Shraap ek Rahashy - 7 in Hindi Horror Stories by Deva Sonkar books and stories PDF | श्राप एक रहस्य... - 7

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श्राप एक रहस्य... - 7

शायद उसे किसी इंसान के "हां" का ही इंतजार था। वो बस इतना ही तो चाहता था कि कोई उसके इस घिनौने रूप को नजरअंदाज कर उसकी मदद के लिए आगे आये। और ये पहला इंसान था जावेद।

जावेद का हाल अभी भी बहुत बुरा था। उसे लिली की चिंता हो रही थी। लिली जो बेहाल सी इस वक़्त उनके ही वेन में बैठी थी। जावेद ने ग़ौर नहीं किया लेकिन इस वक़्त घिनु के चेहरे में संतुष्टि के सुंदर भाव नज़र आ रहे थे। उसके नुकीले दांत अंदर की तरफ़ धस गए थे। और वो हौले हौले मुस्कुरा रहा था।

इधर जावेद ने हकलाते हुए कहा, "तुम्हें कहाँ दर्द है..? बताओ, मैं दर्द मिटाने की कई तरह की जड़ी बूटियों के बारे में जानता हूँ।"

घिनु ने चेहरे के भाव बदले और लगभग गुर्राते हुए उसने कहा,मेरा दर्द कोई नहीं मिटा सकता। तुम बस एक काम करो, आज से डेढ़ साल पहले जन्मे किसी ऐसे बच्चे को ढूंढो जिसका जन्म दस बजकर बावन मिनट में हुआ हो, और हां उसे दर्द नहीं होता। इसी शहर में कहीं होगा वो, उसे ढूंढकर पांच दिनों के भीतर मेरे पास ले आओ, वरना वेन में बैठी वो लड़की मेरे कब्जे में भूखे प्यासे मर जाएगी।"


" क...क्या लिली, लिली को देख लिया तुमने..? कहाँ है वो..?" जावेद को यकीन नहीं हो रहा था, की यहां आने से पहले ही उसने लिली को अपने क़ब्जे में कर लिया था। उसकी मदद करने के अलावे अब उसके पास कोई चारा नहीं था। भारी कदमों से वो खेत से बाहर सड़क की तरफ़ चल पड़ा। भोर की हल्की उजास में उसने देखा वेन बिल्कुल खाली था। अगल बगल लिली की मौजूदगी के कोई निशान नहीं थे। लेकिन एक बात जो उसे बेहद अजीब लगी वेन के भीतर ना जाने कहाँ से बालों के अनगिनत गुच्छे आ गए थे। सीट पर इधर उधर फैले गंदे बालों के गुच्छे। इसका मतलब था लिली को यहां से लेकर जाने वाला घिनु नहीं था। जावेद ने उन बालों को गाड़ी से निकालकर फेंक दिया, लेकिन भूरे कीड़े उसकी वेन में कब्ज़ा जमा चुके थे। यहां से निकलकर जावेद सीधा पुलिस स्टेशन की तरफ़ दौड़ पड़ा। आख़िर उसने अपने दोनों दोस्त खोये है, और लिली लापता हो गयी है। लेकिन शायद उसने यहीं सबसे बड़ी ग़लती कर डाली थी।

वो टूटे फूटे दीवारों का एक बेहद पुराना कमरा था। सीलन की बदबूदार महक, और चमगादड़ों के मल मूत्र की बदबू से वो जगह अच्छी खाँसी घिनौनी हो रखी थी। लिली उस वक़्त वेन में बैठी अपने दोस्तों की राह ही ताक रही थी। जब घबराई हुई एक बच्ची उसके वेन के खिड़की में हाथ पीटने लगी। वो सात आठ साल की कोई बच्ची थी, अंधेरे में लिली बस उसकी काया ही देख पा रही थी। उसके चेहरे में वातावरण से भी अधिक अंधेरा था। कंधे से नीचे बाल थे और हाथों में एक गुड़िया थी। एक ऐसी गुड़िया जो बिल्कुल जीवंत लगती थी।

लिली पहले से डरी हुई थी लेकिन अब और अधिक घबरा गई। उसने धीरे धीरे खिड़की के कांच को नीचे उतारा। "कौन हो, क्या चाहिए। देखो इतनी रात को खेतों में अकेले घूमना अच्छा नहीं है। जाओ अपने घर चली जाओ....!!" लिली के आवाज़ में अभी भी घबराहट साफ़ झलक रही थी।

"तुम्हारे दोस्त वहां है, पुराने कुए के पास। एक पर किसी ने हमला कर दिया है। तुम्हें बुला रहे है, चलो मेरे साथ।" बिल्कुल सपाट तरीक़े से कहा था उसने। वो लड़की जो अब भी अंधेरे में दिखाई नहीं दे रही थी। दोस्त के घायल होने की बात ने लिली को और कुछ समझने की शक्ति नहीं दी। वो हड़बड़ाकर वेन से उतरी और उस छोटी लड़की के पीछे तेज़ी से चलने लगी। लेकिन उस लड़की की चाल ऐसी थी जैसे वो ज़मीन पर चल नहीं रही है, बल्कि ज़मीन से थोड़ा ऊपर हवा में तैर रही हो। लिली ने गौर किया था इसपर, और तभी से उसके जिस्म में एक अजीब सी झुरझुरी सी फैलने लगी थी। बहुत देर तक वो उसके पीछे चलती रही थी। लेकिन अब उसे लग रहा था कि वो कोई ग़लती कर रही है। भोर की हल्की रौशनी आने लगी थी, और इस रौशनी में लिली ने साफ़ देखा था उस लड़की के पैर वाक़ई ज़मीन से थोड़े ऊपर ही तैर रहे थे।

लिली के सीने में जैसे कोई बड़ा पत्थर आकर गिरा हो। वो आगे नहीं चल पा रही थी। वो वहीं रुककर एकटक उस लड़की को आगे जाते हुए देख रही थी। लेकिन थोड़ी दूर आगे जाकर वो रुक गयी। वो पीछे मुड़ी, और उसे सामने से देखकर लिली अपना होश खोने लगी। चेहरे की चमड़ी इतनी सफ़ेद जैसे वो न जाने कब से पानी में डूबी हो। आंखे बिल्कुल सफ़ेद और दांत जिसपर काई जम गई थी। होंठ तो गलकर ख़त्म होने ही वाले थे। नाक का भी यहीं हाल था। बाल अजीब तरह से उलझे हुए थे। और उसकी पहनी फ्रॉक से लगातार पानी टपक रहा था।

लिली बेहोश होने ही वाली थी। लेकिन उसकी बेहोशी में उसे समझ आया कि उसके ज़मीन में गिरने से ठीक पहले वो लड़की जो असल में प्रज्ञा की रूह थी। वो उसी तरह हवा में लहरा के तेज़ी से उसके करीब पहुँची और उसके पीछे पोनी की हुई चोटी को पकड़कर उसे घसीटते हुए अपने साथ ले गयी। लिली को जब होश आया तो वो उसी टूटे फूटे बदबूदार कमरे में थी।

किसी समय मे ये कमरा सुब्रोतो दास और उनकी धर्मपत्नी नीलिमा जी का हुआ करता था। आज जर्जरता के आख़िरी चरम पर था। और कहते है न खाली जगहें अक्सर शैतानों से भरा होता है। इस घर का हाल भी कुछ ऐसा ही हो गया था। घर के भीतर इधर उधर जंगली पौधे उग आये थे। आंगन में कभी बरगद का एक पेड़ था जिसकी जड़ो ने अब इस घर के फर्श को तोड़ दिया था, घर के भीतर जड़े फैल गयी थी।

लिली चुपचाप बैठी इन सब को देख रही थी। उसका दिमाग़ काम करना बंद कर चुका था। तभी घर से बाहर उसे एक बेहद डरावनी चीख की आवाज़ आयी, ऐसी चीख जैसे किसी के जले हुए हाथों में नमक रगड़ दिया गया हो। वो उठकर उस दिशा में दौड़ पड़ी। आवाज़ तो कुएं के भीतर से आ रही थी। हाँ, घिनु फ़िर एक बार फ़िर कुएं के भीतर बैठा रो रहा था।

उधर पता नहीं कुणाल बर्मन के ऊपर फ़िर से कौन सी मुशीबत आ गयी होगी...?

क्रमश :_Deva Sonkar