भाग 24
पिछले भाग में आपने पढ़ा की रश्मि की शादी के चौथे दिन ठाकुर परिवार चौथी ले कर आता है। ठाकुर साहब उसे विदा करा कर घर ले जाना चाहते है।वैदेही रश्मि से सुहास के बारे कुछ सवाल पूछती है। अब आगे पढ़े।
वैदेही के ये पूछने पर की सुहास और उसके घर वाले कैसे लगे..? रश्मि बताती है की सभी बहुत अच्छे हैं और उसका बहुत ख्याल रखते हैं। रश्मि के अंदर बहुत कुछ बदल गया था चार दिनों में ही। अब वो इसे ही अपनी नियति मान कर समझौता करना चाहती थी। अब उसके कंधों पर दो दो घरों की प्रतिष्ठा का बोझ था। जिसे वो धूमिल नहीं कर सकती थी। अपनी खुशी के लिए कई जिंदगी से वो नही खेल सकती थी। वैदेही भाभी तो उसकी जिंदगी को मोड़ देने में बस एक माध्यम बन कर अपनी भूमिका निभा गई। बाकी सब तो ईश्वर ने पहले तय कर रक्खा था। उसकी जोड़ी तो सुहास संग भगवान ने पहले ही बना दी थी तो भाभी प्रति मन मैला रखने से क्या फायदा..?
तभी वैदेही फिर रश्मि से पूछती है, "ननदोई जी में कोई कमी तो नहीं है ना..? वो आपसे ठीक से बात तो करते हैं ना।"
रश्मि के मन में आता है की वो भाभी से सब कुछ सच सच बता दे। उसका भूत कभी पीछा नहीं छोड़ेगा। वो कभी भी सामने आकर खड़ा हो जायेगा। उसका भूत और वर्तमान आपस में ऐसे मिला है की वो किसी भी तरह उसे अलग नही कर सकती। लाख कोशिश करने पर भी नही। पर फिर ये सोच कर रहने देती है की, वो भाभी को बताएगी, भाभी राघव भईया को और राघव भईया पापा को। ये सब जान कर कहीं फिर से पापा की तबियत ना खराब हो जाए। अब जो कुछ भी होगा उस हालात का सामना वो खुद ही कर लेगी। पर किसी से कुछ भी नही कहेगी।
इधर वैदेही के मन में भी एक कांटा सा चुभा हुआ था। जब से शादी के दिन सुहास को दूल्हे के वेश में देखा था। अगर गौर ना करे तो पहली नज़र में उसे सुहास बिलकुल उसी लड़के जैसे नज़र आया जो गुड़िया के साथ अस्सी घाट पर था। पर वैदेही ने इसे अपने मन का भ्रम जान सर झटक कर इस ख्याल को दूर करने का प्रयास किया।
आज भी सुहास को देख वैदेही को वही महसूस हुआ। वो गुड़िया बेबी से पूछना चाहती थी की क्या सुहास उसे भी उस लड़के जैसा लगता है। पर गुड़िया को अतीत की याद दिला कर जख्म ताजा करवाना उसे सही नही लगा। मन में उठे प्रश्न को मन में ही वैदेही ने दफन कर दिया।
सब ठीक जान वैदेही रश्मि को समझाते हुए कहती है, "गुड़िया बेबी आप सुहास जी से कोई भी दूरी बना कर मत रखना। पत्नी का दायित्व होता है शादी के बाद की वो पूर्ण समर्पण करे। अगर नहीं करती तो पति उसके बारे में कुछ भी गलत सोच सकता है। इस लिए सुहास जी अपना पूर्ण प्यार दो। उन्हें किसी भी दूसरी दिशा में ना सोचने दो।
रश्मि अपने घर वालों को आश्वस्त करती है कि सब ठीक है और वो यहां खुश है। धीरे धीरे उसका मन भी लग जायेगा यहां। पर उनके साथ घर जाने से इंकार कर देती है ये कह कर की अब ना तो उसकी इच्छा एग्जाम देने की है और ना ही घर जाने की। क्या करेगी एग्जाम ही पास कर के…? जब घर में ही रहना है और उसे ही संभालना है तो फिर क्या फायदा..?
ठाकुर साहब रश्मि की दलीलों से खामोश हो जाते है। उन्हें अंदाजा हो जाता है की बेटी ने ऊपर से तो उन्हे माफ कर दिया है पर दिल से नहीं। वरना वो अपनी पढ़ाई कभी अधूरी नही छोड़ती।
ठाकुर साहब की बेटी को विदा करा ले जाने की इच्छा जान लीला और जगदेव साथ ले जाने की इजाजत दे देते है। पर रश्मि के मना कर देने से। विदाई नही हो पाती। ठाकुर साहब कुछ घंटे रुक वापस घर लौट जाते है।
सुहास भी नही चाहता था की रश्मि अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़े। वो रश्मि से कहता है, "रश्मि..!अगर तुम पापा जी के साथ नही जाना चाहती तो कोई बात नही। मुझे बहुत ही अच्छा लगा। अब तुम मेरी जिम्मेदारी हो। अब मैं तुम्हे ले कर चलूंगा एग्जाम दिलवाने। फिर वहां प्रभास भी तो है। वो हमारी मदद करेगा।"
सुहास की आंखों में तैरते प्यार को देख रश्मि कहती है, "हां.! मैं चलती आपके साथ पेपर देने पर क्या करूं…? मेरी तैयारी ही पूरी नही हो पाई है…। जो कुछ पढ़ा था शादी की वजह से वो भी भूल गई। फिर क्या फायदा पेपर देने का। मैं फेल नहीं होना चाहती। इससे अच्छा है कि एग्जाम ही नही दूं। अब अगले साल देखूंगी।"
सुहास रश्मि की बात समझ जाता है। ठीक ही तो है। जब तैयारी ही नही है तो फिर पेपर देने का क्या फायदा..?
चार दिनों में सुहास को रश्मि से अजीब सा आकर्षण महसूस होते लगता है। वो अब रश्मि से दूर नहीं रहना चाहता है। रश्मि भी भाभी की बात को गांठ बांध लेती है की सुहास से ज्यादा दूर उसे नही रहना है। आज जब चौथी की रस्म के बाद सब चले गए तो रश्मि ने खुद अपने हाथो से सुहास और घर वालों के लिए चाय बनाई। लीला के लिए तो ये कल्पना करना भी मुश्किल था की तक कुमारी की तरह रहने वाली लड़की चाय बनाएगी। पहले तो लीला ने रोका की मंजू या मिठाई चाय बना देंगे। पर जब वो रश्मि ने कहा की वो सुहास के लिए अपने हाथों से चाय बनाना चाहती है तो लीला ने उसे नही रोका बल्कि मदद के लिए मंजू को भी बोल दिया। चाय पीते हुए सुहास की खुशियां सम्भाले नही संभल रही थी। आज रश्मि… ने ..! उसकी पत्नी.. ने ..! अपने हाथों से उसके लिए चाय बनाई है। शायद अब वो मुझे अपना चुकी है दिल से। ये एहसाह सुहास को खुश कर रहा था।
उस रात जब सुहास दूसरी साइड लेटने लगा तो रश्मि की ओर देखा। वो उसे ही देख रही थी। एक आमंत्रण सा था उसकी नजरों में। सुहास भी उसे देख कर मुस्कुराया। सुहास ने अपना हाथ रश्मि की ओर बढ़ाया तो रश्मि ने भी अपना हाथ उसके हाथों पर रख दिया। आज रश्मि और सुहास ने ढेरों बाते की। बातों ही बातों में वो कब इतने करीब आ गए की पता भी नही चला। सुहास खुश था रश्मि को पा के। और रश्मि अपनी जिम्मेदारी की ओर पहला कदम बढ़ा के। आखिर तो उसे सुहास को अपनाना ही था, उसकी खुशियों का ख्याल रखना ही था तो फिर ये शुरुआत करके उसे आगे बढ़ना ही था।
दिन गुजरते है। हर गुजरते दिन के साथ सुहास और उसका परिवार रश्मि को अपना प्रतीत होने लगता है।
अगले भाग मे पढ़े क्या हुआ आगे रश्मि और सुहास के जीवन में..? क्या प्रभास एग्जाम दे कर घर आया..? क्या उसने रश्मि को बनारस में तलाशने की कोशिश की थी..? क्या रश्मि और प्रभास का सामना हुआ..? क्या सुहास अनजान ही रहा रश्मि और सुहास के अतीत से..? जानने के लिए पढ़े अगला भाग।
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