Apharan - Part 8 in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | अपहरण - भाग ८

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अपहरण - भाग ८

अपने बेटे के बारे में ऐसे शब्द सुनकर अभिनंदन की आँखों से आँसू टपक कर मोबाइल पर गिर रहे थे। मिताली की माँ अपनी बेटी की सलामती के लिए घंटों तक मंदिर के सामने बैठी प्रार्थना कर रही थीं। अभी उन्हें इस बात से संतोष हो रहा था कि उनकी बेटी सुरक्षित है लेकिन उसी पल वह यह सोचने लगीं कि गाँव की बाकी बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं और वह भी उनके बेटे के कारण।

वह नफ़रत भरी नजरों से रंजन की तरफ देख रही थीं किंतु रंजन की आँखें तो मानो ज़मीन में गड़ चुकी थीं। वह सर पकड़ कर नीचे बैठ गया था। नीची नज़रें थीं और आँसू आँखों से बह रहे थे। लेकिन उसके आँसू पोछने के लिए उसकी माँ का पल्लू आज नहीं था। वह रंजन के गिरते आँसुओं को पोछना उन लड़कियों का अपमान समझ रही थी जिन्हें उनके बेटे की वज़ह से कष्ट भोगना पड़ा था।

अभिनंदन ने कहा, "माँ जी आप मेरे लिए भगवान की तरह हैं, जिसने मुझे यह शुभ संदेश सुनाया है। मेरी बेटी को संभाला और उन लड़कों के साथ मिलकर मेरे बेटे को उसकी ग़लती का एहसास दिलाया। मैं आपका एहसान कभी नहीं भूलूंगा। अब मैं क्या अपनी बेटी से मिल सकता हूँ?"

"जी कुछ ही देर में मिताली आपके पास पहुँच जाएगी। आपके पास आने में लगभग डेढ़ घंटा लग जाएगा।"

तभी वीर प्रताप के घर की फ़ोन की घंटी बजी । राज ने फ़ोन उठाया उधर से अम्मा की आवाज़ आई, "हैलो वीर प्रताप जी"

"जी बोलिए मैं उनका बेटा राज !"

"नहीं-नहीं आप उन्हें फ़ोन दीजिए।"

वीर प्रताप ने फ़ोन लिया और कहा, "हैलो "

"हैलो वीर प्रताप जी रंजन की बहन मिताली हमारे पास सुरक्षित है। मैं उसे वापस भेज रही हूँ चार लड़कों के साथ। आपको वहाँ आकर मिताली ही सब कुछ बताएगी। तब तक आप इन बच्चों के विरुद्ध कोई कार्यवाही ना करें।"

"जी माँजी ठीक है, आप उन्हें जल्दी भेज दीजिए, पर आप कौन हैं?"

पूरी बात सुने बगैर ही अम्मा ने फ़ोन कट कर दिया।

दो घंटे के अंदर चारों लड़के मिताली को वीर प्रताप जी के घर ले आए। अभी उन्हें रंजन के सामने जाने में डर लग रहा था। वीर प्रताप जी मिताली को बड़े प्यार के साथ ख़ुद जाकर अंदर लेकर आए और उन लड़कों को भी अंदर बुलाया।

फिर उन्होंने अभिनंदन जी को फ़ोन करके बताया, "हैलो अभिनंदन जी आपकी बेटी मिताली आ गई है। वह मेरे घर पर है, आप आ जाइए।"

अभिनंदन अपनी पत्नी के साथ तुरंत ही वीर प्रताप जी के घर पहुँच गए। अपनी बेटी को देखकर उन दोनों ने राहत की साँस ली, जबकि वह जान गए थे कि वह सुरक्षित है फिर भी माता-पिता का दिल कहाँ मानता है। उन्हें तो उसे देखने के बाद ही पूरी तरह से चैन मिला। 

मिताली अपने पिता के गले लग गई। उसकी आँखों में आँसू थे इसलिए नहीं कि वह अगवा की गई थी बल्कि इसलिए कि वह उसके भाई की जलील हरकतों के कारण अगवा हुई थी।

वीर प्रताप ने कहा, "अभिनंदन जी ये हैं वह चार लड़के जिन्होंने अपनी बहनों के अलावा गाँव की सभी लड़कियों को बचाने का बीड़ा उठाया था। हो सकता है शायद उनका यह तरीक़ा ग़लत हो लेकिन उनकी मंशा बहुत ही अच्छी थी उन्होंने मिताली को माध्यम बनाया ज़रूर लेकिन स्वयं ही उसकी रक्षा की जिम्मेदारी भी उठाई।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः