Apharan - Part 5 in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | अपहरण - भाग ५  

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अपहरण - भाग ५  

मिताली के अपहरण की ख़बर सुन कर अभिनंदन परेशान थे और रंजन का गुस्सा सातवें आसमान पर था। यदि उसे पता चल जाए कि किसने इतनी हिमाकत की है तो मानो उसी पल उस इंसान को ज़िंदा ही ज़मीन में गाड़ दे। ऐसी हालत हो रही थी रंजन की। उसने ना जाने क्या-क्या सोच लिया था, उसकी बहन के साथ कहीं …!  उसके रोएं खड़े हो रहे थे। उसे लग रहा था यदि इसी पल उसे पता चल जाए कि उसकी बहन कहाँ है, तो वह उड़ कर उसे बचाने पहुँच जाए। 

अभिनंदन ने गुस्से में रंजन की तरफ देखते हुए कहा, "यह सब तुम्हारे कर्मों का फल है, जो आज तुम्हारी बहन को भुगतना पड़ रहा है। तुमने कभी किसी और की बहन की इज़्जत नहीं की ना इसलिए आज हमें यह दिन देखना पड़ रहा है।" 

अपने पिता की इस बात का रंजन कोई जवाब नहीं दे पाया।

तभी अभिनंदन ने कहा, "पुलिस में शिकायत दर्ज़ करवाने से पहले वीर प्रताप जी से मिलने जाना होगा।" 

वह वीर प्रताप के घर पहुँच गए। अब तक तो उनके आने से पहले ही यह ख़बर वीर प्रताप तक भी पहुँच चुकी थी। वीर प्रताप ने बहुत ही आदर सत्कार के साथ उन्हें अपने घर में बिठाया।

उन्होंने कहा, "मुझे सब ख़बर मिल चुकी है अभिनंदन जी। जो हुआ बहुत ही बुरा है और बहुत ही ग़लत हुआ है। जिसने भी यह हरकत की है उसे हम छोड़ेंगे नहीं। मैंने अपनी पूरी टीम लगवा दी है। आप भी पुलिस में शिकायत दर्ज़ करवा दीजिए। हम जल्दी से जल्दी किसी परिणाम तक अवश्य पहुँच जाएँगे। आप अपना ख़्याल रखिए, भाभी जी का भी। अभिनंदन जी आपकी बेटी भी मेरी बेटी की तरह ही है। मैं पूरी ताकत झोंक दूँगा उसे बचाने के लिए।"

वहीं खड़ा राज भी अभिनंदन को दिलासा दे रहा था। उसने कहा, "अंकल मिताली मेरी बहन जैसी ही है। मैं उसे बचा कर ले आऊँगा।"

जोर-शोर से मिताली को ढूँढने का अभियान चल पड़ा। सब अपनी-अपनी तरह से काम में लग गए। रंजन पागलों की तरह अपनी बहन को ढूँढ रहा था और इस काम में राज उसे मदद कर रहा था।  उसे बार-बार अपने पिता की बात याद आ रही थी कि यह उसके पापों का परिणाम है। जिसकी सज़ा उसकी बहन भुगत रही है। वह सोच रहा था पिताजी सच ही तो कह रहे थे कि जैसा बोओगे वैसा ही तो काटोगे ना। आज वह ख़ुद से शर्मिंदा हो रहा था किंतु उसके सिवाय इस वक़्त उसके हाथ में और कुछ भी नहीं था। इतनी मजबूरी आज वह पहली बार महसूस कर रहा था। उसे बार-बार अपनी बहन की लुटती आबरू का ख़्याल आ रहा था। इतना समय हो गया अब तक तो…।

राज और रंजन एक साथ कार में यहाँ से वहाँ मिताली को ढूँढ रहे थे लेकिन अभी तक उनके हाथ कुछ नहीं लगा था।

उधर वह चारों दोस्त उस झोपड़ी के अंदर मिताली को लेकर गए। उस झोपड़ी के अंदर एक बूढ़ी अम्मा पहले से ही मौजूद थी। उस जगह मिताली होगी, कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था। मिताली की आँखों और मुँह पर अभी भी पट्टी बँधी हुई थी। उसे झोपड़ी में छोड़कर वे चारों बाहर निकल गए। वे बाहर रुक कर अम्मा के बुलाने का इंतज़ार करने लगे। अम्मा ने मिताली की आँखों की पट्टी खोली। वह उसके मुँह की पट्टी खोलें उसके पहले ही मिताली एक स्त्री को देखकर बिना कुछ बोले, बिना कुछ सोचे उनसे लिपट गई। अब तक अम्मा ने उसके मुँह पर बँधी हुई पट्टी भी खोल दी थी।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः