शमशेरा एक और फ़िल्म जो इतिहास की ऐसी तैसी करकर बनाई गई हैं। लेकिन डायरेक्टर इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहेगा। कि मेरी मर्ज़ी मैं इतिहास को किस तरह से पढ़ता हूँ। और दिखाता हूं। अगर लोगों को मेरा तरीका पसंद नहीं, तो अपना काम करें।
दरअशल ये बात कुछ ऐसी हैं। कि किसी ने सड़क पर कूड़ा फेंककर कहा कि मेरी मर्ज़ी अगर तुमको कूड़े से दिक्कत हैं। तो अपना रास्ता बदल लो। पर क्या सच में ऐसा हो सकता हैं। नहीं, बिल्कुल नहीं
कहानी; एक खरमेन नाम का कबीला हैं। जो आज़ादी पसंद हैं। मुगलों के आक्रमण के कारण उसे अपना मूल स्थान छोड़कर दर-दर भटकना पड़ा। और अंत में उसने हिन्दू ऊँची जात के साथ मिलजुलकर बसने की सोची लेकिन ऊंची खरमेन कबीले को नीचा समझा और उसे अपने साथ नहीं मिलाया। इसलिए कबीले ने ऊँची जातों के खिलाफ जंग छेड़ दी, अब ऊँची जात वाले मदद मांगने अंग्रेजों के पास गए। अब अंग्रेज़ो ने ऊँची जात के एक अफसर के साथ मिलकर एक प्लान तैयार किया जिससे खरमेन कबीले को अपना गुलाम बना लिया। लेकिन अंग्रेज़ो ने गुलाम नहीं बनाया, गुलाम बनाया ऊँची जात के हिंदुओं ने,
इसके बाद एक रणवीर कपूर मर जाता हैं। उसके ही बेटे के रूप में दूसरा रणवीर कपूर जन्म लेता हैं। जो फिर बाद में अपने खरमेन कबीले को आज़ाद कराता हैं। लेकिन आज़ाद अंग्रेजों से नहीं, ऊँची हिंदू जातों से, और फिर फ़िल्म की एंडिंग हो जाती हैं।
एक्टिंग; हर किसी एक्टर में शर्त लगी हुई थी बकवास एक्टिंग करने की, फ़िल्म के अंदर कई सीन बड़े सीरियस टाइप के हैं। लेकिन एक्टर उन सीनों में कॉमेडी कर रहे हैं। और सबसे बेकार एक्टिंग वाणी कपूर ने की हैं। वैसे इसे एक्टिंग कहना भी गुनाह हैं। क्योंकि जो वाणी कपूर ने किया हैं। दुनिया के किसी भी कानून में इसके लिए माफी की सज़ा नहीं हैं।
संवाद; डेढ़ महीने पहले पृथ्वीराज चौहान फ़िल्म आयी थी उसके संवाद बड़े बेकार था, लेकिन रिकॉर्ड बनते ही टूटने के लिए तो बस इस फ़िल्म ने ये ही काम किया हैं। आधी फ़िल्म तो गानों में हैं। 20 प्रतिशत संवाद भद्दी तुकबन्दी हैं। 20 प्रतिशत चीखना चिलाना हैं। और 10 प्रतिशत ऐसे हैं। जिनका फ़िल्म से कोई लेना देना नहीं जैसे, मेरी जूती
इस पूरे संवाद को समझना अपने आप में एक बड़ा काम हैं।
निर्देशन; अहा अहा क्या कहने, अगर ये निर्देशन हैं। तो जो सच में अच्छी फिल्म बनाते हैं। वो पागल हैं। क्योंकि उन्हें इस निर्देशन की जानकारी नहीं हैं। जो जीते जी नरक दिखा दे। और आदमी कहें "है ईश्वर तेरी दुनिया से मरने के बाद हमें नरक में ही जाना हैं। तो इस दुनिया थोड़ा रहम कर और ऐसे बन्दों को जो जीते जी ऐसे दिन दिखा रहे हैं। बचा ले। मतलब ये हैं। कि इतना बेकार निर्देशन कोई कैसे कर सकता हैं।
तो पूरी बात का सार ये हैं। कि ये फ़िल्म हिन्दू नफ़रत से भरकर बनाई गई हैं। जिसमे सब अच्छा हैं। बस जो बुरा हैं। वो ऊँची जात का हिंदू हूँ। और जिस दिन ये ठिकाने पर आ गया ये देश एक बार फिर सोने की चिड़िया बन जायेगा। वैसे ये ऐसा सोचते हैं। अच्छी बात हैं। अपने-अपने विचार लेकिन ये कहना कि अंग्रेज़ो का शासन तो बहुत अच्छा था उन्हें रोना आता हैं। देखकर की ऊँची जात के हिन्दू इतना जुल्म कर रहे हैं। और हम कुछ नहीं कर पा रहे। काश हम कुछ कर पाते। लेकिन ये ऊँची जात के हिन्दू अंग्रेज़ो को भी लूट रहे हैं। और मुगलों को भी और नीची जात के हिंदुओं को भी, क्या दिमाग हैं। फ़िल्म बनाने वाली पूरी टीम का
फ़िल्म के अंदर वाणी कपूर को ऐसे कपड़े दिए हैं। कि शायद भारत मे 100 सालों बाद भी ऐसे कपड़े कोई ना पहनें। उनीसवीं शताब्दी में कोई लड़की भारत तो छोड़ो यूरोप में भी ऐसे कपड़े नहीं पहनती होगी ये तय हैं। लेकिन इस फ़िल्म में वाणी कपूर बिकनी पहन कर नहा रही हैं। पानी में सेक्स कर रही हैं।, जाँगो तक की नाइटी पहन रही हैं। अब क्या मतलब हैं। ऐसी चीज़ों का, पर वो ही सेट पर आँख सेकने के लिए भी तो कुछ चाहिए। बस ये चीज़े उसी का नतीजा होती हैं। तो कुल मिलाकर बात ये हैं। कि इसे कोई भी इंसान देखने की कोशिश ना करें। कुछ इस चीज़ के गंभीर परिणाम भी निकल सकते हैं। जो बहुत लंबे अरसे तक आपको परेशान कर सकते हैं।
सच कहूं तो मैं सही से आज अपनी बात भी नहीं कह पा रहा हूँ। क्योंकि मैं एक कमी को लिखता हूँ। तो लगता हैं। कि इससे बड़ी तो एक और हैं। इसलिए मैं इतना असहाय लिखने में कभी नहीं रहा। लेकिन इस फ़िल्म ने मुझे पागल ही कर दिया बस ये लगा लो, तो मैं फिर एक बार कहता हूँ कि ऐसी फिल्में तो एक रुपया भी ना कमाए तो अच्छा हैं। इन फिल्मों को बिल्कुल नज़रंदाज़ कर दो, क्योंकि इनके साथ इससे ज्यादा और कुछ कर नहीं सकते।