Apharan - Part 3 in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | अपहरण - भाग ३  

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अपहरण - भाग ३  

 

सबसे पहले रमेश ने अशोक को फ़ोन किया और कहा, "आधे घंटे में हनुमान मंदिर पहुँच जा।"

"क्या हुआ रमेश, इतने सुबह-सुबह क्यों बुला रहा है, कोई परेशानी है क्या?"

"बस तू जल्दी से आ जा, वहीं बात करेंगे।"

इसी तरह मयंक और राहुल से भी उसने बात कर ली। अब तक छः बज चुके थे। वह चारों हनुमान जी के मंदिर पर इकट्ठे हुए। उसके बाद रमेश ने कहा, "यार कल तो रंजन ने हद ही कर दी। उसने मेरी बहन का हाथ पकड़ने की हिम्मत कर ली। अब तक वह सिर्फ़ जीभ चलाता था पर अब तो उसने हाथ लगाने की हिम्मत भी कर दी है। जानते हो क्यों?" 

"क्या बात कर रहा है रमेश?"

"हाँ मैं बिल्कुल सच कह रहा हूँ। यह सब हमारी चुप्पी का नतीजा है। होगा बड़े बाप का बेटा, हमें अपनी बहनों की रक्षा में अब अपना सर उठाना ही होगा।" 

मयंक ने कहा, "तू बिल्कुल ठीक कह रहा है रमेश। हमारी चुप्पी को लगता है, वह हमारी कमज़ोरी समझ रहा है। तू चुपचाप कैसे बैठा यार, तेरी बहन का उसने हाथ तक पकड़ लिया था तो?"

"मैंने तो कुल्हाड़ी उठा ली थी यारों पर बाबूजी ने मुझे समझाते हुए कहा कुल्हाड़ी से वार करके मार डालोगे उन्हें? उसके बाद जीवन भर जेल में सलाखों के पीछे रहोगे? हमारे बारे में नहीं सोचा तुमने? हम सब क्या करेंगे तुम्हारे बिना? उनकी बातों में दम था। ठंडे दिमाग़ से सोचने के बाद मुझे लगा पिताजी बिल्कुल ठीक कह रहे हैं कि ऐसा तरीक़ा ढूँढो कि हम ख़ुद किसी मुसीबत में ना फँस जाएँ, वरना जीवन पूरा कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने में ही बीत जाएगा।" 

"हाँ यार तू ठीक कह रहा है," कहते हुए राहुल ने पूछा, "फिर हम क्या करें यार, तूने कुछ सोचा है क्या?"

अशोक ने कहा, " सोचा ही होगा, तभी तो इतने सुबह-सुबह हम सबको यहाँ बुलाया है।"

रमेश ने कहा, "क्या तुम मेरा साथ दोगे?"

"हाँ-हाँ बिल्कुल," तीनों दोस्तों ने साथ में जवाब दिया।

मयंक ने कहा, "हम सब की भी तो बहनें हैं और गांव की लड़कियों की रक्षा भी हमें करनी चाहिए।"

"हां बिल्कुल," रमेश ने कहा।  

"अब सुना, तेरा प्लान क्या है?"

"यह बहुत ही गोपनीय है, हम चारों के अतिरिक्त किसी को हमारे इस प्लान की भनक तक नहीं होनी चाहिए। वह हमारी बहनों को तंग करता है इसलिए हमारी बेचारी बहनें घर से बाहर निकलने तक में घबराती हैं किंतु उसकी बहन पूरे गाँव में जहाँ उसका मन करता है आज़ादी से घूमती-फिरती रहती है। उसे तो किसी भी बात का ख़तरा है ही नहीं।"

"रमेश तू कहना क्या चाहता है? हमें उसके जैसा नहीं बनना है यार," मयंक ने कहा।

अशोक ने कहा, "नहीं मयंक जब ख़ुद पर बीतती है ना तभी दूसरों के दर्द का पता चलता है। हमें रमेश का प्लान पूरा सुनना चाहिए। उन्हें सबक तो हमें सिखाना ही होगा लेकिन सबसे पहले हमें अपनी ख़ुद की सलामती का ध्यान भी रखना पड़ेगा। बोल रमेश करना क्या है? हम सब तैयार हैं।"

"हाँ तो सुनो हम अवसर मिलते ही रंजन की बहन को अगवा कर लेंगे।"

"ये क्या बोल रहा है यार तू? छोड़ेगा नहीं रंजन हमको।" 

"पहले मेरी बात पूरी होने दे राहुल, हमारा बचाव रंजन की बहन ही करेगी।"

"क्या बोल रहा है यार? तू होश में तो है, वह क्यों बचाव करेगी? जबकि हम उसे अगवा करेंगे, “अशोक ने पूछा।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः