SAALGIRAH in Hindi Women Focused by Shwet Kumar Sinha books and stories PDF | सालगिरह

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सालगिरह

अभी थोड़ी देर हुए आंख लगी थी कि पतिदेव ने मुझे जगाया और मुस्कुराकर माथे को चूम लिया। शादी के इतने साल बीत गए। पर आजतक इन्होंने ऐसा नहीं किया था। फिर अचानक ऐसी क्या बात हुई जो आज इतना प्यार उमड़ रहा है!!
"क्या बात है? बुढ़ापे में यूं जवानी सूझ रही है आज तुम्हे?" – आंखों को मलते हुए मैंने भी पूछ ही लिया।
मुस्कुराते हुए पतिदेव मेरे करीब आए और धीरे से कानों में कहा – "आज हमदोनों के शादी की चालीसवीं सालगिरह है न! सोचा तुम्हे थोड़ा सरप्राईज दूं, वो भी अपने अंदाज में! सालगिरह मुबारक हो बीवी साहिबा!"
अब मैं ठहरी थोड़ी पुराने ख्यालों वाली महिला। आजकल की भांति अपनी भावनाओं का इजहार करना नहीं आता मुझे। झेंपते हुए इनकी बाहों से निकलकर मैं बिस्तर से उतरी। इनके चरणस्पर्श कर आशीर्वाद लिया फिर ड्रेसिंग टेबल के सामने आकर सिंदूर की डिबिया से चुटकी भर सिंदूर निकाल माथे पे लगाने को हाथ आगे बढ़ाया।
पर ये क्या!!! सिंदूर लगाने के लिए आंगुलियां अभी मेरी मांग तक पहुंची भी नहीं थी कि सिंदूर की डिबिया नीचे फर्श पर गिर गई और सारा सिंदूर कमरे में बिखर गया।
यह दृश्य देखकर हृदय तार–तार हो गया। बड़बड़ाती हुई अभी खुद को कोस ही रही थी कि किसी ने मुझे जोर से झकझोरा। आंखें खुली तो पाया कि मैं बिस्तर पर पड़ी थी और बेटी मुझे नींद से जगाने की कोशिश कर रही है।
"क्या हुआ मां? सपने में क्या अनाप–शनाप बड़बड़ा रही थी? किसे कोस रही थी, मां? चलो उठ जाओ अब!"– बेटी ने कहा।
मैं तो सीधे आसमान से मानो जमीन पर ही आ गिरी।
अपनी मांग में सिंदूर को टटोला तो बेटी की आंखें नम होती दिखी। ऐसा महसूस हुआ जैसे दिल पे किसी ने जोर से पत्थर मारा हो और वो चकनाचूर हो गया। याद आया कि आज हमारे शादी की चालीसवी सालगिरह थी और कितनी अजीब बात है कि इनके इस दुनिया से गए आज पूरे चालीस दिन होने को आए।
दिल तड़प कर रह गया। समझ में आ गया कि जो कुछ भी देखा वो तो सपना मात्र था और इनसे मिलना अब कभी संभव न होगा।
अब वो तो नहीं है पर उनकी ढेर सारी यादें साथ है। मन ही मन सपने की बात याद कर सामने दीवार पर टंगी उनकी हार से सजी तस्वीर देख उन्हे सालगिरह का मुबारकबाद दिया और खुद को शांत करने का असफल प्रयत्न करती रही।
वे जहां कहीं भी होंगे मेरी बातें उन तक अवश्य पहुंच रहीं होंगी।

© श्वेत कुमार सिन्हा

कहानी के पीछे की कुछ बातें


दरअसल इस कहानी के पीछे का सच ये है कि अभी कुछ ही दिनों पहले मेरे पिताजी का देहांत हो गया। उनके जाने के पश्चात मां बिल्कुल अकेली पड़ गई। आज उनकी शादी की चलीसवीं सालगिरह थी और सुबह से मां एकदम गुमसुम होकर बैठी रही। काफी देर तक पिताजी के तस्वीर के सामने बैठ उन्हे निहारती रही। उनकी गंभीरता देख हिम्मत नहीं हुई कि कुछ पूछे या कहे। पर उनके मन के भाव समझ में आ गए।
मैं दूसरे शहर में नौकरी करता हूं। लौटकर आया तो ये कहानी लिख डाली। मां को मैं मेरी हरेक कहानी पढ़ाता हूं। पर इसबार मुझे माफ कर देना मां, ये कहानी आपको पढ़ने को बताने के लिए मैं हिम्मत नहीं बटोर पाया।