ऐश को थोड़ी हताशा हुई जब उसे रॉकी कहीं दिखाई नहीं दिया। लेकिन उसने सोचा - नहीं, वो रोएगी नहीं। ये गलत है। ज़िंदगी में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके चले जाने पर हम रोएं। हम लाए क्या थे? जो कुछ मिला यहीं मिला न, फिर मिलेगा।
ऐश ने एक हल्की सी अंगड़ाई ली और उसका बदन ऐसा हो गया मानो वो किसी सर्विस सेंटर से अपने शरीर की सर्विसिंग करवा कर निकली हो।
वह अकेली ही चल दी।
देर तक वो नदी के किनारे टहलती रही। दोपहर में पास की एक झाड़ी में जाकर उसने थोड़ी देर नींद भी निकाल ली। आज उसने एक छोटी तितली को खाया था। ये स्वाद उसे पहली बार मिला।
वो तो छोटी मछली की ओर ही बढ़ रही थी लेकिन तभी पास पड़े पत्थर पर लगी काई पर ये तितली मंडराती हुई बैठ गई। ऐश ने गर्दन उधर घुमा कर झपट्टा मार दिया। तितली को शायद ये उम्मीद नहीं थी कि सामने मछलियों का ढेर होते हुए भी ये हंसिनी उसे खाने की सोचेगी। पर दुनिया उम्मीद से कहां चलती है? हम सब ही तो किसी न किसी का निवाला हैं।
ऐश को याद आया कि कुछ दिन पहले उस अजनबी बूढ़े ने भी तो यही किया था। सामने ढेर सारी मछलियां थीं फिर भी ऐश के भाई को पकड़ कर अपनी बास्केट में डाल लिया। चलो, आज ऐश ने भी बदला ले लिया अपने भाई का।
अरे नहीं, उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए। दुनिया प्रतिशोध से नहीं पनप सकती। इसके लिए तो त्याग चाहिए, प्यार चाहिए।
ऐश को इस खयाल में बड़ी ताज़गी लगी। उसे लगा कि उसे प्यार ढूंढना चाहिए। प्यार खोजना चाहिए। खोजने से क्या नहीं मिलता?
और तभी उसका मन उससे कहने लगा कि उसे रॉकी को ढूंढना चाहिए।
लेकिन वह ठिठक गई। उसे लगा कि रॉकी तो उसका दोस्त था, उसका साथी था। क्या दोस्त और प्यार एक ही बात है?
उसने सोचा कि उसे हिम्मत से काम लेना चाहिए। उसे रॉकी को तलाश करना ही चाहिए। वह चाहे उसका दोस्त हो या कुछ और। अपना तो है। अपने भाई को तो उसने अजनबी बूढ़े की कातिल डलिया में कैद होकर जाते देखा था, वह अब जिंदा नहीं होगा पर रॉकी तो उसके देखते - देखते सामने से ओझल हुआ है। वह ज़रूर मिल जायेगा। शैतान, ख़ुद ही ऐश को छकाने के लिए इधर - उधर कहीं जा छिपा होगा।
तभी ज़ोर से पंख फड़फड़ा कर ऐश को झाड़ी की ओर भागना पड़ा। अचानक कहीं से एक बड़ा सा काला डॉगी सामने चला आया। लेकिन झाड़ी में छिप कर सुरक्षित हो जाने के बाद ऐश ने पलट कर डॉगी की ओर देखा तो उसे हंसी आ गई। वह कितनी डरपोक है, बिना बात ही घबरा गई। डॉगी कोई उस पर हमला करने थोड़े ही आया था? वह तो बेचारा उस झबरी पीली कुतिया के पीछे- पीछे आया था पूंछ हिलाता हुआ।
ऐश सोच में पड़ गई। ये दोनों दोस्त हैं तो साथ- साथ क्यों नहीं चलते? पीली कुतिया आगे- आगे और ये डॉगी पीछे- पीछे!
लो, उसकी शंका फिजूल निकली। कुतिया रुक तो गई। इतना ही नहीं बल्कि पलट कर डॉगी के मुंह की ओर देखने लगी। लेकिन इस डॉगी को देखो, बेवकूफ कहीं का! इतनी देर से तो उसके पीछे- पीछे आ रहा था और अब जब वो बेचारी ठहर गई तो उससे बात नहीं कर रहा। बार - बार घूम कर उसके पीछे ही आकर खड़ा हो जाता है। दो बार तो दोनों चकरी की तरह घूम गए। कुतिया बेचारी बार- बार उससे बात करने की गरज से उसके मुंह के पास अपना मुंह लाती है और ये लाटसाहब घूम कर फिर से उसके पीछे ही जा खड़े होते हैं।
क्या नाराज़गी है, यही पूछने के लिए कुतिया ने इस बार अपना मुंह बिल्कुल उसके मुंह से सटा ही दिया। लेकिन वो महाशय तो अपनी ही धुन में ठहरे, पलट कर फिर से उसके पीछे आ खड़े हुए।
क्या कुतिया की पूंछ पर कोई मक्खी बैठी है? कहीं उसी पर झपटने की फिराक में तो नहीं हैं ये श्रीमान? देखो- देखो, कैसे जीभ निकाल कर आगे बढ़े। पर वो भी तो मक्खी है मक्खी। इतनी आसानी से इनके हाथ थोड़े ही लगने वाली है, उड़ गई होगी कहीं! ये मुंह आगे बढ़ा कर सूंघते ही रह गए।
अब गुस्सा तो आना ही था। सारे ज़माने को छोड़ कर यहां एकांत में इसके पीछे- पीछे आए और ये हाथ भी नहीं धरने दे, ऐसा कैसे हो सकता है?
काले डॉगी ने आव देखा न ताव, दोनों पंजे उठा कर उसकी पीठ पर रख दिए!
ऐश ने सोचा, ये डॉगी भी न, बस ऐश की तरह ही है। मक्खी का बदला बेचारी कुतिया से लेने चला है।
ऐश ने भी तो अजनबी बूढ़े का बदला तितली से लिया।
लेकिन कुतिया घबराई नहीं, खड़ी रही!