भाग 20
पिछले भाग में अपने पढ़ा की राघव ठाकुर साहब को अस्पताल में छोड़ कुछ देर के लिए घर जाता है। वापस आते समय वैदेही साथ चलने को बोलती है। वो वैदेही के साथ आने लगता है तो गुड़िया भी आने को बोलती है। गुड़िया के अंदर पछतावे का भाव देख राघव उसे साथ लाने को राजी हो जाता है। अब आगे पढ़े–
राघव वैदेही और गुड़िया को साथ ले अस्पताल पहुंचता है। हरी राम, जो वही आईसीयू के बाहर बेंच पर बैठा था, राघव के साथ वैदेही और गुड़िया को देख हाथ जोड़ उठ खड़ा हुआ। राघव ने कहा,
"हरी राम चाचा अब आप घर जाइए। आप अब शाम को आइएगा। पापा के पास हम लोग है। जरूरत होगी तो मैं घर से और किसी को बुला लूंगा।"
हरी राम भी थक गया था। राघव के कहने पर वो घर चला गया।
राघव अंदर आईसीयू में पापा के पास गया। पापा आंखे बंद किए निश्चल बेड पर पड़े थे। इतने रौबदार इंसान को इस तरह असहाय हालत में लेता देख राघव को बहुत कष्ट हुआ। उसने हाथ जोड़ मन ही मन भगवान से विनती की, है.. भगवान..! मेरे पापा को जल्दी से अच्छा कर दो। फिर वो वहीं ठाकुर साहब के पास पड़े स्टूल पर बैठ गया। पापा का हाथ अपने हाथ में धीरे धीरे सहलाने लगा। कुछ देर बाद उनकी पलकें जरा सी हिली। राघव पापा के अंदर हरकत होते देख पास की नर्स से बोला की वो डॉक्टर को बुलाए।
नर्स तुरंत गई और डॉक्टर को बुला कर ले आई। डॉक्टर ने ठाकुर साहब को चेक किया और बोला, "इनकी हालत में सुधार हो रहा है। मैं एक इंजेक्शन दे रहा हूं। उसके बाद ठाकुर साहब को होश आ जाएगा। पर आप को इस बात का खास ख्याल रखना होगा की इन्हें कोई भी टेंशन ना हो। इनके सामने किसी भी तरह की तनाव पूर्ण बातें न हो। वरना फिर से हालत बिगड़ सकती है।"
ठाकुर साहब के बारे में खास चेतावनी राघव को दे कर डॉक्टर साहब चले गए।
अब वैदेही भी अंदर आ गई थी। गुड़िया बाहर से ही पापा को निहार रही थी। राघव और वैदेही ठाकुर साहब के होश में आने का इंतजार करने लगे। लगभग आधे घण्टे के बाद ठाकुर साहब के शरीर में हल्की हरकत हुई और उन्होंने धीरे धीरे अपनी आंखें खोल दी।
पापा को होश में आते देख राघव के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट आई। वो उनका हाथ पकड़ कर धीरे से बोला, "पापा…! आप ठीक है ना…? आप जल्दी अच्छे हो जायेंगे।"
ठाकुर साहब ने राघव की ओर देखा पर वो खुश नही नज़र आ रहे थे। चेहरे पर चिंता की लेकर पूर्व की भांति ही छाई हुई थीं। वो कुछ भी बोलने की कोशिश नही किए। खामोश ही रहे।
पापा को परेशान देख राघव विचलित हो गया। डॉक्टर के मुताबिक चिंता पापा के लिए खतरनाक हो सकती है। उन्हे हर हाल में किसी भी तरह का तनाव नही होने देना है। वो ठाकुर साहब के चेहरे के बिलकुल पद आ कर बोला, "पापा आप बिल्कुल भी चिंता मत करिए अब गुड़िया कुछ भी ऐसा वैसा ना तो करेगी..। ना ही बोलेगी। उसने मुझसे कहा है। अब वो हर बात आपकी मानेगी। आपके अनुसार ही चलेगी।"
ठाकुर साहब को यही चिंता सताए जा रही थी पहले की अगर गुड़िया ने शादी के दिन एन वक्त इनकार कर दिया या कहीं घर से चली गई तो उनकी समाज में क्या प्रतिष्ठा रह जायेगी। वैदेही से उस रात बहस करते सुन उनका ये डर सच साबित होने लगा था। इसी वजह से उन्हें हार्ट अटैक आया था। अब राघव के मुंह से ये सब सुन कर उन्हे थोड़ी तसल्ली हुई।
ठाकुर साहब टूटे स्वर में धीरे धीरे बोले, "गुड़िया ने तुमसे खुद कहा है…?"
"हां ..! पापा..! गुड़िया ने मुझे खुद कहा है। वो बहुत शर्मिंदा है की उसके व्यवहार की वजह से आपकी तबियत खराब हुई। अगर आपको यकीन ना हो तो मैं आपके सामने भी कहलवा दूं। वो आई है साथ। पर बाहर ही बैठी है। आप कहेंगे तभी अंदर आयेगी।"
फिर ठाकुर साहब से पूछा,"गुड़िया को बुलाऊं पापा…?"
आखिर ठाकुर साहब गुड़िया के बाप थे। वो उनकी इकलौती लाडली बेटी थी। जिसे कभी किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं होने दी। अब भी वो उससे नाराज जरूर थे पर दूर नहीं थे। ये नाराजगी भी उनकी पुरखों की प्रतिष्ठा दांव पर लगाने के कारण थी। बिना कुछ कहे सर हां में हिला कर राघव को गुड़िया को अंदर बुलाने की इजाज़त दे दी। राघव वैदेही को पापा के पास बैठने को बोल कर खुद गुड़िया की बुलाने बाहर चला गया।
गुड़िया बाहर से ही शीशे के दरवाजे से झांक कर देख रही पापा और भैया को। साथ ही अंदाजा लगा रही थी उनके बीच होने वाले बात चीत की।
भईया राघव को बाहर आते देख गुड़िया बगल में खड़ी हो गई। जिससे वो ना समझ पाएं की वो उन्हे देख रही थी।
राघव गुड़िया के पास आया और उसे समझाते हुए बोला, "देखो गुड़िया…! मैने तुम्हारी बात पर यकीन कर तुम्हे यहां पापा के पास आने दिया। अब तुम्हे अपनी कही बात पूरी करनी है। डॉक्टर ने पापा को किसी भी तरह के स्ट्रेस से दूर रखने को बोला है। पापा ने एक अच्छे पिता का फर्ज हमेशा निभाया है। अब तुम्हारी बारी है। अब तुम अपना एक अच्छी बेटी होने का फर्ज पूरा करो।"
गुड़िया ने राघव को यकीन दिलाया की वो पापा से वादा करेगी की वो उनकी इच्छा अनुसार ही सब कुछ करेगी।
राघव और गुड़िया अंदर आ गए। ठाकुर साहब से नज़र मिलते ही उनकी हालत देख गुड़िया की आंखें आंसू से डबडबा गई। उसके बलिष्ठ पिता एक रात में ही कमजोर से दिखने लगे थे। चिंता से उनके श्वेत रंग पीत नजर आ रहा था। और इन सब की जिम्मेदार वो थी।
गुड़िया एक निश्चय कर आगे बढ़ती है। उसके पास आने पर वैदेही स्टूल से उठ जाती है। गुड़िया उस स्टूल पर बैठ जाती है। फिर पापा के हाथ पर अपना आश्वाशन भरा हाथ रखती है और अपने मुंह से निकले एक वाक्य से ही ठाकुर गजराज सिंह को नए जीवन की संजीवनी दे देती है। वो कहती है, "पापा जैसा आप चाहेंगे वैसा ही होगा।" इतना कह कर गुड़िया ने अपनी आखें झुका ली। पलके झुकते ही दो बूंद आंसू ठाकुर गजराज सिंह के हाथों पर चू गए।
गुड़िया की बात सुन ठाकुर गजराज सिंह एक सुकून भरी सांस लेते है। वो गुड़िया के सर पर अपने कांपते हुए हाथ को रखते है और लड़खड़ाते हुए स्वर गुड़िया को आशीर्वाद देते है, "सदा खुश रहो मेरी गुड़िया। तुमसे मुझे यही उम्मीद थी।"
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