Exploring East India and Bhutan-Chapter- 16
दसवा दिन
जंगल की सैर
जीप से जंगल सफारी बहुत बार की थी, इसी लिए इस बार एलीफैंट राइड का फैसला लिया गया जो की बाद में बहुत सही साबित हुआ. सुबह 5:30 बजे हम अपने कोटेज पर पहले से बुक कार का इतंजार कर रहे थे, ताकि एलीफैंट राइड स्टैंड तक समय पर पहुंच सके, पर ड्राइवर नही आया, लॉज वालों ने एक दूसरे ड्राइवर का प्रबंध किया, और हमने राहत की सांस ली. दुसरा ड्राईवर तुरंत हाजिर हुआ, और हम वाइल्ड लाइफ के अनुभव के लिए निकल लिए. जंगल में प्रवेश करते ही गेट पर एंट्री दर्ज हुई व एक गाइड हमारे साथ गाडी में बेठ गया. जंगल मे करीब 2 km ही आगे बढे थे, कि कार रुक गई,
“अब क्या हो गया” मै बडबडाया
“अभी देखता हूँ” ड्राईवर ने गाडी रोक कर नीचे उतरते हुए जवाब दिया
फिर देखने पर पता चला कि आयल पाइप अपनी जगह से हट गई थी. है भगवान् ये क्या हो रहा है, हम पहले ही लेट थे, राइड का समय निकला जा रहा था. ड्राईवर लगभग दस मिनट तक गाडी ठीक करने की कोशिश करता रहा पर बात नही बनी .
“दुसरी गाडी का इंतजाम कर लो , लेट हो रहें हैं” मैंने ड्राइवर को सलाह दी
“मै भी यही सोच रहा हूँ, पर मेरे पास लॉज मनेजेर का नंबर नही है सर, मुझे तो कभी कभी बुलाया जाता है” ड्राईवर ने बताया
“ तुम्हारे पास तो होगा” मैंने गाइड की तरफ आशा भरी नजर से देखा
“नही सर “ गाइड ने नजरें चुराते हुए कहा
गाइड के पास भी कॉटेज का कांटेक्ट नंबर नही था, क्या करें ?
“नंबर हाजिर है “ मानसी ने लॉज में कॉल मिलाते हुए कहा . जब मै ड्राईवर व् गाइड से बात कर रहा था, इतनी देर में मानसी ने गूगल बाबा की मदद से नंबर जान लिया था .
“दुसरी गाडी आ रही है, बस पांच दस मिनट में “ मानसी चहकी
“ जो होगा देख लेंगे, चिंता मत करो, चलो कुछ फोटो शूट करते हैं” मानसी ने गाडी से नीचे उतरते हुए कहा
“मजा आयेगा” मानसी ने तुरंत नीचे छलांग लगते हुए कहा.
यह एक कच्चा रास्ता था, रास्ते के दोनों तरफ जंगल था, और हम फोटो शूट में व्यस्त हो गये . पहले तो गिल्ट के कारण गाइड ने कुछ नही कहा , परन्तु फिर अपनी ड्यूटी याद आते ही बोला
“सर गाडी के बाहर निकलना अलाउड नही है, प्लीज अंदर आ जायें, यह जंगल है, कहीं से कभी भी कोई जानवर आ सकता है”
“ठीक है” और हम तीनो गाडी में आ कर बेठ गये. दुसरी गाडी पांच-दस मिनट क्या एक घंटे से ज्यादा समय ले कर आई.
दूसरी गाडी से जब तक राइड स्टैंड पर पहुंचे तब तक हाथी जा चुके थे,आमीन. पता चला 4 हाथी एक साथ चलते हैं, व एक गन वाला साथ जाता है, एक हाथी अकेला राइड पर नही जा सकता.
फिर राइड अर्रेंज करने वालों को सारे हालात बता कर की इस सारी देरी में हमारी कोई गलती नही थी, उन्होंने हमारी राइड का अगले टाइम स्लॉट में प्रबंध कर दिया गया. परंतु यह सब सिलसला, एक सुखद अनुभव मे बदल गया. हम अपनी बारी का ईंतजार कर ही रहे थे, कि थोड़ी सी दूरी पर एक मोरनी ने नाचना शुरू कर दिया,जो की अद्भुत दृश्य था, मोरनी पुरे पंख फेला कर नाच रही थी. पहले ऐसा फिल्मों में या वीडियो में तो देखा था , पर साक्षात, एकदम आँखों के सामने पहली बार देखा था. सुबह की खामोशी, पक्षयों की मधुर आवाजें, साथ मे नाचती हुई मोरनी, आत्मा प्रस्सन हो गई .हम ने लगभग 10 मिनट का वीडियो नाचती हुई मोरनी का बनाया.
अभी हमारा हाथी नही आया था तो सोचा गया चाय कोफी हो जाए ,होलोंग हाट के साथ ही एक रेस्टोरेंट है पर शायद वह होलोंग haat में ठहरने वाले गेस्ट के लिए है, हमे वहां कुछ नही मिला, थोड़ी सी दूरी पर हरे रंग की झोपड़ीनुमा शॉप भी थी जहाँ से हमने पानी की बोतल और स्नैक्स खरीदे, फिर हाथीयों के साथ फोटो शूट की, वहीं पर एक हथनी अपने बच्चे को दूध पिला रही थी, ये बड़ा ही सुंदर दृश्य था, तुरंत हमने इसे कैमरे में केद किया.
दुसरे टाइम स्लॉट में हम हाथी राइड के लिए गए, जीप से हमने इंडिया के लगभग सभी फेमस टाइगर रिज़र्व की सफारी की थी, जिसमे काज़ीरंगा टाइगर रिज़र्व, जिम कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व, मधमलाई टाइगर रिज़र्व, नामेरी टाइगर रिज़र्व व अन्य टाइगर रिज़र्व शामिल हैं. जीप सफारी में जीप जंगल मे कच्चे व पक्के रास्तो पर चलती है व हिरण, बारहसिंगा ओर बंदर को छोड़ कर अन्य जंगली जानवर इन रास्तों के पास नही आते. पर हाथी एकदम गहन जंगल के बीच जाता है, और शेर,चीता,गैंडा जेसे जानवरों के मिलने के बहुत ज्यादा चांस रहते हैं.
हाथी कच्चे रास्तों से हो कर बहते पानी से गुजर कर नदी पार करता है, जो की अद्भुत रोमांच को जन्म देता है, हमे रास्ते मे अन्य जानवरों के साथ एक गैंडे को लगभग 2 फ़ीट की दूरी से देखने का अवसर मिला, वाह क्या क्षण (Moment) था. सुबह-सुबह जंगल मे पिन ड्राप साइलेंस में, पक्षीयों की मधुर आवाजें, शुद्ध ताज़ा हवा, कल कल बहती नदी की अनोखी आवाजें, दिल कहता था, यहीं रुक जाएँ , इससे सुंदर और क्या हो सकता है .परन्तु हाथीयों का कारवाँ चलता रहा और राइड खत्म होनी थी, हुई, एक घंटे में. एक सुखद अनुभव की यादें अपने साथ ले कर हम लॉज में वापिस आ गये. ये एक ना भूलने वाला अनुभव था.
लॉज में आकर पहले तीनो ने अपनी चाय कोफी की तलब मिटाई, फिर प्रोग्राम बना कि थोड़ा लोकल पैदल ही घूम कर आते हैं. हमारे कोटेज से कुछ दूरी पर ही Youth service sports department youth hostle alipurduar था , दस मिनट वहां लगा कर हम जलदापारा नेशनल पार्क से बाहर आ गये . पार्क के दुसरी तरफ सड़क पार करते ही एक लोकल मिठाई की दूकान है, जिसमे हर मिठाई मिट्टी के चूल्हों पर तेयार हो रही थी, आज के आधुनिक युग में यह एक दम अनोखी बात थी. यहाँ हमे गुड से बने बंगाली रोसगुल्ले खाए.
अब तक रात हो चुकी थी, और हमने वापसी की राह पकड़ ली. वापसी के समय गेट से अंदर जा कर district mission management unit, birpara block की एक शॉप है, जिसे देखते ही दोनों महिलाओंके पाँव अपने आप रुक गये .
“चलो यहाँ की स्थानीय आइटम्स देखते है”, मानसी ने कहा
“क्यों नही, आखिर इनको प्रोत्साहन देना हमारा फ़र्ज़ है“ विनीता ने अपना समर्थन दिया.
फिर मुझे नजर अंदाज करते हुए दोनों शॉप में दाखिल हो गई.
शॉप में सभी उत्पाद सेल्फ हेल्प ग्रुप के लोगों द्वारा हाथ से बनाये गये हैं. यहाँ सभी आइटम मुख्य्त लकड़ी और कपडे से बने थे जिनमे ज्यादातर लेडीज पर्स, सजावट का सामन , वाल हैंगिंग वगेरा थे. यहाँ से मानसी व् विनीता ने बांस से बना लेडीज बेग खरीद कर अपना फ़र्ज़ पूरा किया.