(आपके स्नेह और प्रेम के लिए आभार । प्रस्तुत है भाग- 3 -अप्सरा)
सूर्य अपने तेज के साथ सूर्यनगरी जोधपुर के किले को प्रातः का प्रणाम कर रहा था। लोग अपने -अपने घरों से अपने कार्यस्थलों की ओर प्रस्थान कर रहे थे। चाय और नाश्ते की दुकानों में भीड़ धीरे-धीरे बढ़ रही थी, जिसमें अधिकतर विद्यार्थी थे ,जो रोजगार पाने के लिए कोचिंगों में जाने की तैयारी में थे।
जालोरी गेट के पास नाश्ते की एक दुकान में एक युवती अपने पति साथ प्रवेश करती है और दुकान के अंदर के सभी मर्दो को अपनी और आकृष्ट कर लेती है। उसने एक हल्के लाल कलर की साड़ी पहन रखी थी और पैरों में ब्लैक कलर के हाई हील और खुले हुए बाल । दिखने में गोरी और गाल पर जानलेवा तिल। उसकी चाल में एक ऐसी मादकता थी कि जिससे आस-पास वाले, बिना पिये नशे में आ जाए। साथ में उसका पति जो इतना बदसूरत भी नहीं था लेकिन सभी को लगा कि इस जैसे बदसूरत आदमी को ऐसी पत्नी कैसे मिल गई?
दोनों आकर एक टेबल के पास बैठ गए और उस खूबसूरत बला का पति शरद मेन्यू देखकर बोला "बिंदु , बोलो तुम क्या लोगी"?
" एक ब्रेड कोप्ता और एक समोसा। "
शरद अपने तथा बिंदु दोनों के लिए नाश्ता लेने काउन्टर के पास गया और बिंदु अपनी जवानी पर इतरा रही थी क्योंकि उसको दुकान के अंदर बैठे लगभग सभी मर्द चोर नजरों देख रहे थे। एक महाशय ने उसके चक्कर में समोसे की चटनी समोसे की जगह अपनी पैंट पर ही डाल थी, तो एक अधेड़ अपनी पत्नी को उसकी दिशा में बिठाकर उसकी जुल्फों के पास से बिंदु का ही दीदार करने लगा।
शरद नाश्ता लेकर आया और दोनों खाने लगे।
शरद ,बिंदु जैसी राजकुमारी को पाके खुद को राजा समझ रहा था। वह हर पल बस उसी को खुश करने की कोशिश में लगा रहता । शरद घंटाघर में एक कपड़े की दुकान चलाता था । जिससे उसकी ज़िन्दगी आराम से कट रही थी और ऊपर से बिंदु जैसी अप्सरा उसे मिल गई थी, जिसके बारे में उसने स्वप्न में भी नहीं सोचा था। बिंदु को खुश रखने के लिए वह उसकी हर पसंद का ध्यान रखता, उसको हर वीकेंड घुमाने ले जाता,मूवी हो या शॉपिंग बस अपना हर पल वह बिंदु को समर्पित कर चुका था। लेकिन बिंदु जैसी अप्सरा को शरद ने कैसे पाया, इसी बारे में दो विद्यार्थी आपस में फुसफुसाहट करने लगे।
"मुझे नहीं लगता इनकी लव मैरिज हुई होगी।"
"क्यों ?"
"इतनी खूबसूरत लड़की थोड़ी ऐसे व्यक्ति से शादी कर सकती है जो इतना सुंदर न हो।"
"क्या पता ,पैसे वाला आदमी हो, और आजकल लड़कियाँ उसी को भाव देती है जो पैसे वाला हो।"
"हाँ तुम्हारी बात तो सही है, लेकिन फिर क्या पता हो सकता है इसके माता-पिता ने जबरदस्ती इनकी शादी कराई हो"
वह दोनों अपने -अपने तर्क दे रहे थे और तब तक बिंदु और शरद ने अपना नाश्ता पूरा किया और दुकान से चल दिए।
आखिर शरद को बिंदु कैसे मिल गई ;जिसको पाकर वो इतना खुश था जैसे उसको खुदा मिल गया।
क्रमशः...