Forgotten sour sweet memories - 19 in Hindi Biography by Kishanlal Sharma books and stories PDF | भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 19

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भूली बिसरी खट्टी मीठी यादे - 19

शायद सितम्बर 71 की बात है।
मैं दस दिन की पी एल लेकर गांव गया था।उन दिनों आगरा के लिए बांदीकुई से आगरा के लिए छः बजे पेसञ्जर ट्रेन जाती थी।जो आगरा से चार बजे चलकर नौ बजे बांदीकुई आती थी।
एक ट्रेन जोधपुर और आगरा के बीच चलती थी।यह आगरा से फुलेरा तक पैसेंजर थी।यह ट्रेन बांदीकुई 1 बजे आती और तीन बजे आगरा के लिए जाती।यह ट्रेन सुबह 8 बजे आगरा से चलकर करीब 2 बजे बांदीकुई आती थी।एक ट्रेन अहमदाबाद और आगरा के बीच एक्सप्रेस चलती।यह दोनों तरफ से रात में ही बांदीकुई आती थी।
मैं जब भी शाम की पेसञ्जर से गांव आता।बसवा के लिए रात में नही जाता था।रात को नौ बजे अपनी कजिन सुशीला के घर जाता।उनके पति यानी मेरे बहनोई रेलवे में टी सी थे और उन्हें स्टेशन के पास ही क्वाटर मिला हुआ था।सुबह 5 बजे बांदीकुई से रेवाड़ी के लिए पेसञ्जर जाती थी। रात मे अपनी बहन के घर रुक कर सुबह इस ट्रेन से गांव जाता था।
मेरे बहनोई का गांव राजपुर है।जो हमारे गांव से करीब 5 किलो मीटर है।उन दिनों वहां के लिए वाहन नही चलते थे।पैदल ही जाना पड़ता था।
उस दिन भी जब मैं दस दिन की छुट्टी आया।बहन के घर पर ही रुका था।सुबह बहन और जीजाजी का भी अपने गांव जाने का प्रोग्राम था।
सुबह मैं और मेरे जीजाजी और बहन स्टेशन आये थे। ट्रेन चलने में अभी समय था।मेरी बहन कोच में बैठ गयी थी।उनके सामने वाली सीट पर पति पत्नी और उनकी बेटी बैठी थी।वे लोग राजगढ़ जा रहे थे। मेरी बहन बातूनी है।जल्दी ही किसी अनजान से बात करने लग जाती है।मैं और जीजाजी प्लेटफार्म पर घूमते हुए बाते कर रहे थे।टाइम टेबल के अनुसार समय होने पर इंजन ने सिटी मारी और हम दोनों भी ट्रेन में चढ़ गए थे।बहन उन लोगो से बातें करती रही और हम दोनों अलग बात कर रहे थे।
और बसवा आने पर हम तीनों उतर गए थे।मेरा गांव तो बसवा ही था।स्टेशन से घर करीब 1 किलो मीटर दूर पड़ता था।घर तक पहले भी पैदल जाना पड़ता था और अब भी।
मैं अपने घर के लिए चल दिया था।बहनोई का गांव स्टेशन के दूसरी तरफ पड़ता था।वह भी अपने गांव के लिए चल दिये थे।
और मैं अपने घर आ गया था।मैं जब भी गांव आता सुबह और शाम को खेत पर जाता था।जैसा मैंने पहले भी लिखा है।दूसरे नम्बर के ताऊजी खेत पर ही रहते थे।खेत हमारे घर से करीब एक किलो मीटर दूर है।चकबन्दी नही है।खेत चार जगह है।बंध में,तलाई पर,लाव और बावड़ी पर।खेत अब भी साझा है।
अब तो हमारा गांव सूखा ग्रस्त है।पहले खूब पानी था।बावड़ी पर बावड़ी से सिंचाई होती थी।तलाई पर सरकारी कोठी थी।लाव पर दो कुए थे और बंध में बंध से सिंचाई होती थी।
गांव में सबसे पहला ट्यूबवेल हमारे खेत पर लगा था।उस दिन जश्न का माहौल था।यह सन 66 की बात है।बापू सपरिवार गांव गए थे।हमारा पूरा परिवार इकट्ठा था।तब मेरा परिवार संयुक्त था।गांव के लोग भी हमारे खेत पर आए थे।और आज हमारे पूरे गांव की खेती बरसात पर निर्भर हो गयी है।