Apanag - 39 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 39

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अपंग - 39

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वह माँ-बाबा की इमेज नहीं तोड़ सकती थी |

"माँ, मेरी बात का बुरा न मानो तो एक बात कहूँ ?" भानु ने माँ से धीरे से पूछा |

"बोल न ---" माँ बहुत संवेदनशील हो उठी थीं |

"मैं कल से रोज़ फ़ैक्ट्री जाऊँगी ---"

"तू अभी है यहाँ कितने दिन जो -----??"

"लगभग दो-ढाई महीने और रह सकती हूँ --"

"और वहाँ वो राजेश ? देख बेटा, अपनी गृहस्थी संभालना ---" माँ ज़रा-ज़रा सी बात से चिंतित हो जाती थीं | वैसे उन्हें तो कुछ नहीं पता था अपनी बेटी की गृहस्थी के बारे में ! वो माँ थीं जो चिंता करती रहती है |

"अरे माँ, मैं उसे अच्छी तरह जानती हूँ | मैंने वहाँ जाकर उसकी बात नहीं मानी ? तो अब अगर वह मेरी बात समझेगा तो क्या बुरा है ?" भानु ने माँ से कुछ ऐसे कहा जैसे न जाने उसकी और राज की कितनी गहरी अंडरस्टैंडिंग थी |

"ठीक है, जैसा ठीक समझो वैसा करो ---"

"हाँ, मैं कह रही थी कि जब तक मैं यहाँ हूँ, रोज़ फ़ैक्ट्री जाऊँगी, बाबा भी मेरे साथ जाएंगे | "

माँ ने उसे शंकित नज़रों से देखा ---

ककुछ नहीं होगा माँ --विशवास करो अपनी बेटी पर ---" भानुमति ने माँ को सांत्वना दी |

"ठीक---- है |"

अगले दिन से ही भानु ने पिता के साथ फ़ैक्ट्री जाना शुरू कर दिया | मि. दीवान की हिम्मत इन्हें देखकर खुल गई थी | सक्सेना की घिघ्घी बंधी रहने लगी | थोड़े ही दिनों में सब बातें स्पष्ट हो गईं |

भानुमति की एक शैली के पति सी.बी.आई में थे | उसने उन्हें पूरा केस सौंप दिया | पंद्रह-बीस दिनों के अंदर ही इन्वेस्टीगेशन पूरा हो गया | स्टॉक गायब होने से लेकर कमीशन लेने, यहाँ तक कि पैकिंग वाले विभाग में लड़कियों से बत्तमीज़ी व बलात्कार तक के मामले सामने आए |

जो लोग सेठ जी की अनुपस्थिति में सक्सेना के डर से कुछ भी नहीं बोल पाते थे, वो अब भानु की उपस्थिति में मुखर हो गए थे | अब सबकी शिकायतें सुनी जा रही थीं | भानु और बाबा को बहुत पीड़ा हो रही थी कि जितने संघर्ष करके उन्होंने अपना व्यवसाय बुलंदियों पर पहुँचाया था, जिस प्रेम व सम्मान से वह चलता रहा था, उसको कुछ लोगों की बदनीयती ने कितना क्षीण कर दिया था |

उनकी फ़ैक्ट्री में वह सब चल रहा था जिसकी वे नहीं कर सकते थे | उन्हें अपने ऊपर ग्लानि अनुभव हो रही थी | अगर भानु उस समय उनके पास न होती तो सच में ही उनकी तबियत बिगड़ जाती | भानु उनका बहुत बड़ा सहारा थी लेकिन कब तक ? वह पराई हो चुकी थी और उसे कभी तो जाना ही पडता अपने घर वापिस !

सक्सेना के हाथों में हथकड़ी लग गई तो वह सेठ जी के पाँवों में लेटने लगा और भानुमति से हाथ जोड़कर माफ़ी मांगने लगा लेकिन उसका आचरण समझा जा चूका था | एक बार जिन लोगों को जो आदत पड़ जाती है, वह आसानी से बदल नहीं पाती|

जब सक्सेना सेठ जी के पैरों में लेट रहा था, उन्होंने कहा ;

"मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं हैम्सक्सेना | हाँ, खुद पर ही अफ़सोस है पर अब बहुत देर तक आँखें मूँदकर मैं बहुत बड़ी गलती कर चुका हूँ, बहुत देर हो चुकी है| सक्सेना एक बार फिर रोटा-झींकता भानुमति के पास जा पहुँचा | भानुमति ने कहा ;

"बताइए, अब क्या किया जा सकता है ?सी. बी. आई को सौंपने से पहले ही मैंने आपसे सब जानकारी लेनी चाहिए थी | इट इज़ टू लेट मि.सक्सेना ---!!"

"फिर भी आप कुछ तो ---" वह गिड़गिड़ाया | "सॉरी, हर आदमी को अपने कर्मों की सज़ा भोगनी पड़ती है मि. सक्सेना ---" वह वहां से चली गई | सक्सेना मुँह लटककर रह गया |

उस समय तो उसे जेल ही ले जाया गया था फिर पता चला सदाचारी ने उसे अपने ादाचार से जेल से छुड़ा लिया था | भानुमति को पता चला, उसका पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा | कैसे छोड़कर चली गई वह अपने बाबा-माँ को एक ऐसे आदमी के पीछे जो कहीं से आदमी ही नहीं है | जो नहीं जानता कि इंसानियत है किस चिड़िया का नाम ! वास्तव में उसे अपने ऊपर क्रोध आ रहा था |

भानुमति ने मि.दीवान को सारी ज़िम्मेदारी सौंप दी | उसने बाबा के फ़ैक्ट्री जाने और वापिस आने का एक रुटीन बना दिया | बाबा खूब प्रसन्न हो उठे, उनका स्वास्थ्य बेहतर होने लगा | माँ को भी तसल्ली होने लगी थी | बाबा भीतर का आनंद उनके चेहरे पर भी दिखाई देने लगा था | इस सब में लगभग दो माह गुज़र गए थे सक्सेना पर केस तो चल ही रहा था, उसने सदाचारी को भी अपनी लपेट में ले लिया था | अब सदाचारी की और उसकी भी खटपट हो गई थी |