Positive like the rays of dawn - 'Khusur Pusur' in Hindi Book Reviews by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | भोर की किरणों सी सकारात्मक - ’खुसुर पुसुर’

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भोर की किरणों सी सकारात्मक - ’खुसुर पुसुर’

[ नीलम कुलश्रेष्ठ ]

आदरणीय कन्हैया लाल पांडेय जी से वड़ोदरा में उनका सन 2006 में उनका उसी शहर में वहीं लिखा, शिल्पायन प्रकाशन, देल्ही से प्रकाशित काव्य संग्रह 'भीगी हवाएँ' भेंट में मिला था और अब सन 2021 में पोस्ट से उनका लघुकथा संग्रह 'खुसुर पुसुर 'भेंट में मिला है। बहुत धन्यवाद व आभार ! सन 2006 में मुझे उनके काव्य संग्रह की इन पंक्तियों को पढ़कर बहुत तीष्ण आध्यात्मिक अनुभूति महसूस हुई थी ;

''ढूँढ कर मिल न पाएं

जब तुम्हें विश्रांति के क्षण,

तब मुझे आवाज़ देना शांत स्वर से

मैं वहीं उस सप्त सुरमय गीतिका में

एक अनुपम ताल लय पर

रच नया संगीत तुमको फिर मिलूँगा

जानते हो शांत नीरव नभ, सकल जलथल,

प्रकृति, सौंदर्य, रचना ही यहाँ

संगीत की उत्पत्ति का कारण नहीं है,

मैं जहां हूँ वहां फिर उत्पन्न शाश्वत

रागिनी मुझसे हुई है.”

[ 'तुम और मैं' कविता से साभार ]

अपने 'बांसुरी 'काव्य संग्रह के लिये इन्हें रेल मंत्रालय से मैथली शरण पुरस्कार व लघुकथा संग्रह 'मनके 'के लिये प्रेमचंद पुरस्कारों के साथ अनेक पुरस्कार व सम्मान इन्हें साहित्य में प्रतिष्ठित कर चुके थे।

भविष्य के गर्भ में क्या अनमोल छिपा है कौन जान सकता है ?हम क्या पांडेय जी भी कैसे जान सकते थे कि वे सप्त सुरमय गीतिका में ही रेलवे के ज़िम्मेदार उच्च पद पर होने के साथ सन २००७ से एक साधक की तरह साधना करने लगेंगे। आरम्भ से लेकर अब तक के फ़िल्मी गीतों की शास्त्रीय राग को पहचानने की साधना व उसे लिपिबद्ध करने के लिए उन्हें विश्व के संगीत प्रेमी पहचानने लगेंगे।साहित्य सर्जन के लिए अनेक पुरस्कार पाने के बाद अब वे तक संगीत मर्मज्ञ की तरह प्रतिष्ठित हो चुके हैं। रेलवे से मेंबर ऑफ़ बोर्ड की तरह रिटायर होने के बाद भी संगीत क्षेत्र में आज तक उनकी ये तपस्या चल ही रही है। इस संग्रह की अंतिम लघुकथा 'तीन अवस्थायें 'में इनकी या किसी भी प्रशासनिक रेलवे अधिकारी के जीवन के तीन रूप दर्शाती है। ख़ुशी ये है कि कन्हैया जी रिटायरमेंट के बाद की शुष्क व अनुपयोगी ज़िन्दगी नहीं जी रहे निरंतर कला साधना से समाज को कुछ दे रहे हैं।

आपके दो लघुकथा संग्रह आ चुके थे। बिजनौर में जब डॉ .नीरज शर्मा व जितेंद्र जीतू जी से इनकी मुलाक़ात हुई तो लघुकथा लेखन की फिर योजना बनी। इन दोनों ने सुझाव दिया कि आपने इतनी संगीत साधना की है तो संगीत पर आधारित लघुकथा लिखें। उन दिनों मैं इनके साक्षात्कार के कारण नेट से संपर्क में थी.मैंने अचरज से पूछा कि आप संगीत पर आधारित लघुकथा कैसे लिखेंगे। पांडेय जी ने अपनी लघुकथा 'भैरव' [शास्त्रीय राग]मुझे मेल कर दी। इसको पढ़कर मुझे वही अनुभूति हो रही है जो उक्त कविता की पंक्तियों को पढ़कर हुई थी.

इसकी अंतिम पंक्तियाँ हैं ;

''हमने भैरव के स्वरुप का ध्यान कर क्षमा माँगी और शिवजी के चित्र के सामने नतमस्तक हो गये। ''

मैं शिवजी के कारण आध्यात्मिकता की बात नहीं कर रही। इस लघुकथा को आपको पूरा पढ़ना पड़ेगा कि शास्त्रीय राग साधना कैसे आध्यात्मिक है। इस संग्रह में 'भैरव 'के साथ संगीत की दुनियां से संबंधित अन्य दुर्लभ लघुकथा पढ़ने को मिल रहीं हैं। शायद ये प्रथम बार है जब संगीत क्षेत्र पर इतनी लघुकथाएं लिखीं गईं हैं जैसे 'कानसेन','बिहाग','भूपाली','जुगलबंदी ','उस्ताद ',सरंक्षण ', 'अंकशायिनी ''पंडित जी की ज़िद व्यवधान ','तानपुरा 'आदि।'

ऑडीशन 'में स्त्रियों की वही आदिम कथा है जो किसी भी क्षेत्र की हों यदि तथाकथित गुरुओं से समझौता कर लें तो कहाँ की कहाँ पहुँच जातीं हैं। 'बैंजो 'में जब मालिक के साथ उनका बेंजो जला दिया जाता है तो ये शब्द 'वाद्यों की हत्या 'दिल को छू जाता है लेकिन 'धन्यवाद 'में पुराने रिकॉर्ड्स के संग्रह, [वाद्यों के सरंक्षण की बात ]को दो मित्र बचाकर उन्हें म्यूज़ियम में सरंक्षित कर देते हैं। यहाँ वाद्यों के सरंक्षण की चिंता ही नहीं है बल्कि ' परिवर्तन 'द्वारा मूल शास्त्रीय संगीत के सरंक्षण की बात भी गम्भीरता से सन्देश देती दिखाई है। ये बात किसी शास्त्रीय संगीत गुरु से नहीं कहलवाई गई बल्कि एक साधरण गायक कहता है, ''मैं रागों व वाद्यों में सुविधानुसार परिवर्तन अवश्य करता हूँ लेकिन उनके शास्त्रीय स्वरुप में कभी नहीं करता। ''

मैं' ट्रैफ़िक जाम ' लघुकथा के कथ्य से बिलकुल सहमत नहीं हूँ जिसमें नौशाद के गीत को सुनने के लिए रिक्शे में बैठे एक रईसज़ादे ट्रैफ़िक जाम करवा देते हैं। आज के कुछ फ़िल्मी गीत कम नहीं हैं,बस आज की जनता इतनी जागरूक हो गई है कि वह किसी रईसज़ादे का रौब नहीं मानती। इन्हें पढ़ते हुए मुझे लगा कि संगीत की दुर्लभ लघुकथाओं को एक अलग खंड में संयोजित किया जाता तो अधिक अच्छा था।

पांडेय जी ने ये पुस्तक अपनी माँ आदरणीय कमला पांडेय जी को समर्पित की है.उनका फुटपाथ के लोगों को कम्बल बांटना,अनुशासित जीवन जीना ही इन्हें मिले संस्कार का उद्गम स्थल दिखाता है. धर्मनिरपेक्ष नवरात्रि का सन्देश देता कमला पांडेय जी का'कन्या भोज 'भी है. यहाँ परिवार की बात करते हुए इस अवसाद काल में सकारात्मकता खोजी गई है 'वर्चुअल फ़ैमिली 'में।कोरोना पर आधारित इनकी लघुकथाओं ने इनके लेखन को आज से भी जोड़ा है। मुझे परिवार रहित कर्नल के अकेलेपन ने बहुत द्रवित किया क्योंकि अकेली स्त्री पर बहुत कुछ लिखा जाता रहा है.

इस संग्रह को पढ़ना ऐसा है जैसे हम ज़िंदगी के कोलाज में से गुज़र रहे हैं। इन लघुकथाओं में शहरों,गाँवों से लेकर विदेशों की बात तो है ही,साथ ही जीवन से जुड़ी छोटी चीज़ों जैसे टेलर के यहाँ नाप देना,मांझा बनाने वाले,परात,देग यहां तक कि रुमाली रोटी तक की बात की गई है। 'फ़ैमिली वैल्यूज़ 'के साथ यहाँ 'फ़ैमिली वाले ' बच्चे ', नौकर दादा ','परिवार ',ऊपर वाला कमरा ','लो चच्चा और पीयो 'के बीच परिवार के लोगों की स्वाभाविक 'खुसुर पुसुर 'की भी आहट है। । 'तितलियाँ ' में लड़कियों के लिये बिना भाषण दिये एक प्यारा सा सन्देश है।

'मूंछें 'व 'मेन साहब 'जैसी व्यंग का तड़का लिये हुए रचनायें बहुत दिलचस्प हैं खासकर ये उदाहरण '-दस बजकर दस मिनट जैसी मूंछें 'या 'सेवक गण वही अच्छे होते हैं जो कम पढ़े लिखे हों लेकिन शादी के विज्ञापन की तरह गृहकार्य में दक्ष हों। '

गुजरात के क्षेत्र के आदिवासियों की बात भी है जो बसों की यात्रियों को लूटते समय उनकी पिटाई भी करते हैं। उनकी मान्यता है कि बिना मेहनत पैसा नहीं कमाना चाहिए ये बात एक लघुकथा बताती है। मुझे तो इंदौर के आस पास रात्रि में जाने वाली बसों की लूटपाट के विषय में पता था. ये बात एक लघुकथा बताती है। इंदौर से रात होते ही बसें एक कारवाँ बनाकर निकलतीं हैं जिससे आदिवासियों की हिम्मत न हो लूटने की।

ये संग्रह संगीत की लघुकथाओं के कारण अलग हटकर तो है ही। ऐसे लोग अक्सर रसहीन साधक बनकर रह जाते हैं लेकिन पांडेय जी परिवार,रिश्तेदारी में भी सहज रूप से सक्रिय हैं।

मैं स्वयं अपने को ज़िंदगी की लेखिका मानतीं हूँ इसलिए मुझे इस पुस्तक ने प्रभावित किया है।ग्रामीण परिवेश की 'दूरियां ',विदेशी की 'मुटा ' संवेदना से भिगोकर रख देतीं हैं लेकिन कुछ अपनों से जुड़ी लघुकथाओं को लेखक रेखाचित्र बनने से नहीं बचा पाए हैं। ऐसे ही कुछ लघुकथा संस्मरण का आभास देतीं हैं। अब ये समीक्षकों पर निर्भर है कि वे किसे लघुकथा गिनें, किसे संस्मरण या कुछ और। किसी समीक्षक के लिए जीवन के इतने ढेर से सकारात्मक भावनाओं से भरे रंग समेटना आसान नहीं होगा।

पुस्तक -'खुसुर पुसुर '[ लघुकथा संग्रह ]

लेखक -श्री कन्हैया लाल पांडेय

समीक्षक -नीलम कुलश्रेष्ठ

मूल्य --३२० रु

प्रकाशक -वनिका पब्लिकेशंस,देल्ही