Ek Bevkuf - 16 - Last part in Hindi Detective stories by Priyansu Jain books and stories PDF | एक बेवकूफ - 16 - अंतिम भाग

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एक बेवकूफ - 16 - अंतिम भाग

" देखो मुझे जाने दो ये सारा पैसा तुम रख लो। यहाँ बहुत है, तुम चाहो तो मैं और दिलवा सकता हूँ। बस यहीं से कॉल करूँगा और पैसे आ जायेंगे। जितने चाहोगे उतने। बस मुझे यहाँ से जाने दो।" टीचर गिड़गिड़ाने लगा।

"50 करोड़" प्रियांशु बोला।"

" क्या??? ये तो बहुत ज्यादा है." पर प्रियांशु के चेहरे पर कोई भाव न देखकर, टीचर-" हाँ- हाँ , मैं मंगवाता हूँ 50 करोड़। 8953###### इस नंबर पर कॉल करके बोलो 'डायमंड' पैसे आ जायेंगे।"

प्रियांशु ने ऐसा ही किया। फिर बोला "अब जब पैसे आ ही रहे हैं तो आगे सुनो कि मैंने ये सब क्यों किया।उस दिन जब नूतन ने तुम सब को ड्रग्स पैक करते देख कर उसकी वीडियो बना ली और यहाँ से निकली तो तुम्हारी शह पर तेरी चमचियों ने उसे किडनैप कर लिया। उन्हें तो मौका चाहिए था अपनी पर्सनल खुन्नस निकालने का; तो उन्होंने उसे एक घर में कुर्सी पर बाँध कर खूब मारा. उसका मजाक बनाया. वो रोती रही, गिड़गिड़ाती रही, पर किसी को उस पर दया न आई। उसका कसूर सिर्फ ये था कि वो तुम लोगों की राजनीती में शामिल न हुई, वो टैलेंटेड थी,बस इतनी सी बात?? तो तुम लोगों का क्या बिगाड़ रही थी वो?? जो उसे अधमरा करके जिन्दा जलाने के लिए उस घर में आग लगा दी।" फिर टीचर की आंखों में देखकर -"अगर तुम ये सोच रहे हो कि हमारी बातें विक्रम सुन रहा है, औ वो यहाँ पहुँच जायेगा तेरे उस चमचे का पीछा करके, तो ये तुम्हारी गलतफहमी है।"

इतना सुनते ही टीचर के चेहरे की हवाइयां उड़ गयी।वो सच में यही उम्मीद कर बैठा था ।

"खैर कोई बात नहीं कोई भी ऐसी स्थिती में ऐसा ही सोचेगा। पर आगे सुनो तुम्हें पता है, मैंने उन्हें कैसे मारा?? वो गिड़गिड़ाई मेरे आगे। मुझसे भीख मांगी पर मैंने एक न सुनी। पर मैंने इतनी दया दिखाई की कि उन्हेंं तड़पाया बिलकुल नहीं। बस एक बार में काम हो जायेगा, ज्यादा दर्द नहीं होता है।" उसकी बातें सुनकर टीचर की जान सूख रही थी।

इधर विक्रम और अभिमन्यु कनेक्शन कटने से परेशान थे। दोनों म्यूजिक क्लास गए। पुलिस ने चारों तरफ से क्लास को घेर लिया था। उन्होंनें पूरी क्लास की तलाशी ली। परन्तु वहाँ कुछ न मिल रहा था। अचानक अभिमन्यु चिल्लाया " विक्रम"!!!!

अभिमन्यु के आने के बाद विक्रम -" ये देखो, ये कागज कैसा है??"
वहांँ पर एक कागज था जो एक दीवार के नीचे दबा हुआ था। वो दोनों समझ गए कि ये दीवार चलने वाली है। मतलब ये कोई गुप्त रास्ता है। उन्होंने चारों तरफ तलाशी शुरू कर दी। कुछ देर बाद उनको सफलता मिली। एक लाइट का स्विच चालू करने से दीवार हटने लगी। विक्रम ने वो लेटर लिया। परन्तु अभिमन्यु सिर्फ सामने देख रहा था विक्रम ने उसकी नजरों का अनुसरण किया तो मद्धम रौशनी में उसे टीचर बैठा दिखा। दोनों पास गए तो देखा कि उसकी गर्दन घूमी हुई थी। किन्हीं मजबूत हाथों ने उसकी गर्दन तोड़ दी थी। काफी भयानक मौत थी। विक्रम सहम गया था ये देखकर।

अभिमन्यु पास आकर बोला-" मैंनें कहा था न दोस्त अब हम कुछ नहीं कर सकते। अफसोस मत करो, ऐसे लोगों का यही हस्र होना था।"
विक्रम बस दांत भींचे लाश को देख रहा था।

फिर विक्रम ने वो लेटर खोला उसमे लिखा था कि-" एस. आई. साहब, मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूँ। आप जैसा ईमानदार और कर्व्यनिष्ठ इंसान मैंने आज तक नही देखा। आप को नीचे दिखाने की कोई इच्छा नहीं है मेरी। पर मैं तो हुं ही एक बेवकूफ, जिसे सिवाय मारने के कुछ नहीं आता। मैंने आपके माइक्रोफोन को अपने हिसाब से इस गुप्त कमरे में सेट कर लिया था। इस कमरे की खूबी है की यहाँ जैमर भी लगे है जो इन लोगों ने अपनी सहूलियत के लिए लगाया था। इन लोगों की मौत पर अफसोस न करना ये लोग इसी लायक थे और हाँ, ' नूतन' जिन्दा है। उस दिन मैं सही वक्त पर पहुँच गया था और जलते मकान से उसे निकाल लाया। आखिर मैं अपने प्यार को कैसे मरने दे सकता था!!!!

उन लोगों ने नूतन को बहुत घाव दिए आज वो हिलने की भी हालत में नहीं है पर मेरे लिए इतना ही काफी है कि वो मेरे साथ है। मुझे यकीन है कि एक दिन वो ठीक भी हो जाएगी। मैं कोई साधु या भगवान नहीं हूँ कि उन लोगों को छोटी-मोटी सजा देकर छोड़ देता। मेरी नजर में ऐसे लोगों का जीवन खत्म हो जाना ही सही है। मेरे पास तो दो कारण थे इनको मारने के।

अभी भले ही मैं ड्यूटी पर नहीं हूँ पर मेरे देश, मेरे प्यार और मेरे परिवार के लिए मैं हमेशा रहूँगा। उसके लिए मुझे किसी सबूत या गवाह की दरकार नहीं है न ही किसी आर्डर की। आप भी मेरी नजर में सच्चे सिपाही है। आपका इतने दिनों का साथ मिला इसके लिए मैं बहुत खुश हूँ। अब हम कभी नहीं मिलेंगे क्यूंंकि जब तक आप ये पढ़ेंगे मैं काफी दूर निकल चूका होऊंगा।

और हाँ विक्रम साहब ,थोड़ा धीरे मारा करो।आपके हाथ की बड़ी जोर से लगती है। (ये पढ़ते हुए विक्रम के चेहरे पर मुस्कान आ गयी) यहाँ पर लगभग 10 करोड़ रुपये रखे हुए हैं।अगर आप चाहो तो अपने पास रख सकते हो या कहीं दे सकते हो जैसा आपको सही लगे और उन लड़कियों को ढूंढने की कोशिश न करे तो आपकी मेहनत और वक्त बचेगा क्यूंकि वो अब जहाँ है वहाँ से लौटना संभव नहीं है।

इनके ग्रुप की जो चौथी लड़की है वो बददिमाग जरूर है पर इन सब के काले कारनामों में उसका कोई हाथ नहीं है। अब मेरे यहाँ से दूर जाने का वक्त आ गया है, तो विदा।

विक्रम और अभिमन्यु एक दूसरे को देख रहे थे, और बरबस ही उनके चेहरों पर मुस्कान छा गयी।

उसके एक घंटे बाद मोहन कुमार के साले तथा कोमल के मामा, संतोष कुमार को षडयंत्र रचने किडनेपिंग करने, जहर खुरानी(कोमल को बेहोश करने) के लिए गिरफ्तार किया गया। पहले तो वो खूब उछला पर विक्रम के एक झापड़ में ही सब बकने लगा। गौतम को भी ड्रग्स की कई धाराएं लगा कर बुक किया गया। लाशें न मिलने और पक्की खबर न होने की वजह से चारों लड़कियों (नूतन भी शामिल थी) को गुमशुदा मानकर तलाशी की सारी फॉर्मेलिटी की गयी। टीचर के अज्ञात हत्यारे के खिलाफ केश फाइल किया गया। परन्तु सच्चाई तो विक्रम और अभिमन्यु जानते थे क्यूंकि विक्रम ने वो लेटर अपने तक ही रखा। ड्रग्स रैकेट खत्म करने के लिए पुलिस की खूब तारीफ हुई पर लड़कियों को न ढूंढ पाने के लिए किरकिरी भी हुई। उन 10 करोड़ में से 5 करोड़ विक्रम ने अनाथाश्रम को दे दिए और बाकी में से आधे अभिमन्यु को दे दिए बाकी बचे अपने पास रखे। पर वो उस ' एक बेवकूफ' को हमेशा हर चेहरे में आज भी ढूंढता रहता है।

समाप्त।