"टाईम मशीन"
(लघु बाल उपन्यास)
-- अर्चना अनुप्रिया
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समर्पण
यह लघु उपन्यास उन सभी को समर्पित है,जो विदेश की धरती पर भी अपने देश की मिट्टी की सोंधी खुशबू को महसूस करते हैं और बच्चों में हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम जगाना चाहते हैं।
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कुछ विचार
“भूमिका”
कुछ लिखने का मन हुआ तो ये मेरे लिए तय करना मुश्किल हो रहा था कि क्या लिखूँ...फिर ये विचार आया कि क्यों न बच्चों के लिए कुछ लिखा जाये ताकि उन्हें हिन्दी साहित्य से जुड़ने का अवसर मिले।मेरे छोटे बेटे,आदित्य ने सलाह दी कि साइंस फिक्शन जैसा कुछ रोचक लघु उपन्यास लिखो जिसे बच्चे खाली समय में या किसी सफर के दौरान रुचि लेकर पढ़ सकें।मुझे उसका यह सुझाव बहुत पसंद आया।फलस्वरूप, “टाईम-मशीन” की रचना हुई।
‘टाईम-मशीन’ की कहानी यूँ तो मेरी कल्पना है,पर क्या पता, कल ये सच में परिवर्तित भी हो जाये।जिस तरह से विज्ञान और तकनीक विकसित हो रहे हैं, जल्दी ही कोई ऐसी डिवाइस बाजार में आ सकती है,जिसकी सहायता से व्यक्ति अपने भूत और भविष्य में जा सकता है।सोचिए, अगर सचमुच ऐसा हुआ तो विश्व का स्वरूप बदल जायेगा...हम अपने इतिहास और भविष्य में जाकर अपनी आँखों से उन्हें देख पायेंगे।ऐसी कल्पना से ही आनंद की अनुभूति होने लगती है।
इसी कल्पना को लेकर इस लघु बाल उपन्यास को गढ़ा है मैंने।विदेश में रहने वाला भारतीय मूल का नन्हा रोहन “टाईम-मशीन” के जरिये अपनी मूल संस्कृति और अपने परिवार से परिचित होता है।
उम्मीद करती हूँ कि टाईम मशीन द्वारा रोहन की अनोखी यात्रा पाठकों को भी पसंद आयेगी।
ओम् शांति
अर्चना अनुप्रिया।
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[1] रोहन की आँखें फटी की फटी रह गयीं। आज तक उसने “टाईम मशीन”के बारे में सुना था,पढ़ा था, पर ऐसी सचमुच कोई मशीन है...उसे विश्वास नहीं था।आज अपनी आँखों के आगे उस सफेद आदमकद ग्लासनुमा बक्से को देखकर रोहन पागल हुआ जा रहा था-”ओ माय गॉड... टाईम मशीन...फीलिंग सो एक्साइटेड पॉप.."रोहन की खुशी का ठिकाना नहीं था।आखिरकार उसके पिता की मेहनत सफल हो गई थी। जाने कब से वह इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। रोहन के पिता,डॉ विनोद फिजिक्स के प्रोफेसर थे और वहीं लंदन के एक कॉलेज में हेड ऑफ द डिपार्टमेंट थे।वैसे तो पढ़ना- पढ़ाना उन्हें बहुत पसंद था परन्तु, हर थियरी पर तरह-तरह के एक्सपेरिमेंट करना उनका शौक था।किसी भी विषय पर वह बहुत गहन अध्ययन करते थे और उसे एक्सपेरिमेंट के जरिए समझने की कोशिश करते थे। इस संबंध में वह अपने बेटे रोहन को हमेशा अपने साथ रखा करते थे।रोहन वैसे तो,उम्र में छोटा था,चौथी कक्षा में पढ़ता था पर अपने डैड की सारी बातें बड़े ध्यान से सुनता था और कम उम्र में ही फिजिक्स के बेसिक फार्मूले को अच्छी तरह समझने लगा था।इसीलिए,अपने डैड के सारे प्रयोगों में उनका दिलो जान से साथ देता था। इसी क्रम में एक दिन जब टाईम मशीन की बात चली, तब रोहन को पता चला कि उसके पिता तो पढ़ाई के जमाने से ही टाईम मशीन पर काम कर रहे थे।अपने घर के ही पिछवाड़े के एक कमरे में उन्होंने लैबोरेट्री बना रखी थी।तरह-तरह की मशीनें और दूसरी चीजें खरीद- खरीद कर वहीं प्रयोग किया करते थे ।आज रोहन उस मशीन के सामने खड़ा था, जिसके बारे में उसके पिता का कहना था कि यह मशीन इंसान को भूतकाल में ले जा सकती है ।भविष्य में ले जाने की थियरी पर अभी काम चल रहा था, सफलता नहीं मिल पाई थी।पर,... भूतकाल में जाया जा सकता है- सोच कर ही रोहन रोमांचित हो गया।
रोहन के पिता प्रोफेसर विनोद वैसे तो मूलतः भारतीय थे पर पढ़ाई खत्म करके किसी रिसर्च के लिए लंदन आए तो वहीं के होकर रह गए।पढ़ाई खत्म करके वहीं किसी अंग्रेज लड़की से उन्होंने शादी कर ली और फिर वहीं सेटल हो गए ।बीच-बीच में भारत जाते थे पर धीरे-धीरे काम में इतने मशगूल हो गए कि वह भी बंद हो गया। रोहन का जन्म भी लंदन में ही हुआ था और वहीं उसकी पढ़ाई लिखाई हो रही थी। इसीलिए उसका भारत जाना और अपने पिता के रिश्तेदारों से मिलना कभी हो नहीं पाया।बहुत छोटा था जब उसके माता-पिता उसे लेकर भारत गए थे, पर रोहन को कुछ भी याद नहीं है।भारत के विषय में पिता से सुनता या भारतीय दोस्तों से उनके भारत-भ्रमण और उनके रिश्तेदारों के विषय में सुनता तो उसका भी मन करता कि भारत जाकर रिश्तेदारों से मिले।पर, प्रोफेसर साहब के पास टाइम कहाँ था कि रोहन को बार-बार भारत ले जाते ? कॉलेज से आते तो अपने प्रयोगों में लग जाते..खाने-पीने की भी सुध नहीं रहती थी।इसी निष्ठा का तो परिणाम था कि टाईम मशीन जैसी अद्भुत डिवाइस आज तैयार हो पाई थी। अब बस उसे टेस्ट करना बाकी था।
रोहन बहुत एक्साइटेड था-”पॉप, अगर मशीन ने अच्छी तरह काम किया और भूतकाल में जाकर इंसान को सही सलामत वापस लाने में सफल हो गई तो यह कितनी रिवॉल्यूशनरी खोज हो जाएगी ना”..? “हाँ”... प्रोफेसर विनोद बोले,”यह सचमुच विज्ञान के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम होगा।अभी तक वैज्ञानिकों ने इसकी कल्पना ही की है, मशीन बनाकर सफल प्रयोग नहीं कर पाए हैं।”
.. “पर आपने तो कर दिखाया है पापा,... हैट्स ऑफ टू यू”... रोहन चहकते हुए बोला।
“अरे इतना खुश होने की जरूरत नहीं, अभी मशीन बनी है, टेस्ट करना बाकी है... कुछ भी गड़बड़ हुआ तो सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा।”
“हुँsss”... रोहन ने ठंडी सांस ली।
प्रोफेसर ने अच्छी तरह सब फिर से ढक दिया और दरवाजा बंद कर दोनों बाहर आ गए।
रोहन का तो किसी काम में मन ही नहीं लग रहा था।खाने की टेबल पर भी टाईम मशीन के बारे में ही सोचता रहा...माँ ने उसकी पसंद की चाइनीस डिश बनाई थी,पर रोहन तो किसी और ही दुनिया में था। खाना खाकर सभी अपने-अपने कमरे में सोने चले गए।रोहन भी अपने बिस्तर में घुस गया।उसने अपनी आँखें बंद तो कीं, पर रह-रह कर उसकी आँखों के आगे वही आदमकद मशीन आ रही थी--”कैसे टेस्ट किया जाए कि वह मशीन परफेक्ट बनी है कि नहीं”..... सोचते-सोचते कब उसकी आँख लग गई उसे पता ही नहीं चला।
अगली सुबह जब आँख खुली तो बाहर बूंदा-बांदी हो रही थी,बीच-बीच में ओले भी गिर रहे थे और कुल मिलाकर मौसम ठंडा सा हो रहा था। वैसे भी लंदन के मौसम का कोई भरोसा नहीं रहता,कब धूप निकले,कब बारिश हो, कब ओले पड़ें... कुछ कहा नहीं जा सकता। रोहन ने घड़ी देखी सुबह के 10:00 बजने वाले थे।”अरे”... वह हड़बड़ा कर उठा,बाहर आकर देखा तो पापा नाश्ता कर के कॉलेज जा चुके थे, मम्मी भी ऑफिस निकल चुकी थी,उसका नाश्ता टेबल पर रखा था और उसका प्यारा कुत्ता ब्रूनो वहीं टेबल के नीचे बैठा पूँछ हिला रहा था।रोहन ने ब्रश करके नाश्ता किया फिर पढ़ने के लिए किंडल निकाली... आज स्कूल की छुट्टी थी इसीलिए किंडल और लैपटॉप के साथ वहीं सोफे पर पसर गया। कहने को तो वह किंडल पर कहानियाँ पढ़ रहा था पर उसके ख्यालों में वही टाईम मशीन घूम रही थी।रोहन से रहा नहीं गया, सोचा-” चलो चल कर देखता हूँ”...और फिर…
अगले ही पल रोहन लैबोरेटरी वाले कमरे में था।वह जितना उस मशीन को देखता,उतना ही और अधिक आकर्षित होता... अंततः उसने उसे चला कर देखने की ठानी ।प्रोफेसर साहब ने रोहन को मशीन कैसे स्टार्ट होती है,यह बता तो दिया था, पर, अकेले में उस मशीन से छेड़छाड़ नहीं करने की खास हिदायत दी थी,लेकिन... रोहन खुद को रोक नहीं पा रहा था । मशीन के बटनों को रोहन छू-छूकर देखने लगा। रोहन की ऊँगलियाँ लाल रंग के एक बटन पर आकर रुक गयीं।यह वही बटन था जिसे ऑन करते ही मशीन के अंदर बैठा व्यक्ति एकदम से भूतकाल में पहुंच जाएगा- “डैड ने तो यही कहा था”... रोहन एकदम से रोमांचित हो उठा..।”क्या करूँ..मशीन में बैठकर बटन ऑन कर दूँ...कहीं डैड नाराज हुए तो...कहीं भूतकाल में पहुँचकर फिर वापस नहीं आ पाया तो...कहीं कोई प्रॉब्लम हो गई तो..?रोहन असमंजस में आ गया। अंदर से कहीं तीव्र इच्छा थी कि बटन ऑन कर मशीन का जादू देखा जाए,लेकिन पिता का डर भी हो रहा था। अंततः, वही हुआ जो आमतौर पर होता है...इच्छा जीत गई।रोहन ने मशीन के अंदर निर्धारित स्थान पर बैठकर लाल बटन ऑन कर दिया... एक जोरदार झटका लगा….लगा मानो आसमान में बिजलियाँ कड़क रही हों….कड़..कड़..कड़..की आवाज के साथ नीली- पीली- हरी रोशनी निकल-निकल कर फैलने लगी। रोहन ने डर के मारे आंखें बंद कर लीं।
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[2]
आँख खुली तो रोहन ने खुद को एक हवेलीनुमा घर में पाया। चारों तरफ बड़े- बड़े कमरे थे, जो एक दूसरे से सटे थे,चौड़ा सा बरामदा और बीच में बड़ा सा आंगन……. आंगन..?रोहन की आँखें हैरत से भर गयीं। रोहन ने आंगन के विषय में अपने डैडी से सुना तो था.. एकाध बार फोटो में देखा भी था, परन्तु,उसके विषय में ज्यादा जानता नहीं था, इसीलिए वह एकदम से घबरा गया। आंगन यानी कोर्टयार्ड…. डैड ने बताया था कि इंडिया के घरों में आंगन हुआ करते हैं और भारतीयों के लिए उस कोर्टयार्ड का बड़ा खास महत्व है...तो क्या वह इंडिया पहुँच गया है? रोहन ने मन ही मन सोचा “वह तो अपने भूतकाल में जा रहा था तो फिर यहाँ कैसे…? कहीं बीच में तो नहीं फंस गया है...या फिर उसे कुछ हो तो नहीं गया है…?”रोहन नर्वस होने लगा। क्या करे, क्या न करे…? अब वापस भी जाना हो तो कैसे जाए... ?जोश में आकर लाल बटन दबाकर यहाँ तक तो आ गया पर तरह-तरह की शंकाओं से मन अब घबरा रहा था। तभी उसे किसी की आवाज सुनाई दी। रोहन घबराकर वहीं एक पिलर के पीछे छुप गया।”अरे राधेश्याम टिफिन तैयार हुआ कि नहीं... बीनू के स्कूल का टाइम हो गया है, जल्दी करो…” यह किसी महिला की आवाज थी। रोहन ने देखा एक 35-40 साल की औरत सिर पर पल्लू रखे,साड़ी पहने आंगन की एक ओर बने कमरे की तरफ खड़ी होकर पूछ रही थी... “शायद यह कमरा इस घर का किचन होगा”.. रोहन ने अनुमान लगाया। उस महिला को साड़ी पहने देखकर रोहन कंफर्म हो गया कि वह इंडिया के ही किसी घर में पहुँच चुका है। “भाभी जी,बस टिफिन तैयार ही है...ला रहा हूँ"... अंदर से किसी की आवाज आई। अगले ही पल धोती लपेटे, बनियान पहने और कंधे पर गमछा रखे एक हठ्ठा-कठ्ठा आदमी टिफिन का डब्बा लेकर बाहर निकला और सामने के किसी कमरे की तरफ जाने लगा। रोहन को समझते देर नहीं लगी यह शख्स ही राधेश्याम है और इस घर का कुक है। ऐसे ही वेशभूषा में उसने हिंदी फिल्मों में रसोइए को देखा था।
महिला-”टिफिन में क्या क्या दिया है बाबू को..?”
राधेश्याम-”आज शनिवार है ना भाभी जी, खिचड़ी और बैगन का भरता दिए हैं.. बीनू बाबू को बहुत पसंद है ना..”
महिला-” ठीक है, ठीक है... जल्दी से बाबू को स्कूल पहुँचा कर आओ, बहुत काम बाकी है..” कहती हुई महिला किसी दूसरे कमरे में चली गई। राधेश्याम भी बीनू बाबू, बीनू बाबू पुकारता हुआ बाहर निकल गया। रोहन ने चैन की सांस ली और पिलर के पीछे से निकल आया।..
” क्या करूँ...कहाँ जाऊँ”...उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह बिल्कुल डरा हुआ था कि कहीं किसी ने देख लिया और उसे चोर समझ बैठा तो…? कोई पूछे तो क्या कहेगा वह…?”तभी फिर कुछ हलचल सी हुई...रोहन एकदम से भागकर सामने के कमरे में जा छुपा। अजीब सा दरवाजा था...एक तो दो पल्लों का था और उसमें सिटकिनी की जगह लकड़ी की कोई आकृति बनी हुई थी। उसने ऐसा दरवाजा जीवन में पहली बार देखा था। लंदन में उसके कमरे का दरवाजा तो ऑटोमेटिक तरीके से लॉक हो जाता था। रोहन को समझ नहीं आया कि दरवाजे को लॉक कैसे करना है...इसीलिए दोनों पल्लों को भिड़ा कर वह चुपचाप खड़ा हो गया। दिल धक्-धक् कर रहा था कि कहीं कोई आ न जाए और उसे देख न ले। जिस कमरे में वह घुसा था वह कमरा शायद किसी बच्चे का था...बैडमिंटन की टूटी सी रैकेट दीवार पर टंगी थी।कुछ किताबें बिखरी पड़ी थीं। बेड पर खेलने की कुछ चीजें पड़ी थीं... गेंद और ड्राइंग बुक.....जमीन पर कपड़े, मोजे वगैरह गिरे पड़े थे।वहीं एक टेबल-कुर्सी रखी थी।बगल में रखी मेज पर एक फोटो लगी थी, जिसमें एक बच्चा उस महिला की गोद में बैठा था।रोहन को वह तस्वीर बड़ी देखी-देखी सी लगी। वह याद करने लगा कि यह तस्वीर उसने कहाँ देखी होगी….अभी बस सोच ही रहा था कि दरवाजे पर हलचल हुई। रोहन डर गया..”अगर किसी ने देख लिया तो चोर समझकर पुलिस न बुला ले”...वह जल्दी से पलंग के नीचे छुप गया। तभी दरवाजा खोल कर अंदर आते दो पैर दिखे। पलंग के नीचे छुपा रोहन डर गया।पैर पलंग के पास आए और कोई शख्स बिखरे कपड़े और मोजे उठाने के लिए झुका।वह कोई लड़की थी ।कपड़े उठाते-उठाते उसकी नजर रोहन से टकरा गई ।वह एकदम से चीख पड़ी-”कौन हो तुम..?.. निकलो बाहर...यहाँ क्या कर रहे हो…?..कमरे में कैसे पहुँचे..?” उस लड़की ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी ।डरा-सहमा सा रोहन बेड के नीचे से बाहर निकल आया... और कोई चारा भी तो नहीं था।वह लड़की रोहन को देखकर एकदम से चौंक पड़ी….”अरे,कौन हो तुम..?बीनू के दोस्त हो क्या…?तुम स्कूल नहीं गए….?बेड के नीचे छुपकर यहाँ क्यों बैठे हो…?” रोहन को समझ नहीं आया कि क्या कहे...वह लड़की बीनू की बड़ी बहन लग रही थी ।
रोहन ने फौरन कहा-”सॉरी मैम”...
“सॉरी मैम”..?वह हँस पड़ी…”मैम क्यों बोल रहे हो…? मेरा नाम गीता है...गीता दीदी बोलो”
रोहन-“ओकेss,आई एम सॉरी गीता दीदी”।
गीता-” तू तो बड़ी स्टाइल में अंग्रेजों की अंग्रेजी बोलता है,...कहाँ से सीखा..?”
रोहन को न जाने क्यों गीता दीदी पर भरोसा जैसा हो रहा था ।यह शायद मेरी प्रॉब्लम को समझेगी। उसने डरते- डरते कहा-”माय नेम इज रोहन,आई एम नाइदर बीनूज फ्रेंड, नॉर ……..
“अरे,अरे, अरे”,गीता ने बीच में ही टोका-”हिंदी में बोलो भाई, अंग्रेजी में क्यों…?हिंदी बोल-समझ सकते हो न..?
रोहन ने डरते-डरते हाँ में सिर हिलाया।डॉ विनोद उसे हिन्दी सिखाने के ख्याल से अक्सर हिन्दी में बात कर लिया करते थे।बहुत अच्छी तो नहीं,पर काम के लायक हिन्दी समझ और बोल लेता था रोहन।
रोहन-”मैं बीनू का फ्रेंड नहीं हूँ...उसने डरते-डरते कहा,” न ही उसके स्कूल में पढ़ता हूँ....मैं तो आपके फ्यूचर से आया हूँ..,लंदन में रहता हूँ और मेरे डैड ने एक टाईम-मशीन बनाई है, जिससे पास्ट में जा सकते हैं…. मैं उसी मशीन का टेस्ट करते हुए यहाँ तक पहुंच गया हूँ।…. मुझे पता नहीं है कि यह कौन सी जगह है... मैं तो अपनी मॉम -डैड के साथ लंदन में रहता हूँ।”रोहन एक ही साँस में बोल गया।
गीता दीदी पहले तो सुनकर खूब हँसी, लेकिन जब रोहन बार-बार एक ही बात दोहराने लगा तो गीता दीदी को उसकी बात पर विश्वास होने लगा ….हालांकि वह समझ नहीं पा रही थी कि यह कैसे संभव हो सकता है..?भला फ्यूचर से कोई कैसे आ सकता है? पर,रोहन की मासूमियत के आगे कुछ कह नहीं पाई..।. सोचा,शायद यह लड़का मानसिक रूप से कमजोर है... "चलो मेरे साथ बाहर, यहाँ कमरे में छुपकर क्यों बैठे हो…?कहते हुए गीता दीदी रोहन को लगभग खींचती हुई सी बाहर ले आई।
बाहर रोहन ने उस महिला को देखा...वह आंगन में किसी वुडन टेबल पर कपड़े डाल कर कुछ फैला रही थी। दीदी रोहन को खींचती हुई उस महिला के पास ले गई -”मां देखो यह रोहन है”...बीनू का दोस्त है शायद..बीनू के कमरे में था।"
महिला ने पलट कर देखा एक गोरा, चिट्टा, खड़ी नाक-नक्श वाला लड़का खूबसूरत से कपड़े पहने गीता के साथ खड़ा था। उम्र लगभग 12-13 साल की रही होगी ।देखने से ही किसी बहुत पढ़े-लिखे परिवार से लग रहा था। महिला ने पूछा…”किसके लड़के हो तुम बेटे ?"
रोहन-” माय फादर्स नेम इज प्रोफेसर विनोद एंड आई हैव कम फ्रॉम लंडन….”
वह महिला कुछ नहीं समझी और प्रश्नवाचक निगाहों से गीता की तरफ देखने लगी।गीता ने एक ही साँस में रोहन की बताई हुई बातें बता दी...। महिला के पल्ले कुछ नहीं पड़ा।अभी वह कुछ पूछती तभी 2-3 और महिलाएँ अलग-अलग कमरों से निकल कर वहाँ आ गयीं। सब की वेशभूषा लगभग एक जैसी ही थी…. बदन पर साड़ी ,सिर पर आंचल...। सब ने आकर उस महिला के पैर छुए और एक नजर रोहन पर डालकर उस महिला की मदद करने में लग गयीं...।रोहन ने देखा कि खूब लंबे से टेबल पर कपड़े के ऊपर बड़ी-बड़ी रेड चिलीज पानी से निकाल-निकाल कर बिछायी जा रही थी।उसकी समझ में कुछ नहीं आया। रोहन ने ऊपर देखा सूरज आसमान में चमक रहा था ।प्यारी सी धूप पूरे आंगन में फैली हुई थी। इतना प्यारा मौसम देखकर रोहन को बहुत अच्छा लगा। लंदन में ऐसी धूप कम ही देखने को मिलती है। तभी गीता दीदी ने बताया कि यह रेड चिलीज के पिकल्स (अचार)बनाए जा रहे हैं। रोहन को देखने में बड़ा मजा आने लगा।उसने ऐसा कुछ पहले देखा नहीं था।गीता ने सबसे रोहन का परिचय कराया। रोहन के “हाय आंटी” कहने पर सब मुस्कुरा उठीं।
गीता दीदी ने धीरे से रोहन के कान के पास आकर कहा-”अब अंग्रेजी में शुरू मत हो जाना, यहाँ कोई अंग्रेजी नहीं समझता है, हिंदी बोलना जानते हो न…?” रोहन ने फिर हाँ में सिर हिलाया।गीता दीदी ने सब का परिचय कराया -”यह मेरी माँ है, यह माई, यह मंझली माँ, यह छोटी माँ”....
रोहन की आँखें हैरानी से फैल गयीं। गीता दीदी और बीनू की इतनी सारी मायें…? पूछने पर पता चला कि उनकी जॉइंट फैमिली है और सब साथ रहते हैं।गीता दीदी के पापा चार भाई हैं और चारों भाई और उनकी पत्नियाँ- सभी एक साथ एक ही घर में रहते हैं ।रोहन ने ऐसा कुछ न तो पहले सुना था, न ही देखा था। लंदन में तो अधिकतर सब अकेले ही होते हैं ।रोहन को बड़ा अच्छा लगा। मन में आया कि अभी फेसबुक या व्हाट्सएप पर कनेक्ट होकर अपनी मम्मी- डैडी को सब बता दे ….अपने फ्रेंड्स के साथ ऐसे अनुभव शेयर करें लेकिन यह सोच कर कि उसके पास न तो लैपटॉप है,न मोबाइल है.. वह खामोश रह गया.. यह सोच कर मायूस हो गया कि “शाम को जब मॉम-डैैड घर लौटेंगे तो उसे घर में नहीं देखकर कितने परेशान होंगे पर उस टाईम मशीन की सफलता के विषय में जानकर डैड खुश भी तो बहुत होंगे”रोहन मन ही मन सोचने लगा।
तभी, उस महिला ने पूछा -”कुछ खाया है तुमने या ऐसे ही घर से निकल आये हो.?.” अभी रोहन कुछ समझता और बोल पाता,उन्होंने गीता दीदी से कहा -”गीतू, इसे रसोई में लेकर चल,दोपहर के खाने का समय हो गया है..कुछ खा लेगा,पता नहीं कुछ खाया भी है कि नहीं इसने.?"
“क्या सोच रहे हो..?चलो ,खाना खाने का समय हो गया है..” गीता दीदी उसका हाथ पकड़ कर बरामदे पर ले गई।
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[3]
बरामदे से होकर रोहन एक बड़े से कमरे में पहुँचा।वहाँ लंबी-लंबी दरियाँ बिछी थीं।दरियों के आगे थोड़ी-थोड़ी दूर पर बड़ी-बड़ी ब्रॉस(पीतल) की थालियाँ और कटोरे सजा कर रखे हुए थे,पानी से भरे बड़े से ग्लास हर थाली के पास रखे हुए थे। गीता दीदी रोहन को बगल में लगे नल के पास ले गई।अपने और रोहन के हाथ-पैर धुलवाए और आकर दरी पर एक किनारे बैठ गई ।रोहन को भी अपने पास बैठा लिया। एक- एक कर घर के सभी सदस्य आने लगे।गीता दीदी के पिताजी, फिर उनके चारों भाई, गीता दीदी के दो बड़े भाई, तीन छोटी बहनें….सभी आकर हाथ- पैर धो कर बैठने लगे ।रोहन को देखकर पहले तो सभी चौंके पर जब गीता दीदी ने सबसे रोहन का परिचय कराया और उसकी शानदार अंग्रेजी बोलने की तारीफ की तो सब ने शांति से उसे स्वीकार कर लिया ।लगभग सभी को यही लगा कि शायद यह लड़का मानसिक रूप से अस्वस्थ है..यहीं कहीं अगल बगल के गाँव से घूमने आया होगा और गलती से रास्ता भटक कर उनके घर आ पहुँचा है। रोहन ने कई बार यह विश्वास दिलाने की कोशिश की कि वह फ्यूचर से आया है और लंदन में रहता है परन्तु, सबने उसे मानसिक रूप से बीमार ही समझा ।गीता दीदी के मँझले पापा उससे बार-बार पूछते रहे कि किस गांव से हो... तुम्हारे पिताजी या दूसरे रिश्तेदारों का नाम क्या है….वगैरह वगैरह..पर रोहन के यह कहने पर कि वह लंदन में रहता है और फ्यूचर से आया है... वह भी उसे मानसिक रोगी समझ कर मुस्कुराते हुए हामी भरते रहे।
जहाँ सब खाने के लिए एक साथ बैठे थे वहीं बगल में रसोई पक रही थी।बड़े से कमरे में मिट्टी के बड़े-बड़े दो चूल्हे जल रहे थे।एक पर शायद बड़ी सी हांडी में सब्जी गर्म की जा रही थी और दूसरे पर गरम-गरम रोटियाँ सेकी जा रही थीं। घर की कुछ औरतें बड़े-बड़े पौट में खाने के व्यंजन निकाल रही थीं और कुछ दरी के आगे रखी थालियों और कटोरियों में परोस रही थीं। रोहन को खाने और खिलाने का यह अनोखा तरीका बहुत अच्छा लगा ।लंदन में तो मम्मी खाना बना कर कैसेरोल में टेबल पर रख कर ऑफिस चली जाती हैं, रोहन को खुद ही माइक्रोवेव में खाना गर्म करके खाना पड़ता है। पर यहाँ तो एकदम चूल्हे से बनकर तुरन्त थाली में डाला जा रहा था।
”तो क्या ये लोग माइक्रोवेव वगैरह यूज नहीं करते…? चूल्हा भी अजीब तरह का है ,खड़े होकर खाना बनाने की जगह बैठकर खाना बनाया जा रहा है….बड़ा ही अजीब तरीका है कुकिंग का...पर इंटरेस्टिंग है…” रोहन ने मन ही मन सोचा।
तब तक उसकी थाली में भी व्यंजन परोसा जा चुका था ।गीता दीदी ने उसे खाने का इशारा किया ।
रोहन ने पूछा-” स्पून और फोर्क कहाँ है..?”
गीता दीदी ने हैरानी से पूछा-” यह क्या होता है..”?
जब रोहन ने इशारे से बताया तो गीता हँस पड़ी-”अरे हम लोग हाथ से ही खाते हैं ,हाथ से ही खाओ..खुद से खा लेते हो न..या मैं खिला दूँ..?"रोहन को मानसिक रोगी समझते हुए गीता दीदी ने पूछा।
रोहन ने एक दो बार रोटियाँ खाई थीं। प्रोफेसर विनोद एक अच्छे कुक भी थे और जब बर्गर,लोफ आदि से मन ऊब जाता, तो अक्सर खुद ही किचन में घुसकर भारतीय तरीके से रोटी-सब्जी बना लिया करते थे। रोहन इस तरह के व्यंजन से एकदम अनजान नहीं था। उसने नजर उठा कर देखा सभी खाना शुरू कर चुके थे।गीता दीदी की बात का हाँ में जवाब देते हुए रोहन ने भी हाथ से खाना शुरू कर दिया...। खाना बहुत ही स्वादिष्ट था... रोहन ने बहुत चाव से खाना खाया ।वैसे भी उसे बहुत भूख लग रही थी। खाते- खाते वह बार-बार नजर उठा-उठा कर सबको बारी-बारी देख रहा था ….सभी लोगों का एक साथ बैठकर भोजन करना, एक दूसरे से इधर-उधर की बातें करना और एकदम ताजा गर्म खाना परोसा जाना उसे इतना अच्छा लग रहा था कि वह मंत्रमुग्ध था।"काश कि ऐसे ही लंदन में भी सब लोग साथ रहते और साथ ही खाते... कितना अपनापन सा लग रहा है... आत्मीयता कितनी बढ़ जाती होगी…”वह मन ही मन सोचने लगा।
खाना खाकर सभी अपने-अपने काम में लग गए। रोहन गीता दीदी के साथ फिर से उसी कमरे में आ गया ,जहाँ बेड के नीचे से दीदी ने उसे निकाला था।
“चलो लेट जाओ... थोड़ा आराम कर लो... दीदी बेड पर लेटती हुई बोली। रोहन दीदी के पास ही लेट गया। बेड भी अजीब सख्त था ।कहाँ रोहन का लंदन वाला गद्द्देदार बिस्तर और कहाँ ये बेड..?रोहन को घर की याद आने लगी ।”पता नहीं मॉम- डैड उसे घर में नहीं पाकर कितने परेशान होंगे ….न जाने वह वापस कैसे जा पाएगा…?रोहन सोच -सोचकर उदास हो गया ।
तभी गीता दीदी ने कहा-” बीनू पढ़ाई में बहुत अच्छा है, अंग्रेजी भी जानता है.. स्कूल से लौटकर तुम्हें यहाँ देखेगा तो खुश हो जाएगा ,उसके साथ मंदिर के पास वाले मैदान में जाकर खेलना ….एक बड़ा सा सुंदर तालाब भी है वहाँ…”
“ दीदी आप अपना मोबाइल दो न, डैड से बात करनी है "रोहन बात काटते हुए बोला..। “क्याsss... क्या दूँ..?” दीदी एकदम से चौंकती हुई बोली।
"मोबाइल... आई मीन...सेलफोन…” रोहन ने कहा ।
“यह क्या होता है…? गीता दीदी ने पूछा ।
सुनकर अजीब लगा रोहन को…”इतनी बड़ी है दीदी और मोबाइल नहीं समझती”..उसने मन ही मन सोचा। अचानक उसे ध्यान आया कि वह तो पास्ट में आया हुआ है..तो क्या मोबाइल का आविष्कार ही नहीं हुआ है अभी तक….? इतना पीछे आ गया है क्या….?हो सकता है... तभी गीता दीदी मोबाइल समझ नहीं पा रही है….” रोहन के चेहरे पर मुस्कान सी आ गई….वह एकदम से उठ कर बैठ गया... “दीदी, आपको पता है..आज से कुछ सालों के बाद एक ऐसा डिवाइस आने वाला है, जिससे आप दुनिया के किसी भी कोने में बात कर सकती हैं, आपने टीवी पर ऐड तो देखी होगी न….?”
“ टीवी…?” अब यह क्या है…?”दीदी फिर चौंकी..।
रोहन ने अपना सिर पीट लिया..” ओ माई गॉड, तो क्या अभी टीवी भी आना बाकी है…?”
रोहन ने दीदी को टीवी के विषय में बताना शुरू किया …"जैसे आप थियेटर में फिल्म देखती हैं न ,वैसे ही छोटा सा स्क्रीन आपके घर पर होगा ।दुनिया की हर घटना आप उस स्क्रीन पर देख सकती हैं,फिल्में देख सकती हैं,गाने सुन सकती हैं…”
दीदी ने एकदम से टोका-” तुम्हें क्या मैं दुनिया की सबसे बड़ी बेवकूफ लगती हूँ…? कुछ नहीं कह रही हूँ, तो जो मन में आ रहा है बोले जा रहे हो….भला ऐसा भी कहीं होता है…? मैं घर में बैठी रहूँ और दुनिया भर की चीजें यहीं से देख लूँ... कुछ नहीं कह रही हूँ तो देख रही हूँ कि मुझे उल्लू ही समझ बैठे हो…?..बच्चू.. उम्र में बहुत बड़ी हूँ तुमसे…. मुझे बुद्धू समझने की गलती ना करना... चुपचाप सो जाओ बीनू स्कूल से आ जाए तो उसके साथ जाकर बाहर खेलना…”
“पर दीदी, मैं सच कह रहा हूँ.. मैं आपके फ्यूचर से आया हूँ न ,इसीलिए बता पा रहा हूँ। कुछ सालों के बाद टीवी आ जाएगा और फिर जब मोबाइल और स्मार्ट फोन आ जाएगा तो टीवी के सारे प्रोग्राम आप छोटे से डिवाइस पर हाथ में रखे हुए देख सकती हैं... दुनिया में कहीं भी, किसी से भी ,कभी भी बात कर सकती हैं ….यह सारी बातें सेटेलाइट से कनेक्टेड होने के कारण आप कभी भी, कहीं भी देख सुन सकती हैं…”
रोहन अपनी दुनिया की सारी बातें बताता रहा और गीता अवाक् होकर उसकी बातें सुनती रही... मन ही मन सोचने लगी..” इस छोटे से बच्चे की मनः स्थिति सचमुच बहुत गंभीर है, लगता है,किसी खतरनाक बीमारी से ग्रसित है…” गीता को रोहन पर दया आने लगी--”बेचारा..”
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[4]
बीनू जब स्कूल से घर लौटा तो अपने कमरे में रोहन को पाकर पहले तो खूब गुस्सा हुआ पर दीदी के समझाने पर कि यह लड़का शायद मानसिक रूप से पीड़ित है और रास्ता भटक गया है,रोहन से उसने दोस्ती कर ली और उसके साथ अपना कमरा शेयर करने को तैयार हो गया। बीनू को रोहन अपने किसी दोस्त जैसा ही लगा। वह कपड़े बदल कर रोहन को साथ लेकर मंदिर के सामने वाले मैदान में खेलने चला गया।रोहन के लिए यह नया अनुभव था। आज तक वह खेलों को वीडियो गेम के जरिए या लैपटॉप पर ही एंजॉय करता रहा था। इतने बड़े से मैदान में जाकर दोस्तों के साथ ऐसे खेलना---- रोहन को मजा भी आ रहा था पर कहीं वह अपने लैपटॉप और मोबाइल जैसी चीजों को मिस भी कर रहा था क्योंकि उसके मन में था कि अगर उसका मोबाइल या लैपटॉप उसके पास होता तो वह उसमें तस्वीरें कैद कर मम्मी-डैडी और अपने दूसरे दोस्तों को दिखा सकता था। वहाँ सबके साथ खेलते हुए जब भी वह दोस्तों से लैपटॉप, मोबाइल या फेसबुक के विषय में पूछता तो सब उसकी तरफ देख कर खूब हँसते और उसका मजाक बनाते थे।
“काश, मैं अपना स्मार्टफोन साथ लेकर आता...इन लोगों को तो मेरी बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा है। अगर मैं इन्हें फेसबुक और इंटरनेट के जरिए फ्यूचर दिखा पाता तब शायद यह मुझ पर विश्वास करते कि मैं वाकई उनके फ्यूचर से आया हूँ”... रोहन मन ही मन परेशान हो रहा था पर क्या हो सकता था। वापस फ्यूचर में जाकर ऐसी चीजें लेना और फिर वापस यहीं पास्ट में आना... नहीं नहीं…..यह कैसे हो पाएगा? पता नहीं, मैं कभी वापस जा भी पाऊँगा या नहीं”..... रोहन काफी परेशान सा हो गया।
इधर सब बच्चे भागा- दौड़ी में लगे थे।कोई गेंद से खेल रहा था तो कोई गिल्ली डंडा खेल रहा था….थोड़ी ही देर में रोहन भी सब कुछ भूलकर खेल में रम गया। उसे बड़ा मजा आ रहा था। यह गिल्ली डंडा भी कितने मजे का खेल था। उसने अपने पापा से इसके बारे में सुना तो था पर न तो कभी खेला था, न ही खेल की समझ थी। पर, चंद मिनटों में ही उसे इस खेल की बारीकियाँ समझ आने लगी थीं।परन्तु,लड़कों की सारी बातें वह समझ नहीं पा रहा था क्योंकि वे सब इतनी तेजी से हिंदी में बोल रहे थे कि रोहन को कई बातें समझ ही नहीं आ रही थीं। बाकी लड़के भी रोहन की अंग्रेजी शब्दों वाली हिंदी सुनकर कभी तो हँसते थे कभी उसे मानसिक तौर पर बीमार समझ कर नजरअंदाज कर देते थे। काफी देर तक खेलने के बाद एक -एक कर सभी बच्चे अपने-अपने घर जाने लगे। रोहन भी बीनू के साथ घर वापस आ गया। माँ पहले से ही दो ग्लासों में दूध लिए इंतजार करती मिली। बीनू और रोहन हाथ पैर धो कर दूध पीने लगे। दूध पीते -पीते रोहन ने बीनू से पूछा-” किस ब्रांड का मिल्क है ये..इज इट टोन्ड मिल्क”?
“मतलब…?”बीनू ने पूछा। इससे पहले रोहन कुछ कहता गीता दीदी बोल पड़ी- वह अभी आकर बस खड़ी ही हुई थी.."हमारे घर के पिछवाड़े में गाय घर है। वहाँ चार गायें और तीन भैंसें खड़ी हैं। उनके बच्चे भी हैं साथ में... यह जो दूध है न, उनमें से ही एक गाय का है... उसका नाम है भूरी... बड़ी प्यारी है हमारी भूरी… "
“यूं मीन कॉउ एंड बफैलो..?"--- रोहित ने पूछा।
“ हाँ भाई हाँ"---इस बार बीनू बोला।
“पहले दूध खत्म करो फिर चलकर भूरी और दूसरी गायों से मिलना”-- गीता दीदी ने कहा। इतना सुनना था कि रोहन ने एक ही सांस में सारा दूध पी लिया। वह गाय और भैंसों को देखने के लिए उतावला हो उठा।
दूध खत्म करके बीनू और गीता दीदी के साथ रोहन घर के पिछवाड़े में बना गाय-घर देखने गया। गाय-घर थोड़ी ही दूरी पर था।टीन के शेड से बने लंबे से गाय-घर में चार गायें और तीन भैंसें बँधी थीं। गीता दीदी को देख कर आगे खड़ी गाय जोर-जोर से रंभाने लगी। दीदी भी दौड़ कर उसके पास गई... हर गाय और भैंस के आगे एक बड़ी सी नाद बनी हुई थी। दीदी और बीनू पास में रखी घास उठा-उठा कर नादों में डालने लगे। रोहन को बड़ा अच्छा लगा। वह भी थोड़ी-थोड़ी घास उठा-उठा कर बीनू और गीता दीदी की तरह गाय और भैंस के आगे डालने लगा। दीदी रह-रहकर गायों और भैंसों के मुँह पर और बदन पर हाथ फेरतीं और प्यार से पुचकारतीं। उनकी पुचकार सुनकर गाय-भैंस अपनी पूँछ हिला-हिला कर अपना प्यार जता रहे थे। फिर,दीदी ने रोहन से परिचय कराया--” रोहन यह भूरी है, वह गौरी, बगल में राधा और उसके आगे वाली लक्ष्मी... यह जो बच्चा है ना…भूरी का बेटा है... डबुआ... भैंसों में वह कमली है, वह चमेली, और बगल वाली काली…. चमेली और कमली के एक-एक बच्चा है…. भीमा और कालू….. काली के बच्चा होने वाला है, इसलिए वह अभी दूध नहीं देती है, गाभिन है ना….”
"गाभिन….? यह क्या होता है”.. रोहन गीता दीदी की आधी बात ही समझ पाया।
“अरे गाभिन मने कि उसे बच्चा होने वाला है”---द काऊ इज प्रेगनेंट.." दीदी ने समझाया।
रोहन के लिए यह सब कुछ एकदम नया अनुभव था। वह ध्यान से सभी गायों,भैंसों और उनके बच्चों को देखने लगा। पहली बार उसे गायों और भैंसों के प्रति प्यार उमड़ रहा था… अब तक तो बस,वह अपने कुत्ते ब्रूनो को ही चाहता था, लेकिन आज से गाय, भैंस और उनके बच्चे भी उसकी चाहत में शामिल हो गए थे। वह मन ही मन सोचने लगा.."तभी इंडिया सबसे अनोखी कंट्री है,.. आदमी तो आदमी यहाँ तो सब जानवरों को भी परिवार की तरह रखते और मानते हैं”... रोहन को अपने अंदर भारतीयता का अंश होने पर गर्व महसूस होने लगा।
तभी राधे श्याम ने आकर बताया कि वह बाजार राशन का कुछ सामान लेने जा रहा है, “कुछ आप लोग के लिए भी लाना है क्या.. माताजी पूछ रही हैं... राधेश्याम ने कहा।
“ नहीं, मुझे तो कुछ नहीं चाहिए”... दीदी बोली, “पर मुझे एक किताब खरीदनी है”-- बीनू अचानक बोल पड़ा। आज स्कूल में मास्टर साहब ने किताब लाने की खास हिदायत दी है। मेरे पास वह किताब नहीं है, कल नहीं लेकर गया तो डांट पड़ेगी। सबके सामने सजा भी मिल सकती है"-बीनू ने कहा।
“कैसी किताब..? मुझे तो समझ में नहीं आएगा बीनू बाबू.. आपको मेरे साथ बाजार चलना पड़ेगा.."-राधे श्याम ने कहा।
“व्हाट्सएप पर फोटो भेज दो। शॉपकीपर खुद ही दे देगा”-- रोहन ने सलाह दी।
“क्याssss…???”बीनू, गीता दीदी और राधेश्याम तीनों एक साथ बोल पड़े।
रोहन ने कई बार समझाया पर उसकी बात किसी के पल्ले नहीं पड़ी। रोहन ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी।
बीनू और राधेश्याम के साथ रोहन भी बाजार पहुँचा। उसकी आँखों में जो बाजार की तस्वीर थी... वैसा वहाँ कुछ भी नहीं था। लंदन के हाई-फाई मार्केट बिजली की चमकती लाईटों से भरे होते थे...तरह- तरह की चीजें, बड़ी-बड़ी दुकानें, चौड़ी चौड़ी सड़कों पर चौबीसों घंटे दौड़ते-भागते गाड़ी और मोटर….लेकिन,यहाँ का मार्केट तो अजीब था।छोटी-छोटी चार-पाँच दुकानें थीं और इधर उधर कुछ खाने-पीने के ठेले । दो - चार फुग्गे वाले, खिलौने वाले….सड़क भी आधी कच्ची ,आधी पक्की…. कई जगह छोटे बड़े गड्ढे...दीवारों पर हरे-नीले पेंट से कलर करके हिंदी में सामान के प्रचार लिखे थे । रोहन को हिंदी ठीक से पढ़नी नहीं आती थी..बस, थोड़ा बोल लेता था.. इसलिए क्या लिखा है यह तो नहीं पढ़ पाया पर साबुन का चित्र बना देखकर समझ गया कि किसी सोप का ऐड है ।
तीनों एक दुकान पर जाकर खड़े हो गए ।बीनू के पापा वहाँ के बड़े आदमी प्रतीत होते थे, इसीलिए रोहन ने देखा कि बीनू को देख कर दुकानदार एकदम से खड़ा हो गया और उन्हें बैठने का इशारा करने लगा। फिर, एक शीशे के डिब्बे से निकालकर टॉफी खाने को दी। रोहन ने टॉफी ले तो ली पर हाइजीन का ख्याल करके टॉफी खाई नहीं... सोचा “गीता दीदी को दे दूँगा”... राधेश्याम ने एक पर्ची निकाली और दुकानदार को सामान लिखवा दिया। दुकान वाला सामान निकलवाने में व्यस्त हो गया। रोहन को सामान खरीदने का यह तरीका बड़ा अच्छा लगा। लंदन में तो लगभग हर डिपार्टमेंटल स्टोर में सेल्फ सर्विस ही होती है।तब तक बीनू ने किताबें भी खरीद ली थीं। फिर,तय हुआ कि जब तक सामान निकाले जा रहे हैं, पास के रेलवे फाटक तक घूम आया जाए। रेलवे फाटक थोड़ी ही दूर पर था ।तीनों जब वहाँ पहुँचे तो फाटक बंद था ।शायद कोई ट्रेन आने वाली थी।वे वहीं खड़े होकर इंतजार करने लगे ।तभी जोर की सीटी सुनाई दी। अन्य कुछ बच्चे भी वहाँ पहले से जमा थे । वे भी उछल-उछल कर तालियाँ बजाने लगे ।तभी ट्रेन नजदीक आती दिखी। राधेश्याम ने दोनों बच्चों को थोड़ा पीछे खींच लिया ।अरेsss...यह क्या...ट्रेन के इंजन से तो काला-काला धुआं निकल रहा था। इंजन भी गंदा ,काला और डरावना सा लग रहा था। रोहन बड़े आश्चर्य से देखने लगा। एक के बाद एक कर के करीब चालीस डिब्बे आँखों के आगे से निकलते रहे... रोहन को याद आया लंदन की ट्यूब ट्रेन तो इससे बिल्कुल अलग थी। अंदर और बाहर दोनों तरफ से साफ-सुथरी, चमकदार... दरवाजे भी ऑटोमेटिक थे।तो क्या पहले ऐसी ट्रेनें हुआ करती थीं... या केवल इंडिया में ही ऐसी ट्रेन होती है ? रोहन सोच में पड़ गया।
ट्रेन जा चुकी थी और फाटक खुल चुका था। तभी दुकान वाले लड़के ने आकर बताया कि सामान गाड़ी में रख दिया गया है। राधेश्याम ने कहा अब वापस चलते हैं, मालकिन राह देख रही होंगी.. फिर किसी दिन आकर घूम लेंगे ।तीनों वापस दुकान के पास आ गए ।सामान जिस गाड़ी में रखा था उसे देखकर तो रोहन हैरत में पड़ गया-
”यह कैसी गाड़ी है”?... उसने बीनू से पूछा ।
“अरे यह बैलगाड़ी है...बैलगाड़ी..”बीनू ने बताया।
”बैलगाड़ी..?...यू मीन बुल्लौक कार्ट..”?...
”हाँ भाई हाँ”--बीनू ने रोहन को हैरान होते देख कर कहा..”क्यों पहले कभी देखा नहीं क्या…?” बीनू और राधेश्याम ने रोहन का मजाक बनाते हुए कहा ।
रोहन ने कुछ नहीं कहा। उसने सचमुच बुल्लौक कॉर्ट यानि बैलगाड़ी सिर्फ किताबों में पढ़ी थी,चित्रों में देखी थी..सामने से इतनी नजदीक आकर बैलगाड़ी कभी नहीं देखी थी। वह हैरत से चारों तरफ घूम घूम कर उसे देखने लगा। लकड़ियों के फट्टे और बड़े-बड़े टुकड़ों को बाँधकर गाड़ी बनाई गई थी ।चक्के भी लकड़ी के बने हुए थे ।आगे दो हट्टे-कठ्ठे बैल बंधे थे ,जिनके कंधों पर बैलगाड़ी का अगला सिरा रखा गया था। बैल के गलों में घंटियां बंधीं थीं,जो उनके सिर हिलते ही टुनटुन कर बज उठती थीं ।रोहन को यह गाड़ी बड़ी दिलचस्प लगी ।सामान रखा जा चुका था । पीछे से राधेश्याम ,बीनू और रोहन चढ़कर बैठ गए ।गाड़ी वाला आगे आकर बैठ गया। रोहन को बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि इस गाड़ी में स्टीयरिंग तो है नहीं, फिर ड्राइवर चलायेगा कैसे …?तभी गाड़ी वाले ने एक पतली सी डंडी दोनों बैलों की पीठ पर दे मारी और हुर्र.हुर्र...हुर्र...जैसी अजीब सी आवाज निकालने लगा।कोचवान की आवाज सुनकर बैल चलने लगे और साथ ही गाड़ी भी चल पड़ी...। टुनटुन की आवाज के साथ कच्ची सड़कों पर गड्ढों से गुजरती हुई उछलती-कूदती गाड़ी चली जा रही थी ।रोहन के आनंद का तो ठिकाना नहीं था। ऐसी अजीब सवारी तो उसने कभी सपने में भी नहीं की थी। कार, ट्रेन,बाइक, एरोप्लेन सब की सवारी की थी,पर... आज जो मजा उसे बैलगाड़ी में आ रहा था ...वह तो शब्दों में बताना मुश्किल था ।रह- रह कर वह अपना लैपटॉप और स्मार्टफोन मिस कर रहा था ।
”अभी स्मार्टफोन होता तो मैं फोटो खींच कर डैड को भेजता.. क्या मजे की सवारी है...यह बुल्लौक कार्ट भी कैसी मजेदार चीज है।” फोटो का ध्यान आते ही उसने बीनू से कहा--” क्यों ना हम इस सवारी की फोटो खींच लें... तुम्हारे पास कैमरा तो होगा ना…” रोहन की आंखें चमक रही थीं।वह फोटो के लिए बड़ा ही उतावला होने लगा था। राधेश्याम ने कहा--”सवारी करते हुए कैसे तस्वीरें खींची जा सकती हैं..फोटोग्राफर तो एक जगह ही खड़ा रहेगा ना…”
रोहन ने तुरंत जवाब दिया..” मोबाइल से तो हम खुद ही फोटो खींच सकते हैं..”
“क्याsss… मुबइल..?” राधेश्याम और बीनू एक साथ बोल पड़े।
“ अरे नहीं... मोबाइल..” रोहन ने जोर से कहा, फिर अचानक उसे ध्यान आया कि यह तो समझ ही नहीं पाएँगे।इसीलिए उसने आगे बात नहीं बढ़ाने में ही भलाई समझी। रोहन को अचानक अपने मम्मी-डैडी की बहुत याद आने लगी।
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[5]
उधर लंदन में प्रोफ़ेसर विनोद जब घर पहुँचे तो दरवाजा अंदर से लॉक था। उन्होंने डोर बेल बजाई। मन ही मन सोच रहे थे--”आज रोहन को टाइम मशीन टेस्ट करके दिखाऊँगा।पहले मैं खुद पास्ट में जाकर देखूँगा, फिर वापस आकर रोहन को अपने अनुभव बताऊँगा।अगर सब ठीक रहा तो रोहन और मैं-- हम दोनों पास्ट में जाकर देखेंगे कि भारत जब सोने की चिड़िया था... तब वहाँ क्या खास था..?.. क्या-क्या विशेषताएँ थीं,जो आज नहीं हैं...। कितना गौरवशाली इतिहास रहा है भारत का... भारत का इतिहास रोहन को जरूर जानना चाहिए। वहाँ की संस्कृति,वहाँ के रहन-सहन,वहाँ के खान-पान…..आखिर रोहन को भी अपनी सांस्कृतिक धरोहर के बारे में पता होना चाहिए ….मैं तो लंदन में ही रह गया...बड़े होने पर कभी रोहन को भारत नहीं ले जा सका...लंदन की संस्कृति को वह अच्छी तरह समझता है …पर,भारतीयता को भी जानना आवश्यक है... आखिरकार पिता की जड़ें भी तो उसे मालूम होनी चाहिए”---सोचते- सोचते प्रोफेसर विनोद थोड़े उदास से हो गए ।लंदन में रह तो रहे थे पर अपना देश, अपने लोग, अपना गांव-- सब उन्हें बहुत याद आता था।बस, अंदर एक वैज्ञानिक विनोद बैठा था...कुछ नया करने का एक जुनून,जिसे लंदन में अपनी प्रतिभा साबित करने का मौका मिल रहा था... वही अक्सर उन्हें लंदन छोड़कर जाने से रोकता था। रोहन की मॉम, लीजा भी लंदन में बस जाने की एक बड़ी वजह थी। प्रोफेसर विनोद लीजा को बहुत चाहते थे और वह अपना जॉब छोड़कर नये देश में जाने के लिए तैयार नहीं थी। इसके अतिरिक्त, प्रोफेसर साहब की सैलरी ,प्रेस्टीजियस इंपीरियल कॉलेज की नौकरी आदि कुछ ऐसी वजहें थीं कि विनोद लंदन के होकर ही रह गए थे।वह रोहन के अंदर अपने देश के संस्कारों को पनपते हुए देखना चाहते थे ..इसलिए, भारत जाने का कई बार प्रोग्राम बनाया पर कभी अपनी खोज पर काम करने की वजह से... कभी रोहन के स्कूल की वजह से….तो कभी लीजा को छुट्टी न मिलने की वजह से उनका जाना कैंसिल होता रहा। हालांकि,रोहन को वह अक्सर भारत की कई बातें बताते रहते थे।"एक बार यह टाइम मशीन टेस्ट कर लूँ ,फिर रोहन को भारत का पास्ट, प्रेजेंट सब दिखाऊँगा”... प्रोफेसर विनोद ने मन ही मन में सोचा ।
बार-बार डोर बेल बजाने पर भी जब दरवाजा नहीं खुला,तो, प्रोफेसर विनोद ने सोचा कि लगता है रोहन बड़ी गहरी नींद में सो रहा है। अंदर से ब्रूनो के भौंकने और दौड़-दौड़ कर दरवाजे के पास आने की आहट साफ सुनाई दे रही थी। प्रोफेसर साहब ने जेब में लॉकड दरवाजे की चाबी निकालने के लिए हाथ डाला, पर चाबी उनकी जेब में नहीं थी ।प्रोफेसर को याद आया कि चाबी तो लिजा ले कर गई है... वह आज जल्दी आने वाली थी... तो क्या वह भी अभी तक नहीं लौटी…? प्रोफेसर विनोद ने मोबाइल निकालकर रोहन को फोन लगाया। घंटी बजती रही…. दो बार, तीन बार,... हर बार रिंग होती रही पर रोहन ने फोन नहीं उठाया ।”शायद रोहन गहरी नींद सो गया है”---उन्होंने मन ही मन में अनुमान लगाया ।वह उसकी नींद खराब नहीं करना चाहते थे इसीलिए प्रोफेसर विनोद ने लिजा को फोन लगाया ।थोड़ी देर रिंग हुई फिर किसी ने काट दिया ।तभी व्हाट्सएप पर मैसेज दिखा…” आई एम बिजी विद सम अर्जेंट वर्क…. विल टॉक टू यू लैटर”..। प्रोफेसर विनोद ने व्हाट्सएप पर ही मैसेज भेजा…”आई एम बैक होम एंड स्टैंडिंग आउटसाइड…. डू यू हैव की विथ यू…?”
पुनः मैसेज आया…”की इज बीनिथ द डोर मैट, रोहन इज एट होम”.....।प्रोफेसर विनोद ने डोर मेट के नीचे से चाबी निकालकर दरवाजा खोला ।
अंदर घुसते ही ब्रूनो दौड़कर आया और भौंकता हुआ उनसे लिपट गया ।प्रोफेसर विनोद को आश्चर्य हुआ क्योंकि छुट्टी के दिन जब रोहन घर पर होता था, ब्रूनो उसी से चिपका रहता था..। जहाँ- जहाँ रोहन जाता, ब्रूनो भी किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह उसके पीछे-पीछे चलता रहता…. रोहन जब अपने रूम में पढ़ता या सोता तो ब्रूनो भी वहीं बैठा रहता। विनोद और लीजा के लाख बुलाने पर भी वहाँ से टस से मस नहीं होता था ।”पर आज क्या हुआ….? ब्रूनो इस तरह क्यों भौंक रहा है... ?दौड़कर आ भी गया.. वैसे तो हजार बार पुकारने पर भी रोहन का कमरा नहीं छोड़ता है..? प्रोफेसर विनोद थोड़े चिंतित से हो गए ...”कहीं रोहन की तबीयत तो खराब नहीं हो गई”..... चिंतित होते हुए प्रो.विनोद रोहन के कमरे की तरफ लपके…. पर वहाँ तो रोहन नहीं था। उन्होंने सोचा -”शायद बाथरूम में होगा"..बाथरूम का दरवाजा आधा खुला था, विनोद ने रोहन-रोहन पुकारते हुए बाथरूम के दरवाजे पर नॉक किया।अंदर से कोई आवाज नहीं आने पर खोल कर देखा तो रोहन वहाँ भी नहीं था। विनोद घबरा गए --दरवाजा अंदर से बंद था तो रोहन कहाँ गया होगा ? एक पल के लिए तो उनका दिमाग घूम गया---”कहीं किसी ने किडनैप तो नहीं कर लिया”?.. इधर लंदन में आतंकी घटनाएँ भी बढ़ रही थीं। प्रोफेसर विनोद इसीलिए तो अपना प्रोजेक्ट सबसे छुपाकर कर रहे थे। उन्होंने एक- दो बार जोर-जोर से रोहन को आवाज दी, पर कोई जवाब नहीं पाकर सचमुच चिंतित हो गए। रोहन के एक-दो दोस्तों के फोन नंबर उनके पास थे।उन्होंने तुरंत रोहन के दोस्तों से बात की पर उन्हें भी कुछ पता नहीं था। लीजा किसी अर्जेंट मीटिंग में थी तो उसे भी डिस्टर्ब करना उन्हें ठीक नहीं लगा.. बस, व्हाट्सएप पर एक मैसेज पोस्ट कर दिया और जवाब का इंतजार करने लगे---” रोहन इज नॉट एट होम...डू यू हैव एनी आइडिया, व्हेयर हैज ही गॉन…?”विनोद की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें... “फोन भी यहीं था, दरवाजा भी अंदर से बंद था,... आखिर वह गया कहाँ…?”
अचानक बाहर गाड़ी की आवाज सुनाई दी और अगले ही पल लिजा भागती हुई सी अंदर आई। एक कुर्सी पर हताश बैठे विनोद को देखते ही पूछने लगी--”हैज रोहन कम बैक? ही हैज नॉट टोल्ड मी एनीथिंग... ओ गॉड, प्लीज हेल्प माय सन….” बोलते- बोलते लिजा भावुक हो गई ।उसकी आंखें नम हो गई और बेचैनी से सारे घर की छानबीन करने लगी…..शायद रोहन अपने मॉम- डैड से मजाक कर रहा हो। सोफे पर उसका किंडल और लैपटॉप पड़ा था। उसे उठाकर प्यार से हाथ फेरती हुई लिजा रो पड़ी।
प्रोफेसर विनोद उसे समझाने लगे ।दोनों ने तय किया कि एक बार फिर से रोहन के दोस्तों से पूछ लिया जाए, आसपास के इलाकों में देख लिया जाए,फिर भी अगर पता नहीं चला तो पुलिस की मदद ली जाएगी ।
तभी जैसे एक बिजली सी कौंधी---”कहीं रोहन लैब में तो नहीं….?”प्रोफेसर विनोद लगभग दौड़ते हुए पिछवाड़े बनी लैब की ओर गए। लिजा भी पीछे-पीछे हो ली।वहाँ जाकर विनोद को सारा माजरा समझ में आ गया। कल रात जब रोहन को लेकर वहाँ से निकले थे,तब तो उन्होंने मशीन और उससे लगे बाकी के एपरेटस वगैरह कवर से ढक दिये थे, पर अभी तो ये सब खुले पड़े थे। कवर हटाया हुआ था, और...जलती-बुझती रेड लाईट साफ बता रही थी कि मशीन को ऑन किया गया है। “तो क्या रोहन ने….?...क्या वह सचमुच पास्ट में गया हुआ है….? कहाँ गया होगा…?” कैलकुलेशन कुछ कन्फ्यूजिंग था...लगता है बटन को कैलकुलेट करके नहीं बल्कि अंदाज से दबा दिया गया था। प्रोफेसर विनोद ने अपना सिर पकड़ लिया। कल उन्होंने रोहन को पास्ट में जाने का तरीका तो बताया था पर वापस आने की तरकीब नहीं बताई थी।
"अब क्या होगा….क्या रोहन पास्ट में ही रह जाएगा….क्या रोहन वापस नहीं आ पाएगा..व्येहर हैज ही गॉन..??लिजा ने प्रोफेसर विनोद को झकझोरते हुए चिल्लाकर पूछा।
प्रोफेसर विनोद ने लिजा को संभाल कर कुर्सी पर बैठाया--- “यूजुअली ,ही शुड हैव टेकन द फार्मूला फॉर कमिंग बैक...बट, इन सच सिचुएशन आई विल हैव टू डू समथिंग…”।
“विल यू बी एबल टू ब्रिंग हिम बैक…” लगभग रोते हुए लिजा ने पूछा।
“यस, अफकोर्स... बट आई विल हैव टू वर्क हार्ड फॉर दैट”--- प्रोफेसर विनोद ने लिजा को सांत्वना देते हुए कहा।
लिजा घुटनों के बल बैठ गई--- “आई बेग यू विनोद..प्लीज ब्रिंग माय सन एस सून एस पॉसिबल….आई वांट टू सी हीम….”लीजा रोये जा रही थी।
प्रोफेसर विनोद भी रोहन के लिए भावुक हुए जा रहे थे पर वापसी के फार्मूले के उपयोग के लिए उन्हें समय,धैर्य और एकाग्रता सब कुछ चाहिए था ।प्रोफेसर विनोद ने लिजा को धैर्य रखने को कहा। फिर उसे लेकर किचन में गए, पानी पिलाया और ब्रूनो के पास बैठने को कह कर फिर से लैब वाले कमरे में लौट आए और फार्मूले पर काम शुरू कर दिया।
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रात हो गई थी और घर के सभी सदस्य अपने- अपने काम से लौट आए थे। सभी आंगन में खुले आसमान के नीचे चौंकियाँ और कुर्सियाँ लगाकर बैठे गप्पें मार रहे थे। आंगन के चारों तरफ बड़े-बड़े लालटेन टँगे थे, जिनकी रोशनी से पूरा आंगन प्रकाशित था। रोहन को बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि ट्यूब और बल्ब की जगह यह क्या है..। पूछने पर गीता दीदी ने बताया कि “यहाँ हर दो घंटे पर बिजली चली जाती है, वैसे भी सबके घर में बल्ब और पंखे नहीं हैं। रात में तो लोग छतों पर या बाहर दालानों में सोते हैं..” रोहन के लिए यह अजूबा ही था।
“बिजली कहाँ चली जाती है..?” रोहन ने बड़ी मासूमियत से पूछा।
गीता दीदी हँस पड़ी-- “अरे बुद्धू, बिजली कम होगी तो थोड़ी- थोड़ी देर ही सब जगह दी जाएगी न…!”
“पर इंडिया में तो न्यूक्लियर एनर्जी है.. तो उससे तो इलेक्ट्रिसिटी बनायी जा सकती है…!” रोहन ने बड़ी सहजता से कहा।
उसकी यह बात सुनकर सभी हैरान होने लगे। “यह लड़का कैसी बड़ी-बड़ी बातें करता है…” बगल के चौधरी साहब ने कहा-- “कौन है यह..?” पूछने पर घर के लोग समझाने लगे कि यह पता नहीं किसी तरह रास्ता भटक गया है और मानसिक रोग का शिकार लगता है। ऐसी- ऐसी बातें बोलता है कि बड़े ज्ञानी पंडित भी न समझ पायें। “जब तक इसे कोई लेने नहीं आ जाता उसे संभालना तो हमारा फर्ज है न... सो कर रहे हैं….हमें भी पता नहीं है कि यह कौन है.. कहाँ से आया है…?”बड़े पापा बोले।
चौधरी साहब को उस प्यारे से बच्चे पर दया आने लगी--” बेचारा न जाने कैसे भटक कर आ गया है..”
रोहन को सबके साथ गप्पें मारना अच्छा तो लग रहा था पर रह- रह कर वह अपने मम्मी-डैडी के विषय में सोच-सोच कर परेशान हो रहा था-- पता नहीं वहाँ उनका क्या हाल होगा…? मॉम -डैड उसे घर में न पाकर कितने परेशान हो रहे होंगे... रोहन रुआँसा हो गया... उसे इस तरह टाईम मशीन नहीं टेस्ट करनी चाहिए थी... वापस जाने का तरीका भी तो नहीं मालूम…. पता नहीं अब क्या होगा... डैडी को बता देना चाहिए था…. पता नहीं ब्रूनो कैसा होगा…?उसे ब्रूनो की याद आने लगी। उसका सबसे प्यारा कुत्ता,दोस्त-- कुछ भी कह लो... पता नहीं उसने कुछ खाया भी है कि नहीं... रात में तो वहीं डाइनिंग टेबल के पास बैठकर उसी के साथ खाया करता था। मम्मी क्या कर रही होंगी….कितनी परेशान हो रही होंगी मेरे लिए... रोहन की आँखों में आँसू आ गए। तभी उसे याद आया कि डैडी कहते थे कि लंदन की टाइमिंग और इंडिया की टाइमिंग में 4:30 से 5 घंटे का फर्क होता है। इंडियन टाइम लंदन से 4:30 से 5 घंटे आगे चलता है। रोहन की आँखों में चमक सी आ गई। उसने वहाँ बैठे लोगों से पूछा--"व्हाट इज द टाइम नाउ…?”उसकी स्टाइलिश अंग्रेजी सुनकर सब मंत्रमुग्ध से उसकी तरफ देखने लगे। बातें बंद करके सबको अपनी तरफ देखते देखकर रोहन को अपनी गलती का एहसास हुआ कि उसने अंग्रेजी में क्यों पूछ लिया। उसने फिर कहा--”सॉरी, मैं टाइम जानना चाहता हूँ”-- रोहन ने दोबारा पूछा तो सब मुस्कुरा उठे। बड़े पापा ने कहा--” बेटा इतनी अंग्रेजी तो हमें आती है,तुम्हारे अंग्रेजी बोलने के अंदाज पर हम सब आकर्षित हैं। अभी रात के 9:00 बज रहे हैं।”
“ओके... थैंक्स.. अंकल--” रोहन ने कहा।बड़े पापा एक बार फिर मुस्कुरा उठे।
रोहन ने अंदाजा लगाया---”लंदन में इस वक्त 5:00 बजे होंगे शायद…. मम्मी बस आने ही वाली होंगी,मुझे घर में नहीं पाकर वो कितनी परेशान होंगी। अब रोहन वापस जाने के लिए उतावला होने लगा।
तभी राधे श्याम ने आकर बताया कि भोजन तैयार है सब लोग आकर खा लें। रोहन जैसे सपने से वापस आया…"रियली आई एम सोsss हंगरी”। इतनी दौड़-धूप रोहन ने अपनी याद में पहली बार की थी। उस पर से इंडिया का गरम क्लाइमेट... रोहन बहुत थक भी चुका था, भूख भी लग रही थी और नींद भी आ रही थी। बस सबसे पहले दौड़ कर रसोई घर की तरफ भागा, जहाँ सुबह सब ने खाना खाया था। अब तो उसे सब पता था... तो हाथ-पैर धोकर वहीं दरी पर जा बैठा। एक-एक कर घर के सभी सदस्य आने लगे।
खाना खाने के बाद रोहन बीनू के साथ उसके कमरे में सोने गया। घर के दूसरे बच्चे और मर्द छत पर सोने चले गए। बीनू रोहन को भी छत पर ले आया। बड़ी सी छत पर एक तरफ लाइन से कई गद्दे तकिए वगैरह लगे थे। सब एक लाइन से सोने लगे।रोहन भी बीनू की बगल में सो गया। लेटे हुए ऊपर चांद- सितारे देख कर गप्पें मारते रोहन को बड़ा अच्छा लग रहा था। “इतना मजा तो मेरे रूम के गर्म बिस्तर पर भी नहीं आता है..व्हाट अ ब्यूटीफुल क्लाईमेट हीयर"-- वह मन ही मन आनंदित होकर सोचने लगा। एक बार फिर मम्मी और डैडी की याद सताने लगी।
तभी बाहर कुछ हंगामा सा हुआ... पकड़ो…. पकड़ो... चोर…. चोर... सभी उठकर देखने के लिए लपके। बाहर के मैदान में कोई आदमी भागता हुआ दिखा। कुछ लोग उसे पकड़ने के लिए पीछे दौड़ रहे थे। बड़े पापा और मँझले पापा तेजी से नीचे की ओर लपके। बाकी सभी एक-एक कर नीचे जाने लगे। रोहन भी सबके साथ नीचे आ गया। मुख्य द्वार खोला गया। आदमी डरा-सहमा सा वहीं थोड़ी दूर पर खड़ा दिखाई दिया। लोग उसके हाथ से कुछ छीन रहे थे और वह उसे छुपाने की कोशिश में लगा था। पता चला, वह मंदिर की सीढ़ियों पर भीख माँगता था...आज कुछ भी नहीं मिला, इसीलिए ब्रेड चोरी करके अपनी भूख मिटाना चाहता था। बड़े पापा को बड़ी दया आई। अभी वह कुछ कहते, रोहन दौड़ कर रसोई घर गया और राधेश्याम से मांग कर रोटी-सब्जी वगैरह उस व्यक्ति के लिए ले आया। वह व्यक्ति बहुत खुश हुआ और अपनी भूख मिटा कर सब से माफी माँग कर चला गया। बाकी दूसरे लोग भी अपने-अपने घर चले गए। घर में सभी रोहन की तारीफ करने लगे ---”होशियार बच्चा है...जाति, धर्म कुछ नहीं पूछा,बस भूखा जान कर तुरंत खाना लाकर दे दिया…” बड़े पापा बोले।
“वह तो हम भी उसे खाना दे ही देते भैया…”छोटे पापा ने कहा।
बड़े पापा ---”अरे भूखा था बेचारा...हम तो दस घंटे उससे सवाल ही पूछते रह जाते…. कौन हो, किस जाति के हो, कहाँ से आए हो, हिम्मत कैसे हुई चोरी करने की…. वगैरह-वगैरह। इस लड़के ने उसकी जरूरत समझी और बिना हम सब से पूछे दौड़ कर खाना लाकर उसे दे दिया... उसका नरम,बड़ा दिल देखो…. किसी संस्कारी घर का लगता है…।”
“हां भैया,सुबह होने पर कल पता करता हूँ कि यह बच्चा किसका है,और कहाँ से आया है..?"-- छोटे पापा बोले।
एक बार फिर सब छत पर आकर अपनी-अपनी जगह लेट कर सोने की कोशिश करने लगे। रोहन भी आज खूब खेला था, इसीलिए लेटते ही उसे नींद आ गई।
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[7]
सुबह जब सब सो कर उठे, तो रोहन अपने सोने की जगह पर नहीं था। बीनू बोला--”लगता है रोहन नीचे जाकर सो गया है।” वह रोहन-रोहन पुकारता हुआ नीचे अपने कमरे में जाने लगा। बाकी सब लोग भी अपनी-अपनी दैनिक दिनचर्या में लग गए।
तभी बीनू बदहवास सा दौड़ता हुआ आंगन में आया--”गीता दीदी… गीता दीदी...रोहन को देखा है...वह तो कमरे में भी नहीं है..।”
“अरे बाथरूम में होगा या कहीं कोने में सो रहा होगा….पलंग के नीचे भी देख लेना, मैंने वहीं से उसे निकाला था”-- गीता दीदी हँसती हुई बोली।
सारे कमरों में देखा गया। बाथरूम, पलंग के नीचे, रसोईघर---सभी जगह ढूंढ लिया गया पर रोहन नहीं मिला। मुख्य द्वार बंद था, इसलिए बाहर भी जाने की गुंजाइश नहीं लग रही थी।
“आखिर रोहन गया तो गया कहाँ..? उसे जमीन निकल गई या आसमान खा गया... छोटा बच्चा है... कोई उसे उठाकर तो नहीं ले गया..पर वह तो बीनू और गीता के साथ छत पर सो रहा था.. बाकी सभी बच्चे तो यहीं हैं फिर रोहन….?"बड़ी माँ ने कहा।
घर में सभी जितने हैरान थे, उतने ही चिंतित भी-- “रोहन को ढूंढते-ढूंढते उसके घर से कोई आ गया तो हम क्या जवाब देंगे..?” बड़े पापा बोले।
“सच में कहीं हम पर कोई मुसीबत न आन खड़ी हो”--मँझले पापा बोले।
बीनू की माँ बोल पड़ी--”पर यह तो सोचो, वह छोटा बच्चा है... कहाँ चला गया होगा... कहीं छत से रात में गिर तो नहीं….?”बीनू की माँ आशंका से काँप उठी।
“अरे जल्दी से पीछे आगे सब देख लो राधेश्याम, कहीं ऐसा तो नहीं बाथरूम के लिए अकेला उठा हो और….”बड़े पापा डरते- डरते बोले।
सभी घर के चारों ओर खोजबीन करने लगे। कोई ऊपर जाकर देखने लगा, कोई बाहर जाकर इधर-उधर ढूंढने में लग गया... पर रोहन को न तो मिलना था... न ही मिला। तय हुआ कि पुलिस में खबर कर दी जाए।
“नहीं भैया, पुलिस वाले तरह-तरह के सवाल पूछेंगे...हमें महीनों थाने के चक्कर लगाने पड़ सकते हैं”-- छोटे पापा बोले।
“भले लगाने पड़ें... पर हम अपना फर्ज नहीं छोड़ सकते”---बड़े पापा ने सख्ती से कहा।
तभी, गीता दीदी एकदम से बोल पड़ी--” रोहन कहता था कि वह फ्यूचर से आया है, कहीं फ्यूचर में वापस तो नहीं चला गया…!”
एक पल के लिए खामोशी सी छा गई और अगले ही पल बड़े पापा बिगड़ गए--- “क्या वाहियात बात कर रही है..? ऐसा भी कभी सुना है…? अरे, बच्चा मानसिक रूप से बीमार था... उसे खोजना जरूरी है... चलो थाने।”
सब थाने जाने की तैयारी करने लगे।
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[8]
रोहन कि जब आँख खुली तो वह एकदम से चौंक पड़ा-- “मैं तो शीशे में बंद हूँ... किसने मुझे कैद किया…?”अभी बस सोच ही रहा था कि एक झटके से शीशा किसी ऑटोमेटिक दरवाजे की तरह खुल गया। सामने रोहन के मॉम- डैड और ब्रूनो दिखाई दे रहे थे।
“तो क्या मैं वापस आ गया…?” रोहन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसकी आँखें चमक उठीं। “मॉsssम”-- दौड़ता हुआ वह मम्मी से लिपट गया।
लिजा रो पड़ी--”माय सन... माय बेबी...व्य्हेयर व्य्हेयर यू माई सन...माई बेबी..” लिजा खुशी से रोहन को चूमती हुई बोली।
प्रोफेसर विनोद हैरान से अपनी मशीन को देख रहे थे। तभी रोहन बोल पड़ा---”डैडी कांग्रेचुलेशन..यू डीड इट... यू नो...आइ वेंट टू द पास्ट एंड यू कुड ब्रिंग मे बैक... यू नो...आई हैड गौन टू इंडिया एंड….”
लिजा ने बीच में ही बात काट दी-- “आई डू नॉट वांट टू लिसेन टू एनीथिंग...कम एंड हैव समथिंग फर्स्ट... यू मस्ट बी हंगरी बेबी..”
प्रोफेसर विनोद भी कहने लगे-- “आई विल लिसन टू द होल जर्नी...बट फर्स्ट यू कम इंसाइड होम... आई एम आल्सो हंगरी...यू मस्ट बी टायर्ड बेबी...।”अब वह काफी संतुष्ट दिख रहे थे।
रोहन मॉम-डैड के साथ लैबोरेट्री से बाहर आ गया।मन ही मन में सोचने लगा-- “कैसा सुनहरा सपना सा लग रहा है... विश्वास ही नहीं हो रहा है... मैं गूगल से पता करूँगा कि इंडिया में किस जगह मैं गया था...।” भूख तो उसे नहीं थी पर मॉम -डैड का मन रखने के लिए उसने थोड़ा सा खा लिया। फिर लिजा उसे अपने कमरे में ले आई--”बेबी, टु नाइट यू विल स्लीप विद अस ओनली...।”
“ओके... मॉम”---रोहन अपने मॉम -डैड के साथ उनके कमरे में आ गया।
पर यह क्या….? सामने की दीवार पर जो तस्वीरें लगी थी उनमें से एक तस्वीर तो वही थी, जो रोहन ने बीनू और गीता दीदी के कमरे में देखी थी। वही महिला और उसकी गोद में बीनू.. रोहन की आँखें आश्चर्य से फैल गयीं। उसे याद आया कि बीनू के कमरे में रखी तस्वीर उसे कुछ देखी-देखी सी लगी थी।उसने अपने डैडी से पूछा-”डैड, हू आर दे इन्साईड दिस पिक्चर…?”
प्रोफेसर विनोद हौले से मुस्कुराए और बोले--”दैट्स मी एंड माय मॉम बेबी..।”
“क्याsssss?”
एकदम से चौंक पड़ा रोहन। “तो क्या वह पास्ट में जाकर अपने दादा, दादी बुआ वगैरह से मिल आया है…?” उसे विश्वास नहीं हो रहा था। वह बीनू,जिसे वह अपना दोस्त समझकर खेल रहा था, उसके पापा का बचपन था…!!.... नहीं... नहीं…. ऐसा कैसे हो सकता है..? इतिहास थोड़े ही बदल जाएगा... शायद उसे भ्रम हो रहा हो...पर वही महिला, वही फोटो-- जो आँखों के सामने था, वह भ्रम कैसे हो सकता है…?”
“डैड, इज योर सिस्टर्स नेम गीता…?”रोहन ने कन्फर्म होना चाहा..।
“यस”... डैड ने कहा...शी इज फाइव ईयर्स ओल्डर दैन मी...बट हाउ डू यू नो…? यू हैव नेवर मेट गीता दीदी।” जवाब में रोहन मुस्कुराने लगा। उसने सोचा कि डैडी को सब कुछ बता दे कि वह तो सबसे मिलकर आ रहा है… पर इससे पहले वह कुछ बोलता डैडी ने कहा-- “लेट अस स्लीप बेबी...यू मस्ट बी टायर्ड….वी विल टॉक टुमौरो अबाउट योर एक्सपीरियंसेस”--प्रो.विनोद रोहन को मानसिक दवाब से राहत देना चाहते थे।
“ओके डैड..”.रोहन अपनी मम्मी और डैडी के बीच में लेट गया। डैडी-मम्मी रोहन को वापस पा कर निश्चिंत से थे, इसीलिए जल्दी ही सो गए। पर, रोहन की आँखों में नींद कहाँ थी…? रह- रह कर उसे सारी बातें याद आ रही थीं--- गीता दीदी...बीनू... गाय घर... छत का बिस्तर...रोहन ने टाईम मशीन के अद्भुत करिश्मे को जी लिया था।मन ही मन वह उस माहौल को याद करके झूम रहा था...तभी जैसे उसके अंदर से आवाज आयी - ओ माई ब्यूटीफुल फैमिली..आई लव यू..आई लव माय इंडिया”।
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समाप्त
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