Sir mathe in Hindi Moral Stories by Deepak sharma books and stories PDF | सिर माथे

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सिर माथे

’’कोई है?’’ रोज की तरह घर में दाखिल होते ही मैं टोह लेता हूँ।

’’हुजूर!’’ पहला फॉलोअर मेरे सोफे की तीनों गद्दियों को मेरे बैठने वाले कोने में सहलाता है।

’’हुजूर!’’ दूसरा दोपहर की अखबारों को उस सोफे की बगल वाली तिपाई पर ला टिकाता है।

’’हुजूर!’’ तीसरा मेरे सोफे पर बैठते ही मेरे जूतों के फीते आ खोलता है।

’’हुजूर!’’ चौथा अपने हाथ में पकड़ी ट्रे का पानी का गिलास मेरी तरफ बढ़ाता है।

’’मेम साहब कहाँ हैं?’’ शाम की कवायद की एक अहम कड़ी गायब है। मेरे दफ्तर से लौटते ही मेरी सरकारी रिवॉल्वर को मेरी आलमारी के सेफ में सँभालने का जिम्मा मेरी पत्नी का रहता है। और उसे सँभाल लेने के एकदम बाद मेरी चाय बनाने का। मैं एक खास पत्ती की चाय पीता हूँ। वेल ब्रू...ड। शक्कर और दूध के बिना।

’’उन्हें आज बुखार है,’’ चारों फॉलोअर एक साथ बोल पड़ते हैं।

’’उन्हें इधर बुलाओ....देखें!’’

पत्नी का दवा दरमन मेरे हाथ में रहता है। मुझसे पूछे बिना कोई भी दवा लेने की उसे सख्त मनाही है।

सिलवटी, बेतरतीब सलवार-सूट में पत्नी तत्काल लॉबी में चली आती है। थर्मामीटर के साथ।

’’दोपहर में 102 डिग्री था, लेकिन अभी कुछ देर पहले देखा तो 104 डिग्री छू रहा  था....’’

’’देखें,’’ पत्नी के हाथ से थर्मामीटर पकड़कर मैं पटकता हूँ, ’’तुम इसे फिर से  लगाओ...’’

पत्नी थर्मामीटर अपने मुँह में रख लेती है।

’’बुखार ने भी आने का बहुत गलत दिन चुना। बुखार नहीं जानता आज यहाँ तीन-तीन आई0जी0 सपत्नीक डिनर पर आ रहे हैं?’’ मैं झुँझलाता हूँ। मेरे विभाग के आई0जी0 की पत्नी अपनी तीन लड़कियों की पढ़ाई का हवाला देकर उधर देहली में अपने निजी फ्लैट में रहती है और जब भी इधर आती है, मैं उन दोनों को एक बार जरूर अपने घर पर बुलाता हूँ। उनके दो बैचमेट्स के साथ। जो किसी भी तबादले के अंतर्गत मेरे अगले बॉस बन सकते हैं। आई0पी0एस0 के तहत आजकल मैं डी0आई0जी0 के पद पर तैनात हूँ।

’’देखें,’’ पत्नी से पहले थर्मामीटर की रीडिंग मैं देखना चाहता हूँ।

’’लीजिए....’’

थर्मामीटर का पारा 105 तक पहुँच आया है।

’’तुम अपने कमरे में चलो,’’ मैं पत्नी से कहता हूँ, ’’अभी तुम्हें डॉ0 प्रसाद से पूछकर दवा दूता हूँ....’’

डॉ0 प्रसाद यहाँ के मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन के लेक्चरर हैं और हमारी तंदुरूस्ती के रखवाल दूत।

दवा के डिब्बे से मैं उनके कथनानुसार पत्नी को पहले स्टेमेटिल देता हूँ, फिर क्रोसिन, पत्नी को आने वाली कै रोकने के लिए। हर दवा निगलते ही उसे कै के जरिए पत्नी को बाहर उगलने की जल्दी रहा करती है।

’’मैं आज उधर ड्राइंगरूम में नहीं जाऊँगी। उधर ए0सी0 चलेगा और मेरा बुखार बेकाबू हो जाएगा,’’ पत्नी बिस्तर पर लेटते ही अपनी राजस्थानी रजाई ओढ़ लेती है, ’’मुझे बहुत ठंड लग रही है...’’

’’ये गोलियाँ बहुत जल्दी तुम्हारा बुखार नीचे ले आएँगी,’’ मैं कहता हूँ, ’’उन लोगों के आने में अभी पूरे तीन घंटे बाकी हैं....’’

मेरा अनुमान सही निकला है। साढ़े आठ और नौ के बीच जब तक हमारे मेहमान पधारते हैं, पत्नी अपनी तेपची कशीदाकारी वाली धानी वायल के साथ पन्ने का सेट पहन चुकी है। अपने चेहरी पर भी पूरे मेकअप का चौखटा चढ़ा चुकी है। अपने परफ्यूम समेत। उसके परिधान से मेल खिलाने के उद्देश्य से अपने लिए मैंने हलकी भूरी ब्रैंडिड पतलून के साथ दो जेब वाली अपनी धानी कमीज चुनी है। ताजा हजामत और अपने सर्वोत्तम आफ्टर सेव के साथ मैं भी मेहमानों के सामने पेश होने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुका हूँ।

पधारने वालों में अग्निहोत्री दंपती ने पहल की है।

’’स्पलैंडिड एवं फ्रैश एज एवर सर, मैम,’’ (हमेशा की तरह भव्य और नूतन) मैं उनका स्वागत करता हूँ और एक फॉलोअर को अपनी पत्नी की दिशा में दौड़ा देता हूँ, ड्राइंगरूम लिवाने हेतु। इन दिनों अग्निहोत्री मेरे विभाग में मेरा बॉस है।

छोनों ही खूब सजे हैं। अपने साथ अपनी-अपनी कीमती सुगंधशाला लिए। अग्निहोत्री ने गहरी नीली धारियों वाली गहरी सलेटी कमीज के साथ गहरी नीली पतलून पहन रखी है और उसकी पत्नी जरदोजी वाली अपनी गाजरी शिफान के साथ अपने कीमती हीरों के भंडार का प्रदर्शन करती मालूम देती है। उसके कर्णफूल और गले की माला से लेकर उसके हाथ की अँगूठी, चूड़ियाँ और घड़ी तक हीरे लिए हैं।

वशिष्ठ दंपती कुछ देर बाद मिश्र दंपती की संगति में प्रवेश लेता है।

वशिष्ठ और उसकी पत्नी को हम लोग सरकारी पार्टियों में एक-दूसरे से कई बार मिल चुके हैं, किंतु हमारे घर आने का उनका यह पहला अवसर है। शायद इसीलिए वशिष्ठ के हाथ में रजनीगंधा का एक गुच्छा भी है।

’’यह श्रीमती शांडिल्य के लिए है,’’ वह फूल मेरी पत्नी के हाथों में थमाता है।

’’थैंक यू,’’ पत्नी की आवाज लरज ली है। वशिष्ठ अपनी लाल टमाटरी टी-शर्ट और नीली जींस में चुस्त और ’कैजुअल’ दिखाई दे रहा है। दो घंटे की गौल्फ उसके नित्य कर्म का एक अनिवार्य अंश है और शायद उसके पुर्तीलेपन का रहस्य भी। हालाँकि सुनने में आया करता है, रात को गौल्फ क्लब में अग्निहोत्री के साथ वह भी मद्यपान में लगभग रोज ही सम्मिलित रहता है। उसकी पत्नी की भड़कीली मोरपंखी जार्जेट साड़ी ऐसी मुद्रित बैंगनी रेखाएँ लिए है जो हर ओर से तिरक्षा प्रभाव देने के कारण आँखों में चुभ रही हैं। उसके गले, कानों और हाथों में लटक रहे उसके फिरोजी टूम-छल्लों की तरह जो आभूषण कम और खिलौने ज्यादा लग रहे हैं। नुमाइशी उसका यह दिखाव-बनाव श्रीमती मिश्र की फिरोजी रंग की आरगैंडी और मोतियों की सौम्यता को और उभार लाया है। मिश्र ने पूरी बाँहों की एक हलकी गुलाबी कमीज के साथ क्रीम रंग की पतलून पहन रखी है।

प्रारंभिक वाहवाही के खत्म होते ही नौ बजे ड्रिंक्स और स्टार्टरज़ परोसे जा रहे हैं। सभी पुरूष जन ब्लू लेबल लेने वाले हैं और मेरी पत्नी को छोड़कर सभी स्त्रीगण व्हाइट वाइन।

चिकन टिक्के और फिश फिंगर्ज को देखते ही वशिष्ट चिल्ला उठता है: ’’मेरे मेजबान ने मुझसे पूछा नहीं, मैं शाकाहारी हूँ या नहीं....’’

’’मुझे क्षमा कीजिए सर,’’ मैं तत्काल उसकी बगल में चीजलिंग्ज की तश्तरी उसकी गिलास वाली तिपाई पर जा टिकाता हूँ, ’’मैम के लिए मैं अभी नया कटोरा मँगवाता हूँ.....’’

’’लेकिन मुझे मांस-मछली बहुत पसंद है....’’ श्रीमती वशिष्ठ ही-ही करती है, ’’फिश और चिकन तो जरूर ही लूँगी....’’

’’मुझे तो यह क्लाथ नेपकिन बहुत पसंद है,’’ श्रीमती अग्निहोत्री मेरी ओर देखती है। ’’जब भी इधर आती हूँ चित्त प्रसन्न हो उठता है। पेपर नेपकिन का चलन मुझे बेहूदा लगता है.....’’

वशिष्ठ अपनी पत्नी को घूर रहा है।

’’यस मैम!’’ ’’आपको यह हरी चटनी भी तो बहुत पसंद है......’’

उसकी प्लेट में मैं चटनी परोसता हूँ।

’’धनिए ही की क्यों?’’ श्रीमती अग्निहोत्री अपने हाथ दूसरी चटनी की ओर बढ़ाती है-’’मुझे तो आपके घर की यह इमली वाली मीठी चटनी भी बहुत पसंद है।’’

’’अरे यार! थ्चकन और फिश भी अब ले लो...’’ मिश्र लार टपकाता है, ’’वरना मुझे एक चुटकुला सुनाना पड़ेगा।’’

’’सुनाइए सर प्लीज, सुनाइए!’’

मैं मिश्र की बगल में जा खड़ा होता हूँ।

’’एक जन ने एक होटल के अपने कमरे में नाश्ते का ऑर्डर देना चाहा तो वेटर ने पूछा, सर आप मक्खन लेंगे या जैम? तो उन्होंने जवाब दिया, डबल रोटी भी साथ में लूँगा।’’ सभी ठठाकर हँस पड़ते हैं। मेरी पत्नी के अलावा। वह काँप रही है।

’’डबल रोटी से मुझे भी एक चुटकुला याद आ रहा है,’’ अग्निहोत्री बोलता है, ’’एक कार्नीवल में एक गुक्क अपना तमाशा दिखा रहा था....’’

’’गुक्क?’’ श्रीमती अग्निहोत्री पति की ओर आँखें तरेरती है, ’’पहले गुक्क का मतलब भी बताओ...’’

’’सभी जानते हैं गुक्क कौन होता है।’’ अग्निहोत्री श्रीमती वशिष्ठ की दिशा में अपना सिर घुमाता है।

वह शून्य में ताक रही है।

’’मैं नहीं जानता सर....’’ मैं अपनी दुष्टि अनभिज्ञता से भर लेता हूँ। जानबुझकर। उसे प्रसन्न करने हेतु। अपनी मेजबानी के अंतर्गत।

’’लोगों के मनोरंजन के लिए हर कार्नीवल में साइड शो रखते जाते हैं,’’ अग्निहोत्री ठठाता है, ’’उस साइड शो को चलाने वाले को गुक्क कहा जाता है....’’ अग्निहोत्री ठठाता है, ’’उस साइड शो को चलाने वाले को गुक्क कहा जाता है....।’’

’’अब चुटकुला सुनाइए,’’ श्रीमती मिश्र अपनी प्लेट भर रही है।

’’हुआ यों कि वह गुक्क लोगों को चौकाने की खातिर जिंदा मुर्गे अपने हाथ में दबोचता और अपने दाँत उनकी गरदन में गड़ा देता। देखने वालों में से एक से चुप न रहा गया, अबे, रूक यार। बगल से तेरे लिए डबलरोटी भी लाता हूँ। मुर्गा ज्यादा स्वाद लगेगा।’’

’’खूब, बहुत खूब,’’ सभी हँस पड़ते हैं। मैं पत्नी की ओर देखता हूँ। वह शायद बेहोश होने जा रही है। तेज बुखार में वह अकसर बेहोश हो जाया करती है।

’’पनीर टिक्का बनवा दो,’’ बहाने से मैं उसे कमरे से बाहर भेजने का हीला ढूँढ़ रहा हूँ।

वह उठ खड़ी होती है, लेकिन दरवाजे पर पहुँचते ही वह धड़ाम से नीचे गिर जाती है।

’’क्या हुआ?’’ सभी लगभग चीख उठते हैं। चारों फॉलोअर अंदर लपक आते हैं।

’’आप घबराइए नहीं,’’ मैं कहता हूँ, ’’इन्हें आज थोड़ा बुखार है। मैं देखता हूँ। अपने डॉ0 प्रसाद से पूछता हूँ।’’

’’रिलैक्स, माइ लैड, रिलैक्स...’’ अग्निहोत्री कहता है, ’’हमें खाने की कोई जल्दी नहीं। हम लोगों की चिंता छोड़ो और इन्हें सँभालो।’’

पत्नी को कमरे में पहुँचाकर मैं फोन थाम लेता हूँ। डॉ0 प्रसाद मुझे पत्नी को मेडिकल कॉलेज ले जाने की सलाह देते हैं। वे वहीं इमरजेंसी में एक मंत्री के संबंध के रक्तचाप को ठीक करने में जुटे हैं। उनके अनुसार, तेज बुखार कभी-कभी निमोनिया का विकट रूप भी ले लिया करता है। और उसका हल वहीं इमरजेंसी के आई0सी0यू0 में दाखिल कराने से सहज ही मिल जाएगा। बुखार और कँपकँपी की निरंतर निगरानी के निमित्त।

’’ओह नो!’’ अपने मेहमानों को जैसे ही मैं यह सूचना देता हूँ, तीनों स्त्रियाँ लगभग चीख पड़ती हैं।

’’रिलैक्स, एवरबॉडी रिलैक्स....’’ पुरूषों की ओर से अपनी प्रतिक्रिया देने में अग्निहोत्री पहल करता है, ’’खाने की हमें कोई जल्दी नहीं। शांडिल्य को अस्पताल जरूर जाना चाहिए। और इन स्त्रियों के याद रखना चाहिए, वे तीनों पुरानी, अनुभवी गृहिणियाँ हैं। श्रीमती शांडिल्य की जिम्मेदारी बखूबी बाँट सकती हैं, निभा सकती हैं।’’

’’हाँ, क्यों नहीं?’’ मिश्र अपनी पत्नी की ओर देखता है, ’’तुम रसोई में बिलकुल जा सकती हो? जाओगी ही?’’

’’बिलकुल,’’ श्रीमती मिश्र का सामान्य धीमा स्वर लौट आता है।

’’और खाना तो लगभग बन ही चुका होगा,’’ वशिष्ठ अपनी पत्नी को घूरता है, ’’क्यों, शांडिल्य?’’

’’जी सर, बिलकुल सर,’’ मैं असहज हो उठता हूँ, ’’लेकिन सर, अगर वहाँ कोई इमरजेंसी की स्थिति आ गई तो मैं शायद रात-भर न लौट पाऊँ...’’

’’तुम वहीं रूक सकते हो,’’ श्रीमती अग्निहोत्री कहती है, ’’ हम लोग की चिंता किए बगैर। हम सब सँभाल लेंगी। मेज पर खाना लगवा देंगी। सबको भरपेट खिला देंगी।’’

’’रिलैक्स, माइ लैड, रिलैक्स,’’ अग्निहोत्री कहता है, ’’हम एक-दूसरे की संगति का भरपूर आनंद लेंगे...’’

’’थैक यू, सर, थैंक यू सर,’’ मेरी असहजता बढ़ रही है किंतु मैं उचरता हूँ।

अग्निहोत्री दरवाजे पर खड़े मेरे एक फॉलोअर को संकेत से अंदर बुला लेता है। ’’जाओ। अपने साहब की गाड़ी पोर्च में लगवाओ। वे अभी निकल रहे हैं...’’

’’हमारा ड्राइवर तो, हुजूर, बाजार के लिए निकल चुका है।’’ फॉलोअर हाथ जोड़कर खड़ा रहता है।

’’कोई चिंता नहीं,’’ अग्निहोत्री उदार हो उठता है, ’’तुम मेरी गाड़ी लगवा दो। जल्दी...’’

’’मगर हमारे ड्राइवर को बाजार के लिए निकले हुए एक घंटे से ऊपर हो रहा है,’’ मैं झल्लाता हूँ... ’’वह अभी तक नहीं लौटा?’’

’’हुजूर जानते हैं,’’ फॉलोअर अपनी कुटिल मुस्कान छोड़ता है-’’शाम के समय ट्रैफिक कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है। फिर उसे पान के साथ-साथ आइसक्रीम भी लानी है, हुजूर...’’

’’तुम जाओ मेरी गाड़ी लगवाओ,’’ अग्निहोत्री अपना गिलास अपनी तिपाई पर रखकर मेरी ओर बढ़ आता है-’’देखो, शांडिल्य। तुम अब और समय न गँवाओ। कँपकँपी और बेहोशी के मामले में ज्यादा देरी अच्छी नहीं। खाने के बाद हम तुम्हारी गाड़ी से मेडिकल कॉलेज आ जाएँगे और वहाँ से अपनी गाड़ी में बैठ लेंगे। इस बीच तुम मेरी गाड़ी अपने साथ बराबर बनाए रखना। इमरजेंसी में किसी भी दवा की कभी भी जरूरत पड़ सकती है...’’

’’थैंक यू, सर। मगर....’’

’’रिलैक्स शांडिल्य। रिलैक्स। हमारी चिंता छोड़ दो,’’ अग्निहोत्री मेरा कंधा थपथपाता है और मुझे अपने साथ चलने का संकेत देता है।

’’यकीन मानो,’’ उसकी पत्नी मुझे अपनी प्रशस्त मुस्कान देती है। ’’हम लेडीज सब देख लेंगी। इस समय तुम्हारी पत्नी प्रौरिटी (प्राथमिकता) होनी चाहिए हमारी मेहमानदारी  नहीं....’’

’’यस, मैम! थैंक यू मैम!’’

रात के लगभग साढे़ ग्यारह बजे अग्निहोत्री अपनी पत्नी के साथ मेडिकल कॉलेज के इमरजेंसी वार्ड में आन प्रकट होता है। मेरी सरकारी गाड़ी में।

सूचना मिलते ही मैं उनकी ओर लपक लेता हूँ।

जिज्ञासावश डॉ0 प्रसाद भी मेरे साथ हो लेते हैं। अग्निहोत्री के वशीभूत।

’’तुम्हारी पत्नी अब कैसी है?’’

’’डॉ0 साहब को निमोनिया का शक है,’’ मेडिकल कॉलेज आकर मेरी चिंता चौगुनी हो ली है। मगर सबका फिर भी मुझे ध्यान है। ’’ये डॉ0 प्रसाद हैं सर,’’ मैं डॉक्टर की मंशा पूरी कर देता हूँ, मैं जानता हूँ अपने परिचय का आवाह-क्षेत्र समृद्ध करने की उसे बहुत चाह रहा करती है, ’’बहुत योग्य। बहुत भले।’’

’’ईश्वर की कृपा है सर!’’ डॉ0 प्रसाद अपना हाथ अग्निहोत्री की दिशा में बढ़ा देते हैं।

उन्हें प्रोटोकाल का पूरा ज्ञान नहीं। नहीं जानते, हाथ मिलाने मे पहल मिलने वालों के बीच की वरिष्ठता तय किया करती है। और इस समय वरिष्ठता अग्निहोत्री के पक्ष में है।

उसी प्राधिकार का लाभ उठाते हुए अग्निहोत्री डॉ0 प्रसाद का बढ़ा हुआ हाथ नजरअंदाज कर देता है और मेरा कंधा थपथपाने लगता है, ’’तुमने मेरी सलाह मानकर अच्छा किया, शांडिल्य। पत्नी को समय पर अस्पताल लिवा लाए.....’’

’’इस समय वह क्या कर रही है?’’ डॉ0 प्रसाद का उतर रहा मुँह श्रीमती अग्निहोत्री की निगाह से बच नहीं सका है और वह उस पर अपने उपकारी संरक्षण की कृपा बरसाने की चेष्टा करती है। उसे बातचीत में खींचना चाहती है, ’’क्या हम उसे बता सकते हैं कि उसके घर पर हम सभी ने भरपेट खाया और खूब आनंद लिया।’’

तिलमिला रहे डॉ0 प्रसाद उसके संरक्षण की अस्वीकार कर देते हैं और रूखे स्वर में उत्तर देते हैं, ’’इस समय श्रीमती शांडिल्य मूर्च्छा में हैं, मैम। अंदर आई0सी0यू0 में। और उन्हें होश में लाने की कोशिश पिछले दो घंटों से जारी है.....।’’

’’कोई बात नहीं.....’’ वह सिर हिलाती हैं और मेरी ओर मुड़ लेती हैं, ’’उसकी मूर्च्छा टूटने पर, शांडिल्य, तुम उसे यह जरूर बता देना ताकि वह अपनी बीमारी को लेकर कोई अपराध भाव न महसूस करे....’’

’’येस मैम!’’ मैं भी अपना सिर हिला लेता हूँ, ’’थैंक यू, मैम.....’’

’’अपना ड्राइवर मैं लिए जा रहा हूँ, शाडिल्य,’’ समापक मुद्रा में अग्निहोत्री मेरी ओर अपना हाथ बढ़ाता है, ’’ऑल द बैस्ट, माए लैड....’’

’’थैंक यू सर, थैंक यू....’’

’’हमें गाड़ी तक छोड़ने की कोई जरूरत नहीं, शांडिल्य। हम चले जाएँगे। तुम अपनी पत्नी को देखो। गुड नाइट!’’

’’थैंक यू सर, यस सर। ’’थैंक यू मैम। गुड नाइट, मैम....गुड नाइट, सर.....’’

’’गुड नाइट,’’ श्रीमती अग्निहोत्री कहती हैं और डॉ0 प्रसाद की ओर देखे बिना दोनों विपरीत दिशा में बढ़ लेते हैं।

’’आपके घर से आ रहे थे?’’ आई0सी0यू0 की तरफ बढ़ रहे मेरे कदमों के संग अपने कदम मिलाते हुए डॉ0 प्रसाद पूछते हैं। झेंपे-झेंपे।

’’हाँ। मैंने आज इन्हें डिनर पर बुला रखा था। इनके, दो बैच मेट्स और उनकी पत्नियों के साथ......’’

’’आपके बॉस हैं?’’

’’हाँ, क्यों?’’

’’बॉस नहीं होते तो आपके साथ इधर मेडिकल कॉलेज आ गए होते, उधर आपके घर दावत नहीं उड़ाते...’’

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