Do I eat money! in Hindi Moral Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | क्या मैं पैसे खाती हूं!

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क्या मैं पैसे खाती हूं!

बड़े शहर में रहने के कारण उनके खर्चे काफी बढ़ने लगे थे। कितना भी देखभाल कर खर्च करती है लेकिन महीने का अंत आते आते लाख चाहने के बाद भी बचत तो दूर खर्चे पूरे करने भी दूभर होने लगे थे।

और जब ऐसी स्थिति आती है तो सबसे पहले पति पत्नी में तकरार!!

"पता नहीं क्या करती हो तुम!! पूरा महीना भी नहीं निकलता इससे पहले सैलरी खत्म!! पहले इससे कम सैलरी में पूरा महीना निकलने के बाद भी बचत हो जाती थी और अब!! खर्चे पर कंट्रोल करो वरना!!" राजन चिल्लाते हुए बोला।

" वरना क्या!! क्या करोगे आप!! क्या मैं पैसों को खाती हूं या सारी तनख़ाह अपने ऊपर लुटाती हूं। एक-एक पैसा देखभाल कर खर्च करती हूं ।उसके बाद भी कम पड़ जाए तो मैं क्या करूं!!" सारिका झुंझलाते हुए बोली।

" देखो सारिका, मैं यह नहीं कह रहा कि तुम बेफिजूल खर्च करती हो लेकिन पता है ना यह शहर कितना महंगा है। अगर यह टिकना है तो खर्चों पर कुछ तो लगाम लगानी पड़ेगी। मैं तो पूरी सैलरी लाकर तुम्हें दे ही देता हूं। उससे ज्यादा बताओ क्या कर सकता हूं!!" राजन अपने आप को थोड़ा संयत कर सारिका को समझाते हुए बोला।


" आप भी तो देख ही रहे हो कि शहर के खर्चों को देख मैंने अपने सारे शौक मार लिए हैं लेकिन घर के दूसरे जरूरी खर्च भी तो है। दोनों बच्चे स्कल जाने लगे तो उनका खर्च भी बढ़ गया है। इसके अलावा प्राइवेट स्कूल वालों के दूसरे चोंचले। कभी यह फंक्शन कभी वह और उनके लिए कुछ ना कुछ सामान!! यूनिफॉर्म उनकी तय की गई दुकानों से लेनी जरूरी है और वहां उनके दाम किसी दूसरी दुकान से दुगने हैं लेकिन क्या करें मजबूरी!! वैसे मैं सोच रही थी कि अब दोनों ही बच्चे स्कूल जाने लगे हैं तो मैं फिर से टीचिंग शुरू कर दूं। मुझे विश्वास है मेरी पिछले एक्सपीरियंस को देख मुझे किसी अच्छे स्कूल में नौकरी मिल ही जाएगी वैसे मैं अपने पिछले स्कूल में अप्लाई करके देखती हूं!!"

" वह तो ठीक है सारिका लेकिन देखो तुम पर काम की दोहरी मार पड़ जाएगी। दिन में जो तुम्हें थोड़ा बहुत आराम मिलता था नौकरी करोगी तो चकरघिन्नी सी बनी रहेगी तुम्हारी और फिर वही पहले की तरह चिक चिक !!" राजन कुछ सोचते हुए बोला।

" नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा। दो पैसे हाथ में आएंगे तो मैं कामवाली रख लूंगी।। वैसे भी राजन बढ़ते बच्चों के खर्चे देख ही रही हो आगे खर्चे बढ़ेंगे ही तो हमारे पास दूसरा चारा नहीं!! थोड़ा मैंनेज तो तुम्हें भी करना पड़ेगा।

रही बात चिक चिक की तो नौकरी नही कर रही तो भी चिक चिक हो ही रही है ना!!"

"वैसे सारिका तुम्हें नहीं लगता कि शहर आकर हमने गलती की! अपने कस्बे में भी मैं अच्छी खासी नौकरी कर ही रहा था ना तनख्वाह कम थी तो क्या!! संयुक्त परिवार में कुछ खर्चों का तो पता ही नहीं चलता था।


रसोई का खर्चा आधा, काम भी मां भाभी के साथ तुम मिलकर कर ही लेती थी और तुम्हारी नौकरी पर जाने के बाद बच्चों को संभालने की कोई चिंता नहीं थी!! चार-पांच साल में ही हमने कितनी बचत कर ली थी। कुछ समय और मैं वही नौकरी करता तो मेरी प्रमोशन होने ही वाली थी लेकिन!!" कहते कहते दिल चुप हो गया।

" लेकिन क्या !! आप यही कहना चाहते हो ना कि मेरी जिद की वजह से आप वहां से निकले। सही है औरतों पर दोष मढ़ना आसान है। सच कहो क्या आप अपनी नौकरी से खुश थे। आप नहीं चाहते थे कि आपकी काबिलियत के हिसाब से आपको और अच्छी जॉब मिले। घर में होने वाले हर दिन के छोटे-मोटे क्लेश उससे क्या सिर्फ मैं ही परेशान थी आप नहीं!! आपको भी तो लगता था कि आपका स्टैंडर्ड की यहां रहकर नहीं बनेगा। आप भी तो निकलना चाहते थे वहां से। फिर सारा दोष मुझ पर क्यों राजन!!"

सारिका की बात सुन राजन चिढ़ते हुए बोला "मैं क्या तुम पर दोष लगा रहा हूं। बस मन में आया तो कह दिया। यह जिंदगी हमने अपनी मर्जी से चुनी हैं तो किसी पर दोष क्यों मढ़ना। फैसला तो काफी पहले ही ले चुके थे। अब दोबारा मुडकर देखने का तो सवाल ही नहीं।" कहकर राजन ऑफिस के लिए निकल गया।

सही तो कह रहा है राजन। शहर आने का फैसला उन दोनों की सहमति से ही हुआ था।

राजन अपने ही कस्बे के एक बैंक में कार्यरत था और सारिका स्कूल में नौकरी करते थी। दोनों ही अपने परिवार वालों के हिसाब से अच्छे पढ़े लिखे थे। राजन दो भाई थे। राजन के भाई की अपनी दुकान थी और उनका काम व आमदनी राजन से कुछ कम थी। राजन की भाभी घरेलू महिला थी। पिताजी नहीं थे। हां उनकी पेंशन आती थी।


जैसा कि हर संयुक्त परिवार में होता है खर्चे तो बंट जाते हैं लेकिन छोटी-छोटी बातों पर कलह जरूर होता है। राजन को लगता कि उसकी जेब से घर खर्च ज्यादा जा रहा है और बड़े भाई को अपना!!

सारिका को लगता वह काम ज्यादा करती है और बड़ी बहू को लगता की वह क्योंकि सारिका तो नौकरी पर भी जाती थी तो पूरे घर की जिम्मेदारी बड़ी बहू व सास के कंधों पर थी।

हां यह दोनों का एहसास था कि साझे में रहने से खर्चो का बोझ आधा हो जाता है साथ ही काम का!!

सारिका नौकरी पर जाती तो पीछे से उसके बच्चों की देखभाल सास कर देती। वह सुबह बस अपना खाना बना कर ले जाती। हां शाम के खाने की जिम्मेदारी उसकी थी। सुबह का खाना जेठानी बनाती । साफ सफाई वाली बर्तन सफाई कर जाती थी इसका खर्चा दोनों में बंट जाता और दुकान से सब्जी वगैरा लाने का काम सासू मां कर देती। साथ ही छोटे मोटे खर्चे में भी पैसा लगा देती थी लेकिन उसके बाद भी बस दोनों भाइयों और बहुओं को यही लगता उनकी जेब से ज्यादा जा रहा है ।अगर उनका परिवार अकेला होता तो वह पता नहीं कितनी बचत कर लेते।।

राजन को शहर में एक अच्छी नौकरी का अवसर मिला तो उसने सारिका से सलाह मशवरा किया। सारिका तो वैसे भी संयुक्त परिवार में रहकर तंग आ चुकी थी। उसने झट से सहमति देते हुए कहा "क्यों नहीं!! बाहर निकलेंगे तो कुछ बचत भी हो सकेगी और बच्चों का भविष्य बेहतर बनेगा।।"


राजन ने जब परिवार वालों को यह बात बताई तो उसके भाई भाभी की खुशी देखते ही बनती थी कि चलो बला टली। सारे घर में हमारा राज!!

बस राजन की मां को दुख था कि परिवार बिखर रहा है।
उनकी आंखों से दूर परदेस में बच्चे कैसे रहेंगे। बड़े बुजुर्गो के लिए बच्चों का अपने से दूर जाना,समझो परदेस बराबर था उनके लिए।
लेकिन बच्चों की तरक्की देख उन्होंने अपने दिल पर पत्थर रख सहमति दे दी।

लेकिन शहर आकर जैसा दोनों ने सोचा था वैसा कुछ नहीं हुआ। यहां आते ही खर्चे बढ़ गए क्योंकि कस्बे और बड़े शहर के खर्चों में काफी अंतर होता है। बड़े बड़े खर्चों की बात छोड़ो, सब्जियों व कामवालियों के रेट ही कस्बे से दुगने थे। सारिका ने सोचा था क्रैच में बच्चों को छोड़ नौकरी कर लेगी लेकिन की फीस सुन उसके होश उड़ गए लेकिन छोड़ना मजबूरी था। 2 महीने भी नहीं हुए थे कि बच्चे वहां पर उचित देखभाल ना मिलने के कारण बीमार रहने लगे।

अब नौकरी से जरूरी बच्चों की देखभाल थी इसलिए सारिका को ना चाहते हुए भी नौकरी छोड़नी पड़ी।

इतने बड़े शहर में एक आदमी की तनख्वाह में घर खर्च चलाना दूभर हो रहा था जिसका परिणाम रोज-रोज की चिक चिक व क्लेश।

धीरे-धीरे समय निकलता गया और दोनों ही बच्चे स्कूल जाने लगे थे तो उनके बढ़ते खर्चों को देखते हुए सारिका ने फिर से नौकरी करने की ठान ली। जिससे खर्चों पर काबू पा गृहस्थी की गाड़ी पटरी पर आ सके।

दोस्तों कैसी लगी आपको मेरी यह रचना पढ़कर इस विषय में अपने अमूल्य विचार कमेंट कर जरूर बताएं। सरोज ✍️