terrible night in Hindi Horror Stories by Mintu Paswan books and stories PDF | भयानक रात

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भयानक रात

लाश ने आंखें खोल दीं।

ऐसा लगा जैसे लाल बल्ब जल उठे हों।

एक हफ्ता पुरानी लाश थी वह कब्र के अन्दर, ताबुत में दफन !

सारे जिस्म पर रेंग रहे गन्दे कीड़े उसके जिस्म को नोच-नोचकर खा रहे थे।

कहीं नर कंकाल वाली हड्डियां नजर आ रही थीं तो कहीं कीड़ों द्वारा अधखाया गोश्त लटक रहा था--- कुछ देर तक लाश

उसी 'पोजीशन' में लेटीरही, फिर लाल अंगार जैसे आंखों से ताबूत के ढक्कन को घूरती रही।

फिर!

---

सड़ा हुआ हाथ ताबूत में रेंगा- मानो कुछ तलाश कर रहा हो अचानक हाथ में एक लकड़ी नजर आई और फिर

लेटे-ही-लेटे उसने लकड़ी से ढक्कन के पिछ्ले हिस्से पर जोर-जोर से वार करने लगा।

कब्रिस्तान में टक्... टक्... की डरावनी आवाज गूंजने लगी।

अंधकार और सन्नाटे का कलेजा दहल उठा।

मुश्किल से पांच मिनट बाद!

एक कच्ची कब्र की मिट्टी कुछ इस तरह हवा में उछली जैसे किसी ने जमीन के अन्दर से जोर लगाकर मुकम्मल कब्र को

उखाड़ दिया हो।

कब्र फट पड़ी।

लाश बाहर आ गयी शरीर पर कफन तक न था।

चेहरा चारों तरफ घूमा, लेकिन केवल चेहरा ही--- गर्दन से नीचे के हिस्से यानी धड़ में जरा भी हरकत नहीं हुई --- धड़ से

ऊपर का हिस्सा इस तरह घूमा रहा था जैसे बाकी जिस्म से उसका कोई सम्बन्ध ही न हो, चारों तरफ देखने के बाद चेहरा

‘फिक्स' हो गया।

कब्रिस्तान में दूर-दूर तक कोई न था- हवा तक मानो सांस रोके सड़ी-गली लाश को देख रही थी--- लाश कब्र से निकली,

कब्रिस्तान पार करके सड़क पर पहुंची।

एकाएक हवा जोर-जोर से चलने लगी-मानो खौफ के कारण सिर पर पैर रखकर भाग रही हो और हवा के तेज झोके से लाश की

हड्डियां आपस में टकराकर खट खट की आवाजें करने लगीं।

बड़ी ही खौफनाक और रोंगटे खड़े कर देने वाली आवाजें थीं वे मगर उन्हें सुनने या कब्र फाड़कर सड़क पर चली जा रही

लाश को देखने वाला दूर-दूर तक कोई न था ---- विधवा की मांग जैसी सूनी सड़क पर लाश खटर-पटर करती बढ़ती चली

गयी।


कुछ देर बाद वह एक बहुत बड़ी बिल्डिंग के बाहर रुकी ,वो वहां खड़ी हो अपने आग के जैसी दहकते हुए आंखों से बिल्डिंग की ऊंचे ऊंचे इमारतों को घूर रही थी—

दरअसल वो बिल्डिंग रामलाल की थी।जो एक बहुत बड़ा बिजनेस मैन था।

उस बिल्डिंग को कुछ देर बाद उस नरकंकाल ने गुस्से में अपनी दांत किटकिटाये, वो अपनी टांग की जोरदार ठोकर लोहे वाले गेट पर मारी।

जोर आवाज के साथ गेट टूटकर दूर जा गिरा- खटर-खटर करती लाश गेट के अंदर जैसे ही घुसी तब तक वहां मौजूद सिक्योरिटी गार्ड उसे रोकने के लिए आगे आया। उस लाश ने उस सिक्योरिटी गार्ड को एक ही हाथ से पकड़कर उसे हवा में ऐसे उछाल दिया, जैसे कोई एक गेंद को फेकता है, उसकी ऐसी हरकत देख कर बाकी के सारे सिक्योरिटी गार्ड जहां तहां छुप गया, वो लाश खट खट की आवाज़ करते हुए चारों तरफ लगी फुलवारी के बीच से गुजरकर

बिल्डिंग के मेन गेट पर पहुंची ,फिर वो गुस्से में दांत किटकिटाकर जोरदार ठोकर मारी, दरवाजा टूटकर अन्दर जा गिरा।

लाश हॉल में पहुंची!

चारों तरफ अंधेरा था।

“क-कौन है?” एक डरा हुआ आदमी की आवाज गूंजी- "कौन है वहां?"

  • “लाइट ऑन करके देख रामलाल ! " नरकंकाल के जबड़े हिले --- “मैं आया हूं!”

डरा हुआ आवाज में “क-कौन?” इस एकमात्र शब्द के साथ 'कट' की आवाज हुई। हॉल रोशनी से भर गया!

और!

एक चीख गूंजी।

रामलाल की चीख थी वह!

लाश ने अपना डरावना चेहरा उठाकर ऊपर देखा।

दयाचन्द बॉल्कनी में खड़ा था -- खड़ा क्या था, अगर यह लिखा जाये तो ज्यादा मुनासिव होगा कि थर-थर कांप रहा था

वह---लाश को देखकर घिग्घी बंधी हुई थी-- आंखें इस तरह फटी पड़ी थीं मानो पलकों से निकलकर जमीन पर कूद पड़ने

वाली हों जबकि लाश ने उसे घूरते हुए पूछा- “पहचाना मुझे ?”

“अ - असलम !” दयाचन्द घिघिया उठा-- “न-नहीं-- तुम जिन्दा नहीं हो सकते । "

“मैंने कब कहा कि मैं जिन्दा हूं?"

“फ-फिर?”

“कब्र में अकेला पड़ा पड़ा बोर हो रहा था --- सोचा, अपने यार को ले आऊं!”

“ तुम कोई बहरूपिये हो ।” रामलाल चीखता चला गया --- “खुद को असलम की लाश के रूप में पेश करके मेरे मुंह से यह कबूल करवाना चाहते हो कि असलम की हत्या मैंने की थी।"

“वाह ! मेरी हत्या और तूने?” लाश व्यंग्य कर उठी--- “आखिर तू मेरी हत्या क्यों करता रामलाल --- दोस्त भी कहीं दोस्त को

मारता है और फिर हमारी दोस्ती की तो लोग मिसाल दिया करते थे--- कोई स्वप्न में भी नहीं सोच सकता कि रामलाल

असलम की हत्या कर सकता है।"

" तो फिर तुम यहां क्यों आये हो ?” रामलाल चीख पड़ा--- "कौन हो तुम ?”

“कमाल कर रहा है यार बताया तो था, कब्र में अकेला पड़ा पड़ा बोर...