Wo Tum the ??? - 4 in Hindi Horror Stories by Darshana books and stories PDF | वो तुम थे??? - 4

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वो तुम थे??? - 4

आगाज़ हो रहा है मिलने का.....
सालो से रुके समय के हिलने का...

शिवल्या और विक्रम दोनों ही उस बूढ़े आदमी के साथ जंगल में घुस जाते है। थोड़ी देर चलने पर ही एक पुराने मंदिर की आकृति और पताका दूर से ही नज़र आ रही होती है। उस मंदिर को देखकर ना जाने कुछ धुंधली यादे
शिवल्या को दिखाई और सुनाई देने लगती है, जैसे एक लड़की की बुलंदी से कहती हुई आवाज़ कि हम अपना कर्तव्य निभाएंगे?? और फिर से वही आवाज़ कि तुम्हारे लिए हम अपना कर्म स्थान छोड़ रहे है पर अपने कर्तव्य से चूकेंगे नहीं!!!

और सन्नाटे में गूंजती वहीं आवाज़ कि हम तुमसे हारे नहीं पर अपने कर्तव्य से चुके है। जिसे निभाने हम जरूर आएंगे।।।

साथ ही साथ अचानक से किसी आदमी की चीखती रोती आवाज़:- शिविका...............

इन आवाजों को सुन शिवल्या के मन में उथल पुथल मच गई कि आखिर कौन है शिविका??? और कैसे कर्तव्य और उसे छोड़ना??????????
पर इस बार वो विक्रम को कुछ नहीं बताती क्योंकि उसे लगता है कि ये सब उसका भ्रम है।

पर कुछ देर बाद ही उसे सब कुछ अजीब लगने लगता है। उसके मन में सवाल उठता है कि जो विक्रम एक मिनट भी उससे बात किए बिना नहीं रहता, वो काम से काम पैंतीस मिनट से एकदम चुप है। पर फिर वो सोचती है शायद मेरे डांटने की वजह से तो वो नाराज़ नहीं।।।

बात करने का बहाना बनाते हुए वो विक्रम से कहती है कि विकी मेरी घड़ी खराब हो गई है? ज़रा टाइम बताना।

विक्रम एक मिनट तक कुछ नहीं बोलता। पर जब बूढ़ा आदमी उससे अपना वश एक मिनट के लिए हटा देता है
वो कहता है:- बारह बजे है।

शिवल्या:- बारह बजे है।ठीक है! पर क्या तुम्हे और कुछ नहीं कहना है??

विक्रम:- नहीं अभी नहीं। पहुंचकर बात करेंगे।

ढेरो सवाल है शिवल्या के अंदर
पर क्या है उसका जवाब?? बूझो तो जाने!!


आगे

जंगल में सफर करते हुए विक्रम और शिवल्या दोनों ही शिव मंदिर के पास पहुंच जाते है जिसकी हालत काफी खराब लगती है। बाहर से देखने पर उसका ढांचा बेहद पुराना लगता है पर साथ ही साथ एक गहरा आकर्षण है
जिसके कारण शिवल्या बिना कुछ सोचे समझे उस मंदिर में बिना डर चली जाना चाहती है। उसे उस मंदिर के पास आकर एक परिचित सा अहसास होता है। और विक्रम भी उसके साथ मंदिर में घुस जाता है।

पर बूढ़ा आदमी उन्हें उस मंदिर के अंदर घुसते हुए दूर से देखता है और कहता है:- मेरा काम खत्म हुआ समीर......

दूसरी ओर समीर हवाओं में कहता है:- शुक्रिया चालबाज।
अब वो समय अा गया है। मेरी आज़ादी और उसकी बर्बादी का......

बूढ़ा आदमी तुरंत ही वहां से गायब हो जाता है। और किले के अंदर पहुंच जाता है। और जैसे ही चांद की पूरी रोशनी हटती है वो अपने असली वैंपायर रूप में अा जाता है। उसकी आवाज़ सुन किले का पत्ता पत्ता भी जैसे कपकपा उठता है और जानवर भी डर से भागने लगते है। कुछ ही देर में चांद भी अपनी चांदनी बटोर बादलों में गायब हो जाता है। और उस आदमी का रूप बदलने लगता है। जितना खूंखार वो उस रूप में लगता है उतना ही स्नेहिल अपने असली रूप में लगता है। एक बूढ़े आदमी से वो एक हठीले नौजवान की तरह लगने लगता है। उसकी चींखें उसके आसुओ में तब्दील हो जाती है कि तभी उसके टूटे मन को सहारा और उसके निराश दिल को कंधा देने के किले से एक परछाई निकलती है। जो उसके करीब आते आते और साफ दिखने लगती है।

वो परछाई समीर की होती है जो कि उस नौजवान को कहती है:-

क्या हाल बना लिया है तुमने चालबाज़?? तुमने अपना काम तो ठीक से किया पर अब कमजोर क्यों पड़ रहे हो!!
जानते हो ना की कमजोरी कायरो की निशानी है!! और कमजोरी हमारे खून में नहीं है। अपनी शक्तियों को काबू में रखो??

चालबाज:- किसलिए?? तुम जानते हो कि प्रारब्ध ने उसके लिए तुम्हे नहीं चुना था। तो फिर क्यों ये बेकार कोशिशें????

समीर:- जरूरी नहीं कि अतीत खुद को बार बार दोहराएं?? इस बार वो भी मेरी है और उसे पाने का प्रारब्ध भी!!

चालबाज:- अतीत में भी तुमने प्रारब्ध बदलकर उसे पाने की भूल की थी नतीजा क्या हुआ, तुम जानते हो तो फिर अब क्यों??? शिविका की मृत्यु का मज़ाक मत बनाओ। वो आज भी उसे चुनेगी तुम्हे नहीं!!

समीर:- ऐसा मै होने नहीं दूंगा और तुम्हे भी मेरी बात माननी होगी। समझे श्लोक।

चालबाज:- हां मै तो श्लोक था और तुम सुरम्य। फिर हम चालबाज और समीर क्यों बने?? और कब तक ऐसा रहेगा सुरम्य।

समीर:- सुरम्य मर चुका है। आज सिर्फ समीर है जो अपनी शिविका के लिए इस नई सभ्यता में जिंदा है। जिसके दिल से अपनी शिविका के लिए कई जज़्बात दफन है।
इतने में वो अपनी आंख बंद कर लेता है और बोलता है:- शिविका सुनो मेरे दिल के शब्द.......

दूर होकर भी तेरे करीब होने में एक अलग ही मज़ा है
अगर तू खुश ना हो तो सब कुछ ही सज़ा है
क्या खूब कहूं मै तेरे बारे में तुमसे यार
तेरी यारी मिल जाना एक अलग ही मज़ा है।।

शिवल्या मंदिर की चौखट पर पहुंचने वाली होती है कि तेज धूल भरी आंधी चलने लगती है। वो अपनी आंखे बंद कर लेती है और उसे समीर के वही शब्द सुनाई देते है कि:- तेरी यारी मिल जाना एक अलग ही मज़ा है!!

पर शिवल्या को लगता है कि ये सब विक्रम ने कहा है जिसे सुन उसके गाल गुलाबी हो जाते है और मंदिर की चौखट पर पैर रखने पर उस बूढ़े आदमी यानी श्लोक के वश से विक्रम आज़ाद हो जाता है पर उसे वो बात याद नहीं होती।

विक्रम और शिवल्या दोनों मंदिर में घुस जाते है। शिवल्या को शरमाते देख विक्रम को लगता है कि शिवी उसे यहां लाई है। पर हकीकत से वो अनजान है।

इस शिव मंदिर का क्या रहस्य है??
और शिवल्या का इससे संबंध क्या है?? आदि कई सवाल है पर उनका जवाब बड़ा मुश्किल है!!!!!!!!!!!