सपने......(भाग-4)
विजय जी की नयी खोज शेखर त्रिवेदी वैसे तो लखनऊ में जॉब करते हैं और वहीं के रहने वाले हैं, पर यहाँ उनके चाचा जी रहते हैं, वो विजय जी के दोस्त हैं। रमेश जी को जब विजय जी ने अपनी चिंता बतायी तो उन्होंने झटपट अपने भतीजे का रिश्ता प्लेट में परोस दिया। विजय जी के कहने पर रमेश जी ने अपने भतीजे को एक दिन अपने पास बुलाया और उनसे मिलवा दिया। विजय जी को उसके बात करने का ढंग भा गया........
लड़के की दोनों बहनों की शादी हो गयी थी। पिता उसके डॉक्टर हैं और माताजी कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस पढाती हैं। उनको लड़की सिंपल और पढी लिखी चाहिए। लड़की नौकरी करना चाहे या ना चाहे उसकी मर्जी होगी। विजय जी ने अपने दोस्त को कह कर उनके परिवार को संडे को अपने घर पर बुला लिया। विजय जी ने इस बार ठोक बजा कर ही बुलाया था, सो उन्हें पूरा विश्वास था कि रिश्ता पक्का हो ही जाएगा। इसलिए वो अनिता जी को कह चुके थे कि अगर उन्हें आस्था पसंद आ गयी तो हम लड़के को आज ही थोड़ा बहुत शगुन दे कर रोक देंगे......अनिता जी कुछ भी बोलने से बच रही थी। विजय जी का एक्साइटमेंट और रिश्ते करने की जल्दबाजी देख कर अनिता जी ने उन्हें टोका नहीं, बस मुस्कुरा रही थी और बोलती जा रहीं थी, " आप इतनी जल्दी में क्यों हैं? सब हो जाएगा, आप आराम से बैठो और हमें तैयारी करने दीजिए"! विजय जी धर्मपत्नी की बात सुन कर चुप हो गए। उन्होंने तो सब को लंच साथ करने का निमंत्रण दिया था, पर रमेश जी ने मना कर दिया और शाम को 4-4:30 बजे आने का पक्का कर लिया। आस्था ने इस बार स्नेहा को भी अपने मॉरल सपोर्ट के लिए बुला लिया था....दोनो सहेलियाँ कमरे में नया आइडिया सोच रही थीं, शादी नाम की बेड़ियों से बचने के लिए और किचन में दोनो सास बहु तैयारियों में लगी थी.....बैठक ठीक हो चुकी थी, नए कुशन कवर, पर्दे और डायनिंग टेबल को भी सेट कर दिया था। इस बार आस्था ने साड़ी पहनने से मना कर दिया तो विजय जी ने भी जिद न करके उसे सलवार सूट ही पहनने को कह दिया.....!
लड़का और उसके माता पिता सही टाइम पर आ गए, साथ ही रमेश जी और उनकी पत्नी भी आए......चाय नाश्ता और फिर वही अपने अपने रिश्तेदारों की बातें, राजनीति, फैशन और बीमारियाँ सब डिस्कशन होने के बाद लड़के की माँ ने कहा, "अब आप अपनी बिटिया को भी बुलवा लीजिए, उससे ही तो मिलने आए हैं".....! उनकी बात सुन कर निखिल ने निकिता को इशारा किया और वो आस्था को बुलाने चली गयी.....! आस्था ने हल्के गुलाबी रंग का सलवार सूट पहना हुआ था.....आस्था और स्नेहा दोनो बाहर आ गयी, खुले बाल, कानों में छोटी छोटी झुमकियाँ पहने हुई आस्था इतनी सुंदर लग रही थी कि सब सारे मेहमान उसे एकटक देखने लग गए......विजय जी ने सब को यूँ अपनी बेटी को एकटक देखते हुए देखा तो मंद मंद मुस्कुरा दिए.....उन्हें अपनी बात सच होती हुई दिख रही थी।
इस बार फिर आस्था ने एक नजर उठा कर लड़के की तरफ देखा....साफ रंग का लड़का था, बस दुबली पतली आस्था के मुकाबले उसका शरीर थोड़ा भरा हुआ था। इस लड़के की मूँछे तो घनी थी, जैसे "अनिल कपूर" की हैं....मन ही मन उसकी तुलना कर मुस्कुरा दी, पर फिर परेशान भी हो गयी क्योंकि पिछले को रिजेक्ट करने की मेहनत उसे नहीं करनी पड़ी थी.....पर "इसे कैसे भगाया जाए"? उसी पल से उसने अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिए। इस बार रमेश अंकल ने पापा को कहा,"विजय भाई अब लड़का लड़की भी आपस में थोड़ी बहुत बात कर लें, अगर इजाजत हो तो"! विजय जी ने मुस्कुरा कर सहमति जताई और शेखर अपनी जगह से उठ कर खड़ा हो गया और आस्था को देखने लगा ! स्नेहा ने "आइए शेखर जी" कह कर आस्था को चलने का इशारा किया ! इस बार माँ ने पहले ही कह दिया था कि लड़के से निकिता के कमरे में बैठ कर बात करना.....सो वो तीनों कमरे में चले गए...। आस्था ने सबसे पहले स्नेहा से मिलवाया, स्नेहा नमस्ते करके बाहर चली गयी....आस्था ने उसे वहीं रूकने को पहले ही कह दिया था, पर वो रूकी नहीं। उसे पता था कि अगर वो भी वहाँ रहेगी तो कहीं बात बेबात पर हँसने ना लग जाए! "आस्था जी आपकी हॉबीज क्या हैं"? शेखर ने ही पहला सवाल पूछा तो उसने बताया, "डांस और एक्टिंग"....
आस्था---- "आपकी हॉबीज क्या हैं"? आस्था ने भी वही सवाल दोहरा दिया!
शेखर--- "मुझे क्रिकेट खेलना पसंद है और सारी सीरीज भी देखता हूँ, टेस्ट मैच हूँ क्यों न हो"!!
उसकी बात सुन कर आस्था ने मन ही मन कहा "टिपिकल आदमी", वही क्रिकेट का शौक! इन लड़को को बस क्रिकेट के आगे कुछ सूझता ही नहीं है.....! "क्या हुआ क्या सोचने लगी आप"? शेखर ने उसे टोका तो वो अपनी सोच से बाहर निकली, " जी कुछ नहीं, बस सोच रही थी कि क्रिकेट के सब दीवाने हैं, हमारे देश में, जबकि हमारा "नेशनल गेम हॉकी है"! बोलते बोलते आस्था ने देखा कि शेखर उसको ही देख रहा है तो चुप हो गयी....बस कुछ फार्मल से सवाल एक दूसरे से वो पूछ ही चुके थे, बात करने पर आस्था को उसमें एक भी कारण दिख नहीं रहा था मना करने का....तो उसे अपने आप पर खीज हो रही थी....पर ऊपर से नार्मल बिहेव कर रही थी। अपने ही आप से लड़ती हुई आस्था चौंक गयी जब शेखर ने कहा, "You are very beautiful Aastha".... उसकी बात सुन कर आस्था को मुस्कुरा कर शुक्रिया कहना पड़ा। मुझे आप पसंद आयी, मैंने अपने दिल की बात बता दी है, अब आप बताइए क्या ख्याल है मेरे बारे में....?आस्था को समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहे, फिर भी कुछ सोचते हुए बोली," आप मुझे अच्छे लगे, पर मैं शादी करने के लिए तैयार नहीं हूँ, मेरे अपने कुछ सपने हैं जिन्हें मैं पूरा करना चाहती हूँ, पर मेरे पापा को थियेटर वगैरग जमता नहीं, इसलिए वो मेरी शादी ही करवा देना चाहते हैं तो क्या आप ऐसी लड़की से शादी करते खुश रह पाँएगे जो अपने सपनों का गला घोंट कर अनमने मन से शादी करके आपके घर आए"? शेखर चुप ही रह गया उसकी बात सुन कर। आस्था अपनी रौ में बोलती तो गयी, पर उसका अंजाम अब समझ आ रहा था कि क्या क्या हो सकता है!! "चलिए आस्था जी बाहर चलते हैं, सब हमारा इंतजार कर रहे हैं"! शेखर को उठते देख आस्था भी झट से खड़ी हो गयी," आपने कुछ बोला नहीं"? शेखर ने मुस्कुरा कर कहा,"सब तो आपने बोल ही दिया है, अब मैं क्या कहूँ? मैं न कह दूँगा आप चिंता मत कीजिए और अपने सपनो को पूरा कीजिए....अगर आप चाहें तो हम दोस्त बन सकते हैं......उसकी बात सुन कर आस्था का चेहरा ही खिल गया और चहक कर बोली, हाँ दोस्ती तो कर सकते हैं, कह कर एक दूसरे का नं एक्सेंज करके बाहर ड्रांइग रूम में आ गए.....!! स्नेहा ने आस्था की तरफ देखा तो वो मुस्कुरा रही थी......शेखर और उसके परिवार ने बोला कि वो आपस में बात करके फोन करेंगे.....विजय जी ने ये सुना तो उनका मुँह उतर गया, पर उन्होंने खुद को तुरंत संभाला और मुस्कुरा कर उन्हें विदा कर दिया.......उनके जाने के बाद आस्था की पापा की अदालत में पेशी हुई और उसने जो जो बातें हुई सब बता दी और सफाई से शादी न करने वाली बात छुपा गयी.......स्नेहा बेचैन थी जानने के लिए कि वो इतना मुस्कुरा क्यों रही थी। पापा की अदालत से बरी होते ही दोनो सहेलियाँ फिर अपने कमरे में बंद हो गयी........!!
क्रमश: