KAPURUSH - 3 in Hindi Fiction Stories by S Sinha books and stories PDF | कापुरुष - 3

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कापुरुष - 3

  पिछले अंक में आपने पढ़ा कि हीरा बड़े भाई डॉ सोनी के ससुराल नौकरी की तलाश में गया  .   अब आगे  …  


                                                  कहानी - कापुरुष   भाग 3 

 

 

 इसी बीच मधु की माँ रमा दो  दिनों के लिए रांची गयी  . रांची से लौटते समय उसकी टैक्सी  घाटी में काफी नीचे जा गिरी   . इस हादसे में रमा का देहांत घटनास्थल पर ही हो गया  .  मधु के ऊपर दुःख का पहाड़ टूट पड़ा  . उसका और कोई नजदीकी रिश्तेदार भी नहीं था  . एक दो दूर के रिश्तेदार आये थे जो दाह  संस्कार के बाद लौट गए  . एक दो अंतिम संस्कार तक रुके  . हीरा इस दुःख की घड़ी  में हर पल मधु के साथ खड़ा रहा  . 


सच ही कहा गया है कि विपत्ति कभी अकेली  नहीं आती है  . मधु अभी माँ की मौत से हुए सदमे से उभर भी नहीं पाई थी कि एक दूसरी विकट समस्या उसके सामने मुँह बाए खड़ी हो गयी  . यह ऐसी समस्या थी कि  वह दूसरे से बता भी नहीं सकती थी  . अभी माँ के गुजरे दो महीने भी नहीं हुए थे उसने अपने अंदर कुछ शारीरिक बदलाव महसूस किया  . वह अपना पिछला पीरियड भी मिस कर चुकी थी  . मन में शक हुआ तो उसने प्रेग्नेंसी किट से खुद टेस्ट किया  . टेस्ट पॉजिटिव आया तो जिस बात का उसे डर था वही हुआ  . वह प्रेग्नेंट थी  . उसने सोचा अब तो पानी सर से ऊपर गुजरने वाला  है जिसके लिए हीरा और कुछ हद तक  वह स्वयं जिम्मेदार है   . 


मधु ने अब और बिना देर किये हीरा से अपनी समस्या बताई  . पहले तो प्रेग्नेंसी की बात सुन कर वह कुछ सहम गया फिर सहज होते हुआ बोला “ तुम इतना घबरा क्यों गयी ? मैंने कहा था न कि मैं जल्द ही तुमसे शादी कर लूँगा  . “ 


“ जितनी जल्दी हो सके करो क्योंकि अब एक एक दिन भारी पड़ेगा  .”


दो दिनों के बाद मधु ने फिर हीरा से पूछा “  तुमने अभी तक अपने घर में मेरे बारे में कुछ बात की या नहीं  ? “ 


“ तुम्हें मुझसे शादी करनी है या मेरे घर वालों से ? “ 


“ मुझे अब तुमसे जल्दी से जल्दी शादी होने की चिंता है  . तुम मर्द हो न , तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है  . पर औरत के लिए ऐसी  हालत में जीना नर्क से भी बदतर है  . इसलिए मैं बहुत चिंतित हूँ  . अब तो मेरे ऊपर माँ का साया भी नहीं रहा है  . “


“ तुम अपनी सभी चिंताएं अब मुझ पर छोड़ दो  . मैंने मंदिर में  सादे समारोह में  शादी करने का फैसला लिया  है , वो भी तुम्हारे और मेरे कुछ मित्रों की उपस्थिति में  . वे हमारी शादी के विटनेस रहेंगे  . “ 


“ क्यों न हम कोर्ट मैरेज कर लें  ? “ 


“ उस में बहुत समय लगेगा  . कम से कम 30 दिनों का नोटिस कोर्ट को चाहिए  . उस के बाद कुछ कानूनी प्रक्रिया में समय लगता है  . अगर तुम्हें जल्दी है तो यही सबसे आसान तरीका है  . “ 


“ मेरा कोई नजदीकी रिश्तेदार तो है नहीं , तुम अपने घर के लोगों को बुला लो  . बड़ों का आशीर्वाद भी मिल जायेगा  . “ 


“ नहीं , इतनी जल्दी उन्हें बताना और हमारी स्थिति को समझाना आसान नहीं होगा  . बाद में हम दोनों साथ आरा चल के सब बता देंगे 


“ जैसा तुम ठीक समझो  . “ 


“ चलो अब खुश हो जाओ  . “  बोल कर हीरा ने मधु को गले लगाया  . अब  मधु को भी सुकून  मिला   . 


हीरा और मधु की शादी मंदिर में सम्पन्न हुई  . दोनों के गिने चुने दो चार सहकर्मी आये थे  . मंदिर परिसर में एक अलग हवनकुंड बनाया गया था  . उसमें अग्नि प्रज्वलित कर दोनों ने सात फेरे लिए और आजीवन एक दूसरे का साथ निभाने की कसमें खाईं  . 


शादी के बाद  मधु और हीरा ख़ुशी ख़ुशी एक साथ रहने लगे थे  . मधु ज्यादा ही खुश थी , उसे लगता कि अब वह सम्पूर्ण औरत बन गयी है और जल्द ही माँ बनने जा रही है  . समय पर मधु ने एक पुत्र को जन्म दिया  . हीरा भी अपने बेटे को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ  . उनका बेटा सुंदर और स्वस्थ था पर उसके दोनों हाथों में छः अंगुलियां थीं  . किसी पंडित ने बेटे को देख कर कहा कि दोनों हाथों में छः अंगुलियां शुभ संकेत है और लड़का बहुत भाग्यशाली होगा  . उस दिन से मधु और हीरा बेटे को दुलार से लकी पुकारने लगे   . इधर करीब एक साल बीत जाने पर भी हीरा ने अपने घर वालों को अपनी शादी या बच्चे किसी के बारे में कुछ नहीं बताया था  .  उसने अपने डॉक्टर भाई को इतना ही बताया था कि वह यहाँ बहुत खुश है  . अभी नयी नौकरी है छुट्टी कुछ जमा हो जाये तो  जल्द ही घर आ कर आपलोगों को सरप्राईज़ देने वाला है  . 


 इसी बीच हीरा के घर से तार आया , लिखा था  “ माँ बहुत बीमार है , बचने की उम्मीद नहीं है  . तार मिलते ही जल्दी से घर आ जाओ  . “


मधु ने कहा “ चलो दोनों साथ चलते हैं  .  मुझे भी तुम्हारी माँ के दर्शन हो जाए और उनका आशीर्वाद मिल जाये  . “


“ नहीं नहीं , ऐसे में तुम कहाँ जाओगी  . तुम आराम करो  मैं जा कर जल्द ही आता हूँ  . तुमको ले कर बाद में जायेंगे  . “ 


अगले ही दिन हीरा घर के लिए रवाना हुआ  . उन दिनों हज़ारीबाग रेल मार्ग पर नहीं था  . वह बस से पटना गया फिर पटना से आरा लोकल ट्रेन से  . घर में प्रवेश करते ही वहां का वातावरण देख कर हीरा को बहुत आश्चर्य हुआ  . सभी तरफ  ख़ुशी का माहौल था  . हीरा ने माँ और भाभी का आशीर्वाद लिया  . 


माँ कुर्सी पर बैठी थी और बगल में कॉपी कलम लिए भाभी  बैठी थी  . माँ  बीच बीच में कुछ बोलती  और भाभी उसे  लिख रही थी  . हीरा बोला “ माँ , यह क्या ? तुम तो भली चंगी हो फिर बीमारी का तार क्यों भेजा ? “ 


“ बैठ , बैठ  . सब बताती हूँ  . “ माँ सीता देवी ने कहा 


भाभी बोली “ देवर जी , इतने दिनों से कोई खोज खबर नहीं ली तो माँ ने ही तुम्हें बुलवा भेजा  . माँजी को तुम्हारी चिंता लगी रहती थी कि बेटा कैसे खाता पीता होगा  . इसलिए तुम्हारी शादी पक्की कर दी है  . “ फिर अपनी कॉपी दिखा कर बोली “ इसमें तुम्हारी शादी की सभी रस्मों का ब्यौरा है  . अब जल्द ही तुम्हें हल्दी लगने वाली है  . “ 


“ भाभी , यह घोर अनर्थ होगा  .मैं ऐसा नहीं कर सकता हूँ  .  “ 


“ वाह ,क्यों नहीं कर सकते हो ? “  माँ ने पूछा 


“ मैंने हज़ारीबाग़ में एक लड़की से शादी कर ली है  . “   हीरा ने शादी की बात तो बतायी पर बेटे के बारे में कुछ नहीं बताया 


“ वाह , मेरा बेटा अचानक इतना होशियार हो गया  . शादी भी कर ली और माँ या बड़े भाई को खबर देना भी उचित न समझा  . “ 


 भाभी ने कॉपी कलम एक किनारे रख दिया  . माँ  ने हीरा से फिर पूछा “ कौन है वह लड़की और किस जाति की है ? “ 


“ माँ , उसका नाम मधु है  . वह जाति से ब्राह्मण है  . “


“ ब्राह्मण हो या कोई भी अन्य जाति की , मुझे विजातीय विवाह स्वीकार नहीं है  . मेरे जिन्दा रहते  इस रिश्ते को हमारे परिवार में कोई भी स्वीकार नहीं कर सकता है  . ये मेरा अंतिम फैसला है  . “ 


“ माँ , यह कैसे सम्भव है  . मैं मधु को कैसे धोखा दे सकता हूँ और  …. “ 


“और वौर  मैं कुछ नहीं जानती हूँ , मेरे जिन्दा रहते यह नहीं हो सकता है  . तुम्हें उन दोनों को सदा के लिए भूलना होगा और मैंने तुम्हारी शादी जिस लड़की से ठीक की है उसी से शादी करनी होगी  . “   फिर उसने बहू की तरफ देख कर कहा “ तुम बाकी की रस्में भी लिखो   . “ 


“ माँ ये क्या अनर्थ करने जा रही हो  ? ऐसा नहीं हो सकता है  . “  फिर हीरा ने शीला भाभी से कहा “ भाभी आप माँ को  समझाओ न  . “ 


“ किसी को मुझे समझाने की जरूरत नहीं है  . अगर मेरा कहा मंजूर नहीं है तो मेरी अर्थी उठाने का इंतजाम करो तुम लोग  . “ 


वहीँ बगल में जमीन पर सब्जी काटने के लिए चाकू रखा था  . सीता देवी ने आव देखा न ताव झट से चाकू उठा कर अपनी कलाई काट ली  . उसकी कलाई से खून की धारा बह निकली  . हंगामा सुन कर बड़ा बेटा डॉ सोनी भी दौड़ कर आया  . उसने झट से माँ के  आँचल से ही कलाई को बाँधा और उन्हें  अपनी गोद में उठा कर रूम में ले गया  . फिर माँ की मरहम पट्टी की  और कहा “ भगवान का शुक्र है कि मैं घर पर था इसलिए माँ की जान बच गयी  . “

 

क्रमशः ( आगे की कहनी अंतिम भाग 4 में पढ़ें )