भाग 15
पिछले भाग में आपने पढ़ा की ठाकुर गजराज सिंह सुहास के घर अपनी बेटी गुड़िया का शगुन ले कर जाते हैं। शगुन के बाद विवाह की तारीख ठाकुर साहब जल्दी ही एक माह बाद की तय करते हैं। शादी की तैयारी जोर शोर से शुरू हो जाती है। तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी है। अब शादी में बस कुछ गिने दिन ही बाकी है। ठाकुर साहब गुड़िया को लेने राघव के साथ बनारस जाते हैं अब आगे पढ़े।
ना तो मौसम ज्यादा गर्म था ना ठंडा। गर्मी अपने आगमन की दस्तक दे रही थी, मगर हौले हौले से। दिन में तो मौसम थोड़ा गर्म रहता। मगर सुबह शाम मौसम खूब सुहावना रहता।
वैदेही ने सुबह संजू के साथ मिल कर नाश्ता तैयार करवाया और अच्छे से भर पेट नाश्ता राघव और ठाकुर साहब को करवा दिया। ठाकुर साहब को बाहर के चीजें खाने को मना कर रक्खा था डॉक्टर ने। ठाकुर साहब और राघव घर से बनारस के लिए निकलने लगे तो वैदेही ने राघव को आड़ ले कर समझाया की "अब तो शादी हो ही रही है गुड़िया बेबी की। आप पापा को संभालना अगर कुछ गलत भी दिखे तो बात को संभाल लेना। पापा कुछ कड़वा ना बोलने पाए गुड़िया बेबी को।"
राघव ने वैदेही को आश्वस्त किया की वो किसी भी सूरत में बात को बिगड़ने नही देगा।
दोपहर लगभग साढ़े बारह पौने एक बजे के करीब पिता पुत्र बनारस पहुंचे। अब इस समय गुड़िया अपने हॉस्टल में तो मिलेगी नही। इसलिए वो सीधा कॉलेज में ही गए। क्लास नही चल रही थी। लंच टाइम था। पर गुड़िया कैंटीन में भी नही दिखी। तो एक लड़की से पूछने पर उसने बताया कि वो हो सकता है लाइब्रेरी में हो। फिर लाइब्रेरी का रास्ता बता दिया। वहा पहुंच कर अंदर जा कर ढूढने या पूछने की जरूरत नहीं पड़ी। लाइब्रेरी की सीढ़ियों पर गुड़िया बैठी दिख गई। उसके हाथ में कुछ किताबें थी। एक किताब खुली हुई हाथों में थी उसके। उसका नजरें किताबो पर गाड़ी थी। पहली नज़र में दूर से गुड़िया को देख ठाकुर गजराज सिंह को तसल्ली हुई की बेटी पढ़ रही है। हो सकता है राघव और वैदेही को कोई भरम हुआ हो। ऐसा सोच उनके कलेजे को थोड़ी ठंडक पड़ी। उनके कदम तेजी से आगे बढ़ने लगे गुड़िया की ओर।
पर जैसे जैसे उनके और उनकी लाडली बेटी गुड़िया के बीच की दूरी कम हो रही थी दिल की दूरी बढ़ती ही जा रही थी। पहले कुछ साफ नही दिखा था। पर अब स्पष्ट दिख रहा था,और विश्वास का कांच धीरे धीरे दरक रहा था।
अब वो गुड़िया से थोड़ी दूर पर बुत बने खड़े थे। गुड़िया की हाथ में किताब थी। किताब के बीच में कुछ था जिसे पढ़ कर गुड़िया और उसके बिलकुल करीब सट कर बैठा लड़का पढ़ कर हंस रहे थे। उसके लड़के का हाथ गुड़िया के कंधे पर था और दोनो के सर एक दूसरे से सटे हुए थे। ये सब देख कर ठाकुर साहब के अंदर एक आग सी सुलग उठी। वो समझ गए की राघव और वैदेही ने जो कुछ भी कहा था एकदम सच कहा था। उन्हे ही एक पल को भ्रम हो गया था। आज बिना किसी आवाज के एक पिता के अंदर बहुत कुछ टूट गया था। वो निशब्द खड़े थे। शरीर का कोई अंग टूटने पर कुछ समय बाद जुड़ जाता है। वो टूट सब को नज़र आता है। पर विश्वास टूटने पर बाहर से तो कुछ नज़र नही आता। पर इंसान सदा के लिए टूट जाता है और कभी नही जुड़ता।
राघव भी सब कुछ देख चुका था। पिता की स्थिति का भान कर राघव ने उनके कंधे पर हाथ रक्खा। ठाकुर गज राज सिंह जो बिल्कुल बुत बने एक टक गुड़िया और उसके साथ के लड़के को घूर रहे थे। राघव के कंधे पर हाथ रखने पर ठाकुर साहब कुछ सामान्य हुए और उनकी आंखे राघव की ओर उठी। राघव भी पापा की ओर ही और देख रहा था। उसने अपनी पलके झपका कर आश्वासन दिया और धीरे से उनके कंधे को दबा दिया। फिर वो पापा ठाकुर साहब को वहीं छोड़ गुड़िया के पास बढ़ आया। और आवाज लगाई,"गुड़िया….!"
गुड़िया जो उस लड़के के साथ दूसरी ही दुनिया में विचर रही थी। भाई राघव की आवाज सुन चौक गई। घबराहट से उसका हाल बुरा होने लगा। ये तो भईया है। पर आज अचानक यहां कैसे….? ये उसकी समझ के पर था। कोई वजह उसकी समझ में नही आ रही थी की भईया यहां अचानक क्यों आया है।
गुड़िया ने उस लड़के के हाथों को अपने कंधे से हटाया और बोली, "देखो ..! तुम जाओ। ये मेरे भईया है। (फिर दूर अपनी निगाह दौड़ते हुए बोली) और मेरे पापा भी आए है, वो खड़े है। मैं कुछ न कुछ कर के बात संभाल लूंगी। पर तुम जल्दी यहां से जाओ।"
वो लड़का प्रभास था। उसे इस तरह मुंह चुरा कर जाना बिलकुल भी अच्छा नही लग रहा था। आखिर कभी तो मिलना ही होगा इन सभी लोगो से। तो आज ही क्यों नही। पर उसकी बातो को नज़र अंदाज करते हुए गुड़िया ने उसे जल्दी से भगा दिया। उसके जाते ही खुद खड़ी हुई और किताबे सीढ़ियों पर ही रख कर दौड़ कर भाई के गले लग गई। और बोली, "भईया आप और पापा इस तरह अचानक..? घर में सब ठीक तो है ना..?"
राघव ने बिना कुछ सोचे झट से कह दिया। वो तेरी भाभी की तबियत कुछ ठीक नहीं थी। वो तुझे बहुत याद कर रही थी इसी लिए तुझे लेने चले आए।" राघव ने गुड़िया के बालो पर हाथ फेरते हुए कहा।
अब गुड़िया पापा ठाकुर गजराज सिंह के पास आई और "पापा…" कहते हुए उनके सीने से लग गई। वो ऐसा व्यवहार करना चाह रही थी की पापा और भैया ने जैसे कुछ देखा ही न हो।
ठाकुर साहब ने राघव को ये कहते सुन लिया था की वैदेही की तबियत ठीक नहीं इस लिए उसे लेने आए है। ये युक्ति जंच गई। सख्ती या सच बताने से मामला बिगड़ सकता था। इस लिए वो भी बोले, "गुड़िया जल्दी कर तुझे जो कुछ भी लेना हो चल कर ले ले। फिर घर चलें।"
अब गुड़िया परेशान हो गई। वो चिड़चिड़ाते हुए बोली, "पापा..! आप कुछ नही समझते। मेरा एग्जाम है। मैं भला कैसे चल सकती हूं..?भाभी की तबियत खराब है तो डॉक्टर को दिखाओ। मैं भला क्या करूंगी जा कर..?"
राघव बोला,"तभी तो कह रहें है। चल हॉस्टल चल के अपनी किताबें कापियां ले ले। घर पे ही पढ़ लेना। एग्जाम देने फिर आ जाना।"
गुड़िया बोली, "पर पापा…!"
ठाकुर साहब का रोबीला चेहरा सख्त हो गया। वो बोले, राघव इससे कहो कोई बहस नहीं। घर चलना है तो चलना है बस।"
राघव बात को संभालते हुए बोला, "हां..! तो पापा ..! चल रही है ना ये। बस हॉस्टल चल के इसका सामान ले लेते है।"
राघव उसका हाथ पकड़ कर बाहर की ओर चल पड़ा।
"चल गुड़िया…" कहते हुए।
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