अधिराज की दुनिया...
फूलो सी महकती वादियां और नदी का किनारा जहां उसके किनारे बना है एक वूडन हाऊस
राजमाता रत्नावली परेशान सी इधर उधर घूम रही थी और मदहोश से बैठे अपने बेटे को देखती हुई कहती हैं...." और कब तक ऐसा ही चलेगा अधिराज...?..."
उदासी से भरे शब्दों में अधिराज कहता है...." क्या मां...?... क्या करना है हमें...?..."
" आप ही तो सब कुछ कर सकते हो अधिराज आप अपनी प्रजा को नहीं बचा पा रहे हैं देखिए दिन प्रतिदिन प्रक्षिरोक्ष का कहर बढ़ रहा है और आप अभी तक वैदेही के वापस आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं..." रत्नावली अधिराज को समझाती हुई कहती हैं
अधिराज वहीं लहजे में कहता है..." मां हम युद्ध नहीं करेंगे.....इस युद्ध ने हमसे हमारी वैदेही को छीन लिया है..."
रत्नावली अधिराज को समझाती हुई आगे कहती हैं..." आपसे युद्ध के लिए कौन कह रहा है, आप अपने प्रेम को खोजीए , इस तरह रात दिन बैचेन रहते हमसे ये सब देखा नहीं जाता....अब तो पच्चीस साल पूरे हो चुके हैं और इस तरह यहां पर निराश बैठे हैं जाइए और अपने प्रेम को पूरा कीजिए इससे पहले प्रक्षीरोक्ष आपकी प्रेमिका तक पहुंचे..."
आज अधिराज के आंखों में फिर से उम्मीद की किरण खिल उठती है।
उसी उत्साह के साथ अधिराज कहता है...." अब नहीं मां हम अब वैदेही को किसी को भी छीनने नहीं देंगे..."
तभी कोई भागता हुआ आता है....." अधिराज आपको एक विशेष बात बतानी है......" उस शख्स ने कहा
अधिराज : पहले तुम शांत हो शशांक फिर बताओ क्या विशेष बात है......?
शशांक : अधिराज आपकी वैदेही की खोज सफल हुई ...
अधिराज खुश होकर कहता है...." तुमने वैदेही को ढूंढ लिया..."
शशांक : हां अधिराज वो यहां से द़ सौ किलोमीटर दूर स्थित एक शहर में है.... हमारे गुप्तचर ने उनका पता किया है...इस जन्म में वो एकांक्षी नाम से है.....!
अधिराज : तुमने हमारे लिए इतना सबकुछ किया
शशांक अधिराज की बात को रोकते हुए कहता है..." अधिराज मैं आपका मित्र हूं , मेरा इतना कर्तव्य हो बनता है...."
अधिराज केवल मुस्कुरा देता है.....
अधिराज : फिर हम अब अपनी वैदेही से जा रहे मिलने किंतु इतनी सुगमता से नहीं आपने पच्चीस साल हमें तड़पाया है उसका थोड़ा दंड तो आपको मिलना ही चाहिए न.....
अधिराज वहां से चला जाता है.......
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अब चलते हैं इंसानी दुनिया में जहां मिलिए एकांक्षी से
....शर्मा निवास.......🕍..
" सुबह के साढ़े नौ बच चुके हैं लेकिन इस लड़की का उठने का टाइम नहीं हुआ है..." कमरे में जाते हुए सावित्री जी ने कहा
सावित्री जी कमरे में दाखिल होती है...." मिकू उठ जा लड़की कब तक बिस्तर को सजा देगी...."
अलसाते हुए एकांक्षी कहती हैं...." मां.. आज संडे है फिर उठा रही हो...."
सावित्री जी सिर पर हाथ रखते हुए कहती हैं...." संडे है तूने ही तो कहा था मां मुझे जल्दी उठा देना आज यूबिर
सावित्री जी को रोकते हुए एकांक्षी कहती हैं...." अरे हां आज मुझे यूबिरोल के म्यूजिक सिलेक्शन में जाना है..."
सावित्री : वहीं तो चल जल्दी तैयार हो जा मैंने तेरे लिए नाश्ता बना दिया है और तुझे वहां पर राघव छोड़ देगा..."
एकांक्षी : मां भाई को क्यूं परेशान कर रही हो , मैं किरन के साथ चली जाऊंगी....
सावित्री जी उसे मना करते हुए कहती हैं...." क्यूं तुम दोनों को ही ले जाएगा राघव....
एकांक्षी : मां आपको पता है न किरन और भाई की कितनी बहस होती है तो भाई हम दोनों को छोड़ देंगे...आप जाओ मैं रेडी होकर बाहर आती हूं.....
सावित्री : हां तू जल्दी से नाश्ता कर ले फिर मैं भी रमा के यहां जाऊंगी....
एकांक्षी : वहां क्या है...?
सावित्री : तू भूल गई उनकी लड़की की हल्दी की रस्म है....
एकांक्षी याद करते हुए कहती हैं..." अरे हां परसों तो मानवी की शादी है..."
सावित्री : तुझे अपने काम से फुर्सत मिले तब तो तुझे कुछ याद रहे...मानवी कितना बुरा रही थी तुझे...
एकांक्षी अपनी मां को समझाती हुई कहती हैं...." मां मानवी से कह देना कल पक्का उसकी मैंहदी में जरूर आऊंगी अभी ये सिलेक्शन देखना मेरे लिए बहुत जरूरी है..."
सावित्री : तू ऐसे कब तक म्यूजिक सिलेक्शन को देखती रहेगी, तुझे वहां जाकर कौन सा जज बनना है..."
एकांक्षी : मां आप नहीं समझोगी मुझे लेट हो रहा है आप जाओ....
सावित्री जी कमरे से बाहर चली जाती हैं.....और एकांक्षी थोड़ी देर बाद रैडी होकर बाहर आती है....
एकांक्षी को देखकर राघव कहता है..." आज कहां चल दी एक्सप्रेस..."
एकांक्षी नाश्ते के लिए बैठती है सावित्री जी उसे चाय देती हुई कहती हैं....." सही कहा बेटा...."
एकांक्षी बच्चों की तरह मासुमियत से कहती हैं..." क्या भाई मैं एक्सप्रेस नहीं हूं..."
नजरें घुमाते हुए राघव कहता है...." वो तो दिख ही रहा है आज संडे को भी किसी म्यूजिक सिलेक्शन को देखने जा रही होगी...."
एकांक्षी : हां भाई... आपको तो पता मुझे म्यूजिक कितना पसंद है.... वैसे क्यूं न आप भी चलो हमारे साथ...."
राघव एकांक्षी की बात को समझने के लिए दोहराता है...." हमारे साथ मतलब...वो बकबक भी तेरे साथ जाएगी...
एकांक्षी ने चाय की सीप लेते हुए कहा...." कौन किरन ..? ..."
" हां वही..." राघव उसके नाम से मुंह बना लेता है....
एकांक्षी नाश्ता करके अपना फोन उठाकर जाने लगती है तभी सावित्री जी उससे कहती हैं...." मिकू ज्यादा लेट मत आना....."
" हां मां..." एकांक्षी इतना कहकर चली जाती हैं जाते टाइम उसने किरन को आने के लिए कह दिया था , दोनों फिक्स टाइम पर एक जगह मिलती है....
" मेरी मां हर संडे क्यूं मुझे परेशान करती है...कौन सा तेरा म्यूजिक सिलेक्शन है...." बेमन से किरन ने कहा
" मेरा ही है पागल मुझे जिस म्यूजिक की तलाश है वो मुझे नहीं मिल पा रहा है , बस एक बार वो म्यूजिक मुझे मिल जाए..." एकांक्षी किरन को समझाती हुई कहती हैं
किरन उसके किस म्यूजिक की जरूरत है पूछती है जिससे एकांक्षी कहती हैं...." वो बहुत युनिक है , अभी तक मैंने किसी को वैसा म्यूजिक बजाते हुए नहीं सुना है इसलिए उसे ढूंढ़ रही हूं ..."
किरन उससे उसका कारण पूछती है...." आखिर तुझे कैसा म्यूजिक चाहिए जो हम भी नहीं जानते और अगर मिल गया तो तू करेगी क्या...?..."
एकांक्षी अपने सपने को याद करते हुए कहती हैं...." तू नहीं जानती एक बार मुझे वो मिल जाए जो सपनो में आकर हर बार उस म्यूजिक को बजाकर मुझे अपनी तरफ खींच रहा है बस फिर मै उससे ही इसका मतलब पूछूंगी...."
किरन : तेरे ये सपनों का म्यूजिक पता नहीं कब मिलेगा...?
..................to be continued.............
एकांक्षी को किस म्यूजिक की तलाश है....?