मानव तस्करी दुनिया भर में एक गंभीर समस्या बनकर उभरी है। यह एक ऐसा अपराध है जिसमें लोगों को उनके शोषण के लिये खरीदा और बेचा जाता है।
किसी व्यक्ति को डराकर, बलपूर्वक या दोषपूर्ण तरीके से कोई कार्य करवाना, एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने या बंधक बनाकर रखने जैसे कृत्य तस्करी की श्रेणी में आते हैं।रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ , असम व झारखंड सबसे प्रभावित वाले राज्य हैं।
आए दिन छत्तीसगढ़ के जशपुर व पड़ोसी राज्य के गुमला जिले में ऐसे मामले आते रहते हैं।
खासकर दिल्ली , गोवा , मुंबई, चेन्नई जैसे बड़े जगहों पर यहां से अधिक संख्या में लोग काम करने जाते हैं। हर साल दीवाली , करमा, क्रिसमस के मौके पर हजारों के संख्या में लोग बड़े शहरों से त्योहार मनाने आते हैं। और इन्हीं लोगों में से कुछ मानव तस्कर गिरोह का शिकार हो जाते हैं। त्योहारों के मौके पर रांची एवं आस पास के रेलवे स्टेशन में काफी भीड़ होती है। जिनमे अधिकतर गुमला, जशपुर, सिमडेगा, राउरकेला ज़िले के लोग रहते हैं। प्रवास एक गंभीर समस्या है, जिसके कारण मानव तस्करी को अधिक सहायता मिल जाती है।
80% मानव तस्करी जिस्मफ़रोशी के लिए होती है। एशिया की अगर बात करें, तो भारत इस तरह के अपराध का गढ़ माना जाता है। ऐसे में हमारे लिए यह सोचने का विषय है कि किस तरह से हमें इस समस्या से निपटना है।मानव तस्करी में अधिकांश बच्चे बेहद ग़रीब इलाकों के होते हैं। मानव तस्करी में सबसे ज़्यादा बच्चियां भारत के पूर्वी इलाकों के अंदरूनी गांवों से आती हैं। अत्यधिक ग़रीबी, शिक्षा की कमी और सरकारी नीतियों का ठीक से लागू न होना ही बच्चियों को मानव तस्करी का शिकार बनने की सबसे बड़ी वजह बनता है।इस कड़ी में लोकल एजेंट्स बड़ी भूमिका निभाते हैं।ये एजेंट गांवों के बेहद ग़रीब परिवारों की कम उम्र की बच्चियों पर नज़र रखकर उनके परिवार को शहर में अच्छी नौकरी के नाम पर झांसा देते हैं। ये एजेंट इन बच्चियों को घरेलू नौकर उपलब्ध करानेवाली संस्थाओं को बेच देते हैं. आगे चलकर ये संस्थाएं और अधिक दामों में इन बच्चियों को घरों में नौकर के रूप में बेचकर मुनाफ़ा कमाती हैं। ग़रीब परिवार व गांव-कस्बों की लड़कियों व उनके परिवारों को बहला-फुसलाकर, बड़े सपने दिखाकर या शहर में अच्छी नौकरी का झांसा देकर बड़े दामों में बेच दिया जाता है या घरेलू नौकर बना दिया जाता है, जहां उनका अन्य तरह से और भी शोषण किया जाता है।नई दिल्ली के पश्चिमी इलाकों में घरेलू नौकर उपलब्ध करानेवाली लगभग 5000 एजेंसियां मानव तस्करी के भरोसे ही फल-फूल रही हैं. इनके ज़रिए अधिकतर छोटी बच्चियों को ही बेचा जाता है, जहां उन्हें घरों में 16 घंटों तक काम करना पड़ता है। साथ ही वहां न स़िर्फ उनके साथ मार-पीट की जाती है, बल्कि अन्य तरह के शारीरिक व मानसिक शोषण का भी वे शिकार होती हैं। न स़िर्फ घरेलू नौकर, बल्कि जिस्मफ़रोशी के जाल में भी ये बच्चियां फंस जाती हैं और हर स्तर व हर तरह से इनका शोषण होने का क्रम जारी रहता है।
_ मो शाहिद आलम