भाग 14
पूर्व के भाग में आप सब ने पढ़ा की ठाकुर साहब और राघव गुड़िया के ब्याह का फैसला करते है। इसी क्रम में राघव को भेज कर ठाकुर गजराज सिंह अपने कुल पुरोहित को बुलाते है। पंडित जी अपने कई रईस यजमानों के बेटे और उनके कुल के बारे में ठाकुर साहब और राघव को बताते हैं। पर उन्हे कोई लड़का नहीं जंचता। अब आगे पढ़े।
ठाकुर साहब और राघव को पंडित जी का बताया कोई भी लड़का गुड़िया के लिए नहीं जंचता। हार कर पंडित जी उनसे पूछते है, "यजमान अब आप ही हमको बताइए..? आपको कैसा लड़का चाहिए…? गुड़िया बिटिया के लिए.। मैने जितने भी रिश्ते आपको बताए सब एक से बढ़ कर एक रईस, उच्च कुल के और प्रतिष्ठा वाले है। पर पता नहीं क्यों आपको नहीं पसंद आ रहा है…? अब आप ही बताइए आपको कैसा दामाद चाहिए..? फिर मैं कोशिश करता हूं।" बुझे मन से पंडित जी बोले।
ठाकुर गजराज सिंह पंडित जी को अपनी पसंद बताते हुए कहते है,
"देखिए पंडित जी..! मुझे धन दौलत से कोई सरोकार नहीं है। क्योंकि जहां भी मैं गुड़िया की शादी करूंगा उन्हें अपनी आधी जायदाद दे दूंगा। इसलिए रईस होना कोई जरूरी नहीं। असली दौलत लड़के की योग्यता होनी चाहिए। वो परिश्रमी और पौरुष वाला और सुदर्शन जरूर होना चाहिए। जो मेरी बेटी को सम्मान और बराबरी का दर्जा दे सके। मुझे भी अपना ससुर ना समझ कर पिता समझे।"
ठाकुर साहब ने अपनी मन की बात पंडित जी को बताई।
पंडित जी, ठाकुर साहब की बात सुन कर कुछ देर सोचते है। वो अपने जानने वालों में ठाकुर साहब की पसंद के अनुसार लड़के को याद करने की कोशिश करते हैं। और फिर याद आने पर चहकते हुए अपने हाथ पर हाथ मारते हुए कहते है,
"ठाकुर साहब..! जैसा लड़का आप चाहते है, अभी जो आपने बताया, उसके बिलकुल अनुरूप एक लड़का है मेरी निगाह में, पर मेरे पास उसकी कोई फोटो नहीं है। में तो ये सोच कर उसकी फोटो नही लाया की आपको तो कोई रईस घराना ही पसंद आएगा। पर ठाकुर साहब मेरा यकीन करिए की इतना सुदर्शन है लड़का की आप नापसंद कर ही नहीं सकते। वो अपना दवाखाना चलाता है। उसके पिता जी पुराने वैद्य है। उनका नाम आपने भी जरूर सुना होगा।"
फिर पंडित जी ने सुहास के परिवार और उसका पूरा ब्योरा ठाकुर साहब को दे दिया। ठाकुर साहब और राघव को पंडित जी का बताया ये रिश्ता भा गया। जो रिश्ता पंडित जी ने बताया वो बिलकुल ठाकुर साहब की आशा के अनुसार था।
ठाकुर गजराज सिंह पंडित जी से बोले, "अच्छा पंडित जी ..! ये बताइए हम कब उनके घर चल सकते हैं रिश्ते की बात करने के लिए।"
पंडित जी बोले,
"यजमान वो हमारे यहां कहा गया है ना.. शुभस्य शीघ्रम। तो चलिए आज ही आपको ले चलता हूं जगदेव जी के यहां। आप गुड़िया बिटिया की एक फोटो ले लीजिए और चलिए।"
आनन फानन में ही जगदेव सिंह जी के घर रिश्ता ले कर जाने की तैयारी होने लगी। पंडित जी, जगदेव सिंह के पड़ोस में ही रहते थे । इसलिए ठाकुर साहब के एक नौकर को भेज कर उनके घर कहलवा दिया की, ठाकुर गजराज सिंह सुहास के लिए अपनी बेटी का रिश्ता ले कर आ रहे है। जिससे वो भी ठीक ढंग से लड़की वालों का स्वागत कर सके।
इधर ठाकुर साहब भी अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप फल और मिठाइयों का प्रबंध करवाने लगे।
चंद घंटों बाद ही ठाकुर गजराज सिंह जी जगदेव सिंह के घर हाजिर थे। सुहास से मिल कर ठाकुर साहब प्रफुल्लित हो गए। सुहास बिलकुल वैसा ही लड़का था जैसा ठाकुर साहब चाहते थे। सुहास उन्हे देखते ही पसंद आ गया। सुहास ठाकुर साहब की दामाद की कल्पना के खांचे में बिलकुल फिट बैठ रहा था। नतीजन ठाकुर साहब ने बिना समय गंवाए शादी पक्की करने का फैसला कर लिया। (फिर जो कुछ भी हुआ वो आप सब पिछले भाग में पढ़ चुके है।)
आज की रात ठाकुर साहब की पलके क्षण भर को भी नहीं मुदी। सारा कुछ पिछला घटना क्रम उनकी आखों के आगे चलचित्र की भांति घूमता रहा।
राघव बड़ी देर बीती रात तक तैयारियों का जायजा लेता रहा। वैदेही की सारे कपड़े, साड़ियां और सूट पीस व्यवस्थित करती रही। सास के ना होने से उसकी जिम्मेदारी बहुत ज्यादा थी। संजू की मदद से सब पूछ पूछ कर करती रही। ऐसा ना हो की कोई कमी रह जाए। और लोग कहे की भाभी ही तो थी। मां होती तो ऐसा थोड़ी ना होता..? वो होती तो सब अच्छे से करती। यही डर वैदेही को कुछ ज्यादा सतर्क कर दे रहा था। वैदेही ने इतनी साड़ियां, इतने उपहार की व्यवस्था कर दी थी की सुहास की मां लीला देवी चाहे जितना सब रिश्तेदार और पड़ोसियों को बांटती कम नहीं होता।
दूसरी सुबह लीला ने सुहास के लाख कहने पर भी उसे उसके दवा खाने नही जाने दिया। सुहास के लिए नया सूट, और समधी जगदेव जी के लिए बढ़िया सिल्क का धोती कुर्ता, गजराज सिंह ने सुबह ही नौकर के हाथ भिजवा दिया था। कंजूस जगदेव जी खुश थे की उनका कपड़े पे खर्च होने वाला पैसा भी बच गया। पर उन्हे अफसोस इस बात का था की अगर प्रभास यहां होता तो उसका भी कपड़ा मिल जाता। जगदेव जी ने नौकर से कहने की कोशिश की पर लीला ने बात पलट कर उन्हे कुछ भी कहने से रोक लिया।
दोपहर बाद ठाकुर साहब अपने पूरे लाव लश्कर के साथ शगुन देने आए। लीला और जगदेव जी की खुशी का ठिकाना नहीं था। जब इतना सब कुछ वो शगुन में दे रहे है तो शादी में तो पता नहीं क्या क्या देंगे…….?
लीला की मनोकामना पूर्ण हो रही थी। आस पास तो क्या पूरे गांव में उनकी बहू जितनी सुंदर किसी की बहू नही थी। उसके पांव जमीन पर नही पड़ रहे थे। समधियाने से आई बनारसी साड़ी पहन कर गर्व से वो सब को ठाकुर साहब के देन लेन के बारे में बढ़ा चढ़ा कर बता रही थी।
ईश्वर की कृपा से शगुन का कार्यक्रम अच्छे से निपट गया। एक महीने बाद का शादी का मुहूर्त निकला था। इस बार भी ठाकुर गजराज सिंह ने जगदेव सिंह जी और लीला को आश्वस्त किया की "आप किसी भी तरह की चिंता ना करें दोनो तरफ की तैयारी मेरी जिम्मेदारी होगी। आप बस समय से बारात और दूल्हे को ले कर आ जाइएगा। "
इतना कह ठाकुर गजराज सिंह ने अपने दोनो हाथ जोड़ दिए उनके सामने।
ठाकुर साहब जानते थे की शादी की तैयारी के लिए एक महीने का वक्त बहुत कम होता है। खास कर जब शादी भव्य तरीके से धूम धाम से होनी हो तो ये वक्त और भी कम हो जाता है। वो राघव और वैदेही के साथ बैठ कर सब कुछ सुनियोजित तरीके से निपटा रहे थे।
पंद्रह दिन पलक झपकते ही बीत गए। वैदेही बोली,"पापा सारी तैयारियां तो हो रही है, पर अभी तक गुड़िया बेबी का कोई भी कपड़ा नहीं खरीदा गया है। उन्हे तैयार होने भी तो कुछ वक्त लगेगा..? अब आप और देर मत करिए।"
ठाकुर साहब बोले, ऐसा करो तुम और राघव बनारस जा कर गुड़िया के कपड़े वगैरह खरीद लो। बिना गुड़िया को कोई जानकारी दिए राघव और वैदेही एक दिन बनारस गए और सब कुछ खरीद लाए। गुड़िया के लिए बनारसी सिल्क की साड़ी, लहंगा, जड़ाऊ जेवर सब कुछ।
इधर गुड़िया इन सब बातों से बेखबर थी। घर में क्या क्या हुआ..? उसके भविष्य का क्या फैसला हुआ, उसे कुछ भी मालूम नही था…? वो तो पढ़ाई पूरी कर प्रभास के संग एक नई दुनिया बसाने का सपना देख रही थी। उसकी कल्पना में आगे का जीवन बस प्रभास के संग ही दिखता था उसे ये विश्वाश था की पापा उसकी खुशी को कभी मना नहीं करेंगे।
प्रभास के भी घर से चिट्ठी आई थी। उसके भईया सुहास की शादी तय हो गई थी और दस अप्रैल को थी। और उसके एग्जाम पन्द्रह अप्रैल से शुरू थे। वो जब रश्मि से मिला तो झल्लाते हुए बोला,"अब क्या बताऊं तुम्हें अपने घर वालों के बारे में..? महान है वो। अब मेरा एक ही भाई है और उसकी शादी ठीक एग्जाम के पहले तय कर दी है। अब तुम बताओ मैं क्या करूं…? ना… ही मैं शादी छोड़ना चाहता हूं, और ना ही एग्जाम। पर अगर शादी में गया तो पक्का है मेरा गोल्ड मैडल का सपना अधूरा रह जायेगा। और तुम तो जानती हो मैं अपने अधूरे सपने के साथ नही जी सकता। मेरे जीवन में दो ही सपना है। एक गोल्ड मैडल पाकर अच्छी नौकरी का और दूसरा तुम्हारे इन जुल्फों के साए में जीवन बिताने का। मैं सच कहता हूं। रश्मि अगर एक भी सपना अधूरा रहा तो मैं जी नही पाऊंगा। अब मैं अपने इकलौते भईया की शादी में नही जा पाऊंगा।"
सब कुछ ठीक हो जाने के बाद शगुन के बीस दिन बीत जाने के बाद आज गुड़िया को वापस लेने राघव बनारस जाने वाला था। राघव के लाख मना करने के बाद भी ठाकुर साहब नही माने वो भी साथ चलने को तैयार हो गए। वो अचानक पहुंच कर सब कुछ अपनी आंखों से देखना चाहते थे। फिर गुड़िया राघव के साथ आ जायेगी इसका भी उन्हे संदेह था। क्योंकि एक्जाम होने वाले थे। और गुड़िया किसी भी हालत में एग्जाम नही छोड़ेगी। और शादी के लिए तो बिलकुल भी नहीं। इस लिए जो कुछ भी करना था, वो गुड़िया को बिना कुछ पता लगे ही करना था।
अब आगे के भाग में पढ़े क्या राघव अपने साथ ठाकुर साहब यानी अपने पापा को ले कर बनारस गया? क्या गुड़िया उनके साथ आने को तैयार हुई..? क्या बहाना बनाया आखिर ठाकुर साहब ने बेटी को घर वापस लाने के लिए। पढ़े अगले भाग में।
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