Nakaab - 7 in Hindi Fiction Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | नकाब - 7

Featured Books
  • तिलिस्मी कमल - भाग 22

    इस भाग को समझने के लिए इसके पहले से प्रकाशित सभी भाग अवश्य प...

  • आई कैन सी यू - 20

    अब तक कहानी में हम ने पढ़ा की दुलाल ने लूसी को अपने बारे में...

  • रूहानियत - भाग 4

    Chapter -4पहली मुलाकात#Scene_1 #Next_Day.... एक कॉन्सर्ट हॉल...

  • Devils Passionate Love - 10

    आयान के गाड़ी में,आयान गाड़ी चलाते हुए बस गाड़ी के रियर व्यू...

  • हीर रांझा - 4

    दिन में तीसरे पहर जब सूरज पश्चिम दिशा में ढ़लने के लिए चल पड...

Categories
Share

नकाब - 7

भाग 7

आपने पिछले भाग में पढ़ा की लीला बेटे सुहास को गजराज सिंह जी की बेटी की फोटो दिखाती है और उसकी पसंद पूछती है। ठाकुर गज राज सिंह अपने मुनीम को दूसरे दिन ही शगुन ले कर आने की बात करते है। अब आगे पढ़े….

जगदेव सिंह जी बेटे सुहास की शादी करना तो चाहते थे, पर इस तरह अचानक से वो तैयार नही थे कल ही शगुन लेने के लिए। आखिर उन्हे भी तो तो कुछ तैयारियां करनी होगी। कुछ रिश्तेदारों को बुलाना होगा। और फिर प्रभास भी तो नहीं है। बिना एग्जाम खत्म हुए वो आयेगा नही। आखिर वो सुहास का इकलौता भाई है। जब वो ही नहीं होगा तो क्या शगुन लेना अच्छा लगेगा ..? अभी वो सोच ही रहे थे की क्या जवाब भिजवाए ठाकुर गज राज सिंह को..?

ठाकुर गजराज सिंह का मुनीम जो जलपान समाप्त कर चुका था, बोला, "मेरे सरकार ने कहला भेजा है, आप बिल्कुल भी तैयारी की चिंता न करे। कल सुबह से ही वो अपने आदमी आपके यहां तैयारी के लिए भेज देंगे। अपने कुछ खास खास आस पास के रिश्तेदारों को बुला लीजिए। शगुन हो जायेगा फिर शादी में सारे अरमान पूरे कर लीजिएगा। मुनीम ने जगदेव सिंह को समझाया।

जगदेव सिंह ने सोचा जब सारी तैयारी ठाकुर साहब ही करवाएंगे तो उन्हे क्या आपत्ति है..? उनका तो खर्च ही बच जायेगा। रही बात रिश्तेदारों की तो उन्हे शादी में बुला लिया जाएगा। जगदेव जी ने मुनीम से अपनी अंदर की मंशा को छुपाते हुए कहा,"मैं तो नहीं चाहता की इतनी जल्दी शगुन का कार्यक्रम हो जाए। पर अब जब ठाकुर साहब इतने अरमान से सब तैयारियां खुद ही करवा दे रहे है तो मना कैसे कर सकता हूं..?"

मुनीम जी ने जगदेव सिंह की सहमति जान अपना हाथ जोड़ दिया और मुस्कुराए फिर बोले, "बधाई हो सिंह साहब.. आपको बहुत बधाई हो बेटे का शगुन पक्का होने पर। फिर ठीक है मैं जाता हूं। अपने सरकार से कह दूंगा की आपको कोई एतराज नहीं है, कल शगुन लेने में।" उठते हुए मुनीम जी बोले।

"ठीक है ! फिर आप जा कर गजराज जी से कह दीजिएगा की उनका आग्रह हम कैसे टाल सकते है..? कल वो शगुन ले कर आए उनका इस घर में हार्दिक स्वागत है।" मुनीम जी जगदेव सिंह जी से विदा ले कर चले गए।

लीला अंदर से सब कुछ दिन रही थी। मुनीम जी के जाते ही बाहर आ गई। वो खुश थी की कल ही बेटे का शगुन आर रहा है। वो भी ठाकुर गजराज सिंह के घराने से। साथ ही घबरा भी रही थी की इतने कम समय में सब कुछ कैसे निपट पाएगा.? लीला चहकते हुए पति से बोली, "शगुन तो ले रहे हो बेटे का। सोचा है इतनी जल्दी सब कुछ कैसे होगा? "

जगदेव जी पत्नी से बोले, "तुमने सुना नही..? सारी तैयारी ठाकुर साहब ही करवाएंगे। अब जो कम ज्यादा होगा वो जाने उनका काम जाने। तुम तो बस आस पास के कुछ करीबी लोगों को बता दो और कल का निमंत्रण दे दो। बाकी जो प्रभु की इच्छा।" हाथ ऊपर उठाते हुए जगदेव जी बोले "अब जब वो इतनी शीघ्र सब कुछ करना चाहते है तो फिर यही सही।" कह कर प्रसन्नता से लीला की ओर देखा।

जैसे पूरे घर में तूफान सा आ गया। लीला ने मिठाई से आस पास के एक दो और मजदूर को बुलवा लिया। सारा घर चका चक करवाने में जुट गई। शाम तक सब कुछ साफ सुथरा हो चुका था। साथ ही ठाकुर गजराज सिंह के आदमी बाहर शामियाना, और खाने पीने की सामग्री के साथ आ गए। बाहर दरवाजे पर सुंदर सा शामियाना लगने लगा। हलवाई अपना सारा साजो सामान सजाने लगे। तरह तरह की मिठाई और पकवान बनाने की तैयारी होने लगी।

रोज की तरह रात नौ बजे तक सुहास घर आया। उसने देखा कि पूरे घर का काया कल्प हो चुका था। घर पहचान में ही नहीं आ रहा था की ये वही घर है जिसे वो सुबह छोड़ कर गया था। वो हैरान सा घर के अंदर आया। पहला सामना मिठाई से ही हुआ। सुहास ने हाथ से आस पास इशारा करते हुए मिठाई से पूछा, "ये सब क्या है मिठाई..?"

मिठाई मुस्कुराते हुए बोला, "आपको नही पता भईया जी..? कल आपका शगुन आ रहा है.. ठाकुर साब के यहां से।" सुहास के चेहरे पर हैरानी के भाव देख कर मिठाई बोला, "अरे..! वही ठाकुर साब जो कल घर आए थे और आपकी दुकान पर भी गए थे।"

सुहास ने सर हिलाया और अपना बैग मिठाई को पकड़ा कर वो खुद हाथ मुंह धोने चल गया।

वापस आया तो मां उसके कमरे में बैठी थी। उसे देखते ही मिठाई को आवाज लगाई, "अरे!!! मिठाई…. भईया के लिए खाना तो ले आ।" मां अपने ही हाथों से अपना पैर दबा रही थी।

मां को खुद से ही पैर दबाते देख सुहास ने पूछा, "क्या हुआ मां..? दर्द है पैरों में ..?"

मां को तो बस यही मौका ही चाहिए था, वो बोल पड़ी,"हां ! बेटा बहुत दर्द है। हो भी क्यों ना..? आज सारा दिन तो चलना पड़ा है मुझे। वो आज सुबह तेरे दुकान जाते ही ठाकुर साहब का मुनीम आ गया उनका संदेश ले कर। वो चाहते है की कल ही तेरा शगुन चढ़ा दे। क्योंकि ठाकुर साहब के पंडित ने कहा है की कल बहुत ही शुभ मुहूर्त है। इसके बाद एक महीने तक कोई मुहूर्त नही है। अब जब शगुन चढ़ेगा तो तैयारियां भी तो करनी होगी। उसी सब में सारा दिन दौड़ भाग में मैं लगी रही। पर काम है की खत्म ही नहीं हो रहे। जैसे ही एक काम निपटा कर बैठती हूं दूसरा याद आ जाता है।" इतना कह कर वो सुहास की ओर देखने लगी। उसके चेहरे के भाव को पढ़ने की कोशिश करने लगीं। मिठाई ने अब तक खाना ला कर सुहास को दे दिया था। सुहास आहिस्ता आहिस्ता खा रहा था। उसके चेहरे पर ना तो खुशी के भाव थे ना ही उदासी थी। वो बिलकुल निर्विकार था। खाते खाते बोला, "इतनी भी क्या जल्दी थी ठाकुर साहब को। अभी कल ही तो आए थे, और कल शगुन भी चढ़ा देंगें। नही है मुहूर्त तो एक महीने बाद ही होता। ऐसी भी क्या आफ़त आई थी।" बिना मां की ओर देखे ही सुहास बोला।

मां बोली, "तू नही समझेगा बेटा..! वो एक बेटी के बाप है। और बेटी का बाप जल्दी से जल्दी अपनी जिमेदारी निपटा देना चाहता है। ऐसा ही वो भी सोचते होंगे। तेरे बाऊ जी तो मना कर रहे थे की इतनी जल्दी सारी व्यवस्था ना हो पाएगी..! पर वो माने ही नहीं बोले सारी तैयारी उनके जिम्मे छोड़ दो। अब सब कुछ वही तो करवा रहे है। यहां तक की तेरे कपड़े भी वही तैयार करवा रहे। एक पुराना नाप मंगवाया था जो मैने दे दिया।" सुहास को खामोश देख मां फिर बोली, "अब ब्याह तो तेरा करना ही है। शुभ काम जितनी जल्दी हो जाए उतना ही अच्छा है। अब बहू आ जाए तो मुझे भी कुछ आराम मिल जाए।"

सुहास दिन भर का थका हुआ था। खाना खत्म कर मां के पास आकर बैठा और बोला, "मां अब मैं सो जाऊं??"

मां ने सुहास के सर पर हाथ फेरा और बोली, "हां बेटा! सो जा..। मैं भी थकी हुई हूं, सुबह ही फिर उठना है। जाऊं मैं भी सो जाऊं।" कहते हुए सुहास की मां उठ कर चली गई।

इधर ठाकुर गजराज सिंह सारी व्यवस्था की देख रेख खुद कर रहे थे। ये उनकी इकलौती बेटी की शादी का पहला कार्यक्रम होने वाला था। इसमें वो कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते थे। बेटा राघव और बहू वैदेही भी तैयारी में कोई कोर कसर नही छोड़ना चाहते थे। सब कुछ बिलकुल ठीक चल रहा था। राघव ने ठाकुर साहब को ये आश्वाशन दे कर कहा, "पापा आप जाइए आराम करिए बहुत थक गए होंगे। अब मैं सब देख लूंगा।" अनुरोध कर गजराज सिंह को सोने भेज दिया।

बेटे के आश्वाशन पर गजराज सिंह अपने कमरे में सोने चले आए। दिन भर तो एहसास नही हुआ पर लेटते ही महसूस हुआ की वो बहुत ज्यादा थक गए है। अपनी आंखे बंद कर बिस्तर पर लेट गए और सोने की कोशिश करने लगे। पर इतना थके हुए होने के बावजूद नींद आखों से कोसो दूर थी। उनकी सोच का घोड़ा सरपट दौड़ा जा रहा था। उन्हें इस तरह जल्दी बाजी में अपनी बेटी की शादी करनी पड़ेगी कभी सोचा नहीं था। वो अपने ख्यालों में कुछ वक्त पीछे चले गए।

ऐसा क्या हुआ होगा जो ठाकुर गजराज सिंह को अपनी लाडली बेटी की शादी जल्दी करने का निर्णय लेना पड़ा। आखिर उनकी बेटी ने ऐसा किया क्या था..? क्या सुहास इस शादी को दिल से अपना पाएगा..? आखिर कजरी इस तरह अचानक घर गांव सब कुछ छोड़ कर कहां चली गई..? पढ़े अगले भाग में।

*****