Nakaab - 23 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | नकाब - 23

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नकाब - 23

भाग 23

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि हालात की वजह से ठाकुर गजराज सिंह को बेटी की शादी गुड़िया से तय करनी पड़ती है। पहले तो गुड़िया इस शादी के लिए राजी नहीं होती। पर फिर ठाकुर साहब को हार्ट अटैक आने की वजह से वो राजी हो जाती है। धूम धाम से ठाकुर साहब बेटी को विदा करते हैं। अब आगे पढ़े।

रश्मि (गुड़िया तो वो मायके के लिए थी) की आज ससुराल में पहली रात थी। उसने अपनी मर्जी के खिलाफ शादी तय किए जाने का विरोध का दूसरा ही तरीका अपनाया हुआ था। बोल तो वो कुछ सकती नही थी, कि कही पापा की तबियत ना खराब हो जाए। रश्मि ने ये तय किया की जब पापा और भईया सब कुछ अपनी मर्जी से ही करेंगे, मेरी इच्छा का कोई मतलब ही नहीं तो फिर क्या करूंगी उसका नाम जान कर या उसकी फोटो देख कर, या उसके बारे में कुछ भी पहले से जान कर..? अब जब जीवन भर पापा द्वारा चुने व्यक्ति के साथ ही रहना है तो जानने के लिए पूरी उम्र ही पड़ी है। जान लेगी धीरे धीरे साथ रह कर। इस कारण ना तो रश्मि उस लड़के का नाम जानती थी, ना ही उसे देखा था। भाभी वैदेही ने कई बार प्रयास किया था उसे अपने होने वाले पति के बारे में बताने का। पर रश्मि ने हर बार उन्हे मना कर दिया था।

इस कारण जब रात के समय हल्की रोशनी में सुहास पर रश्मि की नजर गई तो वो चौंक उठी। प्रभास कैसे यहां आ गया..? और बेसाख्ता ही उसके मुंह से निकल पड़ा…"प्रभास तुम…!"

इधर अपनी नई नवेली पत्नी के मुंह से पहली मुलाकात में अपना नाम सुनने की बजाय भाई का नाम सुन कर सुहास आश्चर्य में पड़ जाता है। आखिर रश्मि कैसे जानती है प्रभास को..?

रश्मि तेज कदमों से सुहास को प्रभास समझ उसके पास आती है। वो क्षण उसे एक अजीब सी खुशी में भर गया। क्या सच में चमत्कार होते है..? क्या सच में भगवान दिल का दर्द समझता है…? और वो दिल की फरियाद सुन कर उसे पूरी करता है।

सुहास के करीब आकर रश्मि को लगा प्रभास की झलक जरूर है इनमें पर प्रभास नहीं है। क्योंकि एक हफ्ते में ही प्रभास में परिवर्तन नही हो सकता है। अब रश्मि के लिए स्थिति सम्हालना मुश्किल हो रहा था। वो क्या बताए अपने पति से की प्रभास कौन है..? और वो उसे कैसे जानती है..?

रश्मि के संबोधन से सुहास ने पलट कर रश्मि की ओर देखा और उसे पास बैठने का इशारा किया। रश्मि सर झुकाए बैठ गई। उसके बैठते ही सुहास हल्के से हंसते हुए बोला, "शायद तुम्हें कोई गलत फहमी हो गई है। मेरा नाम सुहास है। मेरे छोटे भाई का नाम प्रभास है।"

सुहास को लगा की मिलते नाम से रश्मि को भ्रम हो गया है। वो शायद ये समझ रही है की जिससे उसकी शादी हुई है उसका नाम प्रभास है। रश्मि की जान में जान आई की सुहास ने इस बात को एक गलत फहमी ही समझा। वो किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना करने से बच गई। पर उसे अब ये यकीन हो गया की प्रभास जिस भाई की शादी की बात कर रहा था वो सुहास और उसकी शादी ही थी। पर वो अनजान थी। ये जिंदगी ने उसे कैसे मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया। जिस शख्स को भुला कर वो नया जीवन शुरू करने चली थी। उसे वो कभी भी भुला नहीं पाएगी, क्योंकि आज नही तो कल वो भी इस घर में आ कर रहेगा ही। कैसे हालात होंगे जब प्रभास से उसका सामना इस घर में होगा..? वो कैसे अचानक अपनी प्रेमिका को भाभी के रूप में देख कर स्वीकार कर सकेगा..?

सुहास सीधा सरल तो था ही। उसने पहली रात को एक पति का अधिकार जताने की बजाय, एक दूसरे को समझने की बात की। उसने रश्मि से वादा किया की वो उसकी इस घर में रचने बसने में हर तरह से मदद करेगा। साथ ही जो कुछ भी वो करना चाहे आराम से कर सकती है। वो एक पति की तरह अधिकार कभी नही मांगेगा। पहले वो एक सच्चे दोस्त की भांति एक दूसरे को समझेंगे। फिर जब रश्मि इस रिश्ते के लिए तैयार होगी तभी  फिर आगे पति पत्नी की  तरह रहेंगे।

रश्मि के मन की थोड़ी कड़वाहट अपने पापा के प्रति कम हुई। उसे इतना संतोष हुआ की काम से कम पापा ने जिसे उसका जीवन साथी चुना है वो एक अच्छा इंसान है। जिस घड़ी को ले कर वो घबरा रही थी। सुहास ने उसे बड़ी समझदारी से टाल दिया था। सुहास ने ऐसी कोई भी बात नही की जिससे उसे शिकायत हो।

सुहास उसकी बारे में, उसकी पढ़ाई के बारे में बातें करता रहा। ये भी रश्मि को बताया की प्रभास भी बनारस में ही उसी कॉलेज में पढ़ता है जिसमें रश्मि पढ़ती है। एग्जाम की वजह से वो शादी में सम्मिलित नही हो पाया। शायद वो उससे परिचित भी हो। पर रश्मि ने बड़ी ही सफाई से झूठ बोल दिया की वो किसी प्रभास को नही जानती। इतना बड़ा। उसे विश्वविद्यालय है। कहां कोई सब को जान सकता है..?

सुहास को रश्मि की बातों पर कोई शक भी नहीं हुआ। थोड़ी देर तक बातें करने के बाद सुहास ने रश्मि को बोला की वो थकी हुई होगी सो जाए। अगर कोई दिक्कत हो तो वो सोफे पर सो जाता है। पर रश्मि नहीं चाहती थी की कोई कुछ भी गलत सोचे। वो कहती है, "इतना बड़ा बेड है। आप आराम से उस तरफ सो जाइए। मैं इस तरफ सो जाती हूं। वो जानती थी की इस दूरी का कोई मतलब नहीं है। अब जब फेरे हो गए हैं तो रहना सुहास के साथ ही है। और जब साथ रहना है तो ये दूरी कब तक वो रख पाएगी..? और ज्यादा समय दूर रहना क्या सुहास के मन में आशंका को जन्म नही देगा…..? अब जब सुहास खुद उसे वक्त दे रहा है तो फिर बेवजह उसे सोफे पर सोने को बोलने का कोई कारण नहीं था।"

सुहास और रश्मि बेड के दोनो साइड सो गए।

अगली सुबह फिर से रस्में और पूजा,पाठ का दौर शुरू हुआ। सजी धजी रश्मि सुहास के बगल बैठी हुई थी। दोनो की जोड़ी बिलकुल राम सीता की लग रही थी। लीला देवी का उत्साह फूटा पड़ रहा था। आखिर इतनी ज्यादा खूबसूरत बहू जो ले आई थी घर। पूरे गांव, पूरी रिश्तेदारी में रश्मि जैसी बहू किसी की नहीं थी।

चौथे दिन ठाकुर साहब राघव और वैदेही के साथ चौथी ले कर आए। लीला ने स्वागत की सारी तैयारी मंजू और मिठाई के साथ मिल कर कर ली थी। आज ठाकुर गजराज सिंह को अपनी बेटी एक नए ही रूप में नजर आ रही थी। साड़ी लपेटे, नजरें झुकाए, धीरे धीरे बात करते। एक आदर्श बहू के रूप में। कोई नहीं कह सकता था की ये वही पहले वाली रश्मि है। वो खुश थे, मन में तसल्ली थी की उनकी लाडली बेटी भटकने से बच गई। साथ ही उसे अच्छा घर - परिवार और सुहास जैसा समझदार पति मिला था। और गुड़िया अब कोई गलती नही करेगी इसकी उन्हे पूरी उम्मीद थी। वो गुड़िया को अपने साथ विदा करा कर ले जाना चाहते थे। गुड़िया का एग्जाम जो होने वाला था। वो नही चाहते थे की बेटी की पढ़ाई अधूरी रह जाए।

वैदेही जैसे ही अकेले में मिली रश्मि से कान में फुसफुसा कर बोली, "और बताइए गुड़िया बेबी… सब ठीक तो है ना…? आपको ये घर, घर वाले और खास कर हमारे ननदोई जी कैसे लगे..?"

गुड़िया ने वैदेही के सवाल का क्या जवाब दिया…? क्या वैदेही के प्रति उसके दिल का गुबार शांत हो गया था…? क्या ठाकुर साहब गुड़िया को अपने साथ ले गए..? वो साथ जाने को राजी हुई..? पढ़े अगले भाग में।

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