towards the light--memoirs in Hindi Motivational Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर ---संस्मरण

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उजाले की ओर ---संस्मरण

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नमस्कार स्नेही मित्रो

हमारे जीवन में बहुत से ऐसे मोड़ आते हैं जो हमें सिखाकर जाते हैं | उस समय हमें वह घटना बहुत खराब लगती है | हमें महसूस होता है कि हम किसी ऎसी परिस्थिति में फँस गए हैं जो हमारा जीवन पलट देगी | कई बार हो भी जाता है ऐसा लेकिन यदि हम थोड़े से विवेक से काम लें तो परिस्थिति में बदलाव भी आ सकता है और हम उस परिस्थिति से निकल भी सकते हैं जिसने हमारे सामने परेशानी पैदा कर दी हो |

यहाँ मुझे एक लेडी-कॉन्स्टेबल की कहानी याद आ रही है | वह अपने काम को बड़े गर्व से, शिद्द्त से करती थी | इसके लिए उसे कई बार लोगों के ताने भी सुनने पड़ते थे | यह संसार का नियम है वह किसीको परेशानी में देखकर मज़े लेने की कोशिश करता है | यह समझने की ज़रुरत नहीं समझता की इस जीवन में कोई परिस्थिति, किसी के भी साथ आ सकती है |

एक लेडी कॉन्स्टेबल एक रात को अपनी ड्यूटी पूरी कर रही थी | रात के समय मंत्रीजी का बेटा बाप की गाड़ी लेकर सड़कों पर घूमते हुए कोविड-19 के प्रतिबंधात्मक हुक्मों को तोड़ रहा था। कर्तव्यनिष्ठ लेडी कॉन्स्टेबल ने उसे रोका तो बदतमीजी पर उतर आया। बाप के मंत्रीपद के नशे में लेडी कॉन्स्टेबल को 365 दिन वहीं खड़े होने की सज़ा की बात करने लगा। लेडी कॉन्स्टेबल ने साफ बोल दिया कि, वर्दी कानून की है, उसके बाप की दी हुई नहीं है। इस बात से मंत्री के लड़के की नाक काट गई | मंत्री के चमचे भी उस लड़के की तरफ़दारी करने लगे | बात बढ़ गई और कॉन्स्टेबल पर कानूनी कार्यवाही की गई।

जब बड़े ऑफ़िसर्स भी मंत्रीजी के कहने पर इस कॉन्स्टेबल को फ़ोन पर हड़काने लगे| नौकरी जाने के दबाव डालने लगे तब भी लेडी कॉन्स्टेबल अपनी बात पर अड़ी रही | उससे माफ़ी माँगने के लिए कहा तो उस ने माफी मांगने से साफ़ इन्कार कर दिया |

काफ़ी दिनों तक वह बहुत परेशानी में रही लेकिन अंत में उसे इंसाफ़ मिल ही गया किन्तु उसने कितनी मानसिक पीड़ा झेली, इसका अंदाज़ा तो वही लगा सकती है जिसके ऊपर बीतती हो |

प्रश्न यह था कि जब गरीब जनता पर कानून तोड़ने के नाम पर लाठियाँ बरसाई गईं थीं, पैदल चल रहे गरीब असहाय मजदूरों को पीटा गया था ? क्या यह कानून मंत्री के बेटे पर लागू नहीं होता ? आख़िर ये दोहरे मापदंड समाज के लिए ठीक हैं ? यही देख कर कष्ट होता है कि कैसै चंद बड़े लोगों के हाथ में पूरा सिस्टम जकड़ा हुआ हैं और अगर कोई ईमानदारी से काम करे, तो कैसे उसका शोषण किया जाता हैं, धमकियां दी जाती हैं और विवश किया जाता है। लोग इतने असंवेदनशील होते जा रहे है कि छोटी छोटी बातों का बदला कैसे लिया जाता हैं यह दिखाने और अपनी धाक दिखाने के लिए, वही लोग, जिन्हें हम ओर आप चुनकर संसद भेजते है, आम जनता का कैसे शोषण करते हैं !

क्या यह बात ज़रूरी नहीं है कि हम ऎसी परेशानियों मुँह मोड़े बिना उनका सामना करें और जीवन -व्यवस्थता में अपनी भागेदारी सुनिश्चित करें |

समाज के प्रति किसी एक की ज़िम्मेदारी नहीं है बल्कि हम सबकी है |

आइए,इस विषय पर सोचें और समाज को बेहतर बनाने में सहयोग करें |

कृपया इस प्रकार के विषयों पर चिंतन करें | आज जब स्त्री किसी भी क्षेत्र में काम कर रही है, उसका सम्मान होना ज़रूरी है अथवा नहीं ?वह किसी की भी बहन-बेटी हो सकती है |

सस्स्नेह

आपकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती