paramanovigyan avaigyanik kyon?? in Hindi Science-Fiction by गायत्री शर्मा गुँजन books and stories PDF | परामनोविज्ञान अवैज्ञानिक क्यों ??

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परामनोविज्ञान अवैज्ञानिक क्यों ??

इस विषय पर कोई भी विचार रखने से पहले मैं यह स्पष्ट करूँगी कि

परामनोविज्ञान / parapsychology यह psychology से match नहीं करता और कोई relevent भी नहीं है क्योंकि.... psychology, scientific research पर based है तो दूसरी तरफ parapsychology इस material world से अलग एक दूसरी दुनिया का subject है जैसे भूत-प्रेत , आत्मा की दुनिया , किसी घटना के घटित होने का पूर्वाभास होना इत्यादि !

यही वजह है कि कानूनी तौर पर यह विषय एक debate है मान्यता नहीं है , अंधविश्वास से ज्यादा तवज्जो नही है और पैरानॉर्मल एक्सपर्ट्स को गुमराह करने और गुमराह रहने वाले व्यक्ति के तौर पर भी देखा जाता है ।

क्योंकि विज्ञान के पास कोई प्रमाण नहीं है अलौकिक दुनिया का प्रैक्टिकल विज्ञान के उपकरण नही कर सकते !

उदाहरण के लिए मैं कहूँ कि बाबा वेंगा जिसने कई सारी prediction की थी उन भविष्यवाणी में कितनी तो सत्य सिद्ध हुई थी। मीडिया ने यह न्यूज़ कवर भी किया । तो हम कैसे झुठला सकते हैं इन्ही संकेतों को परामनोविज्ञान स्पष्ट करता है। इस उदाहरण का मकसद इतना है कि कैसे बाबा वेंगा को पूर्वाभास हुआ कि विश्वयुद्ध की स्थिति फिर से बनेगी और दुनिया मे उथल पुथल मचेगा शायद यह कोरोना काल के घटित होने का prediction हो सकता था। और भी बहुत कुछ ! जो विज्ञान नहीं खोल सकता !

कैसे और किस instrument से बाबा वेंगा को सब मालूम हुआ शायद विज्ञान पुनः अंधविश्वास कहेगा । क्योंकि जो दिख नहीं सकता उसे सत्य कैसे माने ।

यही सारी दुविधाएँ इस branch को psychology से अलग करती हैं ।


विवादों के श्रृंखला में मैं एक कड़ी और जोड़ूंगी ! वह है जादू टोना ,टोटके !

अक्सर माना जाता है कि यह परलौकिक ज्ञान और दूसरी दुनिया की समझ जादू टोना टोटकों और logical ज्ञान के बिना निराधार चीज है ऐसा करने से समाज मे कुरीतियाँ कम नहीं होंगी और कानून की चौखट पर न्याय की गुहार धीमी पड़ जाएगी। परलौकिक ज्ञान के माहिर लोगो के जरिये या ओझा बाबा हकीम के जरिये सिर्फ निराधार prediction दिया जाएगा जिससे सच को झूठ और झूठ को सच मे बदलने की मानवीय दुःप्रवृति गलत फायदा उठाएगी ।


क्योंकि हम देखते हैं कि हर दिन लोग चमत्कार चाहते हैं त्वरित जादू से सम्बन्धों में सुधार चाहते हैं किसी से पीछा छुड़ाना, किसी को वश में करना , दहेज की मांग, बेटे की लालसा जैसे कामों के लिए लोग गलत तांत्रिक का सहारा लेते हैं । और बुराई को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते !

यदि यही सहज और आसान तरीका होता तो प्रभु राम को पुल बनाकर लंका पर चढ़ाई का काम न करना पड़ता सिर्फ जादू से वो कई योजन दूर अथाह समुद्र बानर सेना के साथ पार कर लेते ।

उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि कर्म का सिद्धांत आदर्श मानव जाति को गौरव की ओर ले जाने वाली होती है ।

यह आज के आधुनिक मानव को क्यों नहीं समझ आता ! पढ़े लिखे लोग भी किसी चमत्कारी ओझा तांत्रिक के चंगुल में फंस जाते हैं।


यहाँ मुझे बाबा भीमराव अंबेडकर जी के संविधान निर्माण की कुछ बाते भी याद आ गई ।

संविधान में यह जिक्र आता है कि किसी भी तरह देश का कानून अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देगा । प्रैक्टिकल सोच साक्ष्य और तथ्यों के आधार पर न्याय व्यवस्था को चलाया जाएगा ।।


बिल्कुल सटीक है । मेरे कहने का मतलब है चीनी ज्यादा हो जाये तो डायबिटीज हो जाता है और पानी ज्यादा हो जाये तो पकवान बिगड़ जाते हैं अर्थात........

निराधार बातें और युक्ति स्वार्थसिद्धि को बढ़ावा दे तो इस विष की अधिकता से मानव समाज वैमनस्यता के सागर में डूब जाएगा।

तांत्रिक शक्ति , पूर्वाभास की शक्ति अलौकिक ज्ञान यदि मानव विकास में बाधक बन जाये तो उससे निजात पाने में ही भलाई है वहीं आत्मा की दुनिया के प्रयोग मानव को दुःख देने के लिए हो तो अपने विवेक से निर्णय लेना चाहिए ।

पैरा नॉर्मल एस्पर्ट्स भी यह मानते हैं कि किसी भी आत्मा को अपने वश में करके उनसे काम लेना उनकी दुनिया मे उन्हें स्वतन्त्र जीने पर प्रतिबन्ध लगाना है जो कि ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए ।

दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु - जब कोई घर हॉन्टेड हाउस में तब्दील हो जाये तो पूजा पाठ करके आत्मा की मुक्ति करानी चाहिए ।

जिससे उस घर मे रहने वाले अदृश्य ताकतों के कारण परेशानी का सामना ना करें।


इस लेख में केवल मैंने बारीकियाँ बताई हैं परामनोविज्ञान के परिचय के रूप में !

और इस विषय पर होने वाले विवाद को भी रखा किन्तु......

आपने भी कई बार कुछ अदृश्य सा महसूस किया होगा जिसे आप किसी को बताना भी चाहें तो लोग आपका मजाक उड़ाएंगे और आप वहीं ख़ामोश हो जाएंगे ।

मेरी समझ से अगर मैं कहूँ तो ........

विज्ञान की भाषा मे यह अंधविश्वास माना जायेगा

मनोविज्ञान की भाषा मे इसे मानसिक विकार माना जायेगा।

परामनोविज्ञान अलौकिक रहस्य मानकर उसे और अधिक जानने का प्रयास करेगा ।



निष्कर्षतः मैं यही कहूंगी कि जब विज्ञान प्राणों को बचाने में असफल होता है तो डॉक्टर्स मृत घोषित कर देते हैं यह कहकर कि हमने पूरी कोशिश की किन्तु नही बचा सके।

आखिरकार आत्मा का सफर थमता कहाँ है जहाँ विज्ञान असफ़ल होता है वहीं से अध्यात्म का प्रारंभ होता है ।

परामनोविज्ञान की समझ शब्दों में बयान हो जाये यह कहना मेरे लिए बेहद कठिन है जैसे आप icu में एडमिट किसी ब्यक्ति से पूछें कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं तो वह टकटकी लगाए देख सकता है समझ सकता है उस दर्द को जी सकता है किंतु शब्दो मे बयान कर सके बेहद कठिन होता है ।