अभिनंदन के चुनाव हार जाने के कारण रंजन की दादागिरी तो स्वतः ही कम हो गई लेकिन लड़कियों के साथ छेड़छाड़ का सिलसिला वैसे ही चलता रहा। वे भाई जिनकी बहनों के साथ छेड़छाड़ होती थी, उनका खून खोल रहा था। इतने बड़े इंसान का बेटा! करें भी तो क्या? लेकिन अब तो परिस्थितियाँ बदल चुकी थीं। सत्ता का पावर उनके हाथ से चला गया था, इसलिए गाँव के लोग, गाँव के लड़के और वे सब भाई जोश में थे जिनकी बहनें घर से बाहर निकलने में घबराती थीं।
एक दिन तो रंजन ने हद ही कर दी। उसने गाँव की एक लड़की जिसका नाम रमा था, उसे गली में अकेला देख उसका हाथ पकड़ लिया। उसके साथी दोस्तों ने उसे घेर लिया और वे उसे डराने लगे, परेशान करने लगे। ऐसा करने में उन्हें बहुत आनंद आ रहा था। रमा डर गई, वह रोने लगी। तभी गली में दूर से साइकिल पर कोई आता हुआ दिखाई दिया। उसे देखकर वह सब वहाँ से यह कह कर भाग गए, " जा-जा आज नहीं तो फिर कभी तो हाथ आएगी ना।"
रमा रोते हुए अपने घर पहुँची। सामने आँगन में ही उसका छोटा भाई रमेश बैठा था। अपनी बहन को इस तरह रोते देख उसने पूछा, "रमा क्या हुआ?"
"भैया,” कह कर वह रमेश के गले लग कर और भी ज़्यादा रोने लगी।
रोते-रोते उसने कहा, "भैया आज रंजन ने गली में मेरा हाथ पकड़ लिया और उसके दोस्त मुझे परेशान कर रहे थे। मुझ पर हँस रहे थे और तंज कस रहे थे।" रमेश का खून खोल गया और उसने अपनी बहन के सर पर हाथ फिराकर कहा, "रमा अब तो फ़ैसला होकर रहेगा, तुम डरो नहीं।"
इतना कहते हुए वह हाथ में कुल्हाड़ी उठाकर बाहर निकलने लगा। उसके पिता ने उसे रोक कर समझाते हुए कहा, "रमेश यह क्या करने जा रहे हो? कुल्हाड़ी से वार करके मार डालोगे उन्हें? उसके बाद जीवन भर जेल में सलाखों के पीछे रहोगे? हमारे बारे में नहीं सोचा तुमने? हम सब क्या करेंगे तुम्हारे बिना?"
"तो बाबूजी फिर मैं क्या करूँ? हाथ पर हाथ धर कर बैठा रहूँ चूड़ियाँ पहने? अपनी बहन को उन गुंडों की हवस का शिकार होने दूँ।"
"नहीं रमेश यही एक रास्ता नहीं है बेटा। रास्ता ऐसा खोजो जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। धैर्य से काम लो रमेश, कोई तो तरीक़ा होगा ना उन्हें वश में करने का। वह सोचो, जिसमें अपना कोई भी, किसी भी तरह का नुकसान ना हो।"
रमेश ने अपने पिता की बातें सुनकर हाथ से कुल्हाड़ी नीचे फेंक दी और कहा, "बाबू जी आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। यह समय है धैर्य के साथ सोच समझकर कोई निष्कर्ष निकालने का। ठीक है बाबू जी मैं आपकी इस बात पर ध्यान दूँगा।"
इतना कह कर वह अपने कमरे में चला गया। आज रात को रमेश पूरी रात सो नहीं पाया। इधर से उधर करवटें बदलता रहा और सोचता रहा ऐसा क्या किया जाए जिससे रंजन अपनी इन अश्लील हरकतों से बाज आए। सुबह होने को थी पूरी रात जाग कर रमेश का सर भी दर्द कर रहा था। तभी अचानक उसके दिमाग़ में कोई तरकीब सूझी। वह उठ बैठा घड़ी में देखा तो सुबह के 5: 30 बज रहे थे। उसने सूरज की किरणों के आने का इंतज़ार किए बिना ही अपने दोस्त अशोक, मयंक, राहुल तीनों को मिलने के लिए हनुमान मंदिर के प्रांगण में बुलाने का सोचा।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः