Kota - 23 in Hindi Fiction Stories by महेश रौतेला books and stories PDF | कोट - २३

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कोट - २३

यों चलता है जीवन:
हल्द्वानी पहुँचने पर मैंने कार ली और अल्मोड़ा की ओर चल पड़ा। भीमताल, भवाली, गरमपानी,खैरना और खैरना के बाद टूटी,उबड़-खाबड़ सड़क। मैंने ड्राइवर से कहा," पाँच साल पहले भी यह सड़क ऐसी ही थी।" उसने कहा बीच में ठीक थी,फिर खराब हो गयी है। नदी ने अपना बहाव बदला है और पहाड़ से मिट्टी, पत्थर बह कर रास्ते में आ गये थे। पहाड़ से पत्थर गिरते हैं। बीच-बीच में दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं,वाहन चपेट में आ जाते हैं। सड़क पर कट-कट की आवाज हो रही थी। तो ड्राइवर बोला," हमारे गाँव की सड़क पर निर्माण कार्य के समय, ऐसी कट-कट की आवाज सुनकर बाघ ने अपनी गुफा छोड़ दी।" मैंने उससे कहा," मनुष्य जहाँ पहुँचेगा वहाँ ऐसा ही होता है।" फिर एक खण्डहरनुमा नन्हा सा आवास दिखा। मैंने पूछा यह क्या है? वह बोला,"धारचूला के दांतू गांव की महान दानवीर महिला स्व. जसुली दताल (शौक्याणी) ने लगभग 170 साल पहले दारमा घाटी से लेकर भोटिया पड़ाव हल्द्वानी तक धर्मशालाओं का निर्माण किया था। इनमें से अधिकतर धर्मशालाएं अब खंडहर हो चुकी हैं। जसुली देवी ने धर्मशालाओं का निर्माण पिथौरागढ़,अल्मोड़ा, टनकपुर मानसरोवर आदि मार्गों में किया था जो लगभग दो सौ होंगी। उसके पति की असमय मृत्यु हो गयी थी। वह अपने पीछे अकूत पैसा छोड़ गया था। उसकी मृत्यु के बाद स्व.जसुली पैसे नदी में चढ़ाने लगी। यह देखकर किसी व्यक्ति ने उसे बताया कि वह इस धन को पैदल यात्रियों के लिए धर्मशालाएं बनाने में करे। तब उसने यात्रियों के लिए पैदल रास्तों के किनारे धर्मशालाएं बनायीं।"
शाम को अल्मोड़ा पहुँचा। सोचा नन्दा देवी मन्दिर के दर्शन कर आऊँ। लगभग साढ़े सात बजे थे। मैंने देखा मन्दिर परिसर में चार लोग कुत्ते घूमा रहे थे। मुझे यह देख कर अच्छा नहीं लगा। मैंने एक व्यक्ति से कहा," आप मन्दिर में कुत्ता क्यों घूमा रहे हैं? उन्होंने कहा और लोग भी घूमा रहे हैं। फिर वे मेरी ओर बढ़े बोले," कुत्ता जब गन्दगी करता है तो हम उसे पेपर पर उठाते हैं।" मैंने फिर कहा," यह हमारे पूर्वजों की धरोहर है,हमें इसका सम्मान करना चाहिए। आप यहाँ कुत्ता घूमा रहे हैं मुझे अच्छा नहीं लगा तो मैंने आपको बोल दिया।" वह नाराज हो गया बोला," आपने मन्दिर के लिए क्या किया है?" मैंने कहा जिसने भी किया हम उसे ठीक ठीक और प्यार से तो रख सकते हैं।" इतना कहकर मैं मन्दिर परिसर से बाहर आ गया। और दो दिन बाद मुख्यमंत्री ,उत्तराखंड और अतिरिक्त जिलाधिकारी, अल्मोड़ा को ई-मेल कर दिया। जिलाधिकारी का ई-मेल पता मिल नहीं पाया।
ई-मेल-
"महोदय,
मैं २४.०७.२०२२ को शाम लगभग ७.३० बजे नन्दा देवी मन्दिर,अल्मोड़ा में दर्शन करने गया। मैंने देखा ४ लोग मन्दिर परिसर में कुत्ते घूमा रहे थे। जो दृश्य मुझे बहुत दुखी और क्षुब्ध कर गया। मैंने एक व्यक्ति को कहा कि आप मन्दिर परिसर में कुत्ता क्यों घूमा रहे हैं? तो वह बोला और लोग भी घूमा रहे हैं।
महोदय, आपसे अनुरोध है कि कुछ लोगों की इस अनुचित प्रवृत्ति पर रोक लगायें। पवित्र स्थान पर इस प्रकार का व्यवहार मन को आहत करता है।
उचित कार्यवाही की आशा में।

भवदीय
महेश रौतेला
पता- "