जाम श्री अबडा जी कच्छ के एक छोटे जागीरदार थे। अबडा जी अबडा-अडभंग (कभी वचन ना तोड़ने वाले) के नाम से जाने जाते थे। उमरकोट में तब सुमरा वंश का शासन था। वहा दो भाई घोघा सुमरा और चनेशर सुमरा के बीच तकरार होने के कारण चनेशर सुमरा दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी के पास चला गया, और खिलजी के पास मदद मांगी की वहा उमरकोट में मेरा राज्य घोघा ने छीन लिया है, अगर आप मेरी मदद करेंगे तो आप को सुंदर सुमरी स्त्रिया दिल्ली ले आने का मोका मिलेंगे।
हवस के अंधे खिलजी ने चनेसर का साथ देने के लिए बडी सेना लेकर घोघा पर आक्रमण करने निकल गया। खिलजी ने अपने सरदार हुसैन खान को घोघा के पास भेजा की अगर वोह शांति से सुमरियो का निकाह करवाने को कहा, मगर घोघा ने साफ साफ मना कर दिया और युद्ध के लिए तैयार हुआ, जाते जाते अपने विश्वास पात्र नोकर 'भाग' को कहा की "कच्छ में जाम अबडा अडभंग वीर पुरुष है, वह अपने शरण में आए हुए को हमेशा रक्षण करेंगे इसीलिए अगर हम ना बचे तो सभी सुमरी स्त्रियों को लेकर उनकी शरण में जाना।" युद्ध में घोघा को सरदार हुसैन खान ने मार गिराया और अपने जूते से उसके शव को लात मारी। यह देखकर चनेसर का भ्रातृप्रेम उभर आया और उसने हुसैन खान का सिर धड़ से अलग कर दिया। तभी पीछे खड़े सिपाही ने चनेसर को भी मार डाला।
अब दोनो ही भाईयो की मृत्यु के बाद उमरकोट पर खिलजी ने कब्जा जमाया और जब देखा तो उसे सुमरीया नही मिलने पर जांच करवाई, जांच के बाद खिलजी ने अबडा अडभंग की तरफ आगे कुच की।
'भाग' नामका विश्वाशु नोकर १४७ सुमरीओ के साथ प्रथम एक नाम के कारण गड़बड़ होने से वह जुणेचा गांव में गया लेकिन वह अबडा दूसरे थे, बाद में वह वडसर में गया वहा उसने सभी हकीकत 'जाम अबडा जी' को बताई और जाम अबडाजी की शरण मांगी।
तब जाम अबडा जी ने कहा की यह तो मेरा सौभाग्य होगा, में बिना पहेचान के भी किसी पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए हमेशा तत्पर रहता हुं, तो फिर मेरे घर आई बहेनों को बादशाही लश्कर का मेरे जीतेजी तो भोग केसे होने दु ?
वहा से रेहा डूंगर पर से सभी स्त्रियों को लाने के लिए खुद गए। पर घोड़ों को आता देख सुमरीया इतनी डर गई की १४७ मेसे अब केवल १४० ही बची थी, योग्य अंतिम क्रिया करवाने के बाद १४० सुमरिओ को लेकर वोह अपने दरबार में आये।
खिलजी पीछा करते करते जूणेचा पहोच गया और वहा पर अपने नाम को अमर करने के लिए अबडा ने लड़ते लड़ते वीरगति प्राप्त की।
बाद में खिलजी वडसर की और आगे बढ़ा, यह बात अबडा जी को पता चलते ही उन्होंने बादशाह को रात में वडसर ढूंढने में मदद मिले इस लिए कपास की मदद से आग प्रज्वलित की और इसकी मदद से खिलजी वडसर की सिमामे पहोच गया, जाम अबडाजी की यह बात देखकर खिलजी ने जाम अबडाजी को संदेश भेजा की वोह अगर एक सुमरी दे दे तो वोह युद्ध नहीं करेगा उसका जवाब जाम अबडाजी ने एक क्षत्रिय रीत से दिया, "जब तक मेरे शरीर के ऊपर सिर सलामत है, तब तक मेरे बहेनो की परछाई भी तुम नहीं देख सकोगे"।
बाद में वडसर के वीरों ने खिलजी सेना के सामने युद्ध किया जाम अबडाजी के छोटे भाई सपडाजी और कय वीर युद्धाओ ने वीरगती प्राप्त की। अब बारी थी केसरीया करने की, जाम अबडाजी ने रणभूमि में जाने से पहले सुमरिओ को एक दूध का पात्र दिया और कहाकी जब इस दूध का रंग लाल पड जाए तब यह सोचना की जाम अबडा अब इस नही रहे और उन सभी को एक कोश दूर छोड़ आए बाद में अपने बड़े भाई मोडेर जाम तथा कुमार भी रणभूमि में टूट पड़े मानो उनके लिए तो यह वीरता सिद्ध कर रणभूमि में सोने का अवसर था।
अब वोह कुछ ही संख्यामे थे और सामने खिलजी की सेना कभी ना खतम हाई वाले समुद्र के भाती बहोत बडी थी, लेकिन हर एक क्षत्रिय योद्धा क्षात्रधर्म निभा कर केसरी सिंह के भाती दुश्मनो पर टूट पड़े थे। जाम अबडाजी, मोडेरजाम तथा एक कुंवर ने भी वीरगति प्राप्त कर ली थी।
दूध का रंग लाल होते ही सुमरियो ने धरती माता की स्तुति करना शुरू कर दिया और धरती में समा गई।
कय हजारों सैनिक गुमाकर खिलजी वापस दिल्ली लोटा, और युद्ध के वक्त अपने ननिहाल में थे वोह युवराज डूंगरसिंहजी, जाम अबडाजी की गद्दी पर बैठे।
आज भी वडसर गांव में जाम अबडाजी और मोडेर जाम की जगह पर जाडेजा राजपूत उनके पालियां को सिंदूर चढ़ाते हैं और कसूंबा करते हैं।
ऐसे के वीर योद्धा हमारी धरती पर हो गए लेकिन भाषा की मर्यादा के कारण केवल कुछ क्षेत्र में ही मर्यादित रह गए।
हम आगेभी वीर पुरुषों पर नवल कथा लाते रहे गे।
जय माताजी जय हिंद