतावा है लेकिन अब क्या किया जा सकता है ? उसके बाद ऐसा क्रम कई बार दुहराया सुशीला ने और श्रीमतीजी उसे भला बुरा भी नहीं समझा सकीं। वो लड़के कौन थे ? न सुशीला उनको जानती थी और न ही वो लड़के सुशीला को जानते थे, सो भविष्य में उनकी कोई चिंता नहीं है। ये तो पश्चिमी सभ्यता के जीवनशैली की एक आँधी थी जो मेरी बेटी का जीवन तहस नहस कर गई , एक सैलाब था जो सब कुछ बहा कर ले गया। अब आपकी कृपा हो तो उसकी जिंदगी फिर संवर जाएगी।" कहते हुए अम्बादास की आँखें भर आईं थीं, गला भी रुंध गया था।
भावुकता में सेठ शोभालाल भी बहते हुए नजर आए लेकिन बृन्दादेवी भावहीन चेहरे के साथ अम्बादास की सारी बातें सुनती रहीं।
अम्बादास के खामोश होते ही बृन्दादेवी ने कहना शुरू किया, "कोई बात नहीं भाईसाहब ! अब आप चिंता न करें। आपने सुशीला के बारे में सब कुछ साफ साफ बता कर बहुत बढ़िया किया। यह तो डबल खुशखबरी है हमारे लिए।" कहते हुए बृन्दादेवी के चेहरे पर कुटिल मुस्कान तैर गई। उसने आगे कहना जारी रखा, "हम भी आपको अँधेरे में नहीं रखना चाहते। बात दरअसल ये है कि गोपाल भी हमारा सगा बेटा नहीं है इसलिए वह हमारा उत्तराधिकारी नहीं है। आप जो कुछ देने वाले हैं सुशीला को वह उतने का ही हकदार रहेगा और ....!"
तभी उसकी बात बीच में ही काटते हुए सेठ अम्बादास बोले, "समधन जी,हम व्यापार करने वाले लोग हैं। आप तो जानती ही हैं कि हमें अगर आम मिलता रहे तो हम पेड़ गिनने के चक्कर में नहीं पड़ते। गोपाल आपका बेटा है या नहीं यह तो आप को ही पता है न ? पूरी दुनिया तो उसे आपका ही बेटा समझती है, और मेरी नजरों में भी वह आपका ही बेटा है , भले ही वह आपका कोई भी न हो।"
कहने के बाद सेठ अम्बादास उठते हुए हाथ जोड़कर बोले, "अब इजाजत दीजिये भाईसाहब ! फिर कल आता हूँ और आगे की सारी बातें तय करेंगे।"
उनके साथ ही बृन्दादेवी और शोभालाल भी उनके साथ उठकर बंगले के मुख्य दरवाजे तक गए और उनको विदा करके आते हुए बृन्दादेवी ने खुश होकर शोभालाल से कहा, "ये तो जो हम चाहते थे वही हुआ। सचमुच ईश्वर बड़ा दयालु है। जब सुशीला जैसी कुलच्छनी बीवी पाकर गोपाल तिल तिल कर जीते जी मरेगा तब हमारे कलेजे को कितनी ठंडक मिलेगी ! हे भगवान ! अब तो सब्र नहीं होता। दिल बस यही कर रहा है कि जल्दी से वह शुभ घड़ी आ जाये।"
"एक बात और बृंदा, जो हमारे लिए बहुत अच्छी हुई और वो ये कि अम्बादास जी शादी अमेरिका में करना चाहते हैं। इससे हमें उस लड़की की तरफ से कोई चिंता नहीं रहेगी।" शोभालाल जी उनके साथ बंगले में दाखिल होते हुए कुटिलता से मुस्कुराए और बोले, "इसी को कहते हैं, न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी .....!"
क्रमशः