Apharan - Part 7 in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | अपहरण - भाग ७

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अपहरण - भाग ७

 

मिताली ने सबसे पहले उनकी पूरी बातें सुनी फिर अपने आँसू पोछे और कहा, "अब मैं आप सभी के साथ हूँ। मैं नहीं चाहती कि गाँव की लड़कियाँ किसी की भी ग़लत नजरों का शिकार हों। वे डर-डर कर जियें। इसकी सज़ा रंजन और उसके साथियों को ज़रूर मिलनी चाहिए।" 

रमेश ने कहा, " मिताली जी हमें किसी से किसी तरह की कोई दुश्मनी नहीं है। हम नहीं चाहते कि पुलिस केस करके हम तुम्हारे भाई और उन लड़कों का जीवन खराब करें। हम तो केवल इतना चाहते हैं कि हमारी बहनें भी आप ही की तरह गांव में आज़ादी के साथ घूम फिर सकें। डर के साये में ना रहें।"

इतना कह कर रमेश ने मयंक से कहा, "मयंक, मिताली जी का फ़ोन उन्हें वापस कर दो।"

मिताली ने कहा, "आप सब लोग प्लीज़ मुझे सिर्फ़ मिताली कहिए मिताली जी नहीं।"

तभी अम्मा ने कहा, "लो बेटा यह फ़ोन और अपने पिताजी को फ़ोन लगाओ। चिंता के कारण तुम्हारे माता-पिता के प्राण निकल रहे होंगे। उन्हें बता दो कि तुम एकदम सही सलामत हो और जो तुम्हें यहाँ लेकर आए हैं वे तुम्हें अपनी बहन ही समझते हैं।" 

मिताली ने अभिनंदन को फ़ोन लगाया, "हैलो पापा" 

अपनी बेटी की आवाज़ सुनकर अभिनंदन उठ खड़े हुए, कंपकपांई आवाज़ में कहा, "मिताली तुम कहाँ हो बेटा? कैसी हो जल्दी बताओ? उन्हें तुम्हें छोड़ने के लिए कितना पैसा चाहिए? मैं सब कुछ देने के लिए तैयार हूँ। उन लोगों का अब तक फिरौती माँगने के लिए फ़ोन नहीं आया वरना अब तक तो तुम हमारे पास होतीं।" 

"पापा-पापा-पापा आप बिल्कुल चिंता मत करो, उन्हें कुछ नहीं चाहिए। मैं जहाँ भी हूँ बिल्कुल सुरक्षित हूँ। आप जल्दी से अपने आँसू पोंछ लो और माँ के भी पोंछ दो। पापा जो लड़के मुझे अगवा करके लाए हैं, वे सब बहुत अच्छे इंसान हैं। उन्होंने मेरे साथ कुछ भी ग़लत हरकत नहीं की है बल्कि वे तो मुझे बहुत आदर सत्कार दे रहे हैं। अपनी बहन जैसा ही व्यवहार कर रहे हैं।"

"यह तुम क्या कह रही हो मिताली?"

"हाँ पापा मेरा कहा हुआ एक-एक शब्द सच है। आप मुझे वहाँ आपके पास आने दीजिए फिर मैं आपको सब कुछ बताऊँगी। लेकिन उससे पहले आपको एक वचन देना होगा।"

"…कैसा वचन बेटा?"

"पापा आप इन चारों लड़कों को कुछ नहीं कहेंगे, कुछ नहीं करेंगे। यहाँ एक वृद्ध अम्मा भी हैं। मैं उनसे आपकी पूरी बात करवाती हूँ।"

अपनी बेटी को सुरक्षित जानने के बाद अपनी आँखों से छलकते आँसुओं को पोंछते हुए अभिनंदन ने कहा, "हैलो"

अम्मा बोलीं, "हैलो अभिनंदन जी आपकी बेटी बिल्कुल सही सलामत है।" 

तब तक अभिनंदन अपने मोबाइल को स्पीकर पर डाल चुके थे क्योंकि उनकी पत्नी और रंजन भी वहाँ मौजूद थे और वह भी सब जानना चाह रहे थे।

तभी अम्मा ने कहा, "अभिनंदन जी यह केवल एक सबक था, आपके बेटे रंजन को ठीक करने के लिए। वह अपने मित्रों के साथ मिलकर गाँव की लड़कियों को बहुत तंग करता है। सभी के भाई अपनी बहनों का रोज़ होता अपमान आख़िर कब तक बर्दाश्त करते। उनका भी तो खून खौलता होगा ना। उनकी बहनें डरी-डरी रहती हैं तो उन्हें भी दर्द होता होगा ना। आपके बेटे को सही रास्ते पर लाने के लिए ही इन लड़कों ने यह कदम उठाया है।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः